रायपुर: छत्तीसगढ़ में बहुप्रतीक्षित अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायत प्रावधानों का विस्तार (PESA law) कानून लागू हो गया है. लेकिन इस कानून के लागू होने के बाद भी आदिवासी समुदाय इससे संतुष्ट नहीं है. उन्होंने जिस कानून को लागू करने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी, उस कानून के लागू होने के बाद आदिवासी समाज में नाराजगी है. क्योंकि उन्हें इस कानून से काफी उम्मीदें थी, लेकिन यह कानून उनकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा. समाज का मानना है कि इस कानून में न सिर्फ उनके अधिकारों में कटौती की गई, बल्कि उसे कमजोर भी कर दिया गया है. इस कानून को लेकर जल्द ही आदिवासी समाज की रायपुर में एक बैठक होगी. बैठक के बाद आगे की रणनीति तैयार की जाएगी.
"पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने पेशा कानून के नियम बदले गए": छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज के संरक्षक और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम का कहना है कि "पेसा कानून में ग्राम सभा के अधिकारों में कटौती की गई है. उसे कमजोर किया गया है. उम्मीद थी कि पेसा कानून लागू होने से ग्राम सभाएं मजबूत होंगी. आदिवासियों को उनका अधिकार मिलेगा. लेकिन इस कानून में पूंजीपतियों को लाभ मिलता नजर आ रहा है. यह कानून ग्राम सभाओं को कमजोर करने वाला है.
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"परामर्श मानने सरकार नहीं होगी बाध्य": अरविंद नेताम ने कहा "जंगल और जमीन बचाने और विस्थापन रोकने के लिए आदिवासी समाज की पूरी लड़ाई उनकी सहमति के प्रावधान को लेकर ही है. उसके बिना तो ग्राम सभा कुछ कर ही नहीं सकती. अगर ग्राम सभा केवल परामर्श देगी, तो सरकार उसे मानने के लिए तो बाध्य नहीं होगा.
"पेसा कानून को लेकर जल्द होगी आदिवासी समाज की बैठक": अरविंद नेताम ने कहा कि "इसे लेकर जल्द आदिवासी समाज की रायपुर में एक बैठक करने वाली है. यह बैठक 15 अगस्त के बाद हो सकती है. इस बैठक में पेसा कानून (PESA Law) को लेकर चर्चा की जाएगी और आगे की रणनीति तैयार होगी."
"पेसा कानून में ग्राम सभा के अधिकारों में की गई कटौती": छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के सदस्य आलोक शुक्ला का कहना है कि "छत्तीसगढ़ में जो नियम बनाए गए हैं, वह पांचवी अनुसूची क्षेत्रों के निवासियों के अधिकारों के साथ खिलवाड़ है. यह न तो PESA कानून की मूल मंशा के अनुरूप है और न ही आदिवासियों की संवैधानिक व्यवस्था के अनुरूप है." आलोक शुक्ला की भी आपत्ति भूमि अधिग्रहण में ग्राम सभा की भूमिका से जुड़े नियमों पर ही है. शुक्ला ने कहा कि "नियम में सहमति कि जगह परामर्श का प्रावधान किया गया है. साथ ही कलेक्टर को अपीलीय अधिकारी बनाया गया है. कहीं पर भी कलेक्टर अथवा राजस्व अधिकारी को ही भूमि अधिग्रहण का अधिकार होता है. अधिग्रहण का फैसला वही लेता है. अब यह नियम कहता है कि अधिग्रहण के फैसले के खिलाफ कलेक्टर को अपील किया जा सकेगा. यानी अगर कहीं गलत ढंग से अधिग्रहण हुआ है, तो वह कलेक्टर ने ही किया है. अब वह ही अपने खिलाफ हुई शिकायत की सुनवाई भी करेगा. ऐसे में न्याय कहां मिलेगा."
सिंहदेव के इस्तीफे की वजह भी थी पेशा कानून : मंत्री टीएस सिंहदेव ने 16 जुलाई को पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग से इस्तीफा भेज दिया था. जिसमें सिंहदेव ने PESA नियमों के प्रारूप में छेड़छाड़ का जिक्र किया था. सिंहदेव का कहना था कि "उन्होंने दो साल तक वे विभिन्न समुदायों, विशेषज्ञों से चर्चा कर प्रारूप तैयार कराए. विभाग ने जो प्रारूप कैबिनेट कमेटी को भेजा था, जिसके मुताबिक चर्चा हुई. उसमें से जल, जंगल, जमीन से जुड़े महत्वपूर्ण बिंदुओं को बदल दिया गया." सिंहदेव ने कहा था "शायद पहली बार कैबिनेट की प्रेशिका में बदलाव किया गया. विभाग के मंत्री को भी विश्वास में नहीं लिया गया." इस मुद्दे पर सिंहदेव ने मुख्यमंत्री को एक पत्र भी लिखा है.
राजपत्र में प्रकाशित हुआ छत्तीसगढ़ पंचायत उपबंध नियम-2022: छत्तीसगढ़ के राजपत्र में 8 अगस्त को प्रकाशित छत्तीसगढ़ पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) नियम-2022 में ग्राम सभा को सशक्त करने की कोशिश दिखती है. लेकिन इसकी कंडिका 36 विवादों में घिरती दिख रही है. इस कंडिका का शीर्षक है- भूमि अधिग्रहण/शासकीय क्रय/हस्तांतरण से पहले ग्राम सभा की सहमति. लेकिन लेकिन इसकी उप कंडिका-1 सहमति के प्रावधान को खारिज कर देती है. इसमें कहा गया है कि शासन में प्रचलित सभी कानून/नीति के अंतर्गत कोई भी भूमि अधिग्रहण करने से पूर्व ग्राम सभा से परामर्श लेना अनिवार्य होगा. इस कंडिका की उप कंडिका-5 के मुताबिक अधिग्रहण संबंधी निर्णय के विरुद्ध कलेक्टर के समक्ष अपील किया जा सकेगा.
पेसा कानून क्या है : अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए ग्राम सभाओं (ग्राम विधानसभाओं) के माध्यम से सामुदायिक संसाधन जैसे जमीन, खनिज संपदा, लघु वनोपज की सुरक्षा और संरक्षण का अधिकार प्राप्त हो जाता है. यानी प्राकृतिक संसाधनों पर उनके पारंपरिक अधिकारों को भी स्वीकार करता है. इस कानून को पेसा कानून कहा जाता है.
आदिवासियों के साथ हो रहे अत्याचार और अन्याय से उनके अंदर असंतोष की भावना थी,जो लगातार बढ़ रही थी. जिसके कारण सरकार पर भी इसका दबाव बन रहा था. जिसको देखते हुए संसद ने दिसंबर, 1996 में पेसा कानून दोनो सदनो में पारित किया था. इसे 24 दिसंबर को राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त कर लागू किया गया था. देश के 10 राज्यों में यह कानून लागू है. आज के समय में इन्ही 10 राज्यों आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, झारखंड, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और राजस्थान में यह कानून लागू है.
पेसा कानून का पूरा नाम (PESA Act Full Form): पेसा कानून का पूरा नाम पंचायत उपबंध कानून (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) है. PESA का संक्षिप्त नाम (The Provisions on the Panchyats Extension to the Scheduled Areas Bill) भी है.