सरगुजा : सरगुजा के दशहरे (Surguja's Dussehra) में सबसे खास है यहां की रियासत कालीन परम्परा (Princely Tradition). सरगुजा राजपरिवार (Surguja Royal Family) वर्षों से चली आ रही इस परंपरा को निभाता आ रहा है. राजपरिवार के सबसे वरिष्ठ सदस्य और छत्तीसगढ़ सरकार में स्वास्थ्य एवं पंचायत मंत्री टीएस सिंहदेव (Health and Panchayat Minister TS Singhdeo) पूर्वजों की परंपरा को आज भी निभा रहे हैं. हर वर्ष नवरात्रि में कुल देवी महामाया की पूजन राजपरिवार के सदस्यों के द्वारा की जाती है. और दशहरे के दिन सरगुजा का रघुनाथ पैलेस आम लोगों के लिये खोल दिया जाता है और रियासत के महाराज की भूमिका में मंत्री टीएस सिंहदेव संभाग के गांव गांव से आये हर व्यक्ति से मुलाकात करते हैं.
रघुनाथ पैलेस में विधि-विधान से हुई पूजा-अर्चना
इस वर्ष भी दशहरा के मौके पर रघुनाथ पैलेस में विधि-विधान से पूजा-अर्चना की गई. सरगुजा महाराज टीएस सिंहदेव व उनके उत्तराधिकारी आदित्येश्वर शरण सिंहदेव ने सरगुजा पैलेस परिसर में देवी-देवताओं के साथ ही, अश्व, गज, शस्त्र व ढोल नगाड़ो की पूजा की. साथ ही शहर समेत पूरे सरगुजा और प्रदेश में शांति, खुशहाली व सुख-समृद्धि की कामना की. आज विजयादशमी के मौके पर वर्षों से चली आ रही परम्परा के तहत टीएस सिंहदेव ने जनता से मुलाकात की, लेकिन इस बार कोरोना संक्रमण के कारण आम लोगों के लिए पैलेस के दरवाजे बंद रहे. लोगों ने कोठी घर में सिंहदेव से मुलाकात की.
पुरातन काल से मनाया जाता है दशहरा का त्योहार
इस दौरान उन्होंने पत्रकारों से चर्चा करते हुए कहा कि दशहरा का त्योहार पुरातन काल से मनाया जाता रहा है. उस समय यह नई फसल का समय होता था और उस समय पुरानी व्यवस्थाएं रही होंगी. उस दौर में भी यह नए सफल का समय होता था और हम अपने त्योहारों को देखे तो ये किसी समय, व्यवस्था व प्रकृति से जुड़ा होता है. बाद जैसे-जैसे धार्मिक व्यवस्थाओं का विकास हुआ तो रामायण काल में भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया और उस वध के साथ जुड़ी असत्य पर सत्य, बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में हम इस विजयादशमी त्योहार मनाते आ रहे हैं. आज यह मानते हैं कि भगवान राम की गाथाओं के आधार पर समाज ने शासकों के लिए भी ये विशेष दिन मनोनीत किया कि जो भी शासक रहते थे, वे अपने कार्य क्षेत्र में अपने क्षेत्र की जनता के लिए भी पूजा-अर्चना करते थे. इसलिए आज भी अश्व, गज, शस्त्र, की पूजा देवी देवताओं के साथ की गई.
संधि पूजा के दिन होती है फाटक पूजा
मंत्री ने बताया कि संधि पूजा के दिन फाटक पूजा होती है, जो अनुसूचित जनजाति के लोग ही करते हैं. साथ ही पैलेस के दरवाजे तब तक नहीं खुलते हैं, जब तक वो पूजा पूरी न हो जाए. पूजा के बाद उनकी अनुमति से ही महाराजा या राज परिवार के लोग पैलेस व अपने घर मे प्रवेश करते हैं. ये परम्परा दशकों से चली आ रही है. उन्होंने कहा कि शस्त्र वार करने के लिए नहीं बल्कि जनता की रक्षा के लिए होते हैं. आप अपने नागरिकों के रहने के लिए बेहतर स्थिति बनाएं और यही सोच इन त्योहारों के साथ जुड़ी रहीं.
पैलेस की जगह कोठी घर में की मुलाकात
विजयादशमी के मौके पर टीएस सिंहदेव ने राज परिवार की परम्परा के अनुरूप कोठीघर में बैठकर लोगों से मुलाकात की. इस दौरान लोग अपनी ओर से भेंट स्वरूप भी सामग्री लेकर पहुंचे थे, जिसे उन्होंने स्वीकार किया. हालांकि मंत्री सिंहदेव प्रतिवर्ष रघुनाथ पैलेस में ही लोगों से मुलाकात करते थे, लेकिन कोरोना संक्रमण के कारण इस बार पैलेस आम जनता के लिए बन्द रहे. इसे लेकर लोगों में थोड़ी मायूसी भी थी, लेकिन स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि यह भी एक बड़ी जिम्मेदारी है. क्योंकि कोरोना संक्रमण काल में लोगों को इससे बचाना भी जरूरी है. लोगों की सुरक्षा का ध्यान रखना भी जरूरी है. इसलिए यह निर्णय इस बार लिया गया है.