रायपुर: चुनाव में संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता है. ऐसी एक संभावना लोकसभा चुनाव 2019 में महागठबंधन की बन रही है. महागठबंधन में सभी प्रमुख क्षेत्रीय पार्टियां एकजुट होकर सरकार बनाने की कवायद में हैं.
ऐसे में अगर बात की जाए छत्तीसगढ़ की तो यहां भी विधानसभा चुनाव में गठबंधन देखने को मिला था और लोकसभा चुनाव में भी गठबंधन के साथ पार्टियां चुनाव लड़ सकती हैं. इनमें सबसे प्रमुख पार्टी जेसीसीजे और बहुजन समाजवादी पार्टी है. तीसरे मोर्चे की प्रदेश की सबसे बड़ी ताकत के रुप में अजीत जोगी की पार्टी उभरी है.
तीसरी शक्ति के रूप में उभरी JCCJ
वर्तमान समय में अगर देखा जाए तो प्रदेश में अजीत जोगी की पार्टी तीसरी ताकत के रूप में उभरी है. हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में जेसीसीजे ने बसपा के सााथ मिलकर चुनाव लड़ा और प्रदेश के 18 साल के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ जब किसी तीसरी पार्टी को 14% वोट मिले हों. जेसीसीजे गठबंधन 7 सीटों के साथ तीसरी शक्ति बनकर उभरने में कामयाब रही. पहली बार अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी भी छत्तीसगढ़ में चुनाव लड़ रही थी लेकिन दिल्ली में सरकार होने के बाद भी आप प्रदेश में अपनी छाप छोड़ने में नाकामयाब रही.
कई दिग्गज नेता हुए हैं तीसरी शक्ती बनने में नाकामयाब
इतिहास के पन्नों को अगर पलटा जाए तो यह दिखता है कि अजीत जोगी से पहले भी दिग्गज नेताओं ने अलग पार्टी बना कर खुद को तीसरी शक्ति के रूप में स्थापित करने की कोशिश की लेकिन नाकामयाब रहे.
तब नहीं चला था विद्याचरण का जादू
इनमें सबसे पहला नाम विद्याचरण शुक्ल यानी विद्या भैया का है. विद्या चरण शुक्ल छत्तीसगढ़ के साथ ही देश में भी एक कद्दावर नेता की छवि रखते थे. वे संजय गांधी के करीबी रहे. विद्याचरण शुक्ल संगठन बनाने और लोगों को जोड़ने में माहिर माने जाते थे. उन्होंनेने कांग्रेस पार्टी से हटकर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी बनाई. इस बैनर तले 2003 में विधानसभा चुनाव लड़े, तब उन्हें बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा. विद्याचरण शुक्ल का करिश्माई व्यक्तित्व भी उन्हें तीसरी शक्ति के रूप में प्रदेश में स्थापित नहीं कर सका.
विद्याचरण शुक्ल के बाद अगला नाम ताराचंद साहू का आता है. ताराचंद साहू ने भाजपा से अलग छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच बनाया, लेकिन यह पार्टी थी जीत दर्ज नहीं करा पाई. ताराचंद साहू कई बार सांसद रह चुके हैं. इसके साथ ही उनके पास साहू समाज का बड़ा वोट बैंक भी था लेकिन यह वोटबैंक भी चुनाव में असर नहीं दिखा पाया.
लोकसभा में कितना चलेगा जोगी-माया जादू
अजीत जोगी ने कई बार ये बयान दिया है कि हम इतने साधन संपन्न नहीं हैं कि अकेले दम पर चुनाव लड़ सकें और इसी वजह से गठबंधन किया गया. जिससे साफ है कि अजीत जोगी के मायावती के साथ गठबंधन की वजह राजनितिक के साथ साथ आर्थिक भी रही है. इस लिहाज से भले ही प्रदेश के लिए अजीत जोगी एक बड़ा राजनीतिक नाम हैं पर राष्ट्रीय स्तर पर मायावती का कद बड़ा है.