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सरगुजा में शौचालय निर्माण के नाम पर फर्जीवाड़ा, ऐसे हुआ खुलासा ! - स्वच्छ भारत मिशन फेज 2

सरगुजा में शौचालय निर्माण के नाम पर फर्जीवाड़ा हो रहा है. आलम यह है कि यहां शौचालय बनने के बाद भी दोबारा सरकार से शौचालय के नाम पर पैसा वसूला जा रहा (Fraud in name of construction of toilets in Surguja ) है. कैसे हो रहा है ये फर्जीवाड़ा..पढ़िए पूरी खबर

construction of toilets in Surguja
सरगुजा में शौचालय निर्माण
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Published : Jul 22, 2022, 8:15 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST

सरगुजा: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में स्वच्छता की मुहिम छेड़ी. इसके तहत देश को खुले में शौच से मुक्ति दिलाने के उद्देश्य से सरकार घर-घर शौचालय बनवा रही है. स्वच्छ भारत मिशन के फेज वन में ही ज्यादातर जिले खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) घोषित हो चुके हैं. सरगुजा वो जिला है, जो पूरे देश में सबसे पहले ओडीएफ घोषित हुआ. लेकिन सरकारी सिस्टम के लोग इस योजना में भी भ्रष्टाचार का रास्ता निकाल चुके (Fraud in name of construction of toilets in Surguja) हैं.

शौचालय निर्माण में घपला !

कहां हो रहा भ्रष्टाचार : यह मामला सरगुजा जिले के अम्बिकापुर जनपद पंचायत के ग्राम खैरबार का है. यहां लोगों के घरों में शौचालय 2015 से ही बने हुये हैं. इसकी पुष्टि खुद ओडीएफ का तमगा भी करता है. स्वच्छ भारत मिशन फेज वन में ही अम्बिकापुर जिला खुले में शौच मुक्त बन गया था. मतलब यहां शत प्रतिशत घरों में शौचालय था. कोई भी खुले में शौच नहीं जाता था. लेकिन इस वर्ष जैसे ही प्रधानमंत्री ने स्वच्छ भारत मिशन फेज 2 की शुरुआत की तो फेज 2 के काम भी शुरू किए गए.

कैसे हो रहा भ्रष्टाचार: भ्रष्टाचार कैसे किया जा रहा है, ये समझिए. शौचालय 2015 में बना. अब इस शौचालय के सामने रंगरोगन कराया गया. इसे फेस 2 के तहत साल 2021-22 का स्वीकृत दिखाया गया. हितग्राही के खाते में 12 हजार की राशि भी जिले से आबंटन के आधार पर खाते में भेज दी गई. अब गांव के कुछ लोग, जो ग्राम पंचायत और जनपद पंचायत की मदद से गांव में कथित रूप से ठेकेदारी करते हैं. ऐसे लोग हितग्राहियों पर दबाव बना रहे हैं कि वो खाते में आई 12 हजार की राशि में से 9 हजार रुपए निकालकर उनको दे दें.

भ्रष्टाचार रोकने के लिए हुए थे बदलाव: असल में सरकार ने इसी भ्रष्टाचार को रोकने के लिये केंद्र की कई महत्वपूर्ण योजनाओं को सीधे हितग्राही से लिंक कर दिया है. निर्माण की प्रगति भी जिओ टैगिंग के माध्यम से शासकीय एप्लीकेशन में फीड की जाती है. सरकार ने अपनी तरफ से वो सारी सावधानी बरती, जिससे भ्रष्टाचार ना हो सके. लेकिन यहां तो लोगों ने भ्रष्टाचार का नया फॉर्मूला निकाल लिया है. पुराने शौचालय में पेंटिंग करा कर उसे नव निर्मित बताया जा रह है.

12 में से 9 हजार लौटा दो: हितग्राही सुशीला बताती हैं " यह शौचालय 2015 में बना था, लेकिन अप्रैल में पुताई कर पुराने शौचालय को नया बनवाया और पैसा मंगवा के हम लोगों के खाता में डलवा दिए हैं और बोल रहे हैं कि आप लोगों के खाता में आ गया है पैसा और पैसा आप लोग हमको दे दीजिये." बड़ी बात यह है कि पैसा कोई शासकीय आदमी नहीं बल्कि गावं का एक सख्स मांग रहा है. सुशीला बताती हैं, " राजू पैसा मांग रहा है. जब गांव में शौचालय बन रहा था तो वहीं सब शौचालय बनवाया था. अब हम लोगों के खाते में पैसा मंगवा दिए हैं और बोल रहे हैं कि 12 हजार में से 3 हजार रुपये रख लो और 9 हजार लौटा दो."

यह भी पढ़ें: सरगुजा में टॉयलेट एक अजब कथा

शिकायत भी नहीं की गई: इसी गावं की एक अन्य महिला प्रिया गढ़वाल कहती हैं कि " शौचालय 2015 में बना लिखने वाले लड़के लोग आए थे, जो इसमें 2021-22 लिख गये हैं. खाते में पैसा आ गया है, उसको वापस मांग रहे हैं. इसकी शिकायत भी किसी के पास नहीं की हूं."

कैसे संभव हुई जिओ टैगिंग: अब सवाल ये उठता है कि पुराने शौचालय का रंग-रोगन करके जिओ टैगिंग कैसे संभव हुई? क्या जनपद के इंजीनियर ने फील्ड विजिट नहीं किया? जिस प्राइवेट कंपनी को जिओ टैगिंग का काम दिया गया है, क्या उसके द्वारा मिलीभगत से जिओ टैगिंग की गई? क्योंकि शौचालय जब पुराना है तो उसका ले आउट, और निर्माण के चरणों की फोटोग्राफ कहां से आई ? या फिर पंचायत से लेकर जनपद तक सभी की मिली भगत से ऐसे कारनामों को अंजाम दिया जा रहा है?

सरगुजा: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में स्वच्छता की मुहिम छेड़ी. इसके तहत देश को खुले में शौच से मुक्ति दिलाने के उद्देश्य से सरकार घर-घर शौचालय बनवा रही है. स्वच्छ भारत मिशन के फेज वन में ही ज्यादातर जिले खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) घोषित हो चुके हैं. सरगुजा वो जिला है, जो पूरे देश में सबसे पहले ओडीएफ घोषित हुआ. लेकिन सरकारी सिस्टम के लोग इस योजना में भी भ्रष्टाचार का रास्ता निकाल चुके (Fraud in name of construction of toilets in Surguja) हैं.

शौचालय निर्माण में घपला !

कहां हो रहा भ्रष्टाचार : यह मामला सरगुजा जिले के अम्बिकापुर जनपद पंचायत के ग्राम खैरबार का है. यहां लोगों के घरों में शौचालय 2015 से ही बने हुये हैं. इसकी पुष्टि खुद ओडीएफ का तमगा भी करता है. स्वच्छ भारत मिशन फेज वन में ही अम्बिकापुर जिला खुले में शौच मुक्त बन गया था. मतलब यहां शत प्रतिशत घरों में शौचालय था. कोई भी खुले में शौच नहीं जाता था. लेकिन इस वर्ष जैसे ही प्रधानमंत्री ने स्वच्छ भारत मिशन फेज 2 की शुरुआत की तो फेज 2 के काम भी शुरू किए गए.

कैसे हो रहा भ्रष्टाचार: भ्रष्टाचार कैसे किया जा रहा है, ये समझिए. शौचालय 2015 में बना. अब इस शौचालय के सामने रंगरोगन कराया गया. इसे फेस 2 के तहत साल 2021-22 का स्वीकृत दिखाया गया. हितग्राही के खाते में 12 हजार की राशि भी जिले से आबंटन के आधार पर खाते में भेज दी गई. अब गांव के कुछ लोग, जो ग्राम पंचायत और जनपद पंचायत की मदद से गांव में कथित रूप से ठेकेदारी करते हैं. ऐसे लोग हितग्राहियों पर दबाव बना रहे हैं कि वो खाते में आई 12 हजार की राशि में से 9 हजार रुपए निकालकर उनको दे दें.

भ्रष्टाचार रोकने के लिए हुए थे बदलाव: असल में सरकार ने इसी भ्रष्टाचार को रोकने के लिये केंद्र की कई महत्वपूर्ण योजनाओं को सीधे हितग्राही से लिंक कर दिया है. निर्माण की प्रगति भी जिओ टैगिंग के माध्यम से शासकीय एप्लीकेशन में फीड की जाती है. सरकार ने अपनी तरफ से वो सारी सावधानी बरती, जिससे भ्रष्टाचार ना हो सके. लेकिन यहां तो लोगों ने भ्रष्टाचार का नया फॉर्मूला निकाल लिया है. पुराने शौचालय में पेंटिंग करा कर उसे नव निर्मित बताया जा रह है.

12 में से 9 हजार लौटा दो: हितग्राही सुशीला बताती हैं " यह शौचालय 2015 में बना था, लेकिन अप्रैल में पुताई कर पुराने शौचालय को नया बनवाया और पैसा मंगवा के हम लोगों के खाता में डलवा दिए हैं और बोल रहे हैं कि आप लोगों के खाता में आ गया है पैसा और पैसा आप लोग हमको दे दीजिये." बड़ी बात यह है कि पैसा कोई शासकीय आदमी नहीं बल्कि गावं का एक सख्स मांग रहा है. सुशीला बताती हैं, " राजू पैसा मांग रहा है. जब गांव में शौचालय बन रहा था तो वहीं सब शौचालय बनवाया था. अब हम लोगों के खाते में पैसा मंगवा दिए हैं और बोल रहे हैं कि 12 हजार में से 3 हजार रुपये रख लो और 9 हजार लौटा दो."

यह भी पढ़ें: सरगुजा में टॉयलेट एक अजब कथा

शिकायत भी नहीं की गई: इसी गावं की एक अन्य महिला प्रिया गढ़वाल कहती हैं कि " शौचालय 2015 में बना लिखने वाले लड़के लोग आए थे, जो इसमें 2021-22 लिख गये हैं. खाते में पैसा आ गया है, उसको वापस मांग रहे हैं. इसकी शिकायत भी किसी के पास नहीं की हूं."

कैसे संभव हुई जिओ टैगिंग: अब सवाल ये उठता है कि पुराने शौचालय का रंग-रोगन करके जिओ टैगिंग कैसे संभव हुई? क्या जनपद के इंजीनियर ने फील्ड विजिट नहीं किया? जिस प्राइवेट कंपनी को जिओ टैगिंग का काम दिया गया है, क्या उसके द्वारा मिलीभगत से जिओ टैगिंग की गई? क्योंकि शौचालय जब पुराना है तो उसका ले आउट, और निर्माण के चरणों की फोटोग्राफ कहां से आई ? या फिर पंचायत से लेकर जनपद तक सभी की मिली भगत से ऐसे कारनामों को अंजाम दिया जा रहा है?

Last Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST
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