रायपुर : 21वीं सदी में मेडिकल साइंस के लिए कुछ रोग आज भी चुनौती बने हुए हैं. ऐसी बीमारियों को लेकर रिसर्च जारी है. मस्कुलर डिस्ट्रॉफी इसी तरह की एक बीमारी है जिसका इलाज अब तक खोजा नहीं जा सका है. इस बीमारी की खासियत ये भी है कि यह महिलाओं के लिए इतनी घातक नहीं होती जितना पुरुषों के लिए है. ये बीमारी सबसे ज्यादा पुरुषों को जकड़ती है. यह एक अनुवांशिक बीमारी है. जिससे व्यक्ति मानसिक रूप से तो मजबूत होता है लेकिन शारीरिक रूप से कमजोर रह जाता है. इस वजह से वह सही तरीके से चल फिर नहीं पाता. केवल बिस्तर में लेटा रहता है. यदि उसे कहीं आना जाना है या फिर कहीं उठना बैठना है तो किसी दूसरे के सहारे की आवश्यकता होती है.
कैसे होती है ये बीमारी : ऐसा भी कहा जा सकता है कि मस्कुलर डिस्ट्रॉफी बीमारी में असामान्य म्यूटेशन होता है जो शरीर में बनने वाली नई स्वस्थ्य मांसपेशियों के निर्माण के लिए जरूरी आवश्यक प्रोटीन के उत्पादन में बाधा डालता है. ये बीमारी कई प्रकार के होते हैं. इसमें सबसे आम किस्म के लक्षण बचपन में शुरू हो जाते हैं ज्यादातर यह पुरुषों में ही पाए जाते हैं. इस बीमारी का रिसर्च अब भी चल रहा है. जो इलाज लोगों के लिए ढूंढा गया है वो काफी महंगा है.वर्तमान में महंगी दवा से ही इस बीमारी को नियंत्रित किया जाता है.
क्या है बीमारी के लक्षण : मस्कुलर डिस्ट्रॉफी के मरीज बार-बार गिर जाते हैं. बैठने में उन्हें दिक्कत होती है. शरीर में जकड़न और मांसपेशियों में दर्द बना रहता है. इस बीमारी के लिए कोई खास विशेष विभाग अभी तक मेडिकल में तैयार नहीं किया गया है.बीमारी का कनेक्शन हड्डियों और दिमाग से होता है.इसलिए इसका इलाज न्यूरोलॉजिस्ट और ऑर्थोपेडिक्स दोनों मिलकर करते हैं.
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किन लोगों को है बीमारी से खतरा : बीमारी के बारे में अधिक जानकारी लेने के लिए ईटीवी भारत की टीम ने हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉक्टर पंकज धबलिया से बातचीत की. धबलिया ने बताया कि " मस्कुलर डिस्ट्रॉफी एक प्रकार की जेनेटिक बीमारी है. जिसे मेडिकल भाषा में अनुवांशिक बीमारी कहा जाता है. अधिकतर यह बीमारी बच्चों में ज्यादा देखने को मिलती हैं. वहीं वयस्कों में भी लक्षण देखे गए है. पुरुषों को इस बीमारी में ज्यादा खतरा होता है. अक्सर हमारे पास कोई बच्चा आता है जो चलते चलते गिर जाता है तो उसे मस्कुलर डिसऑर्डर ही होता है. इसमें पैरों में जकड़न हड्डियों में जकड़न मांसपेशियों में जकड़न होते हैं. मरीज मानसिक रूप से तो बहुत अच्छा होता है लेकिन शारीरिक रूप से कमजोर होता है.जिसका डायग्नोस्टिक करने पर इस बीमारी का पता लगाया जा सकता है."