सरगुजा: वन संपदा से भरपूर सरगुजा (Surguja) के इतने बड़े वन क्षेत्र में हाथियों ने सालों पहले इसे अपने लिये चुना था. सन 1990 से यहां हाथियों की संख्या बढ़ने लगी और सरगुजा के जंगलों में 200 के करीब हाथियों की संख्या (Number Of Elephants) रहती है. वक्त के साथ जंगल कम हुये और हाथियों के रहवास का क्षेत्र कम पड़ने लगा. नतीजा यह हुआ कि मानव और हाथी के बीच द्वंद शुरू हो गया है. लेकिन इतने वर्षों में वन अधिकारी हाथियों को उनका ठिकाना नहीं दे पाए हैं. यही वजह है कि आये दिन हाथियों से मानव का संघर्ष होता रहता है जिसमें इंसान मारे जाते हैं. हाथियों के हमले में इतनी क्षति होती है कि बीते 5 वर्षों में 50 करोड़ का मुआवजा वन विभाग (Forest department) बांट चुका है.
वन विभाग ने बांटा 50 करोड़ रुपये का मुआवजा
वर्तमान में सरगुजा वन वृत्त में 170 से 190 हाथी विचरण करते हैं और इनके रास्ते में आकर इन्हें छेड़ने वाले ग्रामीण हाथी के हमले का शिकार हो जाते हैं. हाथी फसलों को नुकसान पहुंचाने के साथ ग्रामीण घरों को भी क्षतिग्रस्त करते हैं. सरगुजा फारेस्ट रेंज (Surguja Forest Range) में बीते 5 वर्षों में वन विभाग 50 करोड़ रुपये मुआवजा बांटा जा चुका है. पांच वर्षों में यहां 171 इंसानों की जान हाथी के हमले से हो चुकी है. साथ ही 7 हजार से अधिक घरों को नुकसान हुआ है और 12 हजार हेक्टेयर जमीन की फसलों को हाथियों में नुकसान पहुंचा है.
खुले में घूम रहे हाथी
यहां हाथियों के रहने के लिए सेमरसोत अभ्यारण्य (Semarsot Sanctuary Chhattisgarh) और गुरुघासी दास नेशनल पार्क (Guru Ghasidas National Park Chhattisgarh) का बड़ा क्षेत्रफल है, लेकिन यह हाथियों की संख्या के आगे कम पड़ रहा है और हाथी खुले जंगल में विचरण कर रहे हैं.
इस विषय पर सरगुजा के हाथी एक्सपर्ट (Elephant Expert) अमलेंदु मिश्रा ने कहा कि हाथी स्वभाव से हिंसक नहीं होते हैं. उसके साथ उसके रास्ते में आने वाले इंसानों के स्वभाव की वजह से वो आत्मरक्षा में हमला कर देते हैं. जिससे इंसानों की मौत हो जाती है. इनके अनुसार भी हाथियों और मानव द्वंद को रोकने के लिए हाथियों को रहने का ठिकाना देना होगा. साथ ही यह भी सुनिश्चित करना होगा कि हाथियों के लिए पीने का पानी और खाने की भी पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिये.
रिजर्व एरिया बढ़ाने की जरूरत
फिलहाल हाथियों को रहने का पर्याप्त ठिकाना नहीं मिलने के कारण हाथी और इंसान की जंग हो रही है. इसे रोकने के लिए रिजर्व एरिया बढ़ाने की जरूरत (Need to increase reserve area) है और वर्तमान में छत्तीसगढ़ सरकार एक ऐसे ही प्रोजेक्ट को आगे बढ़ा रही है. कोरबा, सरगुजा और जशपुर में प्रस्तावित लेमरू रिजर्व (Proposed Lemru Reserve in Jashpur) बनने के बाद यह समस्या काफी हद तक कम होते देखी जा रही है.
अलग अलग नुकसान पर अलग मुआवजा
वन विभाग के आंकड़ों पर नजर डालें तो वर्ष 2016-17 मे सरगुजा रेंज में हाथियों ने 53 लोगों की जान ली थी. 2004 मकान ढ़हाए, 2278 हेक्टेयर फसल को नुकसान पहुंचाया है. जिसके बदले वन विभाग ने 10 करोड़ 80 लाख 12 हजार 996 का मुआवजा दिया है. वर्ष 2017-18 में 42 लोगों की जान गई. 2047 मकान तोड़े, 2191 हेक्टेयर फसल नुकसान. जिसमें 13 करोड़ 20 लाख 75 हजार 429 रुपए का मुआवजा दिया गया.
वर्ष 2018-19 में मरने वालों की संख्या सबसे कम थी. इस वर्ष 16 लोगों की ही मौत हुई, जबकी 1,137 हाथियों ने मकान तोड़े और 2,345 हेक्टेयर फसलों को नुकसान पहुंचाया. जिस पर 9 करोड़ 10 लाख 30 हजार का मुआवजा बांटा गया, वर्ष 2019-20 में 34 जान गई, 1081 मकान तोड़े और 2370 हेक्टेयर फसल नुकसान हुई इस वर्ष वन विभाग ने 8 करोड़ 81 लाख 51 हजार का मुआवजा दिया है. साल 2020-21 में अब तक 26 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकी हाथियों ने 945 मकान तोड़े हैं और 1,783 हेक्टेयर फसल का नुकसान हुआ है. इस वर्ष 17 लाख 35 हजार का मुआवजा वन विभाग ने बांटा है.