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मिट्टी के खिलौने हो रहे ओझल, पोला पर बदला दिखा नजारा

पोला के त्यौहार में पहले बच्चे मिट्टी के खिलौनों से खेलते हुए दिखाई देते थे. लेकिन इस आधुनिक समय में टीवी और मोबाइल ने बच्चों को मिट्टी के खिलौनों से दूर कर दिया है.

मिट्टी के खिलौने
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Published : Aug 31, 2019, 12:52 PM IST

राजनांदगांवः आधुनिकता की ओर बढ़ते समाज से पारंपरिकता दूर होती जा रही है. पोला पर भी कुछ ऐसा ही नजारा रहा. पोला के त्यौहार में पहले बच्चे मिट्टी के खिलौनों से खेलते हुए दिखाई देते थे. लेकिन इस आधुनिक समय में टीवी और मोबाइल ने बच्चों को मिट्टी के खिलौनों से दूर कर दिया है.

पिछले 10 साल के मुकाबले अब मिट्टी के खिलौनों की बिक्री में गिरावट देखी जा रही है. लगभग 70 प्रतिशत तक मिट्टी के खिलौनों की बिक्री में कमी आई है. इस कारण इस व्यवसाय से जुड़े लोगों ने खिलौनों का निर्माण करना भी कम कर दिया है. इसके चलते अब पोला पर्व पर मिट्टी के खिलौने से खेलने की परंपरा भी खत्म होती नजर आ रही है.

बच्चों के पास वक्त नहीं
मिट्टी के खिलौने बेचने वाले व्यापारी ने ETV भारत को बताया कि लगभग 10 साल पहले 1000 से ज्यादा मिट्टी के बैल पोला पर्व पर बिकते थे. लेकिन अब महज 200 से 300 की संख्या में बनाए जाने बाद उन्हें बेचना मुश्किल हो गया है. खिलौना व्यापारी ने इसका कारण बताते हुए कहा कि आज तकनीक के दौर में बच्चों के पास टी.वी, मोबाइल और वीडियो गेम्स हैं इस कारण उनकी खिलौनों में रुचि लगातार कम हो रही है.

हिन्दी पंचाग के मुताबित भाद्र महीने के अमावस्या को मनाया जाने वाला पोला पर्व, छत्तीसगढ़ के स्थानीय त्योहारों में एक विशेष स्थान रखता है. हरेली त्योहार के बाद प्रदेशवासियों को पोला पर्व के लिए बेसब्री से इंतजार रहता है. पोला पर्व महिलाओं, पुरुषों एवं बच्चों के लिए अलग-अलग महत्व रखता है. इस पर्व में किसान कृषि में सहायक बैलों को सजाकर पूजा करते है और बच्चे मिट्टी के बने बैलों और खिलौनों का आनंद लेते हैं. त्योहार के अवसर पर घरों में कई प्रकार के पकवान भी बनाए जाते हैं. गांव में इस दिन बैल दौड़ भी आयोजित किया जाता है और जीतने वाले बैल जोड़ी के मालिक को इनाम दिया जाता है.

राजनांदगांवः आधुनिकता की ओर बढ़ते समाज से पारंपरिकता दूर होती जा रही है. पोला पर भी कुछ ऐसा ही नजारा रहा. पोला के त्यौहार में पहले बच्चे मिट्टी के खिलौनों से खेलते हुए दिखाई देते थे. लेकिन इस आधुनिक समय में टीवी और मोबाइल ने बच्चों को मिट्टी के खिलौनों से दूर कर दिया है.

पिछले 10 साल के मुकाबले अब मिट्टी के खिलौनों की बिक्री में गिरावट देखी जा रही है. लगभग 70 प्रतिशत तक मिट्टी के खिलौनों की बिक्री में कमी आई है. इस कारण इस व्यवसाय से जुड़े लोगों ने खिलौनों का निर्माण करना भी कम कर दिया है. इसके चलते अब पोला पर्व पर मिट्टी के खिलौने से खेलने की परंपरा भी खत्म होती नजर आ रही है.

बच्चों के पास वक्त नहीं
मिट्टी के खिलौने बेचने वाले व्यापारी ने ETV भारत को बताया कि लगभग 10 साल पहले 1000 से ज्यादा मिट्टी के बैल पोला पर्व पर बिकते थे. लेकिन अब महज 200 से 300 की संख्या में बनाए जाने बाद उन्हें बेचना मुश्किल हो गया है. खिलौना व्यापारी ने इसका कारण बताते हुए कहा कि आज तकनीक के दौर में बच्चों के पास टी.वी, मोबाइल और वीडियो गेम्स हैं इस कारण उनकी खिलौनों में रुचि लगातार कम हो रही है.

हिन्दी पंचाग के मुताबित भाद्र महीने के अमावस्या को मनाया जाने वाला पोला पर्व, छत्तीसगढ़ के स्थानीय त्योहारों में एक विशेष स्थान रखता है. हरेली त्योहार के बाद प्रदेशवासियों को पोला पर्व के लिए बेसब्री से इंतजार रहता है. पोला पर्व महिलाओं, पुरुषों एवं बच्चों के लिए अलग-अलग महत्व रखता है. इस पर्व में किसान कृषि में सहायक बैलों को सजाकर पूजा करते है और बच्चे मिट्टी के बने बैलों और खिलौनों का आनंद लेते हैं. त्योहार के अवसर पर घरों में कई प्रकार के पकवान भी बनाए जाते हैं. गांव में इस दिन बैल दौड़ भी आयोजित किया जाता है और जीतने वाले बैल जोड़ी के मालिक को इनाम दिया जाता है.

Intro:राजनांदगांव छत्तीसगढ़ के प्रमुख त्यौहार में गिने जाने वाले पोला त्यौहार का उत्साह बच्चों में भी कम दिखाई दे रहा है इस त्यौहार में प्रमुख रूप से बच्चे मिट्टी के खिलौनों से खेलते हुए दिखाई देते थे लेकिन आधुनिकता के दौर में जहां टीवी और मोबाइल ने इन मिट्टी के खिलौनों से खेलने का उत्साह छीन लिया है पिछले 10 साल के मुकाबले अब मिट्टी के खिलौनों की बिक्री में रिकॉर्ड गिरावट दर्ज की गई है तकरीबन 70% तक मिट्टी के खिलौनों की बिक्री में कमी आई है यही कारण है कि अब इस व्यवसाय से जुड़े लोग भी खिलौनों का निर्माण भी कम कर दिया है.


Body:पोला पर्व पर आमतौर पर बच्चे मिट्टी के खिलौनों से खेलते हुए दिखाएं देते थे लेकिन अब बच्चे मोबाइल और टीवी की दुनिया से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं इसके चलते इस पर्व का उत्साह भी कम हो गया है यही कारण है कि इस पर्व पर बनने वाले मिट्टी के खिलौने बैलों की बिक्री में रिकॉर्ड कमी आई है बच्चों ने इन खिलौनों से अपनी रुचि ही कम कर दी है इसके चलते अब पोला पर्व पर मिट्टी के खिलौने से खेलने की परंपरा भी विलुप्त होती नजर आ रही है.
बिक्री नहीं इसलिए नहीं बना रहे
इस व्यवसाय से जुड़े व्यापारियों का कहना है कि तकरीबन 10 साल पहले 1000 से अधिक मिट्टी के बैल पोला पर्व पर बिकते थे लेकिन अब महज 200 से 300 की तादाद में यह बिकते हैं बिक्री में रिकॉर्ड 70% तक गिरावट आ चुकी है इसके चलते अब वे पोला पर्व पर भी मिट्टी के बैल सीमित संख्या में ही बनाते हैं जिससे उन्हें नुकसान ना हो 200 से 300 की संख्या में मिट्टी के बैलों की बिक्री बमुश्किल हो पाती है.



Conclusion:बच्चों के पास वक्त नहीं
व्यापारियों की मानें तो अब बच्चों के पास पहले जैसा वक्त नहीं है टीवी मोबाइल और स्कूल में पढ़ाई के साथ अतिरिक्त गतिविधियों के चलते पर्व के लिए समय ही नहीं बचता है छत्तीसगढ़ में पोला पर्व एक प्रमुख त्यौहार के रूप में मनाया जाता है जिस पर बच्चे मिट्टी के खिलौने से खेलते थे और इनकी पूजा भी होती थी अब यह परंपरा विलुप्त होने के कगार पर ही आ गई है ग्रामीण इलाकों के लोग ही इस परंपरा का कुछ हद तक के निर्वहन कर रहे हैं.

बाइट व्यापारी
पीटीसी
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