रायपुर: भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव जन्माष्टमी की तैयारी तेज हो चुकी है. इस साल 12 अगस्त बुधवार के दिन श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाएगी. कृष्ण का जन्म भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष के रोहिणी नक्षत्र में हुआ था. प्राचीन काल से ही हिंदू धर्म में जन्माष्टमी के त्योहार को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. राजधानी के महामाया मंदिर में श्रीकृष्णजन्म उत्सव के पहले मंगलवार की रात मां योगमाया का जन्मोत्सव मनाया जाएगा. इस दौरान रात में मां महामाया का विशेष श्रृंगार भी किया जाता है.
मान्यता है कि कृष्ण भगवान विष्णु के ही अवतार हैं. जिन्होंने द्वापर युग में अनेकों राक्षसों का वध किया था. उन्होंने कुरुक्षेत्र के युद्ध स्थल में अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था. आज पूरी दुनिया गीता के ज्ञान का लाभ उठा रही है. श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को लेकर ETV भारत ने पंडित मनोज शुक्ला से बातचीत की है. पंडित मनोज शुक्ला राजधानी के महामाया मंदिर में पुजारी हैं. उन्होंने कई महत्वपूर्ण जानकारी साझा की है.
व्रत का महत्व
पंडित मनोज शुक्ला ने बताया कि श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का महत्व बहुत अधिक है. शास्त्रों में जन्माष्टमी को व्रत राज कहा गया है. श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के व्रत को सबसे श्रेष्ठ व्रत माना गया है. इस दिन लोग संतान, मोक्ष और भगवद प्राप्ति के लिए व्रत करते हैं. माना जाता है कि जन्माष्टमी का व्रत करने से सुख-समृद्धि और दीर्घायु का वरदान भी मिलता है. साथ ही भगवान श्री कृष्ण के प्रति भक्ति भी बढ़ती है. जन्माष्टमी का व्रत करने से अनेकों व्रत का फल भी मिलता है.
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झूला झुलाने की भी मान्यता
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी में कान्हा को झूला झुलाने का भी महत्व है. धार्मिक मान्यता के अनुसार जन्माष्टमी के दिन बाल-गोपाल को झूला झुलाने का भी महत्व रहता है. इस दिन लोग मंदिरों के साथ-साथ अपने घरों में भी बाल-गोपाल को झूला झुलाते हैं. कहा जाता है कि अगर कोई व्यक्ति भगवान कृष्ण को झूला झुलाता है, तो उसकी मनोकामना पूरी होती है.
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श्रीकृष्ण अवतार की मान्याता
पंडित मनोज शुक्ला ने बतया कि भगवान विष्णु के कृष्ण के अवतार लेने का एक मुख्य कारण कंस का वध करना था. मान्यता के अनुसार कंस की एक बहन थी देवकी, जो कंस को अत्यंत प्रिय थी. कंस जब अपनी बहन का विवाह करवा कर वापस महल लौट रहा था. तब आकाशवाणी हुई कि हे कंस प्रिय बहन के गर्भ से जो आठवां संतान होगा वह तेरी मृत्यु का कारण बनेगा. इसलिए कंस ने अपनी बहन को कारागार में डाल दिया था. जैसे ही देवकी किसी बच्चे को जन्म देती कंस उसे तुरंत जान से मार देता था. जब आठवें बालक यानी श्रीकृष्ण को देवकी ने जन्म दिया तब भगवान विष्णु की माया से कारागार के सभी ताले टूट गए और भगवान श्रीकृष्ण के पिता वासुदेव उन्हें मथुरा नंद बाबा के महल में छोड़ दिया. वहां एक कन्या ने जन्म लिया था, जो माया की अवतार थी. वासुदेव उस कन्या को लेकर वापस कंस के कारागार में आ गए. कंस ने उस कन्या को देखा और गोद में लेकर उसे मारने की इच्छा से जमीन पर पटक दिया. नीचे फेंकते ही वो कन्या हवा में उछल गई और बोली की कल तेरा काल यहां से जा चुका है. वहीं कुछ समय बाद तेरा अंत भी करेगा. मैं तो केवल माया हूं कुछ समय बाद ऐसा ही हुआ भगवान श्रीकृष्ण ने कंस का अंत कर दिया.