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कहानी मिनीमाता की, चाय के बागान से छत्तीसगढ़ की पहली महिला सांसद बनने तक - सांसद

मिनीमाता छत्तीसगढ़ की पहली महिला सांसद थीं, जिन्होंने चाय के बागान से निकलकर संसद तक का सफर तय किया था.

मिनीमाता
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Published : Mar 26, 2019, 11:28 PM IST

Updated : Mar 27, 2019, 12:11 AM IST

रायपुर: लोकसभा चुनाव के पहले चरण की वोटिंग के लिए 2 हफ्ते और कुछ दिन बचे हैं. देशभर से सांसद हमारे प्रतिनिधि बनकर जाएंगे और उम्मीद है कि हमारी ही बात सदन में करेंगे. लेकिन सदन में आधी आबादी के प्रतिनिधित्व पर सवाल उठते रहे हैं. वादा महिला आरक्षण का भी किया जा रहा है. ऐसे में जब टिकट बंटवारे में भी महिलाओं के लिए कंजूसी की गई हो, हम आपको छत्तीसगढ़ में महिला सांसदों के सफर पर ले चलते हैं.

मिनीमाता को छत्तीसगढ़ से पहली महिला सांसद होने का गौरव प्राप्त है. वे साल 1952 में सांसद बनी थीं. मिनीमाता ने छत्तीसगढ़ के साथ ही देश भर में कई समस्याओं को लेकर बेहद महत्वपूर्ण कार्य किया है. छुआछूत मिटाने से लेकर लोगों को अंधविश्वास के खिलाफ जागरूक करने तक मिनीमाता ने समाज के लिए बेहद महत्वपूर्ण योगदान दिया है. उन्हें जानने वाले कहते हैं कि सादगी उनके दिल में थी और व्यक्तित्व में छलकती थी.

वीडियो

हर तबके के लिए खुला रहता है घर
मिनीमाता का घर हर समाज और तबके के लिए खुला रहता था. कहा ये भी जाता है कि जब वे सांसद के रुप में दिल्ली में थीं, तो उनका घर, छत्तीसगढ़ के लिए एक धर्मशाला जैसा था. छत्तीसगढ़ से जो भी दिल्ली जाता, मिनीमाता के भरोसे ही जाता.

मिनीमाता का जीवन परिचय
मिनी माता का नाम मीनाक्षी देवी था. वे असम में अपनी मां देवमती के साथ रहती थीं. उनके पिता सगोना नाम के गांव में मालगुजार थे छत्तीसगढ़ में साल 1897 से 1899 में भीषण अकाल पड़ा इसी अकाल में मिनीमाता का परिवार रोजी रोटी के लिए छत्तीसगढ़ से पलायन कर के असम चला गया था. देवबती तब बहुत ही छोटी थीं.

ऐसी है कहानी...
हुआ ये कि मिनीमाता की मां के पिता उनकी दो बहनों के साथ अकाल के वक्त बिलासपुर पहुंचे और वहां उन्हें एक ठेकेदार मिला, जो असम में मजदूरों की भर्ती करने वाला था. मिनीमाता के नाना-नानी अपनी तीनों बेटियों के साथ चले तो गए लेकिन रास्ते में ही उनकी दोनों मौसियों ने दम तोड़ दिया.

उठ गया माता-पिता का साया
मिनीमाता की मां अपने माता-पिता के साथ असम तो पहुंची लेकिन वहां पहुंचने पर उनके सिर से मां-बाप का साया भी उठ गया. देवबती भी बीमारी से तड़प रही थी लेकिन अस्पताल की नर्सों ने उनकी जान बचा ली और पाल लिया.

असम में हुई पढ़ाई
मीनाक्षी देवी ने असम में मिडिल तक की पढ़ाई की. साल था 1920. उस वक्त स्वदेशी आंदोलन चल रहा था और उसी वक्त मिनी स्वदेशी पहनने लगी थीं. विदेशी सामान की होली भी जलाई गई थी. उस वक्त गद्दीआसीन गुरु अगमदास जी गुरु गोंसाई (सतनामी पथ के) प्रचार के लिए असम पहुंचे थे. उन्होंने मिनी की माता के सामने शादी का प्रस्ताव रखा. इस तरह मीनाक्षी देवी मिनीमाता बन गईं और छत्तीसगढ़ वापस आ गईं.

राष्ट्रीय आंदोलन में भागीदार रहे
अगमदास गुरु राष्ट्रीय आंदोलन में भाग ले रहे थे. उनका रायपुर का घर सत्याग्रहियों का घर बना था. पंडित सुंदरलाल शर्मा, डॉक्टर राधा बाई, ठाकुर प्यारेलाल सिंह सभी उनके घर में आते थे. अगमदास गुरु के कारण ही पूरे सतनामी समाज ने राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लिया.

हर किसी की मदद के लिए तैयार
मिनीमाता सब के लिए माता समान थीं. वे हमेशा उन लोगों की मदद करने के लिए तैयार रहती थीं, जिनका कोई नहीं है. कहते हैं कि जो कोई भी परेशानी में होता, मिनी माता के पास आ जाता और मिनी माता को देखकर ही उन के मन में शांति की भावना छा जाती.

काम के प्रति थीं समर्पित
साल 1951 में गुरु अगमदास के देहांत के बाद मिनीमाता पर पूरी जिम्मेदारी आ गई. घर संभालने के साथ-साथ वे समाज के काम भी करती रहीं. उनके बेटे विजय कुमार की उम्र उस वक्त बहुत कम थी. 1952 में वे प्रदेश की पहली महिला सांसद बनीं. ऐसा कहते हैं कि जब तक वे अपना काम पूरा नहीं कर लेती थीं, परेशान रहती थीं.

नारी शिक्षा के लिए किया काम
नारी शिक्षा के लिए मिनीमाता ने बहुत काम किया. वे सभी को अपनी बेटियों को शिक्षा देने के लिए कहती थीं. बहुत सारी लड़कियां उनके पास रहकर पढ़ाई करती थीं. वे जिन लड़कियों में पढ़ाई के प्रति रुचि देखतीं, उनके लिए उच्च शिक्षा का बंदोबस्त करतीं. उनकी पढ़ाई हुई लड़कियों में कुछ डॉक्टर, कुछ प्रोफेसर और कुछ जज तक बनीं.

विमान दुर्घटना में गई जान
मिनीमाता सांस्कृतिक मंडल की अध्यक्ष रहीं. भिलाई में छत्तीसगढ़ कल्याण मजदूर संगठन की संस्थापक रहीं. कहा जाता है कि बांगो बांध का निर्माण मिनी माता की वजह से संभव हुआ. कहते हैं कि ठंड में दिनों में वे इस बात का ख्याल रखतीं कि सबके पास उचित उपाय हो.

1972 में विमान दुर्घटना में मिनीमाता का निधन हो गया.
प्रदेश में कुल मतदाताओं की संख्या 1,89,16,285 है. पुरुष मतदाता 94, 77, 113 हैं और महिला मतदाता की संख्या 94,38,463 है. लेकिन अगर बात की जाए महिला प्रतिनिधित्व की तो राजनीति में अब भी महिलाओं को बराबर प्रतिनिधित्व मिलता नजर नहीं आता है. छत्तीसगढ़ में महिला सांसदों में अब तक तीन से चार नाम ही हैं. इस विषय पर वरिष्ठ पत्रकार रमेश नैयर कहते हैं कि छत्तीसगढ़ के सामाजिक परिवेश में भले ही महिलाओं को अहमियत दी जाती हो लेकिन राजनीतिक परिदृश्य में अभी उनकी स्थिति इतनी मजबूत नहीं दिखती है.

रायपुर: लोकसभा चुनाव के पहले चरण की वोटिंग के लिए 2 हफ्ते और कुछ दिन बचे हैं. देशभर से सांसद हमारे प्रतिनिधि बनकर जाएंगे और उम्मीद है कि हमारी ही बात सदन में करेंगे. लेकिन सदन में आधी आबादी के प्रतिनिधित्व पर सवाल उठते रहे हैं. वादा महिला आरक्षण का भी किया जा रहा है. ऐसे में जब टिकट बंटवारे में भी महिलाओं के लिए कंजूसी की गई हो, हम आपको छत्तीसगढ़ में महिला सांसदों के सफर पर ले चलते हैं.

मिनीमाता को छत्तीसगढ़ से पहली महिला सांसद होने का गौरव प्राप्त है. वे साल 1952 में सांसद बनी थीं. मिनीमाता ने छत्तीसगढ़ के साथ ही देश भर में कई समस्याओं को लेकर बेहद महत्वपूर्ण कार्य किया है. छुआछूत मिटाने से लेकर लोगों को अंधविश्वास के खिलाफ जागरूक करने तक मिनीमाता ने समाज के लिए बेहद महत्वपूर्ण योगदान दिया है. उन्हें जानने वाले कहते हैं कि सादगी उनके दिल में थी और व्यक्तित्व में छलकती थी.

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हर तबके के लिए खुला रहता है घर
मिनीमाता का घर हर समाज और तबके के लिए खुला रहता था. कहा ये भी जाता है कि जब वे सांसद के रुप में दिल्ली में थीं, तो उनका घर, छत्तीसगढ़ के लिए एक धर्मशाला जैसा था. छत्तीसगढ़ से जो भी दिल्ली जाता, मिनीमाता के भरोसे ही जाता.

मिनीमाता का जीवन परिचय
मिनी माता का नाम मीनाक्षी देवी था. वे असम में अपनी मां देवमती के साथ रहती थीं. उनके पिता सगोना नाम के गांव में मालगुजार थे छत्तीसगढ़ में साल 1897 से 1899 में भीषण अकाल पड़ा इसी अकाल में मिनीमाता का परिवार रोजी रोटी के लिए छत्तीसगढ़ से पलायन कर के असम चला गया था. देवबती तब बहुत ही छोटी थीं.

ऐसी है कहानी...
हुआ ये कि मिनीमाता की मां के पिता उनकी दो बहनों के साथ अकाल के वक्त बिलासपुर पहुंचे और वहां उन्हें एक ठेकेदार मिला, जो असम में मजदूरों की भर्ती करने वाला था. मिनीमाता के नाना-नानी अपनी तीनों बेटियों के साथ चले तो गए लेकिन रास्ते में ही उनकी दोनों मौसियों ने दम तोड़ दिया.

उठ गया माता-पिता का साया
मिनीमाता की मां अपने माता-पिता के साथ असम तो पहुंची लेकिन वहां पहुंचने पर उनके सिर से मां-बाप का साया भी उठ गया. देवबती भी बीमारी से तड़प रही थी लेकिन अस्पताल की नर्सों ने उनकी जान बचा ली और पाल लिया.

असम में हुई पढ़ाई
मीनाक्षी देवी ने असम में मिडिल तक की पढ़ाई की. साल था 1920. उस वक्त स्वदेशी आंदोलन चल रहा था और उसी वक्त मिनी स्वदेशी पहनने लगी थीं. विदेशी सामान की होली भी जलाई गई थी. उस वक्त गद्दीआसीन गुरु अगमदास जी गुरु गोंसाई (सतनामी पथ के) प्रचार के लिए असम पहुंचे थे. उन्होंने मिनी की माता के सामने शादी का प्रस्ताव रखा. इस तरह मीनाक्षी देवी मिनीमाता बन गईं और छत्तीसगढ़ वापस आ गईं.

राष्ट्रीय आंदोलन में भागीदार रहे
अगमदास गुरु राष्ट्रीय आंदोलन में भाग ले रहे थे. उनका रायपुर का घर सत्याग्रहियों का घर बना था. पंडित सुंदरलाल शर्मा, डॉक्टर राधा बाई, ठाकुर प्यारेलाल सिंह सभी उनके घर में आते थे. अगमदास गुरु के कारण ही पूरे सतनामी समाज ने राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लिया.

हर किसी की मदद के लिए तैयार
मिनीमाता सब के लिए माता समान थीं. वे हमेशा उन लोगों की मदद करने के लिए तैयार रहती थीं, जिनका कोई नहीं है. कहते हैं कि जो कोई भी परेशानी में होता, मिनी माता के पास आ जाता और मिनी माता को देखकर ही उन के मन में शांति की भावना छा जाती.

काम के प्रति थीं समर्पित
साल 1951 में गुरु अगमदास के देहांत के बाद मिनीमाता पर पूरी जिम्मेदारी आ गई. घर संभालने के साथ-साथ वे समाज के काम भी करती रहीं. उनके बेटे विजय कुमार की उम्र उस वक्त बहुत कम थी. 1952 में वे प्रदेश की पहली महिला सांसद बनीं. ऐसा कहते हैं कि जब तक वे अपना काम पूरा नहीं कर लेती थीं, परेशान रहती थीं.

नारी शिक्षा के लिए किया काम
नारी शिक्षा के लिए मिनीमाता ने बहुत काम किया. वे सभी को अपनी बेटियों को शिक्षा देने के लिए कहती थीं. बहुत सारी लड़कियां उनके पास रहकर पढ़ाई करती थीं. वे जिन लड़कियों में पढ़ाई के प्रति रुचि देखतीं, उनके लिए उच्च शिक्षा का बंदोबस्त करतीं. उनकी पढ़ाई हुई लड़कियों में कुछ डॉक्टर, कुछ प्रोफेसर और कुछ जज तक बनीं.

विमान दुर्घटना में गई जान
मिनीमाता सांस्कृतिक मंडल की अध्यक्ष रहीं. भिलाई में छत्तीसगढ़ कल्याण मजदूर संगठन की संस्थापक रहीं. कहा जाता है कि बांगो बांध का निर्माण मिनी माता की वजह से संभव हुआ. कहते हैं कि ठंड में दिनों में वे इस बात का ख्याल रखतीं कि सबके पास उचित उपाय हो.

1972 में विमान दुर्घटना में मिनीमाता का निधन हो गया.
प्रदेश में कुल मतदाताओं की संख्या 1,89,16,285 है. पुरुष मतदाता 94, 77, 113 हैं और महिला मतदाता की संख्या 94,38,463 है. लेकिन अगर बात की जाए महिला प्रतिनिधित्व की तो राजनीति में अब भी महिलाओं को बराबर प्रतिनिधित्व मिलता नजर नहीं आता है. छत्तीसगढ़ में महिला सांसदों में अब तक तीन से चार नाम ही हैं. इस विषय पर वरिष्ठ पत्रकार रमेश नैयर कहते हैं कि छत्तीसगढ़ के सामाजिक परिवेश में भले ही महिलाओं को अहमियत दी जाती हो लेकिन राजनीतिक परिदृश्य में अभी उनकी स्थिति इतनी मजबूत नहीं दिखती है.

कहानी चाय बागान में मजदूर से प्रदेश की पहली महिला सांसद मिनी माता की


स्टोरी स्लग-Rpr, Rajni, mahila sansad special story

खबर की फीड लाइव यू, से गई है जिसमें विजुअल बाइट और पीटीसी है ,बाइट  वरिष्ठ पत्रकार रमेश नैयर की है

सन् 1952 में मिनी माता सांसद बनी थीं। मिनीमाता को छत्तीसगढ़ से पहली महिला सांसद होने का गौरव प्राप्त है मिनीमाता ने छत्तीसगढ़ के साथ ही देश भर में कई समस्याओं को लेकर बेहद महत्वपूर्ण कार्य किया है छुआछूत मिटाने से लेकर लोगों को अंधविश्वास के खिलाफ जागरूक करने तक मिनीमाता ने समाज के लिए बेहद महत्वपूर्ण योगदान दिया है मिनीमाता को जाने वाले बताते हैं की वे बेहद सादगी पसंद महिला थीं ।

उनके घर में हर समाज और तबके  के लोग आते थे ।ये कहा जाता है कि जब वे सांसद के रुप में दिल्ली में थीं तो उनका घर,छत्तीसगढ एक धर्मशाला जैसा था। यहाँ  से जो भी दिल्ली में आता,मिनी माता के भरोसे ही आते थे।



जीवन परिचय
• मिनी माता का नाम मीनाक्षी देवी था। मीनाक्षी देवी  आसाम में रहती थींअपनी माँ देवबती के साथ। देवबती जब छोटी थीं, तो वे छत्तीसगढ़ में रहती थीं।  पिता सगोना नाम के गाँव में मालगुज़ार थे। छत्तीसगढ़ में सन् 1897 से 1899 में भीषण अकाल पड़ा इसी अकाल में  मिनीमाता का परिवार  रोजी रोटी के लिए छत्तीसगढ़ से पलायन कर के आसाम चला गया ।देवबती तब बहुत ही छोटी थीं। उनकी और दो बहनें थीं। एक उनसे बड़ी दूसरी उनसे छोटी। तीन बेटियों को लेकर उनके पिता-माता शहर बिलासपुर पहुँचे। वहाँ उन्हें आसाम के एक ठेकेदार मिले जो मज़दूर भर्ती करने वाले थे। उनके साथ देवबती के पिता सपरिवार आसाम जाने के लिए तैयार हो गए। देवबती की दोनों बहनें आसाम नहीं पहुँच पाई। बड़ी बहन मती ट्रेन में ही चल बसी। उस नन्ही-सी बच्ची को गंगा में अपंण करना पड़ा, और छोटी बहन जिसका नाम चांउरमती था, उनको पद्मा नदी में। किसी तरह तीनों मिलकर जब आसाम पहुँचे, तब पिता-माता दोनों चल बसे। देवबती बीमारी से तड़प रही थीं, उसे किसी ने अस्पताल में भर्ती कर दिया। ठीक होने के बाद देवबती अस्पताल में ही रह गईं। नर्सो ने उन्हें बड़े प्यार से बेटी के रुप में पाला। उसी देवबती की बेटी थीं मीनाक्षी देवी। आसाम में उन्होंने मिडिल तक की पढ़ाई की। सन् था 1920 । उस वक्त स्वदेशी आन्दोलन चल रहा था। छोटी-सी मिनी स्वदेशी पहनने लगी। विदेशी वस्तुओं की होली भी जलाई।उस वक्त गद्दीनसीन गुरु  अगमदास जी गुरु गोसाई (सतनामी पथ के) धर्म का प्रचार करने आसाम पहुँचे। वहाँ मिनी के परिवार में ठहरे थे। उन्होंने मिनी के माताजी के सामने शादी का प्रस्ताव रखा। इसी प्रकार मीनाक्षी देवी मिनी माता बन गईं और छत्तीसगढ़ वापस आईं।

अगमदास गुरु राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग ले रहे थे। उनके रायपुर का घर सत्याग्रहियों का घर बना।

पं. सुन्दरलाल शर्मा, डॉ. राधा बाई, ठाकुर प्यारेलाल सिंह - सभी उनके घर में आते थे। अगमदास गुरु के कारण ही पूरे सतनामी समाज ने राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लिया।

मिनी माता सब के लिए माता समान थीं। वे हमेशा उन लोगों की मदद करने के लिए तैयार रहती थीं, जिनका कोई नहीं है जिन पर समाज दबाव डाल रहा है। जो कोई भी परेशानी में होता, मिनी माता के पास आ जाता और मिनी माता को देखकर ही उन के मन में शांति की भावना छा जाती। अनेक लोग यह कहते कि क्या जो जन्म देती है, वही माँ है? माँ तोे वह है जिसे देखते ही ऐसा लगे कि अब और किसी बात का डर नहीं। अब तो माँ है हमारे पास।

सन् 1951 में अगमदास गुरु का देहान्त हो गया अचानक। मिनी माता पर अगमदासजी गुरु की पूरी ज़िम्मेदारी आ पड़ी। घर सँभालने के साथ-साथ समाज का कार्य करती रहीं पूरी लगन के साथ। उनका बेटा विजय कुमार तब कम उम्र का था। 1952 में मिनी माता सांसद बनी। तब से उनकी ज़िम्मेदारी और भी बढ़ गई। ऐसा कहते हैं कि हर काम को जब तक पूरा नहीं करतीं, तब तक वे चिन्तित रहती थीं।

नारी शिक्षा के लिए मिनी माता खूब काम करती थीं। सभी को कहती थीं अपनी बेटियों को पढ़ाने के लिए। बहुत सारी लड़कियाँ उनके पास रहकर पढ़ाई करतीं। जिन लड़कियों में पढ़ाई के प्रति रुचि देखतीं, उनके लिए ऊँची शिक्षा का बन्दोबस्त करतीं, उन लड़कियों में से आज डॉक्टर हैंै, न्यायधीश हैं, प्रोफ़ेसर हैं।

छत्तीसगढ़ साँस्कृतिक मंडल की मिनी माता अध्यक्षा रहीं। छत्तीसगढ़ कल्याण मज़दूर संगठन जो भिलाई में है, उसकी संस्थापक अध्यक्षा रहीं। बांगो-बाँध मिनी माता के कारण ही सम्भव हुआ माना जाता है।
सन् 1972 में एक वायुयान भोपाल से दिल्ली की ओर जा रहा था। मिनी माता भोपाल में अपने बेटे विजय के पास आई थीं। उसी वायुयान से दिल्ली वापस जा रही थीं। उस वायुयान में चौदह यात्री थे। वह वायुयान दिल्ली नहीं पहुँच पाया, उसी दुर्घटना में हमारी मिनी माता भी अपना काम अधूरा छोड़ कर चली गयीं। छत्तीसगढ़ में लोग विश्वास नहीं कर पा रहे थे कि मिनी माता अब उनके बीच नहीं र
सहृदयता के क़िस्से हैं मशहुर

ठंड के दिनों में मिनी माता ध्यान रखतीं कि कोई भी ठंड से परेशान न हो। अगर किसी को देखतीं कि ठंड से सिकुड़ रहा है तो उसको कंबल से ढंक देतीं। एक बार तो ऐसा हुआ कि उनके पास खुद को ओढ़ने के लिए कंबल नहीं रहा। बहुत ज्यादा ठंड हो रही थी। मिनी माता ने एक सिगड़ी जला कर खाट के नीचे रख दिया, पर सिगड़ी का धुँआ पूरे कमरे में भर गया और बहुत ज्यादा घुटन हो गई, जिसके कारण मिनी माता बेहोश हो गईं। कई दिन तक चिकित्सा चलने के बाद वे ठीक हुईं।

एक नज़र आँकडो पर

प्रदेश में कुल मतदाताओं की संख्या 1,89,16,285 है।
वहीं पुरुष मतदाता 94, 77, 113 है और महिला मतदाता की संख्या 94, 38 ,463 है।लेकिन अगर बात की जाए महिला प्रतिनिधित्व की तो राजनीति में अब भी महिलाओं को बराबर प्रतिनिधित्व मिलता नजर नहीं आता है छत्तीसगढ़ में महिला सांसदों मैं अब तक तीन से चार नाम ही हैं इस विषय पर वरिष्ठ पत्रकार रमेश नैयर कहते हैं कि छत्तीसगढ़ के सामाजिक परिवेश में भले ही महिलाओं को अहमियत दी जाती हो लेकिन राजनीतिक परिदृश्य में अभी उनकी स्थिति इतनी मजबूत नहीं दिखती है
Last Updated : Mar 27, 2019, 12:11 AM IST
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