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रायपुर: जवारा विसर्जन के साथ खत्म हुआ नवरात्र

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Published : Oct 8, 2019, 8:57 PM IST

नवरात्रि के दौरान छत्तीसगढ़ में विशेष देवी मंदिरों और घरों में ज्योति कलश स्थापित कर जवारा बोया जाता है. रायपुर में यह परंपरा 40 साल से खास तरीके से मनाया जाता है.

जवारा विसर्जन

रायपुर: छत्तीसगढ़ में नवरात्र के मौके पर ज्योति कलश स्थापना और जवारा बोने की परंपरा रही है. यहां कई देवी मंदिरों के अलावा भक्त अपने घर में पूरी आस्था के साथ ज्योति कलश स्थापित करते हैं. साथ ही जवारा बोकर मां की अराधना करते हैं.
नवरात्र के 9 दिनों में ज्योति कलश को शक्ति के रूप में पूजा किया जाता है. 9 दिनों में जवारा 8 इंच से 1 फुट ऊंचा हो जाता है. नवरात्र के दूसरे दिन, दशहरा को भक्त पूजा हवन के बाद इन जवार का विसर्जन करते हैं.

खास है यहां का खेल जवारा

टिकरापारा में इस रस्म को बीते 40 साल से कुछ अलग अंदाज में निभाया जा रहा है. यहां के साहूपारा में खेल जवारा निकाला जाता है. इस जवारे में कलश उठाने वाले, किन्नर समाज के लोग होते हैं.

मनोकामना होती है पूरी

माना जाता है कि इस कलश के दर्शन से मनोकामना की पूर्ति होती है. वहीं रोड पर जवारा रैली निकलने के दौरान परम्परागत तौर से उसकी सुरक्षा के लिए पंडा और भक्त तैनात होते हैं. मांदर की धुन पर झूमते भक्त बाना सांगा लिए, ज्योति कलश की सुरक्षा करते नजर आते हैं.

रायपुर: छत्तीसगढ़ में नवरात्र के मौके पर ज्योति कलश स्थापना और जवारा बोने की परंपरा रही है. यहां कई देवी मंदिरों के अलावा भक्त अपने घर में पूरी आस्था के साथ ज्योति कलश स्थापित करते हैं. साथ ही जवारा बोकर मां की अराधना करते हैं.
नवरात्र के 9 दिनों में ज्योति कलश को शक्ति के रूप में पूजा किया जाता है. 9 दिनों में जवारा 8 इंच से 1 फुट ऊंचा हो जाता है. नवरात्र के दूसरे दिन, दशहरा को भक्त पूजा हवन के बाद इन जवार का विसर्जन करते हैं.

खास है यहां का खेल जवारा

टिकरापारा में इस रस्म को बीते 40 साल से कुछ अलग अंदाज में निभाया जा रहा है. यहां के साहूपारा में खेल जवारा निकाला जाता है. इस जवारे में कलश उठाने वाले, किन्नर समाज के लोग होते हैं.

मनोकामना होती है पूरी

माना जाता है कि इस कलश के दर्शन से मनोकामना की पूर्ति होती है. वहीं रोड पर जवारा रैली निकलने के दौरान परम्परागत तौर से उसकी सुरक्षा के लिए पंडा और भक्त तैनात होते हैं. मांदर की धुन पर झूमते भक्त बाना सांगा लिए, ज्योति कलश की सुरक्षा करते नजर आते हैं.

Intro:छत्तीसगढ़ में नवरात्रि के मौके पर ज्योति कलश स्थापना और जवारा बोने की परंपरा रही है। यहां कई देवी मंदिरों के अलावा भक्त अपने घर में पूरी आस्था के साथ ज्योति कलश स्थापित करते हैं साथ ही ज्वार बोकर मां की अराधना करते हैं।
इन 9 दिनों में ज्योति कलश को शक्ति के रूप में पूजा किया जाता है वही ज्वार को भी खुशहाली का प्रतीक माना जाता है 9 दिनों के अंदर में ज्वार 8 इंच से 1 फुट की ऊंचाई ले लेते हैं नवरात्रि के दूसरे दिन यानी दशहरा को भक्त पूजा हवन के बाद इन जवानों का विसर्जन करते हैं



Body:रायपुर के टिकरापारा में इस रस्म को पिछले 40 सालों से कुछ अलग अंदाज में निभाया जा रहा यहां के साहू पारा में खेल जवारा निकाला जाता है, इस जवारे में कलश उठाने वाले किन्नर समाज के लोग होते हैं।

माना जाता है कि इस कलश के दर्शन से मनोकामना की पूर्ति होती है। वही आम रोड पर जवारा रैली निकलने के दौरान परम्परा गत तौर से उसकी सुरक्षा के लिए पंडा और भक्त तैनात होते है।

मांदर की धुन में झूमते भक्त बाना सांगा लिए ज्योति कलश की सुरक्षा करते नज़र आते है।।
वह हर किसी को इस ज्योति कलश के पास नहीं फटकने देते।।


क्या है बाना सांगा


छत्तीसगढ़ छत्तीसगढ़ के छत्तीसगढ़ के देवी मंदिरों में सहज ही नजर आ जाने वाला नुकीला लोहे का हथियार बना कहलाता है।।
नवरात्रि के दौरान इसकी खास तौर पर सफाई की जाती है और उसकी धार को तेज किया जाता है।

मां की विदाई के दौरान कई भक्ति भावुक होकर इन बानो से अपने शरीर को छेद लेते है।। हालांकि अब लोग इस तरह वे काम करने से बचते है जागरूक लोग भी इसे लोगो मे भी इसे नही करने की सलाह देते है फिर भी गाहे बगाहे इस तरह का दृष्टि देखने को मिल जाता है।।


इस तरह शरीर पर बना लेने वाले लोगो की अपनी आस्था होती है।।


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