रायपुर: भगवान गणेश की मूर्ति स्थापना के तीसरे दिन यानी षष्ठी को भगवान गणेश के गजानन रूप का पूजन करना ज्यादा फलदायक माना जाता है. बाल गणेश को गजानन रूप भगवान शंकर ने दिया है. यह रूप एक योद्धा के समान है, अत्यंत बलशाली है इसलिए भी माना जाता है कि इस रूप की पूजा करने से उनके भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं.
बाल गणेश की गजानन रूप की कथा
बताया जाता है कि लोभासुर कठोर तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न कर लेता है, जिसके बाद भगवान भोलेनाथ उसे निर्भय होने का वरदान दे देते हैं, जिससे वह सभी लोकों पर आधिपत्य जमा लेता है. इससे देवता भी उससे डरने लगते हैं. इसके बाद सभी देवता मिलकर भगवान गणेश से गुहार लगाते हैं. जिसके बाद भगवान गणेश गजानन के रूप में दर्शन देते हैं और देवताओं को लोभासुर के आतंक से बचाने का वचन देते हुए लोभासुर को ललकारते हैं.
आने वाले खतरे को भांपते हुए लोभासुर को गुरु शुक्राचार्य भगवान गणपति के सामने आत्मसमर्पण की सलाह देते हैं. इसके बाद शुक्राचार्य की बात मानकर लोभासुर आत्मसमर्पण कर देता है. इसलिए सभी देवताओं को बचा हुआ लोक वापस मिल जाता है. इसलिए भगवान गणेश के गजानन स्वरूप को विघ्नहर्ता के रूप में पूजा जाता है.