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छत्तीसगढ़ के लुप्त हो चुके वाद्ययंत्रों को जिंदा करने की कहानी ! - छत्तीसगढ़ के लुप्त हो चुके वाद्ययंत्रों

छत्तीसगढ़ के संगीतप्रेमी संजू सेन ने लुप्त (Chhattisgarh music lover Sanju Sen) हो चुके वाद्ययंत्रों को सहेजकर रखा है. इन यंत्रों के माध्यम से संजू पक्षियों की आवाज निकालते हैं.

lost instruments
लुप्त हो चुके वाद्ययंत्र
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Published : May 25, 2022, 10:33 PM IST

रायपुर: ढोल, नगाड़ा या अन्य पारंपरिक वाद्य यंत्रों की थाप पर थिरकते छत्तीसगढ़ के वनवासियों की तस्वीर सुकून देने वाली होती है. लेकिन आप यह जानकर हैरान होंगे कि वनांचल के कई पारंपरिक वाद्ययंत्र विलुप्त होने की कगार में है. हालांकि प्रदेश के कुछ संगीत प्रेमी इसे सहेजने के लिए भी काम कर रहे हैं. इसी कड़ी में प्रदेश की संगीतकार संजू सेन (Chhattisgarh music lover Sanju Sen) ने वाद्ययंत्रों को इकट्ठा कर रखा है. संजू सेन ने बस्तर, सरगुजा, सुकमा, दंतेवाड़ा, रायगढ़ जैसे जगह पर रह कर विलुप्त होते वाद्ययंत्रों को इकट्ठा किया है.

विलुप्त होते वाद्ययंत्र को सहेजने का प्रयास: संग्राहक संजू सेन से ईटीवी भारत से खास बातचीत की. इस दौरान उन्होंने बताया, " मेरी तीन पीढ़ी संगीत से जुड़ी है. दादा और पिता तबला वादक थे, मैं बांसुरी बजाता हूं. इस आधुनिकता के युग में धीरे-धीरे लोक वाद्ययंत्र विलुप्त होते जा रहे हैं. विश्वभर से लोग आज छत्तीसगढ़ घूमने आते हैं. यहां की लोक संस्कृति, लोक नित्य और यहां की परंपरा को आज पूरे विश्व में पसंद किया जा रहा है. इन्हीं बातों से प्रेरणा लेकर कोविड के दौरान मैंने राज्य के विभिन्न जिलों में जाकर वाद्ययंत्रों को इकट्ठा करना शुरू किया. कोविड के 2 सालों में मैने 130 से अधिक वाद्य यंत्रों को इकट्ठा किया है."

गुम हो रहे वाद्य यंत्रों को बचाने की पहल

जंगली जानवरों को भगाने के लिए किया जाता था इस्तेमाल: संजू सेन ने बताया, "उनके पास मौजूद कई वाद्ययंत्र तो ऐसे हैं, जिनका उपयोग वनवासी पुरातन समय से जंगली जानवरों को भगाने या शिकार के लिए जानवरों को अपने करीब लाने के लिए किया जाता था. बस्तर, सरगुजा, सुकमा, दंतेवाड़ा, रायगढ़ जैसे जगहों पर 2 साल रहकर पहले मैने आदिवासियों से लोक वाद्ययंत्रों की जानकारी भी जुटाई और 130 से ज्यादा वाद्य यंत्रों को इकट्ठा किया है."

70 से ज्यादा वाद्ययंत्र को मट्टी, बांस और लकड़ी से बनाया: संजू सेन कहते हैं, "उनके पास 130 से ज्यादा वाद्ययंत्र रखे हैं. जिसमे प्रमुख वाद्य यंत्रों में सिंह बाजा, दोहरी बांसुरी, गोपी बाजा, एकतारा, खजेरी, तंबूरा, नागदा, देव नागदा, मारनी ढोल, माड़िया ढोल, अकुम, तोड़ी, तोरम, मोहिर, धुरवा ढोल, मांदरी, चरहे, मिरगीर ढोल, देव मोहिर है. इनमें से ज्यादातर वाद्ययंत्रों का आम संगीत प्रेमी ही नहीं बल्कि संगीत में रुचि रखने वाले लोग भी शायद नाम नहीं सुने रहे होंगे.70 से ज्यादा वाद्ययंत्र को खुद मट्टी, बांस और लकड़ी से बनाया है."

यह भी पढ़ें: छत्तीसगढ़ के लोक संगीत से रूबरू कराएगा 'वाद्य यंत्रों का गढ़', जानिए इस किताब में क्या है खास ?

यंत्रों के माध्यम पक्षियों की आवाज: संजू सेन ने बताया, " जिन वाद्ययंत्रों को मैंने इकट्ठा किया है, उसमें से लगभग सभी वाद्य यंत्र मैंने खुद बजाएं हैं. वाद्य यंत्रों के माध्यम से शेर की दहाड़ से लेकर कोयल, मोर, तोता, उल्लू सहित 10 तरह की पक्षियों की आवाज भी संजू निकालते हैं. छत्तीसगढ़ और दूसरे राज्यों में भी आयोजित होने वाले संगीत महोत्सव में मैंने अपनी प्रस्तुति दी है.यहां तक कि राज्य में होने वाले बड़े महोत्सव में संजू एक साथ सौभाग्य मित्रों की प्रस्तुति भी दे चुके हैं."

रायपुर: ढोल, नगाड़ा या अन्य पारंपरिक वाद्य यंत्रों की थाप पर थिरकते छत्तीसगढ़ के वनवासियों की तस्वीर सुकून देने वाली होती है. लेकिन आप यह जानकर हैरान होंगे कि वनांचल के कई पारंपरिक वाद्ययंत्र विलुप्त होने की कगार में है. हालांकि प्रदेश के कुछ संगीत प्रेमी इसे सहेजने के लिए भी काम कर रहे हैं. इसी कड़ी में प्रदेश की संगीतकार संजू सेन (Chhattisgarh music lover Sanju Sen) ने वाद्ययंत्रों को इकट्ठा कर रखा है. संजू सेन ने बस्तर, सरगुजा, सुकमा, दंतेवाड़ा, रायगढ़ जैसे जगह पर रह कर विलुप्त होते वाद्ययंत्रों को इकट्ठा किया है.

विलुप्त होते वाद्ययंत्र को सहेजने का प्रयास: संग्राहक संजू सेन से ईटीवी भारत से खास बातचीत की. इस दौरान उन्होंने बताया, " मेरी तीन पीढ़ी संगीत से जुड़ी है. दादा और पिता तबला वादक थे, मैं बांसुरी बजाता हूं. इस आधुनिकता के युग में धीरे-धीरे लोक वाद्ययंत्र विलुप्त होते जा रहे हैं. विश्वभर से लोग आज छत्तीसगढ़ घूमने आते हैं. यहां की लोक संस्कृति, लोक नित्य और यहां की परंपरा को आज पूरे विश्व में पसंद किया जा रहा है. इन्हीं बातों से प्रेरणा लेकर कोविड के दौरान मैंने राज्य के विभिन्न जिलों में जाकर वाद्ययंत्रों को इकट्ठा करना शुरू किया. कोविड के 2 सालों में मैने 130 से अधिक वाद्य यंत्रों को इकट्ठा किया है."

गुम हो रहे वाद्य यंत्रों को बचाने की पहल

जंगली जानवरों को भगाने के लिए किया जाता था इस्तेमाल: संजू सेन ने बताया, "उनके पास मौजूद कई वाद्ययंत्र तो ऐसे हैं, जिनका उपयोग वनवासी पुरातन समय से जंगली जानवरों को भगाने या शिकार के लिए जानवरों को अपने करीब लाने के लिए किया जाता था. बस्तर, सरगुजा, सुकमा, दंतेवाड़ा, रायगढ़ जैसे जगहों पर 2 साल रहकर पहले मैने आदिवासियों से लोक वाद्ययंत्रों की जानकारी भी जुटाई और 130 से ज्यादा वाद्य यंत्रों को इकट्ठा किया है."

70 से ज्यादा वाद्ययंत्र को मट्टी, बांस और लकड़ी से बनाया: संजू सेन कहते हैं, "उनके पास 130 से ज्यादा वाद्ययंत्र रखे हैं. जिसमे प्रमुख वाद्य यंत्रों में सिंह बाजा, दोहरी बांसुरी, गोपी बाजा, एकतारा, खजेरी, तंबूरा, नागदा, देव नागदा, मारनी ढोल, माड़िया ढोल, अकुम, तोड़ी, तोरम, मोहिर, धुरवा ढोल, मांदरी, चरहे, मिरगीर ढोल, देव मोहिर है. इनमें से ज्यादातर वाद्ययंत्रों का आम संगीत प्रेमी ही नहीं बल्कि संगीत में रुचि रखने वाले लोग भी शायद नाम नहीं सुने रहे होंगे.70 से ज्यादा वाद्ययंत्र को खुद मट्टी, बांस और लकड़ी से बनाया है."

यह भी पढ़ें: छत्तीसगढ़ के लोक संगीत से रूबरू कराएगा 'वाद्य यंत्रों का गढ़', जानिए इस किताब में क्या है खास ?

यंत्रों के माध्यम पक्षियों की आवाज: संजू सेन ने बताया, " जिन वाद्ययंत्रों को मैंने इकट्ठा किया है, उसमें से लगभग सभी वाद्य यंत्र मैंने खुद बजाएं हैं. वाद्य यंत्रों के माध्यम से शेर की दहाड़ से लेकर कोयल, मोर, तोता, उल्लू सहित 10 तरह की पक्षियों की आवाज भी संजू निकालते हैं. छत्तीसगढ़ और दूसरे राज्यों में भी आयोजित होने वाले संगीत महोत्सव में मैंने अपनी प्रस्तुति दी है.यहां तक कि राज्य में होने वाले बड़े महोत्सव में संजू एक साथ सौभाग्य मित्रों की प्रस्तुति भी दे चुके हैं."

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