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संस्कृति और परंपरा को बचाने प्रदेश भ्रमण पर निकली शांता छत्तीसगढ़िया

छत्तीसगढ़ी वेशभूषा और संस्कृति से दूर होते लोगों को छत्तीसगढ़िया परिवेश अपनाने के लिए प्रेरित करने भिलाई की शांता शर्मा इन दिनों प्रदेश के भ्रमण पर निकली हैं.

शांता शर्मा
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Published : Oct 8, 2019, 5:49 PM IST

राजनांदगांव: छत्तीसगढ़ी वेशभूषा और संस्कृति से दूर होते लोगों को छत्तीसगढ़िया परिवेश अपनाने के लिए प्रेरित करने भिलाई की शांता छत्तीसगढ़िया इन दिनों प्रदेश के भ्रमण पर निकली हैं. वे लोगों के बीच जाकर छत्तीसगढ़ी परिधान को अपनाने की अपील कर रही हैं.

संस्कृति और परंपरा को बचाने प्रदेश भ्रमण पर निकली शांता छत्तीसगढ़िया

छत्तीसगढ़ महतारी की बेटी भिलाई की शांता शर्मा इन दिनों छत्तीसगढ़ भ्रमण पर निकली हैं. वो अकेली ही विलुप्त होती छत्तीसगढ़ी संस्कृति के गहनों से महिलाओं को परिचित करावा रही हैं. शांता शर्मा ने स्वयं को शांता छत्तीसगढ़िया का नाम दे दिया है और प्रदेश के कई जिलों के दूरस्थ वनांचल क्षेत्र तक पहुंचकर छत्तीसगढ़ी गहनों के बारे में लोगों को बता रही हैं.

कई रोगों में है ये गहने लाभदायक
शांता छत्तीसगढ़िया का कहना है कि, प्राचीन काल से ही यह सारे गहने देवी-देवता भी पहनते थे, जिसका वैज्ञानिक कारण है. शांता छत्तीसगढ़िया ने बताया कि कौन सा गहना किस बीमारी को ठीक करने में लाभदायक है.

  • मुंदरी यानि अंगूठी हिस्ट्रीरीया रोग से मुक्ति दिलाता है.
  • वहीं करधन पेट को बाहर नहीं होने देता और कमर को झुकने नहीं देता है.
  • बिछीया से हरमोनिकल समस्या दूर होती है.
  • नागमोरी पहनने से ब्लड सरकुलेशन बेहतर रहता है.
  • वहीं पैर में चुटकी पहनने से जमीन के भीतर की चुंबकीय शक्ति से संपर्क होता है. जिससे कई सारी बीमारियां दूर हो जाती है.

संस्कृति को बचाने की कोशिश
छत्तीसगढ़ी परंपरा के अनुरूप पहने जाने वाले गहने अब विलुप्त हो रहे हैं. अब यह गहने फिल्म और नाचा के आयोजनों में ही देखने को मिलते हैं, जबकि आम घरेलू महिला छत्तीसगढ़ी गहने और वेशभूषा से लगभग दूर हो चुकी है. ऐसे में सांता छत्तीसगढ़िया ने इन दिनों छत्तीसगढ़ी गहनों और विलुप्त होती संस्कृति को बचाने का बीड़ा उठाया है.

अपनी यात्रा 'छत्तीसगढ़ी अपनाव' के साथ ही शांता कुपोषण रहित छत्तीसगढ़, नशामुक्त छत्तीसगढ़ और यहां की संस्कृति को लोगों के जहन में फिर से जीवित करने में लगी हैं.

18 जुन को शुरु की थी यात्रा

  • शांता ने अपनी यात्रा सरगुजा संभाग से 18 जुन को शुरू की थी और अब तक हजारों किलोमीटर का सफर भी तय कर लिया है.
  • छत्तीसगढ़ की विलुप्त होती भाषा को प्रचलन मे लाने और छत्तीसगढ़ के खान-पान का आयुर्वेदिक महत्व भी बताते हुए वो आगे बढ़ रहीं हैं.

शांता ने कहा कि, आज पारंपरिक पकवान को भुलाकर लोग पीजा, बर्गर, मोमोस, चाऊमीन खाते हैं. इसी वजह से कम उम्र में ही लोग बड़ी- बड़ी बीमारी के शिकार हो रहे हैं जिसका स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है.

राजनांदगांव: छत्तीसगढ़ी वेशभूषा और संस्कृति से दूर होते लोगों को छत्तीसगढ़िया परिवेश अपनाने के लिए प्रेरित करने भिलाई की शांता छत्तीसगढ़िया इन दिनों प्रदेश के भ्रमण पर निकली हैं. वे लोगों के बीच जाकर छत्तीसगढ़ी परिधान को अपनाने की अपील कर रही हैं.

संस्कृति और परंपरा को बचाने प्रदेश भ्रमण पर निकली शांता छत्तीसगढ़िया

छत्तीसगढ़ महतारी की बेटी भिलाई की शांता शर्मा इन दिनों छत्तीसगढ़ भ्रमण पर निकली हैं. वो अकेली ही विलुप्त होती छत्तीसगढ़ी संस्कृति के गहनों से महिलाओं को परिचित करावा रही हैं. शांता शर्मा ने स्वयं को शांता छत्तीसगढ़िया का नाम दे दिया है और प्रदेश के कई जिलों के दूरस्थ वनांचल क्षेत्र तक पहुंचकर छत्तीसगढ़ी गहनों के बारे में लोगों को बता रही हैं.

कई रोगों में है ये गहने लाभदायक
शांता छत्तीसगढ़िया का कहना है कि, प्राचीन काल से ही यह सारे गहने देवी-देवता भी पहनते थे, जिसका वैज्ञानिक कारण है. शांता छत्तीसगढ़िया ने बताया कि कौन सा गहना किस बीमारी को ठीक करने में लाभदायक है.

  • मुंदरी यानि अंगूठी हिस्ट्रीरीया रोग से मुक्ति दिलाता है.
  • वहीं करधन पेट को बाहर नहीं होने देता और कमर को झुकने नहीं देता है.
  • बिछीया से हरमोनिकल समस्या दूर होती है.
  • नागमोरी पहनने से ब्लड सरकुलेशन बेहतर रहता है.
  • वहीं पैर में चुटकी पहनने से जमीन के भीतर की चुंबकीय शक्ति से संपर्क होता है. जिससे कई सारी बीमारियां दूर हो जाती है.

संस्कृति को बचाने की कोशिश
छत्तीसगढ़ी परंपरा के अनुरूप पहने जाने वाले गहने अब विलुप्त हो रहे हैं. अब यह गहने फिल्म और नाचा के आयोजनों में ही देखने को मिलते हैं, जबकि आम घरेलू महिला छत्तीसगढ़ी गहने और वेशभूषा से लगभग दूर हो चुकी है. ऐसे में सांता छत्तीसगढ़िया ने इन दिनों छत्तीसगढ़ी गहनों और विलुप्त होती संस्कृति को बचाने का बीड़ा उठाया है.

अपनी यात्रा 'छत्तीसगढ़ी अपनाव' के साथ ही शांता कुपोषण रहित छत्तीसगढ़, नशामुक्त छत्तीसगढ़ और यहां की संस्कृति को लोगों के जहन में फिर से जीवित करने में लगी हैं.

18 जुन को शुरु की थी यात्रा

  • शांता ने अपनी यात्रा सरगुजा संभाग से 18 जुन को शुरू की थी और अब तक हजारों किलोमीटर का सफर भी तय कर लिया है.
  • छत्तीसगढ़ की विलुप्त होती भाषा को प्रचलन मे लाने और छत्तीसगढ़ के खान-पान का आयुर्वेदिक महत्व भी बताते हुए वो आगे बढ़ रहीं हैं.

शांता ने कहा कि, आज पारंपरिक पकवान को भुलाकर लोग पीजा, बर्गर, मोमोस, चाऊमीन खाते हैं. इसी वजह से कम उम्र में ही लोग बड़ी- बड़ी बीमारी के शिकार हो रहे हैं जिसका स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है.

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राजनांदगांव।छत्तीसगढ़ी वेशभूषा और संस्कृति से दूर होते लोगों को छत्तीसगढ़ी परिवेश को अपनाने के लिए प्रेरित करने भिलाई की शांता छत्तीसगढ़िया इन दिनों छत्तीसगढ़ प्रदेश का भ्रमण पर निकली हुई हैं। वे लोगों के बीच जाकर छत्तीसगढ़ी परिधान को अपनाने की अपील कर रही हैं।

Body:छत्तीसगढ़ महतारी की बेटी भिलाई की शांता शर्मा इन दिनों छत्तीसगढ़ भ्रमण पर निकली हुई है, वे अकेली ही विलुप्त होती छत्तीसगढ़ी संस्कृति के गहनों से महिलाओं को परिचित करावा रही हैं। शांता शर्मा ने स्वयं को सांता छत्तीसगढ़िया का नाम दे दिया है और प्रदेश के कई जिलों के दूरस्थ वनांचल क्षेत्र तक पहुंचकर छत्तीसगढ़ी गहनों के बारे में लोगों को बता रही हैं।
कई रोगों में है लाभदायक

शांता छत्तीसगढ़िया का कहना है कि प्राचीन काल से ही यह सारे गहने देवी देवताओं के द्वारा भी पहने जाते थे। जिसका वैज्ञानिक कारण है। सांता छत्तीसगढ़िया बताती हैं किमुन्दरी हिस्ट्रीरीया रोग से वही करधन पेट को बहर नहीं होने देता हैं और कमर को झुकने नहीं देता है। बिछीया से हरमोनिकल समस्या दुर होती है। नागमोरी पहनने से ब्लड सरकुलेशन बेहतर रहता है वहीं पैर में चुटकी पहनने से जमीन के भीतर की चुंबकीय शक्ति के संपर्क होता हैं। जिससे कई सारी बीमारियां दूर हो जाती है। अपने भ्रमण के दौरान राजनंदगांव पहुंची सांता छत्तीसगढ़ी गहनों से लोगों को परिचित करवाया।

संस्कृति को बचाने की कोशिश

छत्तीसगढ़ी परंपरा के अनुरूप पहने जाने वाले गहने अब विलुप्त हो रहे हैं,अब यह गहने फिल्म और नाचा के आयोजनों में ही देखने को मिलते हैं जबकि आम घरेलू महिला छत्तीसगढ़ी गहने और वेशभूषा से लगभग दूर हो चुकी है। ऐसे में सांता छत्तीसगढ़िया इन दिनों छत्तीसगढी़ गहनों और विलुप्त होती संस्कृति को बचाने का बीड़ा उठाया हुए हैं। अपनी यात्रा के दौरान छत्तीसगढ़ अपनाव के साथ ही शांता कुपोषण रहित छत्तीसगढ़, नशा से छत्तीसगढ़ और यहां की संस्कृति को लोगों के जहन में पुनः जीवित करने एवं कुपोषण के प्रति सजग भी करा रही है।

Conclusion:शांता ने अपनी यात्रा सरगुजा सम्भाग से 18 जुन को प्रारम्भ की थी और अब तक हजारो किलोमीटर का सफर भी तय कर लिया है। छत्तीसगढ़ की विलुप्त होती भाषा को प्रचलन मे लाने तथा छत्तीसगढ़ के खान पान का आयुर्वेदिक महत्व भी बताते हुए वे अपने यात्रा के शांता ने कहा कि आज पारम्परिक पकवान को भुलाकर लोग पिजा, बरगर, मोमोस, चावमीन खाते उसी से कम उम्र मे बडी़- बडी़ बीमारी के वे शिकार हो रहे हैं जिसका स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा हैं। अपनी यात्रा के दौरान लोगों को सजक कर रही हैं।
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