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Tainted Candidates In Second Phase Of CG Elections : दूसरे चरण में क्रिमिनल प्रत्याशी, 958 में से 100 दागी

Tainted Candidates In Second Phase छत्तीसगढ़ में दूसरे फेस का चुनाव 17 नवंबर को होना है.चुनाव को लेकर अंतिम तैयारियां जोरों पर हैं.छत्तीसगढ़ इलेक्शन वॉच और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने एक रिपोर्ट जारी की है.जिसमें दूसरे चरण में चुनाव छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण में चुनाव लड़ रहे 958 उम्मीदवारों में से 953 के शपथ पत्रों का विश्लेषण किया है. 958 उम्मीदवारों में से 100 उम्मीदवारों ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किए हैं. CG Elections Analysis of Candidates

Tainted Candidates In Second Phase Of CG Elections
दूसरे चरण में क्रिमिनल प्रत्याशी
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Nov 10, 2023, 6:02 PM IST

रायपुर : छत्तीसगढ़ इलेक्शन वॉच और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने दूसरे चरण की 70 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों की जानकारी रिसर्च करने के बाद साझा की है. एडीआर ने ये आंकड़े प्रत्याशियों के जमा किए गए शपथ पत्रों से जुटाए हैं.जिसके मुताबिक प्रदेश के 958 प्रत्याशियों में से 100 यानी लगभग 10 फीसदी आपराधिक पृष्ठभूमि के हैं. इनमें से 56 यानी 6 फीसदी उम्मीदवारों पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं.

किस पार्टी में कितने क्रिमिनल कैंडिडेट ?: आंकड़ों की यदि बात करें तो कांग्रेस के 70 उम्मीदवारों में से 13 यानी 19 फीसदी, बीजेपी के 70 उम्मीदवारों में से 12 यानी 17 फीसदी, जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के 62 उम्मीदवारों में से 11 यानी 18 फीसदी और आम आदमी पार्टी के 44 उम्मीदवारों में से 12 यानी 27 फीसदी उम्मीदवारों ने अपने शपथ पत्र में आपराधिक मामलों की जानकारी दी है.

गंभीर आपराधिक मामलों से जुड़े उम्मीदवार : इसमें से भी गंभीर आपराधिक मामलों की बात करें तो कांग्रेस के 7 यानी 10 फीसदी, बीजेपी के 4 यानी 6 फीसदी, जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के 62 में से 4 यानी 6 फीसदी और आम आदमी पार्टी के 44 में से 6 यानी 14 फीसदी उम्मीदवारों पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं.

रेड अलर्ट निर्वाचन क्षेत्र : 70 निर्वाचन क्षेत्रों में से 16 यानी 23% रेड अलर्ट निर्वाचन क्षेत्र हैं.जिनमें 3 या अधिक चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किए हैं.

किसे कहते हैं गंभीर आपराधिक मामले ?

• ऐसा अपराध जिसमें पांच साल या उससे अधिक की सजा का प्रावधान हो

• अपराध गैरजमानती हो.

• चुनाव से जुड़े अपराध (जैसे आईपीसी की धारा 171ई के तहत दर्ज केस या रिश्वतखोरी का मामला)

• सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचाने का मामला दर्ज हो

• धक्का-मुक्की, मर्डर, अपहरण, बलात्कार से संबंधित अपराध रिप्रेजेंटेशन ऑफ द पीपुल एक्ट (सेक्शन 8) में जिन मामलों को अपराध माना गया हो.

क्या है सुप्रीम कोर्ट के निर्देश ? : सुप्रीम कोर्ट ने 13 फरवरी, 2020 के अपने निर्देशों में राजनीतिक दलों को विशेष रूप से कहा था आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवार का यदि चयन किया गया है तो ये स्पष्ट रूप से बताए कि उनकी जगह बिना आपराधिक पृष्ठभूमि वाले अन्य व्यक्तियों को उम्मीदवार के रूप में क्यों नहीं चुना जा सकता है. ऐसे चयन का कारण संबंधित उम्मीदवार की योग्यता, उपलब्धियों और योग्यता के संदर्भ में होना चाहिए. हाल ही में 2023 में हुए 4 राज्यों के विधानसभा चुनावों के दौरान सुप्रीम कोर्ट के सवाल पर राजनीतिक दलों ने व्यक्ति की लोकप्रियता, अच्छे सामाजिक कार्य करना, मामला राजनीति से प्रेरित होना जैसे बातें रखीं. वहीं आपराधिक मामलों को निराधार बताया.

सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का असर नहीं : ऊपर दिए गए डाटा से पता चल रहा है कि छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दलों ने 10 फीसदी से ज्यादा आपराधिक छवि वाले उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है. छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण में प्रमुख दलों ने 17% से 27% तक ऐसे उम्मीदवारों को टिकट दिया है.जिन्होंने खुद के खिलाफ आपराधिक केस दर्ज होना बताया है.

एडीआर ने की हैं सिफारिश : राजनीति में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को आने से रोकने के लिए एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स यानी एडीआर ने कुछ सिफारिशें भी की है.ताकि लोकतंत्र के मंदिर में सदा न्याय और स्वच्छता बरकरार रहे.

  • भारत के सर्वोच्च न्यायालय को "न्याय और कानून के शासन" का अंतिम संरक्षक होने के नाते राजनीतिक दलों और राजनेताओं को उनकी इच्छाशक्ति की कमी, निंदनीय पूर्वाग्रह और आवश्यक कानूनों की अनुपस्थिति के लिए फटकार लगानी चाहिए.
  • हत्या, बलात्कार, तस्करी, डकैती, अपहरण आदि जैसे जघन्य अपराधों के लिए दोषी ठहराए गए उम्मीदवारों की स्थायी अयोग्यता.
  • उन व्यक्तियों को सार्वजनिक कार्यालयों में चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित करना, जिनके खिलाफ कम से कम 5 साल की कैद की सजा वाले गंभीर आपराधिक अपराध करने के लिए आरोप तय किए गए हैं.वहीं मामला चुनाव से कम से कम 6 महीने पहले दायर किया गया हो.
  • दागी उम्मीदवारों को मैदान में उतारने वाले राजनीतिक दलों को दी गई कर छूट रद्द करनी चाहिए.
  • राजनीतिक दलों को सूचना का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत लाना चाहिए.
  • यदि कोई राजनीतिक दल जानबूझकर किसी दागी पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवार को खड़ा करता है, तो उसका पंजीकरण रद्द करें और उसकी मान्यता रद्द करें.
  • राजनीतिक दलों को सालाना अपने पदाधिकारियों के आपराधिक इतिहास की जानकारी दर्ज करनी चाहिए. शून्य रिकॉर्ड सहित ऐसे रिकॉर्ड जनता को उपलब्ध कराने चाहिए.
  • चुनावी हलफनामे में गलत जानकारी देने वाले उम्मीदवारों की अयोग्यता (फॉर्म 26).
  • उन मामलों की सुनवाई सुनिश्चित करें जिनमें राजनेता आरोपी हैं, जिनका निष्कर्ष समयबद्ध तरीके से निकाला जाए.
  • सुप्रीम कोर्ट के 23 सितंबर, 2013 के फैसले (यानी ईवीएम पर नोटा बटन का प्रावधान) को उसके अक्षरश: लागू किया जाए . यदि नोटा को किसी भी उम्मीदवार से अधिक वोट मिलते हैं, तो किसी भी उम्मीदवार को निर्वाचित घोषित नहीं किया जाना चाहिए और नए सिरे से चुनाव कराया जाए. नए चुनाव में, पिछले चुनाव में, जिसमें नोटा को सबसे अधिक वोट मिले थे, किसी भी उम्मीदवार को चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.
  • 25 सितंबर, 2018 और 13 फरवरी, 2020 को सुप्रीम कोर्ट के 'राजनीतिक दलों द्वारा चुने गए उम्मीदवारों के खिलाफ आपराधिक मामलों को ऐसे चयन के कारणों के साथ प्रकाशित करने' के आदेशों को भारत के चुनाव आयोग को निर्देश देकर अपने अक्षरशः लागू करना चाहिए. राजनीतिक दलों दागी उम्मीदवारों के नाम, ऐसे चयन के कारणों के साथ ही समाचार पत्रों, टीवी चैनलों, पार्टी वेबसाइट में कारणों का परिश्रमपूर्वक प्रकाशन करना चाहिए.
  • भारत के चुनाव आयोग और सभी राज्य चुनाव आयोगों को इसे सभी चुनावों में अनिवार्य बनाना चाहिए. संसदीय, विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनावों में प्रत्येक मतदान केंद्र के बाहर उम्मीदवारों के हलफनामों का संक्षिप्त संस्करण दिखाने वाले डिस्प्ले बोर्ड लगाने चाहिए. मतदान केंद्रों पर अनिवार्य रूप से उम्मीदवार के आपराधिक रिकॉर्ड, संपत्ति और देनदारियों और शिक्षा योग्यता का विवरण प्रदर्शित किया जाना चाहिए.
  • भारत में राजनीतिक दलों को चुनाव से कम से कम 3 महीने पहले चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों की सूची की घोषणा/प्रकाशन करना आवश्यक होना चाहिए.

SOURCE- ADR

रायपुर : छत्तीसगढ़ इलेक्शन वॉच और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने दूसरे चरण की 70 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों की जानकारी रिसर्च करने के बाद साझा की है. एडीआर ने ये आंकड़े प्रत्याशियों के जमा किए गए शपथ पत्रों से जुटाए हैं.जिसके मुताबिक प्रदेश के 958 प्रत्याशियों में से 100 यानी लगभग 10 फीसदी आपराधिक पृष्ठभूमि के हैं. इनमें से 56 यानी 6 फीसदी उम्मीदवारों पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं.

किस पार्टी में कितने क्रिमिनल कैंडिडेट ?: आंकड़ों की यदि बात करें तो कांग्रेस के 70 उम्मीदवारों में से 13 यानी 19 फीसदी, बीजेपी के 70 उम्मीदवारों में से 12 यानी 17 फीसदी, जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के 62 उम्मीदवारों में से 11 यानी 18 फीसदी और आम आदमी पार्टी के 44 उम्मीदवारों में से 12 यानी 27 फीसदी उम्मीदवारों ने अपने शपथ पत्र में आपराधिक मामलों की जानकारी दी है.

गंभीर आपराधिक मामलों से जुड़े उम्मीदवार : इसमें से भी गंभीर आपराधिक मामलों की बात करें तो कांग्रेस के 7 यानी 10 फीसदी, बीजेपी के 4 यानी 6 फीसदी, जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के 62 में से 4 यानी 6 फीसदी और आम आदमी पार्टी के 44 में से 6 यानी 14 फीसदी उम्मीदवारों पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं.

रेड अलर्ट निर्वाचन क्षेत्र : 70 निर्वाचन क्षेत्रों में से 16 यानी 23% रेड अलर्ट निर्वाचन क्षेत्र हैं.जिनमें 3 या अधिक चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किए हैं.

किसे कहते हैं गंभीर आपराधिक मामले ?

• ऐसा अपराध जिसमें पांच साल या उससे अधिक की सजा का प्रावधान हो

• अपराध गैरजमानती हो.

• चुनाव से जुड़े अपराध (जैसे आईपीसी की धारा 171ई के तहत दर्ज केस या रिश्वतखोरी का मामला)

• सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचाने का मामला दर्ज हो

• धक्का-मुक्की, मर्डर, अपहरण, बलात्कार से संबंधित अपराध रिप्रेजेंटेशन ऑफ द पीपुल एक्ट (सेक्शन 8) में जिन मामलों को अपराध माना गया हो.

क्या है सुप्रीम कोर्ट के निर्देश ? : सुप्रीम कोर्ट ने 13 फरवरी, 2020 के अपने निर्देशों में राजनीतिक दलों को विशेष रूप से कहा था आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवार का यदि चयन किया गया है तो ये स्पष्ट रूप से बताए कि उनकी जगह बिना आपराधिक पृष्ठभूमि वाले अन्य व्यक्तियों को उम्मीदवार के रूप में क्यों नहीं चुना जा सकता है. ऐसे चयन का कारण संबंधित उम्मीदवार की योग्यता, उपलब्धियों और योग्यता के संदर्भ में होना चाहिए. हाल ही में 2023 में हुए 4 राज्यों के विधानसभा चुनावों के दौरान सुप्रीम कोर्ट के सवाल पर राजनीतिक दलों ने व्यक्ति की लोकप्रियता, अच्छे सामाजिक कार्य करना, मामला राजनीति से प्रेरित होना जैसे बातें रखीं. वहीं आपराधिक मामलों को निराधार बताया.

सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का असर नहीं : ऊपर दिए गए डाटा से पता चल रहा है कि छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दलों ने 10 फीसदी से ज्यादा आपराधिक छवि वाले उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है. छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण में प्रमुख दलों ने 17% से 27% तक ऐसे उम्मीदवारों को टिकट दिया है.जिन्होंने खुद के खिलाफ आपराधिक केस दर्ज होना बताया है.

एडीआर ने की हैं सिफारिश : राजनीति में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को आने से रोकने के लिए एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स यानी एडीआर ने कुछ सिफारिशें भी की है.ताकि लोकतंत्र के मंदिर में सदा न्याय और स्वच्छता बरकरार रहे.

  • भारत के सर्वोच्च न्यायालय को "न्याय और कानून के शासन" का अंतिम संरक्षक होने के नाते राजनीतिक दलों और राजनेताओं को उनकी इच्छाशक्ति की कमी, निंदनीय पूर्वाग्रह और आवश्यक कानूनों की अनुपस्थिति के लिए फटकार लगानी चाहिए.
  • हत्या, बलात्कार, तस्करी, डकैती, अपहरण आदि जैसे जघन्य अपराधों के लिए दोषी ठहराए गए उम्मीदवारों की स्थायी अयोग्यता.
  • उन व्यक्तियों को सार्वजनिक कार्यालयों में चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित करना, जिनके खिलाफ कम से कम 5 साल की कैद की सजा वाले गंभीर आपराधिक अपराध करने के लिए आरोप तय किए गए हैं.वहीं मामला चुनाव से कम से कम 6 महीने पहले दायर किया गया हो.
  • दागी उम्मीदवारों को मैदान में उतारने वाले राजनीतिक दलों को दी गई कर छूट रद्द करनी चाहिए.
  • राजनीतिक दलों को सूचना का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत लाना चाहिए.
  • यदि कोई राजनीतिक दल जानबूझकर किसी दागी पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवार को खड़ा करता है, तो उसका पंजीकरण रद्द करें और उसकी मान्यता रद्द करें.
  • राजनीतिक दलों को सालाना अपने पदाधिकारियों के आपराधिक इतिहास की जानकारी दर्ज करनी चाहिए. शून्य रिकॉर्ड सहित ऐसे रिकॉर्ड जनता को उपलब्ध कराने चाहिए.
  • चुनावी हलफनामे में गलत जानकारी देने वाले उम्मीदवारों की अयोग्यता (फॉर्म 26).
  • उन मामलों की सुनवाई सुनिश्चित करें जिनमें राजनेता आरोपी हैं, जिनका निष्कर्ष समयबद्ध तरीके से निकाला जाए.
  • सुप्रीम कोर्ट के 23 सितंबर, 2013 के फैसले (यानी ईवीएम पर नोटा बटन का प्रावधान) को उसके अक्षरश: लागू किया जाए . यदि नोटा को किसी भी उम्मीदवार से अधिक वोट मिलते हैं, तो किसी भी उम्मीदवार को निर्वाचित घोषित नहीं किया जाना चाहिए और नए सिरे से चुनाव कराया जाए. नए चुनाव में, पिछले चुनाव में, जिसमें नोटा को सबसे अधिक वोट मिले थे, किसी भी उम्मीदवार को चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.
  • 25 सितंबर, 2018 और 13 फरवरी, 2020 को सुप्रीम कोर्ट के 'राजनीतिक दलों द्वारा चुने गए उम्मीदवारों के खिलाफ आपराधिक मामलों को ऐसे चयन के कारणों के साथ प्रकाशित करने' के आदेशों को भारत के चुनाव आयोग को निर्देश देकर अपने अक्षरशः लागू करना चाहिए. राजनीतिक दलों दागी उम्मीदवारों के नाम, ऐसे चयन के कारणों के साथ ही समाचार पत्रों, टीवी चैनलों, पार्टी वेबसाइट में कारणों का परिश्रमपूर्वक प्रकाशन करना चाहिए.
  • भारत के चुनाव आयोग और सभी राज्य चुनाव आयोगों को इसे सभी चुनावों में अनिवार्य बनाना चाहिए. संसदीय, विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनावों में प्रत्येक मतदान केंद्र के बाहर उम्मीदवारों के हलफनामों का संक्षिप्त संस्करण दिखाने वाले डिस्प्ले बोर्ड लगाने चाहिए. मतदान केंद्रों पर अनिवार्य रूप से उम्मीदवार के आपराधिक रिकॉर्ड, संपत्ति और देनदारियों और शिक्षा योग्यता का विवरण प्रदर्शित किया जाना चाहिए.
  • भारत में राजनीतिक दलों को चुनाव से कम से कम 3 महीने पहले चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों की सूची की घोषणा/प्रकाशन करना आवश्यक होना चाहिए.

SOURCE- ADR

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