सरगुजा: एक नवम्बर से आदिवासी नृत्य महोत्सव शुरु होने जा रहा है. इस बार आदिवासी नृत्य महोत्सव की थीम छत्तीसगढ़ के पारंपरिक नृत्य और गीत हैं. ऐसे नृत्य और गीत जो आदिवासी खेतों में काम के साथ (Chhattisgarh combination of farming and tradition) करते हैं. इस थीम की झलकियां महोत्सव में दिखेंगी. लेकिन हम आपको उस संस्कृति की असल झलक दिखाने जा रहे हैं. कैसे छत्तीसगढ़ के आदिवासी खेती के साथ नृत्य और गीत गाते हैं. इन गीतों की मान्यता क्या है. कौन कौन से गीत और नृत्य हैं ये सब कुछ जानने हम पहुंचे खेतों में किसानों के बीच और हमने जानने की कोशिश की, कैसे आदिवासी इन नृत्यों को अपने पंरपरा के साथ जीवित रखे हुए हैं. Adivasi Dance Festival 2022
जीवन शैली में रचा बसा संगीत और नृत्य: किसानों ने बताया की नृत्य और गीत उनके पूरे जीवन शैली में रचा बसा है. खासकर खेती के हर काम मे एक गीत और नृत्य की खास भूमिका है. मुख्य रूप से अपने कर्म की सलामती के लिए गीत गाये जाते हैं. कर्म का बेहतर प्रतिफल मिलने के बाद खुशी में आदिवासी गीत गाते हैं नृत्य करते हैं. खेतों में धान की रोपाई और कटाई के समय ददरिया गीत गाते हुये महिला और पुरुष नृत्य करते हैं और नृत्य करते करते अपना काम भी करते हैं. chhattisgarh Rajyotsav 2022
इतने प्रकार के गीत और नृत्य: मुख्य रूप से करमा, सुआ, शैला, डोमकच और ददरिया जैसे गीत के नृत्य बेहद लोकप्रिय हैं. साल भर अलग अलग अवसर पर ये गीत गाये जाते हैं. बड़ी बात यह है की यह हर गीत खेती के अलग अलग कार्यों के साथ गाये जाते हैं. लोग खुशियों का इजहार गीत और नृत्य के रूप में करते हैं. यही जीवन की परंपरा धीरे धीरे लोक कला बन चुकी है. आम तौर पर जीवन मे शामिल सारी दिनचर्या ही कला का रूप लेती गई. अब ये जीवन शैली ही लोक कला बन चुकी है. dance of Chhattisgarh
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दुनिया भर की सभ्यता का मेल: आदिवासी नृत्य महोत्सव में छत्तीसगढ़ की आदिवासी संस्कृति के साथ दुनिया भर की आदिवासी लोक कलाओं के ग्रुप पहुंचते हैं. एक दूसरे की सभ्यता को समझने और देखने का अवसर मिलता है. इसलिए इस बार इस थीम को महोत्सव में आकर दिया गया है. आदिवासी लोक कला की थीम आदिवासियों के सम्पूर्ण जीवन को ही वर्णित करती है. क्योंकि संगीत और नृत्य इनके जीवन मे ही बसा हुआ है. dance of tribals of Chhattisgarh
खेती की शुरुआत से अंत तक कला का समावेश: सरगुजा में लोक कला के प्रणेता रंजीत सारथी बताते हैं " खेती की शुरुआत से अंत तक आदिवासी अपने हर काम को गीत और नृत्य के साथ करते हैं. महिला पुरूष ददरिया गाते और नाचते हुये धान की रोपाई करते हैं. इसके बाद कर्मा त्योहार मनाते हैं करमा गीत के माध्यम से ईश्वर का आह्वान करते हैं. अपने द्वारा किये गए कर्म की सलामती की प्रार्थना करते हैं. इसके बाद जब खेतों में फसल लहलहाने लगती है तो सुगा गीत शैला नृत्य कर खुशियां मानते हैं. धान की कटाई के समय फिर से ददरिया गाया जाता है और जब अंत मे धान को कोठार में रखते हैं तब भी डोमकच गीत गाते हुये नृत्य करते रहते हैं"