डोंगरगांव : 14 जून को विश्व रक्तदाता दिवस मनाया जाता है. रक्तदान किसी के लिए जीवनदान साबित हो सकता है. वर्तमान में ऐसे कई उदाहरण हैं जिन्होंने सेवाभाव और निःस्वार्थ भाव से किसी की जीवन की रक्षा के लिए कई बार ब्लड डोनेट किया है. ETV भारत ने इन रक्तमित्रों से रक्तदान करने का उद्देश्य जानने की कोशिश की है. उन्होंने कहा कि धर्म और नैतिक संस्कार ने उन्हें प्रेरित किया और ब्लड डोनेट कर लोगों का जीवन बचाना जीवन का सबसे बड़ा पुण्य कार्य है.
राजनांदगांव के डोंगरगांव नगर के लिए गौरव की बात है कि नगर की एक महिला को छत्तीसगढ़ की प्रथम महिला रक्तदाता के रूप में सम्मानित किया गया है. हम बात कर रहे है सरोज ठाकुर की जिन्हें रक्तदान के लिए मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने सम्मानित किया था.
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रक्तदाताओं की कहानी जिन्होंने लोगों को नया जीवन दिया-
- सरोज ठाकुर जब करीब 16 साल की थी, उस समय उन्होंने रक्तदान किया. सरोज ने बताया के उन्होंने पहली बार 25 अप्रैल 1984 में 16 साल की उम्र में शिवरीनारायण की एक महिला को ब्लड डोनेट किया था. उसकी हालत काफी नाजुक थी और कोई ब्लड देने को तैयार नहीं था. तब उन्होंने दुर्ग अस्पताल में रक्तदान किया था. वे अब तक 60 बार ब्लड डोनेट कर चुकी हैं. वर्तमान में सरोज ठाकुर राजनांदगांव की चैपाटी में कार्यरत हैं.
- राम पटेल ने बताया कि रक्तदान उनके जीवन का अहम पहलू है. साल 2006 को वे राजनांदगांव ब्लड बैंक के दरवाजे पर खड़े थे, तभी एक व्यक्ति ब्लड बैंक के आसपास मिला, उनके परिजन को खून की तत्काल आवश्यकता थी. उन्होंने कहा कि, 'मैं यह अवसर खोना नहीं चाहता था मैंने तुरंत ब्लड डोनेट के लिए हां कर दी. यह मेरा पहला रक्तदान था. मैंने अब तक 38 बार रक्तदान कर चुका हूं'. राम पटेल सहायक शिक्षक के पद पर शासकीय प्राथमिक शाला लाटमेटा में कार्यरत हैं.
- ज्ञानचंद साहू ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि, 'जब पहली बार ब्लड बैंक गया था, तब मोहला के आदिवासी परिवार की एक महिला जो डिलीवरी के लिए आई थी और उसे ब्लड की आवश्यकता थी. उस समय उसका पति ब्लड बैंक के सामने चुपचाप खड़ा था और किसी से कुछ भी नहीं कह पा रहा था. तब मैंने उससे परेशानी पूछी और पता चला कि उसे ब्लड की आवश्यकता है. तब मैंने बिना देर किए ब्लड डोनेट के लिए अपनी सहमति प्रदान कर दी. मैंने रक्तदान किया और उस महिला की जान बच गई. उस दिन मुझे एहसास हुआ रक्तदान महादान है और इसे ग्रामीण क्षेत्र में प्रचार प्रसार करना चाहिए'.
- दीपमाला साहू ने कहा कि, 'रक्तदान को लेकर आज भी महिलाओं में बहुत कम जागरूकता है. महिलाएं या लड़कियां एकाएक ब्लड डोनेट करने के लिए तैयार नहीं होती है. मुझे भी बहुत डर लगता था लेकिन मेरे पति की प्रेरणा से मैंने पहली बार एक महिला को डिलीवरी के समय ब्लड दिया था. मुझे बहुत खुशी हुई कि मेरे खून से दो लोगों को जीवन दान मिला'.
- गुलशन पटेल अभी 22 साल के हैं और बीएससी फाइनल ईयर के छात्र हैं. गुलशन ने सोशल मीडिया पर एक ग्रुप बनाया है. 20 युवाओं के साथ शुरू किया ग्रुप एक साल बाद 180 युवाओं का हो गया. सभी निस्वार्थ भाव से रक्तदान के क्षेत्र में काम कर रहे हैं.
- योगेश पटेल ने बताया कि उन्होंने पहला रक्तदान 2005-2006 में किया था और आज वे 58वीं बार रक्तदान करेंगे. सबसे पहले उन्होंने एक 6 वर्ष की बच्ची को ब्लड डोनेट किया था. योगेश कहते हैं कि, 'उस बच्ची के ठीक होने पर लगा कि मुझे हर किसी की मदद करनी चाहिए और तब से लेकर आज तक मैं ब्लड डोनेट करते आ रहा हूं'.