रायपुर: रायपुर के मनोहर डेंगवानी के पास लगभग 582 रेडियो का कलेक्शन है. जो इन्होंने बचपन से अब तक कलेक्शन किया है, जिसमें 4 इंच से लेकर 4 फीट तक के रेडियो मौजूद हैं. खास बात यह है कि इनके पास एक ऐसा रेडियो भी है, जो अंग्रेजों के समय का है. इस रेडियो को मनोहर के दादाजी ने खरीदा था. इस रेडियो में आज भी लाहौर सहित अन्य जगहों के नाम लिखे हैं. 1948 से यह रेडियो इनके परिवार के पास है. आज इस रेडियो को 5 पीढ़ी सुनते आ रही है. इतना ही नहीं एक रेडियो तो ऐसा भी मौजूद है, जिसे 1965 की दो फिल्मों में दिखाया गया है.
सवाल: रेडियो सुनने का शौक कब से हुआ ?
जवाब: मुझे यह बचपन से शौक था. क्योंकि मेरे पिताजी रेडियो सुनने के शौकीन थे और विभाजन के दौर में उनके पास स्थाई संपत्ति के नाम पर एकमात्र यह रेडियो सेट ही था. यह रेडियो उनके संघर्षों का साथी रहा है. विभाजन के दौरान वे जहां भी गए, यह रेडियो उनके साथ रहा. इसलिए इस रेडियो से लगाव हो गया है. हमारे पिताजी ने अपने पिताजी के साथ यह रेडियो सुना, फिर मैंने तीसरी पीढ़ी में सुना और आज मेरा बेटा इसे सुनता है और अब उनके बेटे भी इस रेडियो को सुनते हैं. अब इस रेडियो से 5 पीढ़ियां जुड़ चुकी है, इसलिए इससे भावात्मक लगाव है.
सवाल: इन रेडियो का कलेक्शन कब से करते आ रहे हैं?
जवाब: 1970 से मुझे रेडियो कलेक्शन करने का शौक आया 70 के बाद 80 का दशक होते-होते मेरा रेडियो से लगाव बढ़ता गया और 90 आने के बाद जब रेडियो का प्रचलन कम होने लगा. टीवी का दौर बढ़ने लगा, हमें लगा कि रेडियो की धरोहर को सहेजना चाहिए. हमने इसे सहेजना शुरू कर दिया. जिसमें मुझे कई लोगों का सहयोग मिला. रेडियो क्लब से लेकर संगीतकारों, बुद्धिजीवियों ने बहुत साथ दिया.
सवाल: आपके पास हर रेडियो से जुड़ी कोई ना कोई कहानी और घटना है, आपके पास पंडित श्यामाचरण शुक्ला का रेडियो भी मौजूद है?
जवाब: पंडित श्यामाचरण शुक्ला परिवार के द्वारा इसे मुझे भेंट दिया गया है. इस रेडियो की एक अलग विशेषता है. यह वॉल्व से चलता है. पहले जो ब्लैक एंड वाइट टीवी में स्पीकर लगा रहता था, वही स्पीकर लगा हुआ है. उनके परिवार के लोगों ने इसे कचरे में फेंक दिया था, तब वह टूटी फूटी स्थिति में थी. जब उन्हें मेरे रेडियो के शौक के बारे में पता चला, तो उन्होंने मुझे अपने घर पर निमंत्रण दिया. जब मैं गया, तो वहां से बिखरा रेडियो का हुआ सारा सामान इकट्ठा किया और उसे लेकर आ गया. यहां आने बाद अपने मित्र के सहयोग से इसे एक नया जीवन दिया.
सवाल: आपके पास कितने रेडियो है उसका कलेक्शन कैसे करते हैं ?
जवाब: मेरे पास अभी 582 रेडियो सेट के कलेक्शन है. यह विश्व में दूसरे नंबर पर है. विश्व में लगभग 32 लोग हैं, जो रेडियो का कलेक्शन करते हैं. जिसमें सर्वप्रथम इंग्लैंड के गेरिवेल्स है. उनके पास लंदन में रेडियो का संग्रहालय है और उनके पास 1200 रेडियो है. उनकी 80 वर्ष उम्र है. उन्हें रेडियो के संग्रहण एवं रखरखाव के लिए ब्रिटिश गवर्नमेंट पूरा सहयोग देती है. लेकिन हमारे भारत में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है.
सवाल: क्या आपने कभी राज्य सरकार से इसे संग्रहित करने की व्यवस्था करने के लिए मांग की है ?
जवाब: हम चाहते हैं कि गवर्नमेंट इसके लिए कुछ सहयोग करें. जिससे हम इसे आगे जीवित रख सकें. ताकि आने वाली पीढ़ी को रेडियो के बारे में जानकारी मिल सके. वरना नई पीढ़ी को तो मालूम ही नहीं है रेडियो क्या होता है, रेडियो किसको कहते हैं.
सवाल: पहले लोग शौक से रेडियो सुना करते थे, हर चौक चौराहे चौपालों पर लोग रेडियो सुनते थे, आज के दौर में क्या लगता है कि रेडियो कम लोग सुनते हैं?
जवाब: ऐसा नहीं है, रेडियो का चलन अभी भी बढ़ा है. सबसे आश्चर्य की बात है कि एफएम के आने के बाद नई पीढ़ी भी इससे जुड़ गई है. कुछ लोगों को लगता था कि रेडियो में ठहराव आया है. कुछ समय के लिए. यह ठहरा नहीं था, अस्थाई रूप से ठहराव था. लेकिन अब रेडियो का दौर पुनः वापस आ चुका है. कभी एफएम के माध्यम से. क्योंकि अब रेडियो का स्वरूप बदल चुका है. अब मोबाइल में भी सारे चैनल आना शुरू हो गए हैं. एफएम के बाद और बढ़ गया. प्रधानमंत्री ने मन की बात की, उसके बाद इसकी और मांग बढ़ गई है.
सवाल: इस कलेक्शन के लिए राशि कहां से आती है कैसे इसे जमा करते हैं?
जवाब: पैसे की मदद हमें कहीं से नहीं मिलती है मैं अपने शौक को जिंदा करने के लिए अपने पैसे बचा बचा कर सहेजता हूं और उसको मेंटेन करता हूं.
सवाल: कोई ऐसा रेडियो से जुड़ा हुआ किस्सा है जिसे आप बताना चाहेंगे?
जवाब: रेडियो यह जीएन्डसी कंपनी अंग्रेजों के समय का रेडियो है. इसका इतिहास है कि इस रेडियो को 1965 की दो फिल्मों में दिखाया गया है. एक अमरदीप फ़िल्म जिसमें देवानंद हीरो थे और दूसरी शम्मी कपूर की प्रोफ़ेसर फिल्म. जिसमे ललिता पवार बूढ़े शम्मी कपूर से प्यार करती है. जब उसकी सगाई हो जाती है, तो इस रेडियो को बजाती है. उसमे सहगल साहब पर गाना चलता है. एक बंगला बनाऊंगा.
सवाल: क्या आपके पास रखे हुए सारे रेडियो आज भी चालू हालत में है, इसे कैसे मेंटेन करते हैं?
जवाब: हां, यह सभी रेडियो चालू हालत में है. इस रेडियो को मेंटेन करने के लिए रोज मैं 15 से 20 रेडियो को ऑन करता हूं, भले ही 1 मिनट के लिए ही क्यों ना चालू करूं. उसको हिट मिलनी चाहिए. यदि चालू नहीं किया जाएगा, तो यह जाम हो जाते हैं. किसी का गैंग जाम हो जाता है, किसी के वॉल्यूम में कार्बन जाता है, किसी का स्पीकर खराब हो जाता है. इसलिए भले ही 1 मिनट के लिए चालू किया जाए, लेकिन इसे चालू करके गर्मी देनी पड़ती है.
सवाल: 1948 का रेडियो कलेक्शन आपके पास है, उस समय से लेकर आज तक रेडियो में बहुत सारे बदलाव हुए हैं?
जवाब: शुरू से लेकर अब तक चार बार रेडियो का स्वरूप बदला है. पहली बार वाल्व रेडियो सिस्टम आया था, उसके बाद रेडियो का स्वरूप बदला रजिस्टेंस से चलने वाले रेडियो आये. जिसमें ट्रांसफार्मर नहीं होता था. कंडेनसर और रजिस्टेंस से चलते थे. तीसरी बार ट्रांजिस्टर प्लेट और अब चौथी बार एफएम के माध्यम से आया. एफएम के माध्यम से ही रेडियो आईसी सिस्टम भी आ गया, लेकिन वॉल रेडियो की आवाज में बहुत मिठास रहता था. जैसे जैसे वॉल सेट गर्म होते जाता था, उसकी आवाज बढ़ती जाती थी और मिठास आती जाती थी.
सवाल: विश्व रेडियो दिवस पर युवाओं को क्या मैसेज देना चाहिए, क्योंकि आज के युवा मोबाइल, टीवी, लैपटॉप में व्यस्त हो गए हैं. उन्हें आज रेडियो सुनने में दिक्कत आती है?
जवाब: ऐसा नहीं है आज भी पुराने शौकीन मौजूद हैं. जो रेडियो का शौक रखते हैं. उन्हें टीवी से कोई मतलब नहीं है, खुशी की बात यह है कि मोदी के मन की बात के बाद से युवा पीढ़ी भी रेडियो से जुड़ना शुरू हो गई है. मोबाइल के माध्यम से बस स्वरूप बदला है. पहले चैनल घुमा कर रेडियो का सर्च करते थे. आज स्वरूप बदल गया है, एफएम आ गया है. आज अपने आप चैनल बदल जाता है, यह अच्छी बात है कि अब नई पीढ़ी और गांव देहात के लोग भी रेडियो सुनने लगे वापस शुरू कर दिया.
सवाल: रेडियो के श्रोताओं को आज क्या कहेंगे?
जवाब: रेडियो के श्रोताओं को कहना चाहूंगा कि भावनात्मक रूप से एक दूसरे से जुड़े रहते हैं उनका आपसी लगाव होता है, जो रेडियो में खातों के माध्यम से फरमाइशी गीत चलते थे, उनका नाम सुनकर हम लोग एक दूसरे के साथ दोस्ती कर लेते, तो भले ही हम उससे मिले ना हो, बात ना किया हो. लेकिन एक अलग खुशी महसूस होती थी. यदि एक बार किसी का नाम आ जाता है तो तुरंत ही दूसरा खत अपनी फरमाइश के लिए लिख देता था.
भाटापारा के एक श्रोता है बचकालाल, जिनका रेडियो के क्षेत्र में पूरे विश्व में नाम चलता है. वह सब्जी का कारोबार करते हैं लेकिन आज भी वे ₹50 का प्रतिदिन पोस्टकार्ड खरीदते हैं और फरमाइशी गाने सुनने के लिए पोस्ट करते हैं. अब तो उन्होंने एक सील भी बना कर रखी है. भाटापारा से बचकालाल मोती लाल यादव. सील मरते है गाना लिखते हैं और 50 कार्ड डेली डालकर आ जाते हैं, भले वो खाए पीए नहीं. लेकिन ₹50 का पोस्टर खरीद कर रोज फरमाइशी सॉन्ग के लिए लिखकर सारे चैनलों में डालते हैं आज भी सारे चैनल उनका नाम आता है.
सवाल: कितना भी आधुनिक दौर हो जाए, लेकिन रेडियो का चलन समाप्त नहीं होगा ?
जवाब: रेडियो का दौर कभी खत्म नहीं हो सकता, क्योंकि आज टीवी भी चल रहा है, तो उसमें भी एक ऑडियो है. वह ऑडियो भी रेडियो का है. डीवीडी प्लेयर सीडी प्लेयर है, डीटीएच है उसमें भी ऑडियो रेडियो का ही है. सिर्फ स्वरूप बदला है, लेकिन वह खत्म नहीं होगा. मोबाइल में भी ऑडियो आ रहा है, तो वह भी रेडियो का ऑडियो है. जिस दिन ऑडियो बंद हो गया, उस दिन सारी संचार क्रांति ठप हो जाएगी.