रायपुर: गणतंत्र दिवस पर छत्तीसगढ़ के जनजातीय क्षेत्रों में प्रयुक्त होने वाले लोक वाद्य यंत्रों पर आधारित झांकी प्रस्तुत की जाएगी. छत्तीसगढ़ की कला और संस्कृति राज्य की अलग पहचान बना रही है. इसका नजारा इस बार राजपथ पर देखने को मिलेगा. गणतंत्र दिवस के दिन राजपथ पर इस बार छत्तीसगढ़ के लोक संगीत का वैभव दिखेगा. बस्तर के कलाकार देश-दुनिया को छत्तीसगढ़ की परंपरा और संस्कृति को वाद्य यंत्रों के माध्यम से रूबरू कराएंगे.
बस्तर में यूं तो अनेक तिज त्योहारों में वाद्य यंत्रों की संस्कृति और परंपरा समाहित है, लेकिन यहां की मुख्य पहचान धनकुल है. यह वाद्य यंत्र काफी अद्भुत है. कलाकार रिखी क्षत्रिय बताते हैं कि इसे सुपा, मचोली, मटकी, छिरणकारी और धनुष-बाण से तैयार किया जाता है. यह बस्तर की सबसे फेमस वाद्य यंत्र है. इस वाद्य यंत्र से हर कोई झूमने पर मजबूर हो जाता है.
विश्व प्रसिद्ध दशहरा के मुंडा बाजा की होगी प्रस्तुति
बस्तर की एक और पारंपरिक वाद्य यंत्र है, जिससे कई लोग अनजान हैं. उसे मुंडा बाजा कहा जाता है. बस्तर के विश्व प्रसिद्ध दशहरा उत्सव में जब तक इस बाजे को नहीं बजाया जाएगा, तब तक दंतेश्वरी माता की रथ आगे नहीं बढ़ पाता. मान्यता है कि इसे आज भी 30-40 बघेल परिवारों द्वारा बजाया जाता है. इसकी भी प्रस्तुति राजपथ पर की जाएगी. ताकि दुनिया को बस्तर की संस्कृति और पंरपरा से रू-ब-रू कराया जा सके.
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झांकी में इन चीजों को किया गया है शामिल
झांकी के ठीक सामने वाले हिस्से में एक महिला बैठी है. जो बस्तर का प्रसिद्ध लोक वाद्य धनकुल बजा रही है. धनकुल वाद्य यंत्र, धनुष, सूप और मटके से बना होता है. जगार गीतों में इसे बजाया जाता है. झांकी के मध्य भाग में तुरही है. ये फूंक कर बजाया जाने वाला वाद्य यंत्र है, इसे मांगलिक कार्यों के दौरान बजाया जाता है. तुरही के ऊपर गौर नृत्य प्रस्तुत करते जनजाति हैं. झांकी के अंत में मांदर बजाता हुआ युवक है. झांकी में इनके अलावा अलगोजा, खंजेरी, नगाड़ा, टासक, बांस बाजा, नकदेवन, बाना, चिकारा, टुड़बुड़ी, डांहक, मिरदिन, मांडिया ढोल, गुजरी, सिंहबाजा या लोहाटी, टमरिया, घसिया ढोल, तम्बुरा को शामिल किया गया है.