रायपुर: लोकसभा चुनाव के पहले चरण की वोटिंग के लिए 2 हफ्ते और कुछ दिन बचे हैं. देशभर से सांसद हमारे प्रतिनिधि बनकर जाएंगे और उम्मीद है कि हमारी ही बात सदन में करेंगे. लेकिन सदन में आधी आबादी के प्रतिनिधित्व पर सवाल उठते रहे हैं. वादा महिला आरक्षण का भी किया जा रहा है. ऐसे में जब टिकट बंटवारे में भी महिलाओं के लिए कंजूसी की गई हो, हम आपको छत्तीसगढ़ में महिला सांसदों के सफर पर ले चलते हैं.
मिनीमाता को छत्तीसगढ़ से पहली महिला सांसद होने का गौरव प्राप्त है. वे साल 1952 में सांसद बनी थीं. मिनीमाता ने छत्तीसगढ़ के साथ ही देश भर में कई समस्याओं को लेकर बेहद महत्वपूर्ण कार्य किया है. छुआछूत मिटाने से लेकर लोगों को अंधविश्वास के खिलाफ जागरूक करने तक मिनीमाता ने समाज के लिए बेहद महत्वपूर्ण योगदान दिया है. उन्हें जानने वाले कहते हैं कि सादगी उनके दिल में थी और व्यक्तित्व में छलकती थी.
हर तबके के लिए खुला रहता है घर
मिनीमाता का घर हर समाज और तबके के लिए खुला रहता था. कहा ये भी जाता है कि जब वे सांसद के रुप में दिल्ली में थीं, तो उनका घर, छत्तीसगढ़ के लिए एक धर्मशाला जैसा था. छत्तीसगढ़ से जो भी दिल्ली जाता, मिनीमाता के भरोसे ही जाता.
मिनीमाता का जीवन परिचय
मिनी माता का नाम मीनाक्षी देवी था. वे असम में अपनी मां देवमती के साथ रहती थीं. उनके पिता सगोना नाम के गांव में मालगुजार थे छत्तीसगढ़ में साल 1897 से 1899 में भीषण अकाल पड़ा इसी अकाल में मिनीमाता का परिवार रोजी रोटी के लिए छत्तीसगढ़ से पलायन कर के असम चला गया था. देवबती तब बहुत ही छोटी थीं.
ऐसी है कहानी...
हुआ ये कि मिनीमाता की मां के पिता उनकी दो बहनों के साथ अकाल के वक्त बिलासपुर पहुंचे और वहां उन्हें एक ठेकेदार मिला, जो असम में मजदूरों की भर्ती करने वाला था. मिनीमाता के नाना-नानी अपनी तीनों बेटियों के साथ चले तो गए लेकिन रास्ते में ही उनकी दोनों मौसियों ने दम तोड़ दिया.
उठ गया माता-पिता का साया
मिनीमाता की मां अपने माता-पिता के साथ असम तो पहुंची लेकिन वहां पहुंचने पर उनके सिर से मां-बाप का साया भी उठ गया. देवबती भी बीमारी से तड़प रही थी लेकिन अस्पताल की नर्सों ने उनकी जान बचा ली और पाल लिया.
असम में हुई पढ़ाई
मीनाक्षी देवी ने असम में मिडिल तक की पढ़ाई की. साल था 1920. उस वक्त स्वदेशी आंदोलन चल रहा था और उसी वक्त मिनी स्वदेशी पहनने लगी थीं. विदेशी सामान की होली भी जलाई गई थी. उस वक्त गद्दीआसीन गुरु अगमदास जी गुरु गोंसाई (सतनामी पथ के) प्रचार के लिए असम पहुंचे थे. उन्होंने मिनी की माता के सामने शादी का प्रस्ताव रखा. इस तरह मीनाक्षी देवी मिनीमाता बन गईं और छत्तीसगढ़ वापस आ गईं.
राष्ट्रीय आंदोलन में भागीदार रहे
अगमदास गुरु राष्ट्रीय आंदोलन में भाग ले रहे थे. उनका रायपुर का घर सत्याग्रहियों का घर बना था. पंडित सुंदरलाल शर्मा, डॉक्टर राधा बाई, ठाकुर प्यारेलाल सिंह सभी उनके घर में आते थे. अगमदास गुरु के कारण ही पूरे सतनामी समाज ने राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लिया.
हर किसी की मदद के लिए तैयार
मिनीमाता सब के लिए माता समान थीं. वे हमेशा उन लोगों की मदद करने के लिए तैयार रहती थीं, जिनका कोई नहीं है. कहते हैं कि जो कोई भी परेशानी में होता, मिनी माता के पास आ जाता और मिनी माता को देखकर ही उन के मन में शांति की भावना छा जाती.
काम के प्रति थीं समर्पित
साल 1951 में गुरु अगमदास के देहांत के बाद मिनीमाता पर पूरी जिम्मेदारी आ गई. घर संभालने के साथ-साथ वे समाज के काम भी करती रहीं. उनके बेटे विजय कुमार की उम्र उस वक्त बहुत कम थी. 1952 में वे प्रदेश की पहली महिला सांसद बनीं. ऐसा कहते हैं कि जब तक वे अपना काम पूरा नहीं कर लेती थीं, परेशान रहती थीं.
नारी शिक्षा के लिए किया काम
नारी शिक्षा के लिए मिनीमाता ने बहुत काम किया. वे सभी को अपनी बेटियों को शिक्षा देने के लिए कहती थीं. बहुत सारी लड़कियां उनके पास रहकर पढ़ाई करती थीं. वे जिन लड़कियों में पढ़ाई के प्रति रुचि देखतीं, उनके लिए उच्च शिक्षा का बंदोबस्त करतीं. उनकी पढ़ाई हुई लड़कियों में कुछ डॉक्टर, कुछ प्रोफेसर और कुछ जज तक बनीं.
विमान दुर्घटना में गई जान
मिनीमाता सांस्कृतिक मंडल की अध्यक्ष रहीं. भिलाई में छत्तीसगढ़ कल्याण मजदूर संगठन की संस्थापक रहीं. कहा जाता है कि बांगो बांध का निर्माण मिनी माता की वजह से संभव हुआ. कहते हैं कि ठंड में दिनों में वे इस बात का ख्याल रखतीं कि सबके पास उचित उपाय हो.
1972 में विमान दुर्घटना में मिनीमाता का निधन हो गया.
प्रदेश में कुल मतदाताओं की संख्या 1,89,16,285 है. पुरुष मतदाता 94, 77, 113 हैं और महिला मतदाता की संख्या 94,38,463 है. लेकिन अगर बात की जाए महिला प्रतिनिधित्व की तो राजनीति में अब भी महिलाओं को बराबर प्रतिनिधित्व मिलता नजर नहीं आता है. छत्तीसगढ़ में महिला सांसदों में अब तक तीन से चार नाम ही हैं. इस विषय पर वरिष्ठ पत्रकार रमेश नैयर कहते हैं कि छत्तीसगढ़ के सामाजिक परिवेश में भले ही महिलाओं को अहमियत दी जाती हो लेकिन राजनीतिक परिदृश्य में अभी उनकी स्थिति इतनी मजबूत नहीं दिखती है.