राजनांदगांव: मुंह में स्वाद और मिठास घोल देने के लिए लंगड़ा आम का सिर्फ नाम ही काफी है. गर्मी शुरू होते ही आम की मीठी खुशबू जैसे हवाओं में घुल जाती है. लंगड़ा की मिठास और महक के दीवाने विदेश तक हैं. लंगड़ा से लेकर दशहरी तक और तोतापरी से लेकर केसर तक हर आम के पीछे एक खास कहानी और बात है. लंगड़ा आम की उत्पति बनारस से हुई है, लेकिन अब यह प्रजाति विलुप्त होने के कगार पर आ गई.
बता दें कि छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले में खुज्जी गांव में करीब सवा सौ साल पुराना लंगड़ा आम का बगीचा है. इस बगीचे में सवा सौ साल पुराने पेड़ आज भी मौजूद हैं, जहां लंगड़ा आम की फसल आज भी आस-पास के 6 राज्य जिसमें छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और बिहार में अपने स्वाद के लिए जानी जाती है.
विलुप्त होने के कगार पर है लंगड़ा आम
तकरीबन सवा सौ साल पहले खुज्जी के जमीनदार नवाब नसरुद्दीन खान ने अपनी निजी जमीन पर लंगड़ा आम के सैकड़ों पेड़ लगाए थे, जो आज भी आम की फसल दे रहे हैं, हालांकि यह प्रजाति अब यहां से विलुप्त होने के कगार पर आ पहुंची है. बगीचे में तकरीबन 100 पेड़ ही बचे हुए हैं, जिनसे आम ली जा रही है. शेष पेड़ पुराने होकर टूट चुके है और अलग-अलग तरीके से नष्ट भी हो गए है.
35 से 50 टन तक के आम की होती है पैदावार
आम के बगीचे में वर्तमान में केवल 100 पेड़ ही बाकी है, इनमें 35 से 50 टन तक आम की पैदावार होती है. यह आम अपने स्वाद के लिए जाना जाता है, लेकिन आम की फसल के लिए अब पेड़ ही नहीं बच पाए हैं, जो पेड़ पुराने जमीनदार के समय से लगे हुए हैं वहीं अब तक आम दे रहे हैं. नए पेड़ तैयार ही नहीं हो पाए इसके चलते आम की फसल के उत्पादन को बढ़ाया नहीं जा सका है.
प्रशासन ने नहीं दिया इस ओर ध्यान
बगीचे को लीज में लेने वाले सुरेश सोनकर ने बताया कि आम की इस प्रजाति को बचाने की दिशा में सरकार ने कोई पहल नहीं की. शासन अगर चाहता तो इंदिरा गांधी कृषि अनुसंधान केंद्र से आम के इस प्रजाति पर रिसर्च कर सकता था और राज्य में अलग-अलग स्थानों पर इसकी फसल तैयार कर किसानों को बड़ा फायदा पहुंचा सकता था, लेकिन इस विषय में न तो जिला प्रशासन ने ध्यान दिया और न ही राज्य शासन ने ध्यान दिया.
पेड़ पुराने होने के कारण टूट कर खत्म हो गए
वर्तमान में तकरीबन 8 से 10 एकड़ की जमीन में जमीनदार के जमाने से जो पेड़ लगे हुए हैं, वहीं आम की फसल दे रहे हैं और इन पेड़ों को बचाने की दिशा में बहुत प्रयास करते रहते हैं. इसके बावजूद कई पेड़ पुराने होने के कारण टूट कर खत्म हो चुके हैं. सुरेश सोनकर ने यह भी बताया कि इस प्रजाति को बचाने के लिए पहल करनी चाहिए ताकि राजनांदगांव जिला लंगड़ा आम की फसल के नाम से जाना जाए.
कलम लगाकर तैयार किया पूरा बगीचा
खुज्जी निवासी विमल कुमार जैन ने बताया कि यहां के जमीनदार नवाब नसरुद्दीन खान के जमाने से लंगड़े आम के पेड़ लगाए गए थे. इन पेड़ों को नवाब ने दूध-दही और छाछ से सींचा था. कलम लगाकर यहां पर लंगड़ा आम का पूरा बगीचा तैयार किया. यहां सैकड़ों पेड़ थे, जो अब खत्म हो चुके हैं. अब सिर्फ गिने-चुने पेड़ ही बच गए हैं, जहां पर आम की फसल होती है, लेकिन उत्पादन क्षमता में लगभग 80% की कमी आ चुकी है.
लंगड़े आम की फसल अपने स्वाद के नाम से जानी जाती है
विमल कुमार जैन ने यह भी बताया कि शिवनाथ नदी के किनारे आम की फसल को तैयार किया जा सकता है. इस विषय में रिसर्च भी होना चाहिए, लेकिन अब तक राज्य शासन और जिला प्रशासन ने इस विषय पर नहीं दिया है जबकि लंगड़े आम की फसल आसपास के राज्यों में अपने स्वाद के नाम से जानी जाती है और अलग-अलग राज्यों में इसकी डिमांड भी है.