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Surguja latest news: शिक्षा के बदले जानलेवा सफर करने को मजबूर बच्चे, जान जोखिम में डालकर पार करते हैं बांध - कांग्रेसी विधायक ने किया था जल सत्याग्रह

छत्तीसगढ़ निर्माण के बाद 3 वर्ष कांग्रेस और 15 वर्ष भाजपा ने शासन किया. 4 वर्ष से फिर कांग्रेस सत्ता में है. विकास के तमाम दावे किए गये लेकिन सरगुजा का एक गांव आज भी विकास के दावों से कोसो दूर है.

School children to cross river for education
स्कूली बच्चे पढ़ाई के लिए नदी पार करते हैं
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Published : Jan 17, 2023, 12:18 AM IST

Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST

स्कूल का जानलेवा सफर

सरगुजा: यहां की स्थिति देखकर ऐसा लगता है. जैसे यह कोई दूर दराज का क्षेत्र होगा. जबकि यह स्थिति संभाग मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर बसे ग्राम पंचायत रेवापुर के आश्रित गांव लवईडीह की है. यहां शिक्षा पाने के बदले अपनी जान जोखिम में डालना पड़ता है. प्राइमरी और मिडिल स्कूल के बच्चे रोजाना जान हथेली पर रखकर बांध पार करने को मजबूर हैं. ऐसे में कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है.


कांग्रेसी विधायक ने किया था जल सत्याग्रह: सरगुजा के रेवापुर गांव के आश्रित ग्राम लवईडीह के बच्चे स्कूल जाने के लिये जान जोखिम में डालकर गाड़ी में चके के ट्यूब से बनी नाव में जाने को मजबूर है. लेकिन इन ग्रामीणों के नाम पर सिर्फ सियासत की गई. पिछली सरकार में जब भाजपा की सत्ता थी और इस क्षेत्र में कांग्रेस के विधायक थे. तो चुनावी वर्ष में इस पुल को बनवाने के लिए उन्होंने जल सत्याग्रह किया था. तत्कालीन कांग्रेस विधायक चिंतामणि ने इस स्थान पर पानी मे डूबकर आंदोलन किया और भाजपा की प्रदेश सरकार से मांग की गई. लेकिन पिछले 2 दशक से भी अधिक का समय गुजर चुका है. सत्ता बदली. लेकिन इसके बावजूद पुल का निर्माण नहीं हो पाया है.

विस्थापन का दंश: सरगुजा जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर की दूरी पर यह गांव 1991 में बसा जब घुनघुट्टा बांध का निर्माण किया गया. तो 250 से अधिक ग्रामीण परिवार विस्थापन के बाद बांध के दोनों तरफ विस्थापित हो गए. जिसके बाद इनकी दिनचर्या चलती रही. लेकिन दूसरी तरफ बच्चों को शिक्षा सहित लोगों को रोजगार जैसी समस्या बढ़ने लगी. जैसे-जैसे दिन बीतते गए वैसे ही ग्रामीणों की समस्या बढ़ने लगी, और अब इस गांव के बच्चे स्कूल जाने के लिए जान जोखिम में डालकर बांध के एक छोर से दूसरे छोर की तरफ जाते है. लेकिन कभी-कभी बांध पार करते वक्त दुर्घटनाएं भी होती है और इस दुर्घटना में जान तक चली जाती है.

आने वाले बजट में करेंगे शामिल: क्षेत्रीय विधायक डॉ प्रीतम राम इस मामले में कहते हैं कि "इस गांव के लोगो की बहुप्रतीक्षित मांग है कि पुल का निर्माण हो जाने से इस गांव के लोगों के लिए शिक्षा सहित रोजगार के साधन बेहतर हो सकेंगे. इसकी जानकारी मुख्यमंत्री भुपेश बघेल को भी ग्रामीणों द्वारा दिया गया है और यह लंबा पुल होने के वजह से थोड़ा विलंब हो रहा है. लेकिन आने वाले बजट सत्र में इस पुल को भी शामिल किया जाएगा."

यह भी पढ़ें: Luna Electric: चल मेरी लूना, इलेक्ट्रिक अवतार में लौट रही लूना, एक बार चार्ज में चलेगी 100 किलोमीटर

चुनाव आते ही उठता है मुद्दा: यह गांव पिछले 2 दशक से अधिक समय से विकास की बाट जोह रहा है. चुनाव आते ही यह मामला सुर्खियों में आ जाता है. हर बार सियासत होती है ग्रमीणों से वादे किए जाते हैं लेकिन समाधान नहीं किया गया. इस गांव में पुल नहीं होने की वजह से आज भी ग्रामीण मूलभूत सुविधाओ के लिए नाव से आना जाना करते है. अब देखना होगा कि ग्रामीणों के लिए कब तक सरकार पुल का निर्माण कराती है.

स्कूल का जानलेवा सफर

सरगुजा: यहां की स्थिति देखकर ऐसा लगता है. जैसे यह कोई दूर दराज का क्षेत्र होगा. जबकि यह स्थिति संभाग मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर बसे ग्राम पंचायत रेवापुर के आश्रित गांव लवईडीह की है. यहां शिक्षा पाने के बदले अपनी जान जोखिम में डालना पड़ता है. प्राइमरी और मिडिल स्कूल के बच्चे रोजाना जान हथेली पर रखकर बांध पार करने को मजबूर हैं. ऐसे में कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है.


कांग्रेसी विधायक ने किया था जल सत्याग्रह: सरगुजा के रेवापुर गांव के आश्रित ग्राम लवईडीह के बच्चे स्कूल जाने के लिये जान जोखिम में डालकर गाड़ी में चके के ट्यूब से बनी नाव में जाने को मजबूर है. लेकिन इन ग्रामीणों के नाम पर सिर्फ सियासत की गई. पिछली सरकार में जब भाजपा की सत्ता थी और इस क्षेत्र में कांग्रेस के विधायक थे. तो चुनावी वर्ष में इस पुल को बनवाने के लिए उन्होंने जल सत्याग्रह किया था. तत्कालीन कांग्रेस विधायक चिंतामणि ने इस स्थान पर पानी मे डूबकर आंदोलन किया और भाजपा की प्रदेश सरकार से मांग की गई. लेकिन पिछले 2 दशक से भी अधिक का समय गुजर चुका है. सत्ता बदली. लेकिन इसके बावजूद पुल का निर्माण नहीं हो पाया है.

विस्थापन का दंश: सरगुजा जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर की दूरी पर यह गांव 1991 में बसा जब घुनघुट्टा बांध का निर्माण किया गया. तो 250 से अधिक ग्रामीण परिवार विस्थापन के बाद बांध के दोनों तरफ विस्थापित हो गए. जिसके बाद इनकी दिनचर्या चलती रही. लेकिन दूसरी तरफ बच्चों को शिक्षा सहित लोगों को रोजगार जैसी समस्या बढ़ने लगी. जैसे-जैसे दिन बीतते गए वैसे ही ग्रामीणों की समस्या बढ़ने लगी, और अब इस गांव के बच्चे स्कूल जाने के लिए जान जोखिम में डालकर बांध के एक छोर से दूसरे छोर की तरफ जाते है. लेकिन कभी-कभी बांध पार करते वक्त दुर्घटनाएं भी होती है और इस दुर्घटना में जान तक चली जाती है.

आने वाले बजट में करेंगे शामिल: क्षेत्रीय विधायक डॉ प्रीतम राम इस मामले में कहते हैं कि "इस गांव के लोगो की बहुप्रतीक्षित मांग है कि पुल का निर्माण हो जाने से इस गांव के लोगों के लिए शिक्षा सहित रोजगार के साधन बेहतर हो सकेंगे. इसकी जानकारी मुख्यमंत्री भुपेश बघेल को भी ग्रामीणों द्वारा दिया गया है और यह लंबा पुल होने के वजह से थोड़ा विलंब हो रहा है. लेकिन आने वाले बजट सत्र में इस पुल को भी शामिल किया जाएगा."

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चुनाव आते ही उठता है मुद्दा: यह गांव पिछले 2 दशक से अधिक समय से विकास की बाट जोह रहा है. चुनाव आते ही यह मामला सुर्खियों में आ जाता है. हर बार सियासत होती है ग्रमीणों से वादे किए जाते हैं लेकिन समाधान नहीं किया गया. इस गांव में पुल नहीं होने की वजह से आज भी ग्रामीण मूलभूत सुविधाओ के लिए नाव से आना जाना करते है. अब देखना होगा कि ग्रामीणों के लिए कब तक सरकार पुल का निर्माण कराती है.

Last Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST
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