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मिसाल: जाति का बंधन तोड़कर रामायण गाने वाली गायिका, जो 'ससुराल गेंदा फूल' गाकर छा गई - rama joshi

जोशी सिस्टर ने जाति, धर्म को पीछे छोड़कर संगीत की दुनिया में कदम रखा और इस लड़ाई में अपनी कला के दम पर छत्तीसगढ़ को राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई

रमा जोशी
रमा जोशी
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Published : Mar 2, 2020, 7:14 AM IST

रायपुर: फिल्म दिल्ली-6 का गाना 'सास गारी देवे, ननद चुटकी लेवे ससुराल गेंदा फूल' आपकी जुबान पर भी चढ़ा होगा. इस गाने से मशहूर हुईं छत्तीसगढ़ की लोक गायिका रमा जोशी ने अलग मुकाम हासिल किया है. उन्हें गंगा जमुना सरस्वती उपाधि से नवाजा गया है. इस महिला दिवस पर हम महिलाओं के सफर और उनकी सफलता को सेलीब्रेट कर रहे हैं, तो आइए इस खास मौके पर रमा से उनकी सुरमयी यात्रा के बारे में जानते हैं.

पैकेज

जोशी सिस्टर ने जाति, धर्म को पीछे छोड़कर संगीत की दुनिया में कदम रखा और इस लड़ाई में अपनी कला के दम पर छत्तीसगढ़ को राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई. जब ETV भारत उनकी मेहनत की कहानी को जानना चाहा तो उन्होंने अपने सफर का जिक्र छत्तीसगढ़ी गाने 'ए नागिरिया थोर किन अघोर ले मोला से किया'.

1970 का दशक और संगीत

उन्होंने इस गीत को गाते हुए अपने पिछले दिनों यानी 1970 की वो कहानी सुनाई, जिसे शायद ही कोई जानता हो. उन्होंने अपने संगीत जगत के पहले कदम का जिक्र करते हुए सबसे बड़ी चुनौती जाति और धर्म को बताया. रमा ने बताया कि पहले के समय में जाति बंधन के कारण लोक संगीत में महिलाओं का आना असंभव था, महिलाओं का गाना भी पुरूष गाते थे. इसलिए महिलाओं का संगीत जगत में आना किसी चुनौती से कम नहीं था.

जाति बंधन छोड़ रमायण गाने का फैसला

उन्होंने अपने परिवार का जिक्र करते हुए बताया कि, 'परिवार संगीत से जुड़ा था, उनकी मां भी लोक संगीत गाती थी, जिन्हें देखकर वे भी प्रेरित हुईं और लोक संगीत की तरफ आकार्षित हुई'. वे बताती हैं कि, 'उन्होंने रामायण गाने का फैसला किया. एक बंधन एक सीमा तोड़कर रामायण गाना बहुत मुश्किल था. लेकिन फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और उन्होंने रामायण गाकर संगीत जगत में पहला कदम रखा और जाति बंधन को भूलकर पीछे छोड़कर वे आगे बढ़ीं और पारांपरिक गीत गाना शुरू किया'.

'नए कलाकारों के लोक संगीत आसान'

उन्होंने आज के समय और कलाकारों का जिक्र करते हुए कहा कि, 'आज के कलाकारों के लिए या फिर कह सकते हैं नए कलाकारों के लोक संगीत में आना बहुत आसान है. पहले के समय लोक कलाकार के लिए ये सफर मुश्किलों और चुनौतियों से भरा होता था, इसलिए वे उस मेहनत को समझते थे. वहीं आज के लोक कलाकार बहुत आसानी से उस मुकाम पर पहुंच जाते हैं, इस कारण वे लोक संगीत के नियमों पीछे छो़ड़ देते हैं, जो कि गलत है. जरूरत है उन्हें मार्गदर्शन की, ताकि वे भी उस मुकाम की अहमियत समझें'.

'लोकगीत भयानक रुप ले रहा'

उन्होंने डिजिटल युग का जिक्र करते हुए कहा कि, 'छत्तीसगढ़ की संस्कृति में नयापन आ रहा है, जो भयानक रुप ले रहा है'. उन्होंने आज के संगीत और लोक कलाकारों को हिदायत देते हुए कहा कि, 'लोक संगीत में अविष्कार मत करें'. उन्होंने पतंग का उदाहरण देते हुए कहा कि, 'जब बिना मर्यादा के पतंग उड़ती है तो उड़ने लगती है फिर बाद में हमें भुगतान करना पड़ता है'.

रायपुर: फिल्म दिल्ली-6 का गाना 'सास गारी देवे, ननद चुटकी लेवे ससुराल गेंदा फूल' आपकी जुबान पर भी चढ़ा होगा. इस गाने से मशहूर हुईं छत्तीसगढ़ की लोक गायिका रमा जोशी ने अलग मुकाम हासिल किया है. उन्हें गंगा जमुना सरस्वती उपाधि से नवाजा गया है. इस महिला दिवस पर हम महिलाओं के सफर और उनकी सफलता को सेलीब्रेट कर रहे हैं, तो आइए इस खास मौके पर रमा से उनकी सुरमयी यात्रा के बारे में जानते हैं.

पैकेज

जोशी सिस्टर ने जाति, धर्म को पीछे छोड़कर संगीत की दुनिया में कदम रखा और इस लड़ाई में अपनी कला के दम पर छत्तीसगढ़ को राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई. जब ETV भारत उनकी मेहनत की कहानी को जानना चाहा तो उन्होंने अपने सफर का जिक्र छत्तीसगढ़ी गाने 'ए नागिरिया थोर किन अघोर ले मोला से किया'.

1970 का दशक और संगीत

उन्होंने इस गीत को गाते हुए अपने पिछले दिनों यानी 1970 की वो कहानी सुनाई, जिसे शायद ही कोई जानता हो. उन्होंने अपने संगीत जगत के पहले कदम का जिक्र करते हुए सबसे बड़ी चुनौती जाति और धर्म को बताया. रमा ने बताया कि पहले के समय में जाति बंधन के कारण लोक संगीत में महिलाओं का आना असंभव था, महिलाओं का गाना भी पुरूष गाते थे. इसलिए महिलाओं का संगीत जगत में आना किसी चुनौती से कम नहीं था.

जाति बंधन छोड़ रमायण गाने का फैसला

उन्होंने अपने परिवार का जिक्र करते हुए बताया कि, 'परिवार संगीत से जुड़ा था, उनकी मां भी लोक संगीत गाती थी, जिन्हें देखकर वे भी प्रेरित हुईं और लोक संगीत की तरफ आकार्षित हुई'. वे बताती हैं कि, 'उन्होंने रामायण गाने का फैसला किया. एक बंधन एक सीमा तोड़कर रामायण गाना बहुत मुश्किल था. लेकिन फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और उन्होंने रामायण गाकर संगीत जगत में पहला कदम रखा और जाति बंधन को भूलकर पीछे छोड़कर वे आगे बढ़ीं और पारांपरिक गीत गाना शुरू किया'.

'नए कलाकारों के लोक संगीत आसान'

उन्होंने आज के समय और कलाकारों का जिक्र करते हुए कहा कि, 'आज के कलाकारों के लिए या फिर कह सकते हैं नए कलाकारों के लोक संगीत में आना बहुत आसान है. पहले के समय लोक कलाकार के लिए ये सफर मुश्किलों और चुनौतियों से भरा होता था, इसलिए वे उस मेहनत को समझते थे. वहीं आज के लोक कलाकार बहुत आसानी से उस मुकाम पर पहुंच जाते हैं, इस कारण वे लोक संगीत के नियमों पीछे छो़ड़ देते हैं, जो कि गलत है. जरूरत है उन्हें मार्गदर्शन की, ताकि वे भी उस मुकाम की अहमियत समझें'.

'लोकगीत भयानक रुप ले रहा'

उन्होंने डिजिटल युग का जिक्र करते हुए कहा कि, 'छत्तीसगढ़ की संस्कृति में नयापन आ रहा है, जो भयानक रुप ले रहा है'. उन्होंने आज के संगीत और लोक कलाकारों को हिदायत देते हुए कहा कि, 'लोक संगीत में अविष्कार मत करें'. उन्होंने पतंग का उदाहरण देते हुए कहा कि, 'जब बिना मर्यादा के पतंग उड़ती है तो उड़ने लगती है फिर बाद में हमें भुगतान करना पड़ता है'.

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