सरगुजा: त्रिभुवनेश्वर शरण सिंह देव या टीएस सिंह देव वो नाम हैं, जिनकी छवि आंखों में उभरते ही एक बेहद सौम्य, खानदानी, राजशाही ठाठबाट होने के बावजूद सादा व्यक्तित्व, जमीन से जुड़े शख्स की प्रतिमूर्ति आंखों में घूम जाती है. जो भी उनसे एक बार मिल लेता है, वो उनका ही होकर रह जाता है. बेहद नरमदिल और आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी टीएस सिंहदेव किसी को भी पहली ही मुलाकात में अपना बना लेते हैं. यही वजह है कि जनता में वे बेहद लोकप्रिय हैं. टीएस सिंहदेव वो नाम हैं, जिसने कांग्रेस का जन घोषणा पत्र तैयार कर छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की आंधी चलाई. प्रदेश में एक बार फिर लंबे समय के बाद कांग्रेस की वापसी हुई. 31 अक्टूबर 1952 को जन्मे टीएस सिंहदेव सरगुजा महाराज मदनेश्वर शरण सिंह देव और राजमाता देवेन्द्र कुमारी के बेटे हैं. आपने अब तक इनकी अमीरी, इनकी दरियादिली, राजशाही शौक के किस्से बहुत सुने होंगे, लेकिन हम आपको इनकी विरासत के अद्भुत वैभव की जानकारी देने जा रहे हैं.
आज छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री और सरगुजा रियासत के राजा त्रिभुवनेश्वर शरण सिंहदेव यानी टीएस सिंहदेव का जन्मदिन है, लेकिन वे बीते 36 साल से कभी अपना जन्मदिन नहीं मनाते हैं. कहते हैं इसके पीछे देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की असमय मौत होना है. जन्म से कांग्रेसी त्रिभुवनेश्वर शरण सिंहदेव के 32वें जन्मदिन के दिन ही तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई थी. इसके बाद से इंदिरा गांधी की याद में कभी भी टीएस सिंहदेव ने अपना जन्मदिन नहीं मनाया.
राजपरिवार में जन्मे सिंहदेव ने भोपाल के हमीदिया कॉलेज से इतिहास विषय में एमए किया. सरगुजा रियासत के पूर्व राजा टीएस सिंहदेव के राजनीतिक जीवन की शुरुआत साल 1983 में अंबिकापुर नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष चुने जाने के साथ हुई. वह 10 साल तक इस पद पर बने रहे. सिंहदेव अंबिकापुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं. सिंहदेव 2008 से लगातार अंबिकापुर से जीतते आ रहे हैं. 2013 विधानसभा चुनावों में वे सबसे अमीर उम्मीदवार थे. सिंहदेव 500 करोड़ से अधिक की संपत्ति के मालिक हैं.
सिंहदेव 1983 में कांग्रेस में शामिल हुए थे
31 अक्टूबर, 1952 को प्रयागराज (इलाहाबाद) में पैदा हुए टीएस सिंहदेव के पिता महाजराज मदनेश्वर शरण सिंहदेव अविभाजित मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव थे. सिंहदेव इतिहास में स्नातकोत्तर हैं. सिंहदेव ने कई वर्षों तक खुद को राजनीति से दूर रखा. उन्होंने कांग्रेस ज्वॉइन किया और 1983 में अविभाजित मध्यप्रदेश में राज्य कांग्रेस कमेटी के सदस्य बने. सिंहदेव की कांग्रेसियों को एकजुट रखने में महत्वपूर्ण भूमिका है. सरल स्वभाव के कारण वे सबकी पसंद हैं.
टीएस सिंहदेव की कार से जवाहर लाल नेहरू ने की थी रैली
अब बात करते हैं राजनैतिक रसूख और अनुभव की, तो सिंहदेव के लिए ये सब बिल्कुल भी नया नहीं है. वो बचपन से ही इस स्तर की राजनीति देखते आ रहे हैं, क्योंकि इनके पिता अविभाजित मध्यप्रदेश जैसे बड़े राज्य के मुख्य सचिव थे. वहीं माता जी के मंत्री रहने का अनुभव इनके साथ जुड़ा हुआ है. गांधी परिवार से भी सिंहदेव का काफी पुराना नाता है. एक बार देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू एक रैली के लिए इलाहाबाद आए थे, तब उनके बगल से खुली छत वाली लाल स्पोर्ट कार फर्राटा भरती हुई निकल गई. अपनी रैली के लिए नेहरूजी वैसी ही गाड़ी चाहते थे, लिहाजा अफसरों से उस गाड़ी का पता लगाकर मांगने को कहा. तब पता चला कि वह गाड़ी वहां अध्ययनरत उनके अभिन्न मित्र सरगुजा महाराजा रामानुज शरण सिंहदेव के पोते टीएस सिंहदेव के पिता मदनेश्वर शरण सिंह की है.
पंडित जवाहर लाल नेहरू ने किया था सिंहदेव से मिलने का इंतजार
गाड़ी मंगाई गई और शानदार रैली हुई. रात को डिनर में सरगुजा के हिजहाइनेस महाराजा रामानुज शरण सिंहदेव के कार वाले "पोते" के न दिखने पर पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उनसे मिलने की इच्छा जाहिर की, तो पता चला वे आमन्त्रित हीं नहीं हैं. तब नेहरूजी ने कहा कि उनके आने तक वे उनका इंतजार करेंगे. फिर क्या था सकते में आया पूरा प्रशासनिक अमला उनका पता लगाते हुए सिनेमा हॉल पहुंचा, जहां शो रुकवाकर अनाउंस कर सिंहदेव को ढूंढ़कर नेहरूजी के सामने लाया गया.
कांग्रेस के त्रिपुरी अधिवेशन और नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को नैतिक, आर्थिक, राजनैतिक समर्थन, मदद और 52 हाथियों का शानदार चांदी के हौदों से सजा काफिला भेजा गया था. कांग्रेस के सन 1939 के बावनवें त्रिपुरी (जबलपुर) अधिवेशन को पूरी-चाय, नाश्ता, रहना, खाना, विश्राम, सोना, हलवाई, पंडाल, कुली-मजदूर, दवा, इलाज, मनोरंजन, धोबी, हजाम, ठंडा-गरम पानी के साथ सम्मान किया गया. सरगुजा के हिजहाइनेस महाराजा रामानुज शरण सिंहदेव ने अंग्रेज़ो के खिलाफ देशी रियासतों का कांग्रेस के साथ खड़े होने का संदेश दिया. साथ ही अंग्रेजों से सीधे-सीधे साहसिक टक्कर लेकर भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में भूचाल ला अंग्रेजी शासन की ताबूत में आखिरी कील ठोंक दिया था.
सरगुजा स्टेट की गतिविधियों पर छापा मारने आई थी ब्रिटिशों की टीम
इस घटना के बाद ब्रिटिश राजनयिकों, जासूसों और ऑडिटर्स की भारी-भरकम टीम सरगुजा स्टेट की गतिविधियों पर छापा मारने आई थी, लेकिन हिजहाइनेस महाराजा रामानुज शरण सिंहदेव के हिजहाइनेस, रूलिंग चीफ, ईएसए हाइकोर्ट के चीफ जस्टिस, विश्वकीर्तिमान धारक सफ़ारी शिकारी और "कमांडर ऑफ़ दि ब्रिटिश एम्पायर" की पदवी का रुतबा होने से ये छापा दल के अधिकार क्षेत्र से बाहर हो गया. उन्होंने ट्रेजरी और आय-व्यय की सघन जांच की, जिसमें महाराजा ने स्टेट का रेवेन्यू बढ़ाने के लिए 52 हाथियों का काफिला किराए में देना, रसद की बिक्री करने समेत बाकी व्यवस्था को अधिवेशन कमेटी के अनुरोध पर सौजन्य सहयोग दिया था.
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने निकाला था विजय जुलूस
त्रिपुरी अधिवेशन से बहुत पहले आशंकित महाराज 'सरगुजा स्टेट' की ट्रेजरी में अपने निजी वेतन, एलाउंस की आय को एडवांस में प्राप्त किराया, रसद की कीमत और आय बता जमा करा चुके थे. रोजनामचा स्क्रॉल, बही, कैश बुक, व्हाउचर, रसीद बुक, चालान में बिना कटिंग, ओवर राइटिंग, तिथि, स्याही के रंग, काउंटर फोलियो व्हाउचर राशि, सब फ़ॉरेंसिक टेस्ट में फिट और सही होने से अंग्रेज क्षमा मांगते निराश लौट गए थे. इतना ही नहीं उन्होंने 1939 के कांग्रेस के बावनवें त्रिपुरी अधिवेशन में अंग्रेजों के भारी विरोध के बावजूद 52 हाथियों का रसद से लदा काफिला भेज आर्थिक मदद कर पूरी व्यवस्था की थी. 'सरगुजा स्टेट' के इन्हीं हाथियों के काफिले में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने तेज बुखार के बावजूद अपना विजय जुलूस निकाला था.
सरगुजा में टेलीफोन की थी जबरदस्त व्यवस्था
सरगुजा में सांकेतिक मार्श प्रणाली और टेलीफोन की जबरदस्त व्यवस्था थी. तब सरगुजा में पुलिस के दो एसपी और एक आईजी सहित 22 थाने आपस में मार्श प्रणाली और टेलीफोन की हॉट लाइन से जुड़े थे. दीवान डीडी डैडीमास्टर मार्श प्रणाली से थानों से जुड़े थे, जबकि महाराज मार्श प्रणाली और फोन से जुड़े थे. महाराजा थानों की तैनाती और जागरूकता जांचने रात दो तीन बजे थानों में "सरप्राइज़ टॉक" कर कितनी घंटी में फोन उठा और सब स्टाफ मुस्तैद हैं या नहीं परखते थे. उसी रियासती संचार क्रान्ति की दौर में 92 वर्ष पुराना टेलीग्राम रायपुर में अध्ययनरत महाराजा अंबिकापुर शरण सिंहदेव ने 25 मार्च 1925 को अंबिकापुर पहुंचने की सूचना पिता महाराजा रामानुज शरण सिंहदेव को दी थी. मजे की बात तो यह है कि तब के घनघोर जंगली सरगुजा में रायपुर से 7 मार्च 1925 को समय 1.45 pm पर प्रेषित यह तार आराम से समय 2.17 pm पर मात्र 32 मिनट में पहुंच गया था.
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के साथ की अद्भुत कहानी
स्वतन्त्रता संग्राम के दिनों में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को जब भूमिगत होना पड़ा था, तो सरगुजा के महाराजा ने उन्हें घनघोर जंगल में पंडो जनजाति कबीलों के बीच प्रौढ़ शिक्षक के रूप में छिपाया था. आज भी उनका आवास 'राष्ट्रपति भवन' के नाम से संरक्षित है. सरगुजा को अपने यहां भी राष्ट्रपति भवन होने का गर्व है. वर्तमान में इनकी चौथी पीढ़ी के महाराजा टीएस सिंहदेव हैं. विकास कार्यों की बात करें, तो बरवाडीह रेल लाइन पर सरगुजा के हिज़हाइनेस महाराजा रामानुज शरण सिंहदेव ने 24 अक्टूबर 1947 को 'दशहरा दरबार' में दिया गया आधिकारिक भाषण, जिसके बाद 21 में बरवाडीह रेल लाइन एक वर्ष यानी 1948 में सरगुजा और 5 साल यानी 1952 में चिरमिरी पहुंच जाने का उल्लेख था.
मशहूर अभिनेता शम्मी कपूर थे रामानुज शरण सिंहदेव के फैन
मशहूर अभिनेता शम्मी कपूर सरगुजा के हिजहाइनेस महाराजा रामानुज शरण सिंहदेव के जबरदस्त फैन थे. महाराजा विश्व के अद्वितीय सफारी शिकारी और निशानेबाज़ थे. जब विश्व क्रिकेट शैशवकाल में था और हंटिंग का दौर था, तब वे वर्ल्ड के टॉप टेन में आजीवन एक नंबर पर रहे. जिम कार्बेट ने उनके गुरुत्व में आदमखोर बाघों के शिकार के गुर सीखे. महाराजा के नाम विश्व में सबसे ज्यादा खूंखार, आदमखोर बाघों को मारने का विश्व कीर्तिमान दर्ज है. महाराजा मादा, गर्भिणी, बच्चा, बीमार, वृद्ध, घायल, सोए, चुनिन्दे बेहतरीन नस्ल के और अपने परिवार के साथ झुंड में सुस्ताते बाघों को कभी नहीं मारते थे.
रामानुज शरण सिंहदेव बाघों को 'बाघ फुलवारी' के हौजों में पालतू बना देते थे
वे घायल बीमार बाघों को फंदे में फंसाकर इलाज कराकर 'बाघ फुलवारी' के हौजों में पालतू बना देते, अजायब घरों में भेज देते थे. महाराज बाघ के पंजे का निशान देखकर बता देते थे कि यह नर है या मादा, घायल है या नरभक्षी हो चुका है, कितनी उम्र, लम्बाई, वजन होगी और यहां से कितना देर पहले चलते या दौड़ते हुए गुजरा होगा. शम्मी कपूर जब भी, जितनी बार भी महाराजा से मिलते, उनका ऑटोग्राफ मांगते. एक बार महाराज ने पृथ्वीराज कपूर की मौजूदगी में उनसे हंसते हुए पूछा कि इतने ऑटोग्राफ का आप क्या करेंगे, तब शम्मी कपूर ने जवाब दिया- "लोग अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए बाघ के नाखून और दांत की ताबीज पहनाते हैं. मैं अपने सब आने वाले नाती-पोतों को हजारों खूंखार आदमखोर बाघों को मारने वाले दुनिया के नायाब हस्ती के हस्ताक्षरों की ताबीज पहनाउंगा'.
युवराज आदितेश्वर शरण सिंहदेव की शादी राजकुमारी त्रिशला सिसोदिया से हुई
भारत के लगभग साढ़े पांच सौ देशी रियासतों में आज तक जबरदस्त पहचान सम्मान पहुंच सार्वजनिकता सक्रियता और अपनी "सरगुजा रियासत" सहित सारे देश में महाराजा रघुनाथ शरण और हिज हाइनेस महाराजा रामानुज शरण सिंहदेव, महाराजा अंबिकेश्वर शरण, महाराजा मदनेश्वर शरण सिंहदेव IAS, पूर्व चीफ सेक्रटरी अविभक्त मध्यप्रदेश और राजमाता देवेन्द्र कुमारी की अदभुत नेतृत्व क्षमता है. कीर्ति को बरकरार रखने वाले सरगुजा राजपरिवार के महाराजा टीएस सिंहदेव और उनके भाई अरुणेश्वर शरण सिंहदेव ने 'सरगुजा रियासत' की गरिमा के अनुरूप 6 जून 2015 को युवराज आदितेश्वर शरण सिंहदेव का विवाह राजकुमारी त्रिशला सिसोदिया से किया. इस विवाह की गाथा भी अद्भुत है.