रायपुर : कोरोना संक्रमण की रोकथाम के लिए राज्य के कई जिलों में टोटल लॉकडाउन किया गया है. इस दौरान सामूहिक गतिविधियां और कार्यक्रमों का आयोजन करना प्रतिबंधित है. जिसे देखते हुए राजधानी रायपुर में वक्ता मंच ने साहित्यकारों की ऑनलाइन काव्य गोष्ठी का आयोजन किया.
इस काव्य गोष्ठी में शहर के नामचीन कवियों ने अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज की. वैश्विक माहामारी के संकट के दौर में भी साहित्य प्रेमियों ने साहित्यिक कार्य जारी रखा है और नये माध्यमों से अभिव्यक्ति की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं.
![online poetry seminar](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/cg-rpr-04-kavya-gosthi-dry-cg10001_25072020180516_2507f_1595680516_517.jpg)
मशहूर शायर सुरेश सिंह की शायरी ने बहुत वाहवाही बटोरी:-
उसकी आँखों में डूब जाओगे
मत बनाना वहां ठिकाना तुम
लौटकर आएगी तो जाएगी नहीं
कभी दिल से उसे बुलाना तुम.
शुभा शुक्ला"निशा"ने स्वतंत्रता के महत्व पर उत्कृष्ट प्रस्तुति दी:-
स्वतंत्रता की कीमत हम न पहचान सके,
शहीदों की कुर्बानी की कद्र हम न जान सके.
हम आजाद हो सके ये सोच वो कुर्बान हो गए,
मगर आज हम अपने वतन से बेईमान हो गए.
पूरणेश डडसेना की इन पंक्तियों ने तालियां बटोरी:-
समझ से परे लगती है यह जिंदगी,
कभी आधी कभी पूरी लगती है यह जिंदगी.
समंदर में जाकर कभी जाना नहीं,
फिर भी क्यों गहरी लगती है यह जिन्दगी.
हिंदी की प्राध्यापक डॉ गौरी अग्रवाल ने आज के समय की विडंबनाओं को इन पंक्तियों से व्यक्त किया:-
रुका हुआ
अनबूझ समय यह
है सभी जिसमें
चुप!चुप!चुप!
रोजमर्रा की आती है आवाजें
पर
चुप!चुप!चुप!
एक निशब्द चेहरा
समय का
न चहक न महक न खनक
केवल चुप!चुप!चुप!
राजेश पराते ने वर्षा ऋतु पर ये पंक्तियां पढ़ी:-
बारिश की पहली फुहार
चलने लगी ठंडी बयार
साथ लेकर आई अपने
सुख दुख के सूत्र अपार
तपती धरती के सीने पर
शीतल बूंदों का उपहार
वसुधा व्याकुल हो रही
करने को हरितम श्रृंगार