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SPECIAL: मिट्टी को छूकर 'सोना' बना देती है सुंदरी, सात समंदर पार तक पहुंची चमक

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Published : Oct 15, 2019, 11:49 AM IST

Updated : Jul 25, 2023, 8:00 AM IST

प्रदेश के सरगुजा जिले की सुंदरी बाई भित्ति चित्र बनाने की कला में पारंगत है. सुंदरी कई देशों में अपनी कला का प्रदर्शन कर चुकी हैं और कई पुरस्कारों से उन्हें नवाजा जा चुका है.

भित्ति चित्र बनाने की कला से पारंगत है सुंदरी बाई

सरगुजा : सुंदरी बाई...ऐसा लगता है मां सरस्वती ने इनके नाम का हुनर इनके हाथों में डाल दिया. इन्होंने मिट्टी पर अपने हाथों से ऐसा जादू फेरा कि इस जादू को देखने वालों की होड़ लग गई. न सिर्फ भारत में बल्कि दुनिया के कई देश भित्ति चित्र बनाने वाली इस कलाकार के कायल हैं.

भित्ति चित्र बनाने की कला से पारंगत है सुंदरी बाई

मिट्टी, गोबर, चूना और रंगों का अद्भुत मिश्रण जब सुंदरी बाई के हाथों से गढ़ा जाता है, तो किसी चमत्कार से कम नहीं दिखता. अपने घर को भी उन्होंने अपनी कला से ऐसे सजा रखा है कि एक बार को निगाहें नहीं हटती. सुंदरी कई देशों में अपनी कला का प्रदर्शन कर चुकी हैं और कई पुरस्कार उनकी झोली में आ चुके हैं. बचपन में मिट्टी से खिलौने बनाने वाली सुंदरी को नहीं पता था कि एक दिन भित्ति चित्र बनाने की कला उनकी पहचान बन जाएगी.

ईटीवी भारत की टीम सुंदरी बाई के घर पहुंची हालात वैसे ही आम थे जैसे अमूमन ग्रामीणों के होते हैं. घर पर उनके नाती ने बताया कि एक बड़ा सामूहिक परिवार एक साथ रहता है और खेती करके ही उनका गुजारा होता है. हांलाकि सुंदरी बाई की कला से जो थोड़ी बहुत इनकम होती है उसी से बेहतर जीवन यापन यह लोग कर पाते हैं.

कई देशों में गईं, कई पुरस्कार मिले-

  • साल 2003 में वे पहली बार विदेश गई. उन्हें इंग्लैंड के बर्मिंघम शहर में अपनी कला का प्रदर्शन करना था.
  • साल 2010 में फ़्रांस की राजधानी पेरिस में भारतीय आदिवासी-लोक कला की एक विशाल प्रदर्शनी आयोजित की गई, जिसमें सुंदरी बाई की बनाई कलाकृतियां प्रदर्शित थीं. वहां उन्होंने अपनी कला का जीवंत प्रदर्शन भी किया.
  • भोपाल स्थित राष्ट्रीय मानव संग्रहालय एवं जनजातीय संग्रहालय और दिल्ली स्थित संस्कृति संग्रहालय में सुंदरी बाई की बनाई कलाकृतियां प्रदर्शित हैं.
  • सुंदरी बाई का जब बहुत नाम हो गया और उन्हें अनेक शहरों में अपनी कला के प्रदर्शन के लिये बुलाया जाने लगा तब इनके पति केंदूराम ने भी इनके काम में रूचि लेना शुरू किया और सहयोग भी करने लगे.
  • साल 1989-90 में मध्य प्रदेश शासन द्वारा सुंदरी बाई के अद्भुद शिल्प कौशल के लिए उन्हें शिखर सम्मान से सम्मानित किया. यह मध्य प्रदेश शासन द्वारा किसी लोक-आदिवासी कलाकार को दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान है.
  • इसके बाद साल 2010 में भारत सरकार और फिर केरल सरकार द्वारा पुरस्कारों से सम्मानित किया गया.
  • वहीं तत्कालीन रमन सरकार ने सुंदरी बाई के लिए 5 हजार रुपये प्रतिमाह की व्यवस्था कर रखी है.

धीरे-धीरे सुधरती गई स्थिति
शुरुआती दिनों में सुंदरी बाई की आर्थिक स्थिति कुछ अच्छी नहीं थी, घर भी छोटा था लेकिन उनकी कला की प्रसिद्धी साथ उनकी आर्थिक स्थिति भी सुधरती गई. अब उन्होंने बड़ा सा घर बना लिया है. आंगन, गलियारे और कमरे, समूचा घर उनके बनाये भित्ति अलंकरणों से भरा हुआ है.

कला ने दी अलग पहचान
सुंदरी बाई का मायका पुहपुटरा गांव में है. लगभग 65 साल की सुंदरी बाई की माता दौली बाई और उनके पिता सुखदेव रजवार गरीब किसान थे. 11 साल की आयु में सुंदरी बाई का विवाह सिरकोतंगा गांव के केंदुराम रजवार से हो गया था. वे कहती हैं बचपन से ही मिट्टी में और मिट्टी से खेलने का शौक था. घर के अन्य छोटे बच्चों के लिए मिट्टी के खूब खिलौने बनाती थी, वही सब बनाते -बनाते दीवारों पर चित्र बनाने लगीं.
सवाल बस इतना सा है कि क्या इस अद्भुत कला के लिए कलाकार के लिए 5 हजार काफी हैं. साथ ही सरकार को इस विलुप्त होती कला को संजोने के लिए कोशिश करने की जरूरत है.

सरगुजा : सुंदरी बाई...ऐसा लगता है मां सरस्वती ने इनके नाम का हुनर इनके हाथों में डाल दिया. इन्होंने मिट्टी पर अपने हाथों से ऐसा जादू फेरा कि इस जादू को देखने वालों की होड़ लग गई. न सिर्फ भारत में बल्कि दुनिया के कई देश भित्ति चित्र बनाने वाली इस कलाकार के कायल हैं.

भित्ति चित्र बनाने की कला से पारंगत है सुंदरी बाई

मिट्टी, गोबर, चूना और रंगों का अद्भुत मिश्रण जब सुंदरी बाई के हाथों से गढ़ा जाता है, तो किसी चमत्कार से कम नहीं दिखता. अपने घर को भी उन्होंने अपनी कला से ऐसे सजा रखा है कि एक बार को निगाहें नहीं हटती. सुंदरी कई देशों में अपनी कला का प्रदर्शन कर चुकी हैं और कई पुरस्कार उनकी झोली में आ चुके हैं. बचपन में मिट्टी से खिलौने बनाने वाली सुंदरी को नहीं पता था कि एक दिन भित्ति चित्र बनाने की कला उनकी पहचान बन जाएगी.

ईटीवी भारत की टीम सुंदरी बाई के घर पहुंची हालात वैसे ही आम थे जैसे अमूमन ग्रामीणों के होते हैं. घर पर उनके नाती ने बताया कि एक बड़ा सामूहिक परिवार एक साथ रहता है और खेती करके ही उनका गुजारा होता है. हांलाकि सुंदरी बाई की कला से जो थोड़ी बहुत इनकम होती है उसी से बेहतर जीवन यापन यह लोग कर पाते हैं.

कई देशों में गईं, कई पुरस्कार मिले-

  • साल 2003 में वे पहली बार विदेश गई. उन्हें इंग्लैंड के बर्मिंघम शहर में अपनी कला का प्रदर्शन करना था.
  • साल 2010 में फ़्रांस की राजधानी पेरिस में भारतीय आदिवासी-लोक कला की एक विशाल प्रदर्शनी आयोजित की गई, जिसमें सुंदरी बाई की बनाई कलाकृतियां प्रदर्शित थीं. वहां उन्होंने अपनी कला का जीवंत प्रदर्शन भी किया.
  • भोपाल स्थित राष्ट्रीय मानव संग्रहालय एवं जनजातीय संग्रहालय और दिल्ली स्थित संस्कृति संग्रहालय में सुंदरी बाई की बनाई कलाकृतियां प्रदर्शित हैं.
  • सुंदरी बाई का जब बहुत नाम हो गया और उन्हें अनेक शहरों में अपनी कला के प्रदर्शन के लिये बुलाया जाने लगा तब इनके पति केंदूराम ने भी इनके काम में रूचि लेना शुरू किया और सहयोग भी करने लगे.
  • साल 1989-90 में मध्य प्रदेश शासन द्वारा सुंदरी बाई के अद्भुद शिल्प कौशल के लिए उन्हें शिखर सम्मान से सम्मानित किया. यह मध्य प्रदेश शासन द्वारा किसी लोक-आदिवासी कलाकार को दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान है.
  • इसके बाद साल 2010 में भारत सरकार और फिर केरल सरकार द्वारा पुरस्कारों से सम्मानित किया गया.
  • वहीं तत्कालीन रमन सरकार ने सुंदरी बाई के लिए 5 हजार रुपये प्रतिमाह की व्यवस्था कर रखी है.

धीरे-धीरे सुधरती गई स्थिति
शुरुआती दिनों में सुंदरी बाई की आर्थिक स्थिति कुछ अच्छी नहीं थी, घर भी छोटा था लेकिन उनकी कला की प्रसिद्धी साथ उनकी आर्थिक स्थिति भी सुधरती गई. अब उन्होंने बड़ा सा घर बना लिया है. आंगन, गलियारे और कमरे, समूचा घर उनके बनाये भित्ति अलंकरणों से भरा हुआ है.

कला ने दी अलग पहचान
सुंदरी बाई का मायका पुहपुटरा गांव में है. लगभग 65 साल की सुंदरी बाई की माता दौली बाई और उनके पिता सुखदेव रजवार गरीब किसान थे. 11 साल की आयु में सुंदरी बाई का विवाह सिरकोतंगा गांव के केंदुराम रजवार से हो गया था. वे कहती हैं बचपन से ही मिट्टी में और मिट्टी से खेलने का शौक था. घर के अन्य छोटे बच्चों के लिए मिट्टी के खूब खिलौने बनाती थी, वही सब बनाते -बनाते दीवारों पर चित्र बनाने लगीं.
सवाल बस इतना सा है कि क्या इस अद्भुत कला के लिए कलाकार के लिए 5 हजार काफी हैं. साथ ही सरकार को इस विलुप्त होती कला को संजोने के लिए कोशिश करने की जरूरत है.

Intro:नोट- विश्व ग्रामीण महिला दिवस की स्पेशल स्टोरी है, इसकी बाईट और स्क्रिप्ट रिपोर्टर एप्स से जाएगी।


Body:देश दीपक सरगुज़ा


Conclusion:
Last Updated : Jul 25, 2023, 8:00 AM IST
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