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pitru paksha 2021 : पितृपक्ष में पितरों की तृप्ति कराते हैं जो कौए, विलुप्त होती जा रहीं उनकी प्रजातियां - parent symbol

कौए तथा पीपल को पितृ प्रतीक माना जाता है. इन दिनों कौए को खाना खिलाकर तथा पीपल को पानी पिलाकर पितरों को तृप्त करने की परंपरा रही है. रासायनिक खाद व कीटनाशक दवा के प्रचलन, शहरीकरण के साथ मोबाइल टावर से निकलने वाली तरंगें पक्षियों के अस्तित्व को खत्म कर रही हैं. यही कारण है कि कौओं की संख्या दिनोंदिन घटती जा रही है.

In Pitru Paksha, crows are symbols of ancestors
पितृपक्ष में कौए होते हैं पितरों के प्रतीक
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Published : Sep 22, 2021, 11:27 AM IST

रायपुर : भादो महीने की पूर्णिमा (Bhado full moon) से आश्विन माह की अमावस्या (new moon of ashwin month) के 16 दिन कौआ (Crow) हर घर की छत का मेहमान बनता है. ये 16 दिन श्राद्ध पक्ष के दिन माने जाते हैं. कौए तथा पीपल (crow and peepal) को पितृ प्रतीक (parent symbol) माना जाता है. इन दिनों कौए को खाना खिलाकर तथा पीपल को पानी पिलाकर पितरों को तृप्त करने की परंपरा (tradition) रही है. पितृपक्ष में कौए को छत पर जाकर अन्ना-जल देना बहुत ही पुण्य का कार्य माना जाता है. हमारे पितृ कौए के रूप में आकर श्राद्ध का अन्न ग्रहण करते हैं. इस पक्ष में कौओं को भोजन कराना अर्थात अपने पितरों को भोजन कराना माना गया है. लेकिन वातावरण के दूषित होने से प्रकृति में हो रहे बदलाव के कारण अतिथि के आगमन की सूचना देने वाले और अपने पितरों तक श्राद्ध का भोजन पहुंचाने वाले कौए अब दिखाई ही नहीं देते.

मोबाइल टावर से निकलने वाली तरंगें हैं बड़ी घातक

कौआ शाकाहारी के साथ-साथ मांसाहारी भी है. रासायनिक खाद व कीटनाशक दवा के प्रचलन, शहरीकरण के साथ मोबाइल टावर से निकलने वाली तरंगें पक्षियों के अस्तित्व को खत्म कर रही हैं. यही कारण है कि कौओं की संख्या दिनोंदिन घटती जा रही है. पेड़-पौधे कट रहे हैं, जिसके कारण इनके रहने के स्थान कम हो रहे हैं. गांव के बाहर तथा सड़क के किनारे मरे जानवर सड़ते रहते हैं. इनको खाने वाले गिद्ध, चील और कौए अब दूर तक नजर नहीं आते हैं. पंडितों के अनुसार अग्नि पूजा, गौ ग्रास, ब्राह्मण भोज, कुत्ता ग्रास के साथ कौए को खाना खिलाने का अहम महत्व रहता है. इस सारी विधि को पूरा करके ही पितृ पक्ष खुश होते हैं.

कुशा है विकल्प

शास्त्रों के अनुसार काग पितरों का प्रतिनिधि माना जाता है. कौआ नहीं मिलने पर दर्भ (कुशा) का कौआ बनाकर उसे पिंड खिलाने का विधान है. इसी तरह पितृ तर्पण हमेशा बहते हुए जल स्त्रोत में ही करना चाहिए. रुका हुआ पानी दूषित होता है, लेकिन अब शहर में बहता हुआ पानी नहीं है. इसलिए लोग घरों में साफ पानी में दूध, गंगाजल और तिल आदि मिलाकर तर्पण करते हैं.

कौओं की विलुप्ति के ये हैं कारण

कौओं के कम होने के तीन विशेष कारण बताए जाते हैं. पहला, आजकल सूखे पेड़ कम ही दिखते हैं. जिस वजह से कौए उन पर घोसला नहीं बना पाते. इसे हैबीटेड लॉस कहा जाता है. दूसरा, कोयल व मैना अपने अंडों को कौए के घोसले में छोड़ आते हैं. जिस वजह से वह अपने बच्चों का ध्यान नहीं रख पाते. कौओं के कम होने का तीसरा, प्रमुख कारण डायक्लोफेनिक बताया जाता है. इसके अंतर्गत चूहों आदि द्वारा कीटनाशक दवा खाकर मरने पर उन्हें कौओं द्वारा खा लिया जाता है और धीरे-धीरे ये कीटनाशक कौओं की मौत का कारण बन जाते हैं.

रायपुर : भादो महीने की पूर्णिमा (Bhado full moon) से आश्विन माह की अमावस्या (new moon of ashwin month) के 16 दिन कौआ (Crow) हर घर की छत का मेहमान बनता है. ये 16 दिन श्राद्ध पक्ष के दिन माने जाते हैं. कौए तथा पीपल (crow and peepal) को पितृ प्रतीक (parent symbol) माना जाता है. इन दिनों कौए को खाना खिलाकर तथा पीपल को पानी पिलाकर पितरों को तृप्त करने की परंपरा (tradition) रही है. पितृपक्ष में कौए को छत पर जाकर अन्ना-जल देना बहुत ही पुण्य का कार्य माना जाता है. हमारे पितृ कौए के रूप में आकर श्राद्ध का अन्न ग्रहण करते हैं. इस पक्ष में कौओं को भोजन कराना अर्थात अपने पितरों को भोजन कराना माना गया है. लेकिन वातावरण के दूषित होने से प्रकृति में हो रहे बदलाव के कारण अतिथि के आगमन की सूचना देने वाले और अपने पितरों तक श्राद्ध का भोजन पहुंचाने वाले कौए अब दिखाई ही नहीं देते.

मोबाइल टावर से निकलने वाली तरंगें हैं बड़ी घातक

कौआ शाकाहारी के साथ-साथ मांसाहारी भी है. रासायनिक खाद व कीटनाशक दवा के प्रचलन, शहरीकरण के साथ मोबाइल टावर से निकलने वाली तरंगें पक्षियों के अस्तित्व को खत्म कर रही हैं. यही कारण है कि कौओं की संख्या दिनोंदिन घटती जा रही है. पेड़-पौधे कट रहे हैं, जिसके कारण इनके रहने के स्थान कम हो रहे हैं. गांव के बाहर तथा सड़क के किनारे मरे जानवर सड़ते रहते हैं. इनको खाने वाले गिद्ध, चील और कौए अब दूर तक नजर नहीं आते हैं. पंडितों के अनुसार अग्नि पूजा, गौ ग्रास, ब्राह्मण भोज, कुत्ता ग्रास के साथ कौए को खाना खिलाने का अहम महत्व रहता है. इस सारी विधि को पूरा करके ही पितृ पक्ष खुश होते हैं.

कुशा है विकल्प

शास्त्रों के अनुसार काग पितरों का प्रतिनिधि माना जाता है. कौआ नहीं मिलने पर दर्भ (कुशा) का कौआ बनाकर उसे पिंड खिलाने का विधान है. इसी तरह पितृ तर्पण हमेशा बहते हुए जल स्त्रोत में ही करना चाहिए. रुका हुआ पानी दूषित होता है, लेकिन अब शहर में बहता हुआ पानी नहीं है. इसलिए लोग घरों में साफ पानी में दूध, गंगाजल और तिल आदि मिलाकर तर्पण करते हैं.

कौओं की विलुप्ति के ये हैं कारण

कौओं के कम होने के तीन विशेष कारण बताए जाते हैं. पहला, आजकल सूखे पेड़ कम ही दिखते हैं. जिस वजह से कौए उन पर घोसला नहीं बना पाते. इसे हैबीटेड लॉस कहा जाता है. दूसरा, कोयल व मैना अपने अंडों को कौए के घोसले में छोड़ आते हैं. जिस वजह से वह अपने बच्चों का ध्यान नहीं रख पाते. कौओं के कम होने का तीसरा, प्रमुख कारण डायक्लोफेनिक बताया जाता है. इसके अंतर्गत चूहों आदि द्वारा कीटनाशक दवा खाकर मरने पर उन्हें कौओं द्वारा खा लिया जाता है और धीरे-धीरे ये कीटनाशक कौओं की मौत का कारण बन जाते हैं.

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