रायपुर: जिस लोककला और लोकगीतों से प्रदेश की पहचान है वहीं अब अपना अस्तित्व खोने लगा है. अब न तो लोकगीतों की कहीं पूछ परख है और न ही इन लोक कलाकारों की. जिससे ये बेशकीमती लोककला अपनी पहचान खोती जा रही है. न शासन से मदद मिली और न ही कहीं और से, लिहाजा लोक कला और कलाकार दोनों ही जद्दोजहद कर रहे है.
मजदूरी को मजबूर लोक कलाकार
आधुनिकता और उपेक्षा ने इन लोक कलाकारों और उनकी कला पर धूल की ऐसी चादर चढ़ा दी है जो हटाए नहीं हट रही है. पिछले साल तक कुछ खास मौकों पर इन कलाकारों और उनके लोकगीतों का आयोजन हो भी जाता था, लेकिन इस साल कोरोना ने रही-सही कसर पूरी कर दी और इस साल न ही कोई आयोजन हुआ और न ही इनकी कला का प्रदर्शन हो सका. जिससे अब ये लोक कलाकार अपनी जिंदगी की गाड़ी खींचने के लिए मजदूरी को मजबूर हो चुके है.
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कोरोना से और खराब हुई स्थिति
लोक कला से जुड़े कुछ कलाकार दूसरे जिले से आकर राजधानी में घरों में रंग रोगन और साफ-सफाई का काम भी कर रहे है.उन्होंने बताया कि इसी से परिवार का गुजर-बसर चल रहा है, क्योंकि पिछले 8 महीने से कोरोना के चलते आर्थिक स्थिति काफी खराब हो चुकी है.
राज्योत्सव से भी मिली मायूसी
इस साल राज्योत्सव कार्यक्रम से भी इन लोक कलाकारों को मायूसी ही हाथ लगी है. राज्योत्सव वर्चुअल रूप में होने से प्रदेश के इन कलाकारों को अपनी कला का प्रदर्शन करने का कोई मौका नहीं मिला. जिससे ये लोक कलाकार और निराश हो गए. ETV भारत से चर्चा में इन कलाकारों ने बताया कि कोरोना के चलते वैसे भी पिछले 8 महीने से सरकारी या फिर निजी आयोजन नहीं हुआ है, जिसके कारण इन्हें आर्थिक समस्या से जूझना पड़ रहा है. सरकार की तरफ से भी इन लोक कलाकारों को कोई भी आर्थिक सहायता उपलब्ध नहीं कराई गई है. ऐसे में इनकी पारिवारिक स्थिति दयनीय होती जा रही है.
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छत्तीसगढ़ के लोक कलाकारों के हाथ लगी मायूसी
इससे पहले राज्योत्सव में सांस्कृतिक और साहित्यिक कार्यक्रम का आयोजन होने से छत्तीसगढ़ के लोक कलाकारों को थोड़ी बहुत राशि मिलने के साथ अपनी कला निखारने का भी मौका मंच के माध्यम से मिलता था, लेकिन इस साल कोरोना के चलते इन कलाकारों की कोई पूछ परख भी नहीं है.
मजदूरी को मजबूर लोक कलाकार
छत्तीसगढ़ के लोक कलाकार की स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि मंच न मिलने के कारण इन कलाकारों को मजदूरी तक करनी पड़ रही है. लोक कला से जुड़े कुछ कलाकार दूसरे जिले से आकर राजधानी में घरों में रंग रोगन और साफ सफाई का काम भी कर रहे है. उन्होंने बताया कि इसी से परिवार का गुजर-बसर चलेगा, क्योंकि पिछले 8 महीने से कोरोना के चलते आर्थिक स्थिति काफी खराब हो चुकी है.
भले ही इन लोक कलाकारों की ओर कोई ध्यान न दे रहा हो, लेकिन आज भी इन लोकगीतों की मिठास जरा भी कम नहीं हुई है.