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SPECIAL :गोदना आर्ट को निखारने की कोशिश, अब शरीर पर ही नहीं कपड़ों पर दिखेंगे टैटू

सरगुजा के गोदना आर्ट की पहचान अब विदेशों तक हो गई है. जल्द ही सरगुजा में गोदना आर्ट से बने विभिन्न सामान ई-मार्केटिंग के लिये ऑनलाइन भी उपलब्ध होंगे और हजारों महिलाओं को घर बैठे रोजगार मिल सकेगा.

Tattoo art of surguja
सरगुजा का गोदना आर्ट
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Published : Oct 21, 2020, 1:25 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST

सरगुजा: सरगुजा की गोदना कला को अब कपड़े पर उकेर कर उसे ग्लोबल बनाने की तैयारी चल रही है. गोदना कला को लुप्त होने से बचाने और इससे जुड़े लोगों को आत्मनिर्भर बनाने गोदना कला को ई-मार्केटिंग के जरिए देश-विदेश में पहुंचाया जा रहा है.

कपड़े में गोदना आर्ट

पुराने जमाने में आदिवासी तबके के लोग अपने पूरे शरीर में गोदना गुदवाते थे, लेकिन अब इस कला को कपड़े पर उतारा जा रहा है. साड़ियों और कपड़े पर बनने वाली गोदना कला पहले काफी सीमित थी, घर के उपयोग में आने वाली चीजों सहित अपने पहनने के कपड़ों पर गोदना कला का उपयोग होता था, जो धीरे-धारे लुप्त होती जा रही थी. इसी कला को संजोकर रखने छत्तीसगढ़ हस्त शिल्प बोर्ड ने पहल की. इससे न सिर्फ इस कला का बचाया जा सकेगा, बल्कि इससे जुड़े लोगों को रोजगार भी मिल सकेगा.

सरगुजा का गोदना आर्ट

छत्तीसगढ़ जनजातीय बाहुल्य राज्य है. सरगुजा और बस्तर अंचल की जनजातियों में गोदना अधिक देखने को मिलता है. वैसे हिन्दू धर्म में लगभग सभी जातियों में गोदना प्रथा आदिकाल से प्रचलित है. यह प्रथा धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, वैज्ञानिक और ऐतिहासिक तथ्यों से जुड़ी हुई है. छत्तीसगढ़ की ‘गोदना’ कला का आज के समय में कोई मुकाबला नहीं है. आज का आधुनिक टैटू इसी पुरानी कला का नया अंदाज है.

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सरगुजा का गोदना आर्ट

शरीर पर सुई चुभोकर बनाया जाता था गोदना

गोदना का शाब्दिक अर्थ है चुभोना या गड़ाना. सुई से शरीर के किसी अंग में स्थायी रूप से अंकित की गई कलाकृति को गोदना कहा जाता है, और इस कला को गोदना कला कहा जाता है. आजकल के टैटू इसी पारंपरिक गोदना का नया रूप है. गोदना को अलंकार माना जाता है. गोदना गोदते समय जड़ी-बूटी के पक्के रंगों का उपयोग किया जाता हैं.

श्रृंगार का एक रूप था 'गोदना'

पुराने समय में लोग अपनी सुंदरता को निखारने के लिए शरीर के अलग-अलग हिस्सों में गोदना गुदवाते थे. महिला-पुरुष गहनों से श्रृंगार करने के साथ-साथ गोदने से भी खुद को सजाते थे. धीरे-धीरे यह शौक धार्मिक मान्यता का रूप लेता चला गया. एक समय ऐसा भी आ गया जब किसी घर में विवाह के बाद नई बहू घर आती थी, तो उसके शरीर में गोदना होना अनिवार्य होता था. ऐसा नहीं होने पर उसे घर के कुल देवता के कमरे में प्रवेश वर्जित होता था. यहां तक कि बिना गोदना की बहू के हाथ का पानी भी लोग नहीं पीते थे. बहरहाल वक्त के साथ लोगों की सोच बदली और गोदना का चलन इंसानी शरीर पर लगभग समाप्ति की ओर है. इसके अलावा शरीर पर गोदना के कई साइंटिफिक दुष्प्रभाव भी सामने आए हैं. कई बीमारियों सहित इंफेक्शन के खतरे भी हैं, लिहाजा डॉक्टर एहतियात बरतने की सलाह देते हैं.

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सरगुजा का गोदना आर्ट

पढ़ें: कोरोना के बीच होटल इंडस्ट्री के लिए अच्छी खबर, रायपुर में रेस्तरां में लौटने लगी रौनक

गोदना कला निखारने महिलाओं को दी जा रही खास ट्रेनिंग

छत्तीसगढ़ हस्त शिल्प विकास बोर्ड के मिनिस्ट्री ऑफ टैक्सटाइल्स की योजना इंटिग्रेटेड डिजाइन डेवलपमेंट के तहत महिलाओं को गोदना कला की ट्रेनिंग दी जा रही है, ताकि महिलाएं अपनी इस कला को और भी निखार सकें. ट्रेनिंग खत्म होने के 10 दिनों के बाद डायरेक्ट मार्केट टेस्ट के लिए महिलाओं के द्वारा तैयार किए गए गोदना शिल्प के कपड़ों को मार्केट में भी उतारने की तैयारी है. जिससे महिलाओं को रोजगार के नए अवसर भी प्रदान होंगे. गोदना आर्ट को देश-विदेश में पहुंचाने के लिए ई कॉमर्स साइट पर इसे उपलब्ध कराने की तैयारी चल रही है. जिससे गोदना को पहचान मिलने के साथ ही महिलाएं भी आत्मनिर्भर बन सकेंगी.

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सरगुजा का गोदना आर्ट

पढ़ें: SPECIAL: स्कूली बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा दे रही हैं नीलिमा, छात्रों में फैला रहीं ज्ञान का उजाला

गोदना कला में सुधार की ट्रेनिंग

गांव की महिलाओं को गोदना की ट्रेनिंग छत्तीसगढ़ हस्त शिल्प बोर्ड के द्वारा 2011 में दी गई थी. ट्रेनिंग के बाद महिलाएं गोदना शिल्प की साड़ी, सूट, बेडशीट तैयार करती थीं. महिलाओं को दीवार पर गोदना पेंटिंग के लिए भी बुलाया जाता है. महिलाएं गोदना शिल्प से तैयार कपड़ों को प्रदर्शनी में स्टॉल लगाकर बेचती भी थीं, लेकिन अब महिलाओं को गोदना में तकनीकी सुधार करने के लिए 3 महीने की ट्रेनिंग दी जा रही हैं, ताकि उनका आर्ट और ज्यादा फाइन हो. ट्रेनिंग के बाद महिलाओं का गोदना कला में सुधार तो होगा ही, साथ ही देश-विदेश के बाजारों में बेहतर गोदना शिल्प के कपड़े भी उपलब्ध होंगे और इन कपड़ों की डिमांड भी बढ़ेगी.

सरगुजा: सरगुजा की गोदना कला को अब कपड़े पर उकेर कर उसे ग्लोबल बनाने की तैयारी चल रही है. गोदना कला को लुप्त होने से बचाने और इससे जुड़े लोगों को आत्मनिर्भर बनाने गोदना कला को ई-मार्केटिंग के जरिए देश-विदेश में पहुंचाया जा रहा है.

कपड़े में गोदना आर्ट

पुराने जमाने में आदिवासी तबके के लोग अपने पूरे शरीर में गोदना गुदवाते थे, लेकिन अब इस कला को कपड़े पर उतारा जा रहा है. साड़ियों और कपड़े पर बनने वाली गोदना कला पहले काफी सीमित थी, घर के उपयोग में आने वाली चीजों सहित अपने पहनने के कपड़ों पर गोदना कला का उपयोग होता था, जो धीरे-धारे लुप्त होती जा रही थी. इसी कला को संजोकर रखने छत्तीसगढ़ हस्त शिल्प बोर्ड ने पहल की. इससे न सिर्फ इस कला का बचाया जा सकेगा, बल्कि इससे जुड़े लोगों को रोजगार भी मिल सकेगा.

सरगुजा का गोदना आर्ट

छत्तीसगढ़ जनजातीय बाहुल्य राज्य है. सरगुजा और बस्तर अंचल की जनजातियों में गोदना अधिक देखने को मिलता है. वैसे हिन्दू धर्म में लगभग सभी जातियों में गोदना प्रथा आदिकाल से प्रचलित है. यह प्रथा धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, वैज्ञानिक और ऐतिहासिक तथ्यों से जुड़ी हुई है. छत्तीसगढ़ की ‘गोदना’ कला का आज के समय में कोई मुकाबला नहीं है. आज का आधुनिक टैटू इसी पुरानी कला का नया अंदाज है.

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सरगुजा का गोदना आर्ट

शरीर पर सुई चुभोकर बनाया जाता था गोदना

गोदना का शाब्दिक अर्थ है चुभोना या गड़ाना. सुई से शरीर के किसी अंग में स्थायी रूप से अंकित की गई कलाकृति को गोदना कहा जाता है, और इस कला को गोदना कला कहा जाता है. आजकल के टैटू इसी पारंपरिक गोदना का नया रूप है. गोदना को अलंकार माना जाता है. गोदना गोदते समय जड़ी-बूटी के पक्के रंगों का उपयोग किया जाता हैं.

श्रृंगार का एक रूप था 'गोदना'

पुराने समय में लोग अपनी सुंदरता को निखारने के लिए शरीर के अलग-अलग हिस्सों में गोदना गुदवाते थे. महिला-पुरुष गहनों से श्रृंगार करने के साथ-साथ गोदने से भी खुद को सजाते थे. धीरे-धीरे यह शौक धार्मिक मान्यता का रूप लेता चला गया. एक समय ऐसा भी आ गया जब किसी घर में विवाह के बाद नई बहू घर आती थी, तो उसके शरीर में गोदना होना अनिवार्य होता था. ऐसा नहीं होने पर उसे घर के कुल देवता के कमरे में प्रवेश वर्जित होता था. यहां तक कि बिना गोदना की बहू के हाथ का पानी भी लोग नहीं पीते थे. बहरहाल वक्त के साथ लोगों की सोच बदली और गोदना का चलन इंसानी शरीर पर लगभग समाप्ति की ओर है. इसके अलावा शरीर पर गोदना के कई साइंटिफिक दुष्प्रभाव भी सामने आए हैं. कई बीमारियों सहित इंफेक्शन के खतरे भी हैं, लिहाजा डॉक्टर एहतियात बरतने की सलाह देते हैं.

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सरगुजा का गोदना आर्ट

पढ़ें: कोरोना के बीच होटल इंडस्ट्री के लिए अच्छी खबर, रायपुर में रेस्तरां में लौटने लगी रौनक

गोदना कला निखारने महिलाओं को दी जा रही खास ट्रेनिंग

छत्तीसगढ़ हस्त शिल्प विकास बोर्ड के मिनिस्ट्री ऑफ टैक्सटाइल्स की योजना इंटिग्रेटेड डिजाइन डेवलपमेंट के तहत महिलाओं को गोदना कला की ट्रेनिंग दी जा रही है, ताकि महिलाएं अपनी इस कला को और भी निखार सकें. ट्रेनिंग खत्म होने के 10 दिनों के बाद डायरेक्ट मार्केट टेस्ट के लिए महिलाओं के द्वारा तैयार किए गए गोदना शिल्प के कपड़ों को मार्केट में भी उतारने की तैयारी है. जिससे महिलाओं को रोजगार के नए अवसर भी प्रदान होंगे. गोदना आर्ट को देश-विदेश में पहुंचाने के लिए ई कॉमर्स साइट पर इसे उपलब्ध कराने की तैयारी चल रही है. जिससे गोदना को पहचान मिलने के साथ ही महिलाएं भी आत्मनिर्भर बन सकेंगी.

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सरगुजा का गोदना आर्ट

पढ़ें: SPECIAL: स्कूली बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा दे रही हैं नीलिमा, छात्रों में फैला रहीं ज्ञान का उजाला

गोदना कला में सुधार की ट्रेनिंग

गांव की महिलाओं को गोदना की ट्रेनिंग छत्तीसगढ़ हस्त शिल्प बोर्ड के द्वारा 2011 में दी गई थी. ट्रेनिंग के बाद महिलाएं गोदना शिल्प की साड़ी, सूट, बेडशीट तैयार करती थीं. महिलाओं को दीवार पर गोदना पेंटिंग के लिए भी बुलाया जाता है. महिलाएं गोदना शिल्प से तैयार कपड़ों को प्रदर्शनी में स्टॉल लगाकर बेचती भी थीं, लेकिन अब महिलाओं को गोदना में तकनीकी सुधार करने के लिए 3 महीने की ट्रेनिंग दी जा रही हैं, ताकि उनका आर्ट और ज्यादा फाइन हो. ट्रेनिंग के बाद महिलाओं का गोदना कला में सुधार तो होगा ही, साथ ही देश-विदेश के बाजारों में बेहतर गोदना शिल्प के कपड़े भी उपलब्ध होंगे और इन कपड़ों की डिमांड भी बढ़ेगी.

Last Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST
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