रायपुर: हिंदू धर्म में शनि प्रदोष व्रत (Shani Pradosh Vrat) का विशेष महत्व है. इस दिन पूजा पाठ करने से शनि का दोष (shani dosh) दूर होता है. इस बार भाद्रपद महीने (Bhadrapada month) का पहला प्रदोष व्रत 4 सितंबर को पड़ रहा है. शनिवार के दिन इस व्रत के होने से इसे शनि प्रदोष व्रत कहा जाता है. प्रदोष व्रत में भगवान भोलेनाथ और मां पार्वती (Lord Bholenath and Maa Parvati)की पूजा अराधना की जाती है. इनके साथ-साथ शनि देव (Shani Dev) की भी पूजा की जाती है. जिससे जातक को कई शुभ फल प्राप्त होते हैं. यह व्रत भगवान शिव के साथ चंद्रदेव (chandradev) से भी जुड़ा है. मान्यता है कि प्रदोष व्रत को सबसे पहले चंद्रदेव ने ही किया था.
शनिवार का दिन होने के कारण शनि प्रदोष व्रत का महत्व बढ़ा
कहा जाता हैवहीं शनि प्रदोष व्रत (Shani Pradosh Vrat) शनिवार को मनाया जाएगा. शनिवार को प्रदोष होने की वजह से इसका नाम शनि प्रदोष व्रत कहा जाता है. पुष्य नक्षत्र में वरियान और तैतिल और गर करण के सुयोग में यह प्रदोष व्रत पड़ रहा है. प्रदोष व्रत अनादि शंकर की महिमा का पर्व है. इस दिन भोलेनाथ जी का अभिषेक पूजन-आरती किया जाना शुभ माना जाता है. इस दिन प्रातः स्नान करके शिवालय में रूद्र को दुग्ध जल नर्मदा गंगा आदि के जल से अभिषेक करना चाहिए. इस बार पर्व कर्क राशि के चंद्रमा में मनाया जा रहा है. कर्क राशि चंद्रमा की प्रिय राशि है इसलिए या प्रदोष व्रत अनेक अभिलाषाओं को पूर्ण करने वाला माना गया है.
जिन कन्याओं के विवाह में बाधा आ रही हो, वे जरूर करें यह व्रत
शुभ पुष्य नक्षत्र (shubh Pushya Nakshatra) और शनि प्रदोष व्रत एक दूसरे के पूर्ण सहयोगी हैं. जिन कन्याओं के विवाह में बाधा आ रही हो, उन्हें निश्चित तौर पर इस व्रत को करना चाहिए. इस व्रत में सायंकाल में गोधूलि बेला में प्रदोष काल का शुभ मुहूर्त पड़ता है. अनेक मान्यताओं के अनुसार सूर्यास्त से 72 मिनट पूर्व और 72 मिनट बाद के काल को शुभ प्रदोष काल माना गया है. आज के दिन शाम 5:01 से शाम 7:25 तक सुबह प्रदोष काल रहेगा. पौराणिक कथाएं बताती हैं कि इस समय भगवान भोलेनाथ बहुत प्रसन्न होकर कैलाश पर्वत में आनंद और उमंग के साथ नृत्य करते हैं. इस संध्या की बेला में कामधेनु गाय को स्मरण कर शिव की पूजा आराधना साधना और स्तुति करनी चाहिए. शिव चालीसा रुद्राष्टकम महामृत्युंजय मंत्र रुद्री आदि का पाठ करना बहुत शुभ माना गया है.
इस दिन सूरज उगने से पहले स्नान करके साफ़ वस्त्र धारण कर लें एवं व्रत का संकल्प करें. शिव मंदिर में जाकर शिवलिंग पर अथवा घर पर ही बेलपत्र, अक्षत, दीप, धूप, गंगाजल आदि से भगवान शिव की पूजा करें. शिवजी की कृपा पाने के लिए भगवान शिव के मन्त्र ॐ नमः शिवाय का मन ही मन जप करते रहें. प्रदोष बेला में फिर से भगवान शिव का पंचामृत से अभिषेक करने के बाद गंगाजल मिले हुए शुद्ध जल से भगवान का अभिषेक करें. शिवलिंग पर शमी, बेल पत्र, कनेर, धतूरा, चावल, फूल, धूप, दीप, फल, पान, सुपारी आदि अर्पित करें.
प्रदोष व्रत करने से भगवान शिव का मिलता है आशीष
इस व्रत को करने पर भगवान शिव का आशीष मिलता है. निराहार रहकर भी इस व्रत को किया जा सकता है. शक्ति और सामर्थ्य के अनुसार इस व्रत को करना चाहिए. शाम के समय फलाहार के साथ भोजन करना चाहिए. ओम नमः शिवाय मंत्र का जाप करना बहुत शुभ माना गया है. भवानी शंकर योग के आदि गुरु माने गए हैं. इस दिन योग-साधना, आसन और प्राणायाम व्यायाम करना भी बहुत ही पक्षकारी माना जाता है.