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जन गण मन: आजादी के आंदोलनों का साक्षी है रायपुर का ये मैदान

रायपुर का पुलिस परेड ग्राउंड आजादी के आंदोलन का साक्षी है. यहीं से क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों के खिलाफ हुंकार भरी थी. इतिहासकार कहते हैं कि आजादी की क्रांति के स्मरण को बनाए रखने के लिए इस पुलिस परेड ग्राउंड का नामकरण 'क्रांति मैदान' के नाम पर किया जाना चाहिए.

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Published : Jan 25, 2020, 7:04 PM IST

रायपुर : राजधानी का पुलिस परेड ग्राउंड देश की आजादी का साक्षी है. इस मैदान ने अंग्रेजों की गुलामी के दौरान ढलते सूरज और आजादी की पहली किरण को बड़े ही करीब से देखा है. इतिहासकारों की मानें तो इस ग्राउंड को अंग्रेजों के समय फौजी छावनी के नाम से जाना जाता था और यहीं क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों के खिलाफ हुंकार भरी थी.

आजादी के आंदोलनों का साक्षी है मैदान

बाद में फिरंगियों की सेना और वीर क्रांतिकारियों के बीच इस मैदान पर लगभग 6 घंटे तक जमकर संघर्ष हुआ, जिसके बाद अंग्रेजों ने क्रांतिकारियों को सूली पर चढ़ा दिया था. यही वजह है कि इस मैदान को 'क्रांति छावनी' के नाम से भी जाना जाता है.

ग्राउंड का इतिहास
इतिहासकार रविंद्र नाथ मिश्र बताते हैं कि शहीद वीर नारायण सिंह का त्याग और बलिदान व्यर्थ नहीं गया. 18 जनवरी 1858 की शाम मैगजीन लश्कर हनुमान सिंह ने तीसरी टुकड़ी के सार्जेंट मेजर सिडवेल की हत्या कर विद्रोह प्रारंभ कर दिया था, इसमें 17 सिपाहियों ने हनुमान सिंह का साथ दिया था.

अंग्रेजों से बचने में सफल हुए हनुमान सिंह
इस दौरान अंग्रेजों और क्रांतिकारियों के बीच जमकर गोलीबारी हुई लेकिन बाद में क्रांतिकारियों के पास गोलियां खत्म हो गई. गोलियां खत्म होने के कारण हनुमान सिंह के 17 सिपाही पकड़े गए. इस बीच हनुमान सिंह किसी तरह बचकर निकल गए थे.

सूली पर चढ़ा दिए गए 17 सिपाही
वहीं आंदोलन करने वाले 17 सिपाहियों को 22 जनवरी 1858 को वर्तमान जेल के सामने फांसी पर लटका दिया गया. इसके साथ ही रविंद्रनाथ का कहना है कि इस मैदान का नाम बदलकर क्रांति मैदान रख देना चाहिए, ताकि राज्य के युवा इससे प्रेरणा ले सकें

'क्रांति मैदान रखा जाए ग्राउंड का नाम'
रविंद्रनाथ यह भी कहना है कि आजादी की क्रांति के स्मरण को बनाए रखने के लिए इस पुलिस परेड ग्राउंड का नामकरण 'क्रांति मैदान' के नाम पर किया जाना चाहिए, जिससे युवाओं को प्रेरणा मिल सके.

हंसते-हंसते सूली पर चढ़े ये क्रांतिकारी
इतिहासकारों की मानें तो मैगजीन लश्कर हनुमान सिंह इस विद्रोह के नेता थे. उनके साथ 17 सैनिक जिन्हें फांसी दी गई थी उसमें गाजी खान ,अब्दुल हयात, मुल्लू, शिवनारायण, पन्नालाल, मातादीन, बल्ली दुबे ,ठाकुर सिंह, अकबर हुसैन, लल्ला सिंह, बुद्धू, परमानंद, शोभाराम, नसर मोहम्मद, शिव गोविंद, देवादीन और दुर्गा प्रसाद के नाम शामिल थे.

रायपुर : राजधानी का पुलिस परेड ग्राउंड देश की आजादी का साक्षी है. इस मैदान ने अंग्रेजों की गुलामी के दौरान ढलते सूरज और आजादी की पहली किरण को बड़े ही करीब से देखा है. इतिहासकारों की मानें तो इस ग्राउंड को अंग्रेजों के समय फौजी छावनी के नाम से जाना जाता था और यहीं क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों के खिलाफ हुंकार भरी थी.

आजादी के आंदोलनों का साक्षी है मैदान

बाद में फिरंगियों की सेना और वीर क्रांतिकारियों के बीच इस मैदान पर लगभग 6 घंटे तक जमकर संघर्ष हुआ, जिसके बाद अंग्रेजों ने क्रांतिकारियों को सूली पर चढ़ा दिया था. यही वजह है कि इस मैदान को 'क्रांति छावनी' के नाम से भी जाना जाता है.

ग्राउंड का इतिहास
इतिहासकार रविंद्र नाथ मिश्र बताते हैं कि शहीद वीर नारायण सिंह का त्याग और बलिदान व्यर्थ नहीं गया. 18 जनवरी 1858 की शाम मैगजीन लश्कर हनुमान सिंह ने तीसरी टुकड़ी के सार्जेंट मेजर सिडवेल की हत्या कर विद्रोह प्रारंभ कर दिया था, इसमें 17 सिपाहियों ने हनुमान सिंह का साथ दिया था.

अंग्रेजों से बचने में सफल हुए हनुमान सिंह
इस दौरान अंग्रेजों और क्रांतिकारियों के बीच जमकर गोलीबारी हुई लेकिन बाद में क्रांतिकारियों के पास गोलियां खत्म हो गई. गोलियां खत्म होने के कारण हनुमान सिंह के 17 सिपाही पकड़े गए. इस बीच हनुमान सिंह किसी तरह बचकर निकल गए थे.

सूली पर चढ़ा दिए गए 17 सिपाही
वहीं आंदोलन करने वाले 17 सिपाहियों को 22 जनवरी 1858 को वर्तमान जेल के सामने फांसी पर लटका दिया गया. इसके साथ ही रविंद्रनाथ का कहना है कि इस मैदान का नाम बदलकर क्रांति मैदान रख देना चाहिए, ताकि राज्य के युवा इससे प्रेरणा ले सकें

'क्रांति मैदान रखा जाए ग्राउंड का नाम'
रविंद्रनाथ यह भी कहना है कि आजादी की क्रांति के स्मरण को बनाए रखने के लिए इस पुलिस परेड ग्राउंड का नामकरण 'क्रांति मैदान' के नाम पर किया जाना चाहिए, जिससे युवाओं को प्रेरणा मिल सके.

हंसते-हंसते सूली पर चढ़े ये क्रांतिकारी
इतिहासकारों की मानें तो मैगजीन लश्कर हनुमान सिंह इस विद्रोह के नेता थे. उनके साथ 17 सैनिक जिन्हें फांसी दी गई थी उसमें गाजी खान ,अब्दुल हयात, मुल्लू, शिवनारायण, पन्नालाल, मातादीन, बल्ली दुबे ,ठाकुर सिंह, अकबर हुसैन, लल्ला सिंह, बुद्धू, परमानंद, शोभाराम, नसर मोहम्मद, शिव गोविंद, देवादीन और दुर्गा प्रसाद के नाम शामिल थे.

Intro:रायपुर के इस मैदान पर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ हुई थी बड़ी बगावत

रायपुर। भारतीय गणतंत्र के 71 वी वर्षगांठ मनाते हुए हमें रायपुर के पुलिस परेड ग्राउंड के इतिहास को जरूर जानना चाहिए । 26 जनवरी गणतंत्र दिवस पर जब इस मैदान पर पुलिस बल सलामी परेड करती है तब सभी देश भक्ति के भाव से डूब जाते हैं ।




Body:क्या आपको मालूम है कि ब्रिटिश काल में पुलिस परेड ग्राउंड फौजी छावनी के नाम से जाना जाता था । 1887 की गदर के बाद 1858 में इसी पुलिस छावनी के कुछ भारतीय जवानों ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंक दिया था। काफी देर के संघर्ष के बाद इनमें से कुछ जवानों को अंग्रेज ने गिरफ्तार कर लिया था बाद में उन्हें फांसी पर भी लटका दिया गया था । इन जवानों की शहादत को आज की पीढ़ी नहीं जानती है या फिर भुला चुकी है, तो आइए हम आपको बताते हैं इस गौरवशाली मैदान का इतिहास।

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रायपुर स्थित यह पुलिस परेड ग्राउंड देश की आजादी का साक्षी है । इस मैदान ने अंग्रेजों की गुलामी के दौरान ढलते सूरज और आजादी के बाद उगते सूरज को देखा है । इतिहासकारों की मानें तो इस पुलिस परेड ग्राउंड में अंग्रेजों के समय फौजी छावनी के नाम से जाना जाता था। जहां क्रांतिकारियों ने अंग्रेजो के खिलाफ हुंकार भरी थी । अंग्रेजों और क्रांतिकारियों के बीच इस मैदान पर लगभग 6 घंटे तक जमकर संघर्ष हुआ था इसे क्रांति छावनी विद्रोह के नाम से जाना जाता है

इतिहासकार रविंद्र नाथ मिश्र बताते हैं कि 1858 के फौजी छावनी विद्रोह में शहीद वीर नारायण सिंह का त्याग और बलिदान व्यर्थ नहीं गया । 18 जनवरी 1858 की शाम मैगजीन लश्कर हनुमान सिंह ने तीसरी टुकड़ी के सार्जेंट मेजर सिडवेल की हत्या कर विद्रोह प्रारंभ कर दिया था इसमें 17 सिपाहियों ने हनुमान सिंह का साथ दिया था ।

इस दौरान अंग्रेजों और क्रांतिकारियों के बीच जमकर गोलीबारी हुई । लेकिन बाद में क्रांतिकारियों के पास गोलियां खत्म हो गई । गोलिया खत्म होने के कारण हनुमान सिंह के 17 सिपाही पकड़े गए । इस बीच हनुमान सिंह किसी तरह बचकर निकल गए थे। वही विद्रोह करने वाले 17 सिपाहियों को 22 जनवरी 1858 को वर्तमान जेल के सामने फांसी पर लटका दिया गया।
बाइट रविंद्रनाथ मिश्र इतिहासकार

रविंद्रनाथ यह भी कहना है कि आजादी की क्रांति के स्मरण को बनाए रखने के लिए इस पुलिस परेड ग्राउंड का नामकरण क्रांति मैदान के नाम पर किया जाना चाहिए जिससे युवाओं को प्रेरणा मिल सके ।
बाइट रविंद्रनाथ मिश्र इतिहासकार




Conclusion:इन 17 क्रांतिकारियों को दी गई थी फांसी
इतिहासकारों की मानें तो मैगजीन लश्कर हनुमान सिंह इस विद्रोह के नेता थे उनके साथ 17 सैनिक जिन्हें फांसी दी गई थी उसमें गाजी खान ,अब्दुल हयात, मुल्लू, शिवनारायण, पन्नालाल, मातादीन, बल्ली दुबे ,ठाकुर सिंह, अकबर हुसैन, लल्ला सिंह, बुद्धू, परमानंद, शोभाराम, नसर मोहम्मद, शिव गोविंद, देवादीन और दुर्गा प्रसाद के नाम शामिल थे।

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