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SPECIAL: दर्द में भी कम नहीं हुई लोक कलाकारों की गले की मिठास, आधुनिकता और उपेक्षा ने किया मायूस

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Published : Oct 30, 2020, 11:52 AM IST

Updated : Nov 4, 2020, 5:47 PM IST

पिछले 8 महीने में कोरोना के कारण कोई भी सांस्कृतिक आयोजन नहीं होने से प्रदेश के लोक कलाकारों की हालत दिनों-दिन खराब होती जा रही है. हालत ये हो गई है कि ढोल-मंजीरे पकड़ने वाले हाथों में अब कूची आ गई है.

status of folk artists of chhattisgarh is pathetic
छत्तीसगढ़ के लोक कलाकारों की स्थिति दयनीय

रायपुर: जिस लोककला और लोकगीतों से प्रदेश की पहचान है वहीं अब अपना अस्तित्व खोने लगा है. अब न तो लोकगीतों की कहीं पूछ परख है और न ही इन लोक कलाकारों की. जिससे ये बेशकीमती लोककला अपनी पहचान खोती जा रही है. न शासन से मदद मिली और न ही कहीं और से, लिहाजा लोक कला और कलाकार दोनों ही जद्दोजहद कर रहे है.

उपेक्षा के कारण मजदूरी को मजबूर हुए लोक कलाकार

मजदूरी को मजबूर लोक कलाकार

status-of-folk-artists-of-chhattisgarh-is-pathetic
पोताई करते लोक कलाकार

आधुनिकता और उपेक्षा ने इन लोक कलाकारों और उनकी कला पर धूल की ऐसी चादर चढ़ा दी है जो हटाए नहीं हट रही है. पिछले साल तक कुछ खास मौकों पर इन कलाकारों और उनके लोकगीतों का आयोजन हो भी जाता था, लेकिन इस साल कोरोना ने रही-सही कसर पूरी कर दी और इस साल न ही कोई आयोजन हुआ और न ही इनकी कला का प्रदर्शन हो सका. जिससे अब ये लोक कलाकार अपनी जिंदगी की गाड़ी खींचने के लिए मजदूरी को मजबूर हो चुके है.

पढ़ें: EXCLUSIVE: कोरोना काल कलाकारों की जिंदगी का सबसे मुश्किल समय- तीजन बाई

कोरोना से और खराब हुई स्थिति

status of folk artists of chhattisgarh is pathetic
मजदूरी को मजबूर लोक कलाकार

लोक कला से जुड़े कुछ कलाकार दूसरे जिले से आकर राजधानी में घरों में रंग रोगन और साफ-सफाई का काम भी कर रहे है.उन्होंने बताया कि इसी से परिवार का गुजर-बसर चल रहा है, क्योंकि पिछले 8 महीने से कोरोना के चलते आर्थिक स्थिति काफी खराब हो चुकी है.

राज्योत्सव से भी मिली मायूसी

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पिछले 8 महीने से नहीं मिला मंच

इस साल राज्योत्सव कार्यक्रम से भी इन लोक कलाकारों को मायूसी ही हाथ लगी है. राज्योत्सव वर्चुअल रूप में होने से प्रदेश के इन कलाकारों को अपनी कला का प्रदर्शन करने का कोई मौका नहीं मिला. जिससे ये लोक कलाकार और निराश हो गए. ETV भारत से चर्चा में इन कलाकारों ने बताया कि कोरोना के चलते वैसे भी पिछले 8 महीने से सरकारी या फिर निजी आयोजन नहीं हुआ है, जिसके कारण इन्हें आर्थिक समस्या से जूझना पड़ रहा है. सरकार की तरफ से भी इन लोक कलाकारों को कोई भी आर्थिक सहायता उपलब्ध नहीं कराई गई है. ऐसे में इनकी पारिवारिक स्थिति दयनीय होती जा रही है.

पढ़ें: स्थानीय भाषा और बोली में कोरोना के प्रति लोगों को जागरूक कर रही हैं नक्सलगढ़ की ये बेटियां

छत्तीसगढ़ के लोक कलाकारों के हाथ लगी मायूसी

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लोक कलाकारों को स्थिति दयनीय

इससे पहले राज्योत्सव में सांस्कृतिक और साहित्यिक कार्यक्रम का आयोजन होने से छत्तीसगढ़ के लोक कलाकारों को थोड़ी बहुत राशि मिलने के साथ अपनी कला निखारने का भी मौका मंच के माध्यम से मिलता था, लेकिन इस साल कोरोना के चलते इन कलाकारों की कोई पूछ परख भी नहीं है.

मजदूरी को मजबूर लोक कलाकार

छत्तीसगढ़ के लोक कलाकार की स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि मंच न मिलने के कारण इन कलाकारों को मजदूरी तक करनी पड़ रही है. लोक कला से जुड़े कुछ कलाकार दूसरे जिले से आकर राजधानी में घरों में रंग रोगन और साफ सफाई का काम भी कर रहे है. उन्होंने बताया कि इसी से परिवार का गुजर-बसर चलेगा, क्योंकि पिछले 8 महीने से कोरोना के चलते आर्थिक स्थिति काफी खराब हो चुकी है.

भले ही इन लोक कलाकारों की ओर कोई ध्यान न दे रहा हो, लेकिन आज भी इन लोकगीतों की मिठास जरा भी कम नहीं हुई है.

रायपुर: जिस लोककला और लोकगीतों से प्रदेश की पहचान है वहीं अब अपना अस्तित्व खोने लगा है. अब न तो लोकगीतों की कहीं पूछ परख है और न ही इन लोक कलाकारों की. जिससे ये बेशकीमती लोककला अपनी पहचान खोती जा रही है. न शासन से मदद मिली और न ही कहीं और से, लिहाजा लोक कला और कलाकार दोनों ही जद्दोजहद कर रहे है.

उपेक्षा के कारण मजदूरी को मजबूर हुए लोक कलाकार

मजदूरी को मजबूर लोक कलाकार

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पोताई करते लोक कलाकार

आधुनिकता और उपेक्षा ने इन लोक कलाकारों और उनकी कला पर धूल की ऐसी चादर चढ़ा दी है जो हटाए नहीं हट रही है. पिछले साल तक कुछ खास मौकों पर इन कलाकारों और उनके लोकगीतों का आयोजन हो भी जाता था, लेकिन इस साल कोरोना ने रही-सही कसर पूरी कर दी और इस साल न ही कोई आयोजन हुआ और न ही इनकी कला का प्रदर्शन हो सका. जिससे अब ये लोक कलाकार अपनी जिंदगी की गाड़ी खींचने के लिए मजदूरी को मजबूर हो चुके है.

पढ़ें: EXCLUSIVE: कोरोना काल कलाकारों की जिंदगी का सबसे मुश्किल समय- तीजन बाई

कोरोना से और खराब हुई स्थिति

status of folk artists of chhattisgarh is pathetic
मजदूरी को मजबूर लोक कलाकार

लोक कला से जुड़े कुछ कलाकार दूसरे जिले से आकर राजधानी में घरों में रंग रोगन और साफ-सफाई का काम भी कर रहे है.उन्होंने बताया कि इसी से परिवार का गुजर-बसर चल रहा है, क्योंकि पिछले 8 महीने से कोरोना के चलते आर्थिक स्थिति काफी खराब हो चुकी है.

राज्योत्सव से भी मिली मायूसी

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पिछले 8 महीने से नहीं मिला मंच

इस साल राज्योत्सव कार्यक्रम से भी इन लोक कलाकारों को मायूसी ही हाथ लगी है. राज्योत्सव वर्चुअल रूप में होने से प्रदेश के इन कलाकारों को अपनी कला का प्रदर्शन करने का कोई मौका नहीं मिला. जिससे ये लोक कलाकार और निराश हो गए. ETV भारत से चर्चा में इन कलाकारों ने बताया कि कोरोना के चलते वैसे भी पिछले 8 महीने से सरकारी या फिर निजी आयोजन नहीं हुआ है, जिसके कारण इन्हें आर्थिक समस्या से जूझना पड़ रहा है. सरकार की तरफ से भी इन लोक कलाकारों को कोई भी आर्थिक सहायता उपलब्ध नहीं कराई गई है. ऐसे में इनकी पारिवारिक स्थिति दयनीय होती जा रही है.

पढ़ें: स्थानीय भाषा और बोली में कोरोना के प्रति लोगों को जागरूक कर रही हैं नक्सलगढ़ की ये बेटियां

छत्तीसगढ़ के लोक कलाकारों के हाथ लगी मायूसी

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लोक कलाकारों को स्थिति दयनीय

इससे पहले राज्योत्सव में सांस्कृतिक और साहित्यिक कार्यक्रम का आयोजन होने से छत्तीसगढ़ के लोक कलाकारों को थोड़ी बहुत राशि मिलने के साथ अपनी कला निखारने का भी मौका मंच के माध्यम से मिलता था, लेकिन इस साल कोरोना के चलते इन कलाकारों की कोई पूछ परख भी नहीं है.

मजदूरी को मजबूर लोक कलाकार

छत्तीसगढ़ के लोक कलाकार की स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि मंच न मिलने के कारण इन कलाकारों को मजदूरी तक करनी पड़ रही है. लोक कला से जुड़े कुछ कलाकार दूसरे जिले से आकर राजधानी में घरों में रंग रोगन और साफ सफाई का काम भी कर रहे है. उन्होंने बताया कि इसी से परिवार का गुजर-बसर चलेगा, क्योंकि पिछले 8 महीने से कोरोना के चलते आर्थिक स्थिति काफी खराब हो चुकी है.

भले ही इन लोक कलाकारों की ओर कोई ध्यान न दे रहा हो, लेकिन आज भी इन लोकगीतों की मिठास जरा भी कम नहीं हुई है.

Last Updated : Nov 4, 2020, 5:47 PM IST
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