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Weavers of Chhattisgarh in distress: छत्तीसगढ़ में महात्मा गांधी का बिखरता सपना, बदहाली के दौर से गुजर रहे बुनकर

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Published : Mar 14, 2023, 10:13 PM IST

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने हथकरघा उद्योग स्थापित करके लोगों को स्वावलंबी बनाने का सपना देखा था. उनके सपने के अनुकूल कांग्रेसी नेता कई बार चरखा चलाते भी नजर आए हैं. फिर चाहे वह प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल हों या राहुल गांधी. लेकिन छतीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद वर्तमान समय में बुनकरों की स्थिति काफी दयनीय हो चुकी है. आजादी से पहले रायपुर में बुनकरों के लिए बनाया गया बुनकरी का स्थल आज खंडहर में तब्दील हो चुका है. यहां काम कर रहे कुछ बुनकरों से ईटीवी भारत की टीम ने बात की तो उन्होंने क्या कहा आइए जानते हैं इस खास रिपोर्ट में... Raipur latest news

Weavers of Chhattisgarh in distress
बदहाली के दौर से गुजर रहे बुनकर
बदहाली के दौर से गुजर रहे बुनकर

रायपुर: राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने बुनकरों के लिए हथकरघा को लेकर जो सपने देखे थे वे आज बिखरते नजर आ रहे हैं. बुनकरों की दशा और दिशा को सुधारने के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने चरखा चलाने की शुरुआत की, लेकिन वही चरखा आज दम तोड़ने लगा है. यह हकीकत किसी अंदरूनी या ग्रामीण इलाके की नहीं है, बल्कि प्रदेश की राजधानी रायपुर की है. जहां सालों पहले बुनकरों की दशा सुधारने के लिए हथकरघा केंद्र खोला गया था. यह हथकरघा केंद्र आज बदहाली के दौर से गुजर रहा है. वहीं बुनकरों की आर्थिक स्थिति भी दयनीय हो गई है.

पहले थे 225 बुनकर, अब बचे 15: बुनकर संघ के अध्यक्ष मंगलू देवांगन बताते हैं कि "वे 1980 से काम कर रहे हैं. उनकी तीन पीढ़ी बुनकरी का ही काम करती थी. पहले 225 लोग बुनकारी का काम किया करते थे. लेकिन अब 10 से 15 लोग ही बचे हैं. अभी इसे देखने वाला कोई नहीं है. बुनकर संघ की हालात पूरी तरह से जर्जर हो गई है. यहां पर अधिकारी भी रहते हैं. उसके बावजूद आज तक इसकी पूछ परख करने वाला कोई नहीं है. पहले 75 महिलाएं थी लेकिन अब केवल दो ही बची हैं. कर्मचारी को तनख्वाह देने के लिए पैसा नहीं है. बुनकरों को भी काम नहीं दे पा रहे हैं. जो भी अधिकारी आते हैं, भरोसा देकर चले जाते हैं. कई बार मंत्रियों से चर्चा हो गई. सरकार बदल गई, लेकिन हम लोग यहीं के यहीं बैठे हुए हैं."

बुनकरों की आय बढ़ाने होंगे हरसंभव प्रयास : टीएस सिंहदेव

भाजपा और कांग्रेस, दोनों की सरकार से लगा चुके गुहार: मंगलू देवांगन बताते हैं कि "बहुत से कार्यक्रमों में नेता चरखा चलाते दिखाई देते हैं. राहुल गांधी जी आए थे. उनके लिए भी यहीं से चरखा लेकर गए. राज्योत्सव में भी चरखा लेकर गए. केवल चलाते हैं, लेकिन हथकरघा के अंदर कोई पूछने वाला नहीं है कि बुनकर संघ की क्या स्थिति है. रायपुर जिले में एक ही संस्था है वर्तमान में छत्तीसगढ़ बुनकर सहकारी संघ मर्यादित. मैं 3 बार का अध्यक्ष बन चुका हूं. सभी से विनती की. चाहे भाजपा की सरकार हो या कांग्रेस की. कोई भी हमारी बात नहीं सुनता है. आज तक कोई देखने भी नहीं आया है."



1945 में बनी थी संस्था, तब से ही चल रहा काम: मंगलू देवांगन ने बताया कि "आजादी से पहले 1945 में संस्था बनी है. ठाकुर प्यारेलाल जी ने इसकी शुरुआत की. उनकी मूर्ति भी लगी हुई है. मेरी तीन पीढ़ी बुनकरी का काम कर चुकी है, लेकिन अब कोई करने वाला नहीं है. बच्चों को बोलो तो वह खुद समझ चुके हैं कि यह कोई काम का नहीं है. सरकार ट्रेनिंग करवाती है तो 15 सौ रुपए देती है. 15 सो रुपए में कौन आएगा ट्रेनिंग करने. वह भी आज के जमाने में. हम जो माल तैयार कर रहे हैं. वह बिकने वाला भी नहीं है. सबके पास गुहार लगाते हैं, लेकिन कोई सुनता ही नहीं है. इस जमीन का टैक्स साढ़े 4 लाख रुपए नगर निगम को देते हैं. हमारे पास पैसा नहीं रहता है तो 12 परसेंट ब्याज के साथ नोटिस भेजा जाता है. हम टैक्स पटाएं या रोजगार हासिल करें."

कभी 80 तो कभी 90 रुपये हो रही कमाई: 90 वर्षीय बुजुर्ग महिला बताती हैं कि "हमारी स्थिति बहुत बेकार है. कभी हम 50 रुपये कमा लेते हैं तो कभी 40 तो कभी 80 रुपए. बुनकरी का काम बचपन से कर रहे हैं. हमारे माता पिता भी यही काम करते थे. आज स्थिति बेहद खराब है. घर में भी बहु बेटे ध्यान नहीं देते. ऐसे में मजबूरी में काम कर रहे हैं." वह कहती हैं कि "अभी पूरी तरह से हमारी सोसाइटी बंद हो गई है. अब हमारे सोसाइटी में कुछ नहीं है. थोड़ा बहुत चल रहा है. ज्यादा तो नहीं है. पहले हम लोग 200 के आसपास थे, लेकिन धीरे-धीरे इनकम न होने से लोगों ने बुनकरी छोड़ दी है."

बदहाली के दौर से गुजर रहे बुनकर

रायपुर: राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने बुनकरों के लिए हथकरघा को लेकर जो सपने देखे थे वे आज बिखरते नजर आ रहे हैं. बुनकरों की दशा और दिशा को सुधारने के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने चरखा चलाने की शुरुआत की, लेकिन वही चरखा आज दम तोड़ने लगा है. यह हकीकत किसी अंदरूनी या ग्रामीण इलाके की नहीं है, बल्कि प्रदेश की राजधानी रायपुर की है. जहां सालों पहले बुनकरों की दशा सुधारने के लिए हथकरघा केंद्र खोला गया था. यह हथकरघा केंद्र आज बदहाली के दौर से गुजर रहा है. वहीं बुनकरों की आर्थिक स्थिति भी दयनीय हो गई है.

पहले थे 225 बुनकर, अब बचे 15: बुनकर संघ के अध्यक्ष मंगलू देवांगन बताते हैं कि "वे 1980 से काम कर रहे हैं. उनकी तीन पीढ़ी बुनकरी का ही काम करती थी. पहले 225 लोग बुनकारी का काम किया करते थे. लेकिन अब 10 से 15 लोग ही बचे हैं. अभी इसे देखने वाला कोई नहीं है. बुनकर संघ की हालात पूरी तरह से जर्जर हो गई है. यहां पर अधिकारी भी रहते हैं. उसके बावजूद आज तक इसकी पूछ परख करने वाला कोई नहीं है. पहले 75 महिलाएं थी लेकिन अब केवल दो ही बची हैं. कर्मचारी को तनख्वाह देने के लिए पैसा नहीं है. बुनकरों को भी काम नहीं दे पा रहे हैं. जो भी अधिकारी आते हैं, भरोसा देकर चले जाते हैं. कई बार मंत्रियों से चर्चा हो गई. सरकार बदल गई, लेकिन हम लोग यहीं के यहीं बैठे हुए हैं."

बुनकरों की आय बढ़ाने होंगे हरसंभव प्रयास : टीएस सिंहदेव

भाजपा और कांग्रेस, दोनों की सरकार से लगा चुके गुहार: मंगलू देवांगन बताते हैं कि "बहुत से कार्यक्रमों में नेता चरखा चलाते दिखाई देते हैं. राहुल गांधी जी आए थे. उनके लिए भी यहीं से चरखा लेकर गए. राज्योत्सव में भी चरखा लेकर गए. केवल चलाते हैं, लेकिन हथकरघा के अंदर कोई पूछने वाला नहीं है कि बुनकर संघ की क्या स्थिति है. रायपुर जिले में एक ही संस्था है वर्तमान में छत्तीसगढ़ बुनकर सहकारी संघ मर्यादित. मैं 3 बार का अध्यक्ष बन चुका हूं. सभी से विनती की. चाहे भाजपा की सरकार हो या कांग्रेस की. कोई भी हमारी बात नहीं सुनता है. आज तक कोई देखने भी नहीं आया है."



1945 में बनी थी संस्था, तब से ही चल रहा काम: मंगलू देवांगन ने बताया कि "आजादी से पहले 1945 में संस्था बनी है. ठाकुर प्यारेलाल जी ने इसकी शुरुआत की. उनकी मूर्ति भी लगी हुई है. मेरी तीन पीढ़ी बुनकरी का काम कर चुकी है, लेकिन अब कोई करने वाला नहीं है. बच्चों को बोलो तो वह खुद समझ चुके हैं कि यह कोई काम का नहीं है. सरकार ट्रेनिंग करवाती है तो 15 सौ रुपए देती है. 15 सो रुपए में कौन आएगा ट्रेनिंग करने. वह भी आज के जमाने में. हम जो माल तैयार कर रहे हैं. वह बिकने वाला भी नहीं है. सबके पास गुहार लगाते हैं, लेकिन कोई सुनता ही नहीं है. इस जमीन का टैक्स साढ़े 4 लाख रुपए नगर निगम को देते हैं. हमारे पास पैसा नहीं रहता है तो 12 परसेंट ब्याज के साथ नोटिस भेजा जाता है. हम टैक्स पटाएं या रोजगार हासिल करें."

कभी 80 तो कभी 90 रुपये हो रही कमाई: 90 वर्षीय बुजुर्ग महिला बताती हैं कि "हमारी स्थिति बहुत बेकार है. कभी हम 50 रुपये कमा लेते हैं तो कभी 40 तो कभी 80 रुपए. बुनकरी का काम बचपन से कर रहे हैं. हमारे माता पिता भी यही काम करते थे. आज स्थिति बेहद खराब है. घर में भी बहु बेटे ध्यान नहीं देते. ऐसे में मजबूरी में काम कर रहे हैं." वह कहती हैं कि "अभी पूरी तरह से हमारी सोसाइटी बंद हो गई है. अब हमारे सोसाइटी में कुछ नहीं है. थोड़ा बहुत चल रहा है. ज्यादा तो नहीं है. पहले हम लोग 200 के आसपास थे, लेकिन धीरे-धीरे इनकम न होने से लोगों ने बुनकरी छोड़ दी है."

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