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SPECIAL: अंबिकापुर का केंद्रीय जेल बना कैदियों के लिए वरदान, हुनर के जरिए कैदी संवार रहे जीवन

अंबिकापुर के केंद्रीय जेल के कैदियों ने सश्रम कारावास के जरिए लॉकडाउन की अवधि में लाखों रुपये कमाते हैं, कौशल विकास प्रशिक्षण के जरिए इन कैदियों को प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है, जिससे इनका जीवन अब सुधरने लगा है.

prisoners of central jail in ambikapur earn lakhs of rupees from their skills
सेंट्रल जेल के कैदियों ने दिखाया हुनर
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Published : Jun 7, 2020, 1:23 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST

सरगुजा: जेल और कारावास का नाम सुनते ही अंधकारमय जीवन ही जहन में आता है. कोर्ट में सश्रम कारावास की सजा सुनाने के बाद हिंदी फिल्मों में दिखाए जाने वाले कैदियों की वहीं सफेद धारीदार वेशभूषा और हथौड़े से पत्थर तोड़ते कैदियों की प्रतीकात्मक छवि नजर आने लगती है, लेकिन जेल की असल जिंदगी कुछ और ही है, इससे हम आपको रूबरू कराएंगे.

सेंट्रल जेल के कैदियों ने दिखाया हुनर

ETV भारत आपको बताएगा कि आज का सश्रम कारावास फिल्मों से कितना अलग है. अब न तो जेलर फिल्मों जैसे होते है और न ही कैदियों का श्रम वैसा होता है. बल्कि अंबिकापुर जेल के कैदियों की कलाकारी देखकर आप भी हैरान हो जाएंगे.

prisoners of central jail in ambikapur earn lakhs of rupees from their skills
हुनर से जिंदगी संवारते कैदी

जेल में अकुशल और कुशल कैदी की कैटेगरी

किसी न किसी बड़ी वारदात को अंजाम देने वाले कैदियों के हाथ इतने कुशल और प्रशिक्षित हैं, जो न सिर्फ अपने लिए आमदनी कर रहे हैं बल्कि आमदनी का बराबर का हिस्सा उस परिवार के लिए भी कमा रहे हैं, जिसके साथ अपराध को अंजाम देने के बाद उन्हें जेल की सजा मिली है. जेल में कैदी जो काम करता है उसमें अकुशल कैदी को हर रोज 60 रुपये मिला है इसमें से 30 रुपये उस कैदी को मिलता है और 30 रुपये विक्टिम को दिया जाता है. जबकि कुशल कैदी को 75 रुपये मिलता है और इसका भी आधा पैसा विक्टिम के घर पहुंचता है.

prisoners of central jail in ambikapur earn lakhs of rupees from their skills
सेंट्रल जेल के कैदियों ने दिखाया हुनर

कैदियों ने लॉकडाउन में बढ़ाया उत्पादन

कोरोना महामारी के बाद पूरा देश लॉकडाउन हो गया था और इस वजह से उत्पादन बंद होने से सभी का व्यापार प्रभावित हुआ, जिससे बड़ा आर्थिक नुकसान हुआ. लेकिन जरा सोचिए वो स्थान जो हमेशा ही लॉकडाउन में रहती हो भला वहां लॉकडाउन का कोई अलग असर कैसे हो सकता है, लिहाजा अंबिकापुर सेंट्रल जेल में कैदियों की उत्पादन क्षमता में कोई कमी नहीं आई बल्कि लॉकडाउन के कारण जेल में मुलाकात बंद होने और कैदियों को ज्यादा समय मिलने के कारण कैदियों ने ज्यादा काम किया जिससे उनका उत्पादन भी बढ़ गया. कैदियों की तरफ से हर साल 24 लाख का पारिश्रमिक दिया जाता है इससे आधा यानि 12 लाख रुपये पीड़ित पक्ष को जाता है. एक साल में 25 लाख की लागत और 36 लाख की बिक्री कर 11 लाख रुपए कैदियों ने कमाए हैं.

prisoners of central jail in ambikapur earn lakhs of rupees from their skills
कोरोना काल में कैदियों ने दिखाया हुनर

जेल में 10 इंडस्ट्री

जेल अधीक्षक राजेन्द्र गायकवाड़ बताते हैं की जेल में 10 इंडस्ट्री चल रही है. जिसमें सिलाई के काम के लिए 32 सिलाई मशीन है, इस मशीन को 25 पुरुष और 7 महिलाएं चलाती हैं. जेल में होमगार्ड्स के यूनिफार्म 150 रुपये में सिले जाते हैं, जबकि बाजार में इसकी कीमत 800 रुपये है और यहीं वजह है कि होमगार्ड की यूनिफॉर्म रायपुर से सिलने अंबिकापुर आती है.

कैदियों ने बनाए 80 हजार मास्क

कोरोना महामारी को दूर भगाने के लिए अंबिकापुर केंद्रीय जेल के कैदियों ने भी वॉरियर्स की भूमिका निभाई. लॉकडाउन में कैदियों ने करीब 80 हजार मास्क तैयार किए, जिनमें ज्यादातर मास्क जेल में तैयार किए गए खादी के कपड़े से ही बनाए गए हैं. मास्क की कीमत 7 रुपये रखा गया है. वहीं कैदी रुमाल और मास्क में गोदना आर्ट के जरिए मास्क को एक विशेष पहचान चिन्ह बना रहे हैं, जिसकी मांग छत्तीसगढ़ में ही नहीं बल्कि बाहर भी है.

prisoners of central jail in ambikapur earn lakhs of rupees from their skills
सेंट्रल जेल के कैदियों ने दिखाया हुनर

जेल में तैयार की जाती है खादी

जेल में खादी के कपड़े बनाने के लिए 5 हैंडलूम और एक पावर लूम है, जो खादी के कपड़े बनाती है. इसी कपड़े से बंदी रेडिमेड वस्त्र भी तैयार करते हैं.

बैम्बू और लकड़ी के फर्नीचर

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सेंट्रल जेल के कैदियों ने दिखाया हुनर

सेंट्रल जेल के कैदी बैम्बू और लकड़ी के फर्नीचर का भी काम करते हैं. बेहद आकर्षक और डिजाइनदार होता है. मेडिकल कॉलेज और संत गहिरा गुरु विश्विद्यालय में आलमारी का काम भी जेल को ही मिला है, पहले भी मेडिकल कॉलेज को 50 लाख का फर्नीचर जेल दे चुका है. काष्ठ कला के माध्यम से पेड़ की जड़ों को अप साइकलिंग किया जा रहा है और उसे खूबसूरत कलाकृतियों में सजाकर आमदनी की जा रही है.

जेल में प्रिंटिंग

इसके अलवा जेल में ऑप्सेट प्रिंटिंग, स्क्रीन का काम भी किया जाता है, जिसमें प्रेस के सारे काम किए जाते हैं. जिला कोर्ट और मेडिकल कॉलेज में रजिस्ट्री और अन्य प्रिंटिंग की चीजें यहीं से भेजी जाती है.

टाट पट्टी से आकर्षक कलाकारी

गौना पट्टी जेल में बनाई जा रही है, यह टाट पट्टी का ही रूप है जिसे सूत से बनाया जाता है. जिस पर बैठकर आराम से कोई काम किया जा सकता है. यह टाट पट्टी से अधिक आरामदायक होती है, इन सारे कार्यों के लिए जेल के 1200 कैदियों को कौशल विकास प्रशिक्षण के माध्यम से प्रशिक्षित किया गया है.

200 कैदी पढ़ रहे संस्कृत

इस जेल में सबसे अच्छी बात यह है की यहां कैदी अनपढ़ आते है, लेकिन यहां से पढ़ लिखकर डिग्री लेकर बाहर जाते हैं, ओपन स्कूल और इग्नू का सेंटर भी जेल में है, जिसमें कैदी प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा ग्रहण करते हैं, इतना ही नहीं 200 कैदी यहां संस्कृत भी पढ़ रहे हैं, ताकि यहां से बाहर निकलने के बाद कैदी अपना जीवन सुधारकर एक बेहतर जीवन जी सकें.

जेल में सीखे हुनर का मिलेगा लाभ

इस जेल में रहने वाले कैदियों की बात ही निराली है. ये अपने काम में इतने मशगूल हैं कि शिक्षण और प्रशिक्षण के बाद जीविकोपार्जन के लिए वो जेल में ही इतना श्रम कर रहे हैं की बाहर जाने के बाद उनका जीवन मुख्य धारा से जुड़ सकेगा और वो जेल में सीखे हुनर का लाभ अपने निजी जीवन में कर अपने परिवार को बेहतर दिशा दे सकेंगे.

सरगुजा: जेल और कारावास का नाम सुनते ही अंधकारमय जीवन ही जहन में आता है. कोर्ट में सश्रम कारावास की सजा सुनाने के बाद हिंदी फिल्मों में दिखाए जाने वाले कैदियों की वहीं सफेद धारीदार वेशभूषा और हथौड़े से पत्थर तोड़ते कैदियों की प्रतीकात्मक छवि नजर आने लगती है, लेकिन जेल की असल जिंदगी कुछ और ही है, इससे हम आपको रूबरू कराएंगे.

सेंट्रल जेल के कैदियों ने दिखाया हुनर

ETV भारत आपको बताएगा कि आज का सश्रम कारावास फिल्मों से कितना अलग है. अब न तो जेलर फिल्मों जैसे होते है और न ही कैदियों का श्रम वैसा होता है. बल्कि अंबिकापुर जेल के कैदियों की कलाकारी देखकर आप भी हैरान हो जाएंगे.

prisoners of central jail in ambikapur earn lakhs of rupees from their skills
हुनर से जिंदगी संवारते कैदी

जेल में अकुशल और कुशल कैदी की कैटेगरी

किसी न किसी बड़ी वारदात को अंजाम देने वाले कैदियों के हाथ इतने कुशल और प्रशिक्षित हैं, जो न सिर्फ अपने लिए आमदनी कर रहे हैं बल्कि आमदनी का बराबर का हिस्सा उस परिवार के लिए भी कमा रहे हैं, जिसके साथ अपराध को अंजाम देने के बाद उन्हें जेल की सजा मिली है. जेल में कैदी जो काम करता है उसमें अकुशल कैदी को हर रोज 60 रुपये मिला है इसमें से 30 रुपये उस कैदी को मिलता है और 30 रुपये विक्टिम को दिया जाता है. जबकि कुशल कैदी को 75 रुपये मिलता है और इसका भी आधा पैसा विक्टिम के घर पहुंचता है.

prisoners of central jail in ambikapur earn lakhs of rupees from their skills
सेंट्रल जेल के कैदियों ने दिखाया हुनर

कैदियों ने लॉकडाउन में बढ़ाया उत्पादन

कोरोना महामारी के बाद पूरा देश लॉकडाउन हो गया था और इस वजह से उत्पादन बंद होने से सभी का व्यापार प्रभावित हुआ, जिससे बड़ा आर्थिक नुकसान हुआ. लेकिन जरा सोचिए वो स्थान जो हमेशा ही लॉकडाउन में रहती हो भला वहां लॉकडाउन का कोई अलग असर कैसे हो सकता है, लिहाजा अंबिकापुर सेंट्रल जेल में कैदियों की उत्पादन क्षमता में कोई कमी नहीं आई बल्कि लॉकडाउन के कारण जेल में मुलाकात बंद होने और कैदियों को ज्यादा समय मिलने के कारण कैदियों ने ज्यादा काम किया जिससे उनका उत्पादन भी बढ़ गया. कैदियों की तरफ से हर साल 24 लाख का पारिश्रमिक दिया जाता है इससे आधा यानि 12 लाख रुपये पीड़ित पक्ष को जाता है. एक साल में 25 लाख की लागत और 36 लाख की बिक्री कर 11 लाख रुपए कैदियों ने कमाए हैं.

prisoners of central jail in ambikapur earn lakhs of rupees from their skills
कोरोना काल में कैदियों ने दिखाया हुनर

जेल में 10 इंडस्ट्री

जेल अधीक्षक राजेन्द्र गायकवाड़ बताते हैं की जेल में 10 इंडस्ट्री चल रही है. जिसमें सिलाई के काम के लिए 32 सिलाई मशीन है, इस मशीन को 25 पुरुष और 7 महिलाएं चलाती हैं. जेल में होमगार्ड्स के यूनिफार्म 150 रुपये में सिले जाते हैं, जबकि बाजार में इसकी कीमत 800 रुपये है और यहीं वजह है कि होमगार्ड की यूनिफॉर्म रायपुर से सिलने अंबिकापुर आती है.

कैदियों ने बनाए 80 हजार मास्क

कोरोना महामारी को दूर भगाने के लिए अंबिकापुर केंद्रीय जेल के कैदियों ने भी वॉरियर्स की भूमिका निभाई. लॉकडाउन में कैदियों ने करीब 80 हजार मास्क तैयार किए, जिनमें ज्यादातर मास्क जेल में तैयार किए गए खादी के कपड़े से ही बनाए गए हैं. मास्क की कीमत 7 रुपये रखा गया है. वहीं कैदी रुमाल और मास्क में गोदना आर्ट के जरिए मास्क को एक विशेष पहचान चिन्ह बना रहे हैं, जिसकी मांग छत्तीसगढ़ में ही नहीं बल्कि बाहर भी है.

prisoners of central jail in ambikapur earn lakhs of rupees from their skills
सेंट्रल जेल के कैदियों ने दिखाया हुनर

जेल में तैयार की जाती है खादी

जेल में खादी के कपड़े बनाने के लिए 5 हैंडलूम और एक पावर लूम है, जो खादी के कपड़े बनाती है. इसी कपड़े से बंदी रेडिमेड वस्त्र भी तैयार करते हैं.

बैम्बू और लकड़ी के फर्नीचर

prisoners of central jail in ambikapur earn lakhs of rupees from their skills
सेंट्रल जेल के कैदियों ने दिखाया हुनर

सेंट्रल जेल के कैदी बैम्बू और लकड़ी के फर्नीचर का भी काम करते हैं. बेहद आकर्षक और डिजाइनदार होता है. मेडिकल कॉलेज और संत गहिरा गुरु विश्विद्यालय में आलमारी का काम भी जेल को ही मिला है, पहले भी मेडिकल कॉलेज को 50 लाख का फर्नीचर जेल दे चुका है. काष्ठ कला के माध्यम से पेड़ की जड़ों को अप साइकलिंग किया जा रहा है और उसे खूबसूरत कलाकृतियों में सजाकर आमदनी की जा रही है.

जेल में प्रिंटिंग

इसके अलवा जेल में ऑप्सेट प्रिंटिंग, स्क्रीन का काम भी किया जाता है, जिसमें प्रेस के सारे काम किए जाते हैं. जिला कोर्ट और मेडिकल कॉलेज में रजिस्ट्री और अन्य प्रिंटिंग की चीजें यहीं से भेजी जाती है.

टाट पट्टी से आकर्षक कलाकारी

गौना पट्टी जेल में बनाई जा रही है, यह टाट पट्टी का ही रूप है जिसे सूत से बनाया जाता है. जिस पर बैठकर आराम से कोई काम किया जा सकता है. यह टाट पट्टी से अधिक आरामदायक होती है, इन सारे कार्यों के लिए जेल के 1200 कैदियों को कौशल विकास प्रशिक्षण के माध्यम से प्रशिक्षित किया गया है.

200 कैदी पढ़ रहे संस्कृत

इस जेल में सबसे अच्छी बात यह है की यहां कैदी अनपढ़ आते है, लेकिन यहां से पढ़ लिखकर डिग्री लेकर बाहर जाते हैं, ओपन स्कूल और इग्नू का सेंटर भी जेल में है, जिसमें कैदी प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा ग्रहण करते हैं, इतना ही नहीं 200 कैदी यहां संस्कृत भी पढ़ रहे हैं, ताकि यहां से बाहर निकलने के बाद कैदी अपना जीवन सुधारकर एक बेहतर जीवन जी सकें.

जेल में सीखे हुनर का मिलेगा लाभ

इस जेल में रहने वाले कैदियों की बात ही निराली है. ये अपने काम में इतने मशगूल हैं कि शिक्षण और प्रशिक्षण के बाद जीविकोपार्जन के लिए वो जेल में ही इतना श्रम कर रहे हैं की बाहर जाने के बाद उनका जीवन मुख्य धारा से जुड़ सकेगा और वो जेल में सीखे हुनर का लाभ अपने निजी जीवन में कर अपने परिवार को बेहतर दिशा दे सकेंगे.

Last Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST
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