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इलेक्शन स्पेशल: आमने-सामने पूर्व और वर्तमान महापौर, कौन जाएगा संसद की ओर - loksabha election 2019

छत्तीसगढ़ में लोकसभा चुनाव में ज्यादातर नए चेहरे नजर आ रहे हैं. इस बार मैदान में ज्यादातर वो नेता हैं जो इससे पहले कभी लोकसभा चुनाव नहीं लड़े हैं.

लोकसभा चुनाव
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Published : Mar 25, 2019, 11:52 PM IST

रायपुर: छत्तीसगढ़ में लोकसभा चुनाव में ज्यादातर नए चेहरे नजर आ रहे हैं. इस बार मैदान में ज्यादातर वो नेता हैं जो इससे पहले कभी लोकसभा चुनाव नहीं लड़े हैं. कुछ इसी तरह का हाल राजधानी रायपुर लोकसभा सीट पर नजर आ रहा है. यहां प्रमुख तौर पर भाजपा और कांग्रेस के बीच जंग होती है. इस बार यहां से दोनों पार्टियों ने नगरीय निकाय के सियासी पहलवानों को दंगल में उतारा है.

आमने-सामने मेयर
एक तरफ भाजपा ने जहां सात बार के सांसद दिग्गज नेता रमेश बैस का टिकट काटकर पूर्व महापौर सुनील सोनी को उम्मीदवार बनाया है, वहीं कांग्रेस की तरफ से वर्तमान महापौर प्रमोद दुबे ताल ठोक रहे हैं. दोनों नेताओं का अब तक सियासी सफर शहरी इलाकों में सीमित रहा है. दोनों छात्र राजनीति की पैदाइश हैं. इसलिए कार्यकर्ताओं की फौज दोनों के पास है. दोनों के सियासी कद की तुलना अगर किया जाए तो कुछ इस तरह की तस्वीर बनती है –

वीडियो

प्रमोद दुबे-

  • 1985-1986 में छत्तीसगढ़ कॉलेज छात्र संघ चुनाव में उपाध्यक्ष बने.
  • 1986-1987 में पंडित रविशंकर यूनिवर्सिटी के अध्यक्ष बने.
  • 1997 से 2000 के दौरान प्रमोद दुबे शहरी एवं ग्रामीण कांग्रेस के अध्यक्ष रहे.
  • 2001 में उन्हें छत्तीसगढ़ युवक कांग्रेस का उपाध्यक्ष बनाया गया.
  • 2004 में ब्राह्मण पारा वार्ड के पार्षद चुने गए, इस दौरान उन्होंने सफाई मित्र योजना की शुरुआत की.
  • 2009 में वो शहीद चूड़ामणि वार्ड के पार्षद बने.
  • इसके बाद 2015 चुनावों में वे शहर के महापौर चुने गए.

इसके अलावा पिछले दो विधानसभा चुनावों में प्रमोद दुबे विधायक पद के दावेदार के रूप में उभरे लेकिन टिकट नहीं मिल पाया, अब उन्हें सीधे लोकसभा चुनाव के मैदान पर उतारा जा रहा है.


प्रमोद दुबे की ताक़त-

  • मेयर के तौर पर किए काम, खासतौर पर रायपुर को एक साफ शहर बनाने का जो बीड़ा उन्होंने उठाया, उसकी तारीफ आज राष्ट्रीय स्तर पर भी हो रही है. साफ छवि.
  • संगठन में उन्हें फिलहाल मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का करीबी माना जाता है. इसलिए संगठन का पूरा सहयोग उन्हें मिल सकता है.
  • लगातार चुनाव जीते भाजपा के सांसद कि निष्कृयिता भी प्रमोद दुबे के पक्ष में हवा का रुख कर सकती है.
  • भूपेश सरकार द्वारा हाल ही में लिए गए कुछ फैसले.

प्रमोद दुबे की कमजोरी–

  • शहर के बाहर उतनी मजबूत पकड़ न होना नुकसानदायक साबित हो सकता है.
  • सामान्य वर्ग से आते हैं. अगर जातिगत आधार पर मतदान हुआ तो नुकसान झेलना पड़ सकता है.
  • मेयर कार्यकाल के दौरान शहर में पीलिया के प्रकोप ने छवि कमजोर की.
  • भाजपा प्रत्याशी सुनील सोनी के सियासी सफर पर एक नजर-
  • सुनील सोनी ने छात्र राजनीति से अपने सियासी सफर की शुरुआत की.
  • 2000 से 2003 तक नगर पालिका निगम रायपुर के अध्यक्ष रहे.
  • 2003 से 2010 तक नगर पालिका निगम रायपुर के महापौर रहे.
  • 2011 से 2018 तक रायपुर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष रहे.
  • सोनी पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष भी रहे हैं.

सुनील सोनी की ताकत-

  • शहरी राजनीति में सक्रिय रहने के बाद भी, पार्टी के प्रदेश संगठन में पैठ मजबूत है.
  • मिलनसार व्यक्तित्व सोनी की बड़ी ताकत है.
  • प्रमोद दुबे के मुकाबले शहर के बाहर ज्यादा पकड़.
  • ओबीसी वर्ग से आते हैं, जातिगत समीकरण का फायदा मिल सकता है.
  • अगर मोदी का जादू चलता है, सुनील सोनी अपने विरोधियों पर भारी पड़ सकते हैं.
  • संघ की पृष्ठभूमि से आते हैं, संघ के कार्यकर्ता सक्रिय होकर बूथ पर बेहतर मैनेजमेंट कर सकते हैं

सुनील सोनी की कमजोरी–

  • फिलहाल सुनील सोनी प्रमोद दुबे के मुकाबले शहर में कम सक्रिय नजर आते हैं.
  • युवा कार्यकर्ताओं की तादाद दुबे के मुकाबले कम.
  • वरिष्ठ सांसद बैस का टिकट कटा है. इससे भितरघात की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता.
  • हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे भी सोनी और भाजपा को नुकसान पहुंचा सकता हैं.
  • एंटी एनकंबेसी फैक्टर भी सोनी को नुकसान पहुंचा सकता है.

दोनों प्रत्याशियों के बीच कांटे की टक्कर
दोनों ही उम्मीदवारों के बीच कांटे की टक्कर बताई जा रही है. इस बात को खुद भाजपा के वरिष्ठ नेता और विधायक बृजमोहन अग्रवाल मानते हैं. बृजमोहन अग्रवाल का कहना है कि टक्कर कांटे की हो तो ही मजा आता है. देखना होगा कि रायपुर लोकसभा का प्यार किस पर बरसता है.

रायपुर: छत्तीसगढ़ में लोकसभा चुनाव में ज्यादातर नए चेहरे नजर आ रहे हैं. इस बार मैदान में ज्यादातर वो नेता हैं जो इससे पहले कभी लोकसभा चुनाव नहीं लड़े हैं. कुछ इसी तरह का हाल राजधानी रायपुर लोकसभा सीट पर नजर आ रहा है. यहां प्रमुख तौर पर भाजपा और कांग्रेस के बीच जंग होती है. इस बार यहां से दोनों पार्टियों ने नगरीय निकाय के सियासी पहलवानों को दंगल में उतारा है.

आमने-सामने मेयर
एक तरफ भाजपा ने जहां सात बार के सांसद दिग्गज नेता रमेश बैस का टिकट काटकर पूर्व महापौर सुनील सोनी को उम्मीदवार बनाया है, वहीं कांग्रेस की तरफ से वर्तमान महापौर प्रमोद दुबे ताल ठोक रहे हैं. दोनों नेताओं का अब तक सियासी सफर शहरी इलाकों में सीमित रहा है. दोनों छात्र राजनीति की पैदाइश हैं. इसलिए कार्यकर्ताओं की फौज दोनों के पास है. दोनों के सियासी कद की तुलना अगर किया जाए तो कुछ इस तरह की तस्वीर बनती है –

वीडियो

प्रमोद दुबे-

  • 1985-1986 में छत्तीसगढ़ कॉलेज छात्र संघ चुनाव में उपाध्यक्ष बने.
  • 1986-1987 में पंडित रविशंकर यूनिवर्सिटी के अध्यक्ष बने.
  • 1997 से 2000 के दौरान प्रमोद दुबे शहरी एवं ग्रामीण कांग्रेस के अध्यक्ष रहे.
  • 2001 में उन्हें छत्तीसगढ़ युवक कांग्रेस का उपाध्यक्ष बनाया गया.
  • 2004 में ब्राह्मण पारा वार्ड के पार्षद चुने गए, इस दौरान उन्होंने सफाई मित्र योजना की शुरुआत की.
  • 2009 में वो शहीद चूड़ामणि वार्ड के पार्षद बने.
  • इसके बाद 2015 चुनावों में वे शहर के महापौर चुने गए.

इसके अलावा पिछले दो विधानसभा चुनावों में प्रमोद दुबे विधायक पद के दावेदार के रूप में उभरे लेकिन टिकट नहीं मिल पाया, अब उन्हें सीधे लोकसभा चुनाव के मैदान पर उतारा जा रहा है.


प्रमोद दुबे की ताक़त-

  • मेयर के तौर पर किए काम, खासतौर पर रायपुर को एक साफ शहर बनाने का जो बीड़ा उन्होंने उठाया, उसकी तारीफ आज राष्ट्रीय स्तर पर भी हो रही है. साफ छवि.
  • संगठन में उन्हें फिलहाल मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का करीबी माना जाता है. इसलिए संगठन का पूरा सहयोग उन्हें मिल सकता है.
  • लगातार चुनाव जीते भाजपा के सांसद कि निष्कृयिता भी प्रमोद दुबे के पक्ष में हवा का रुख कर सकती है.
  • भूपेश सरकार द्वारा हाल ही में लिए गए कुछ फैसले.

प्रमोद दुबे की कमजोरी–

  • शहर के बाहर उतनी मजबूत पकड़ न होना नुकसानदायक साबित हो सकता है.
  • सामान्य वर्ग से आते हैं. अगर जातिगत आधार पर मतदान हुआ तो नुकसान झेलना पड़ सकता है.
  • मेयर कार्यकाल के दौरान शहर में पीलिया के प्रकोप ने छवि कमजोर की.
  • भाजपा प्रत्याशी सुनील सोनी के सियासी सफर पर एक नजर-
  • सुनील सोनी ने छात्र राजनीति से अपने सियासी सफर की शुरुआत की.
  • 2000 से 2003 तक नगर पालिका निगम रायपुर के अध्यक्ष रहे.
  • 2003 से 2010 तक नगर पालिका निगम रायपुर के महापौर रहे.
  • 2011 से 2018 तक रायपुर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष रहे.
  • सोनी पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष भी रहे हैं.

सुनील सोनी की ताकत-

  • शहरी राजनीति में सक्रिय रहने के बाद भी, पार्टी के प्रदेश संगठन में पैठ मजबूत है.
  • मिलनसार व्यक्तित्व सोनी की बड़ी ताकत है.
  • प्रमोद दुबे के मुकाबले शहर के बाहर ज्यादा पकड़.
  • ओबीसी वर्ग से आते हैं, जातिगत समीकरण का फायदा मिल सकता है.
  • अगर मोदी का जादू चलता है, सुनील सोनी अपने विरोधियों पर भारी पड़ सकते हैं.
  • संघ की पृष्ठभूमि से आते हैं, संघ के कार्यकर्ता सक्रिय होकर बूथ पर बेहतर मैनेजमेंट कर सकते हैं

सुनील सोनी की कमजोरी–

  • फिलहाल सुनील सोनी प्रमोद दुबे के मुकाबले शहर में कम सक्रिय नजर आते हैं.
  • युवा कार्यकर्ताओं की तादाद दुबे के मुकाबले कम.
  • वरिष्ठ सांसद बैस का टिकट कटा है. इससे भितरघात की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता.
  • हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे भी सोनी और भाजपा को नुकसान पहुंचा सकता हैं.
  • एंटी एनकंबेसी फैक्टर भी सोनी को नुकसान पहुंचा सकता है.

दोनों प्रत्याशियों के बीच कांटे की टक्कर
दोनों ही उम्मीदवारों के बीच कांटे की टक्कर बताई जा रही है. इस बात को खुद भाजपा के वरिष्ठ नेता और विधायक बृजमोहन अग्रवाल मानते हैं. बृजमोहन अग्रवाल का कहना है कि टक्कर कांटे की हो तो ही मजा आता है. देखना होगा कि रायपुर लोकसभा का प्यार किस पर बरसता है.

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