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छत्तीसगढ़ की नवदुर्गा: पूनम अग्रवाल बनीं कोरोना काल में भूखे-प्यासों का सहारा

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Published : Oct 18, 2020, 10:23 AM IST

Updated : Oct 18, 2020, 7:10 PM IST

नवरात्र के दूसरे दिन कहानी रोटी बैंक की संचालक पूनम अग्रवाल की, जिन्होंने कोरोना संकट के दौरान मुश्किल हालातों का सामना करते हुए मजदूरों और जरुरतमंदों की मदद की. रोटी बैंक ने 3 महीने में लोगों को 700 किलो चावल, 500 किलो दाल, हजार किलो से ज्यादा सब्जियां उपलब्ध कराया.

corona warrior poonam agarwal
छत्तीसगढ़ की नवदुर्गा

रायपुर: शारदीय नवरात्र का आज दूसरा दिन है. इस नवरात्र में ETV भारत ऐसी महिलाओं से आपको रू-ब-रू करा रहा है, जिन्होंने कोरोना वॉरियर के तौर पर काम किया. इस कड़ी में आज हम बात कर रहे हैं रोटी बैंक की संचालक पूनम अग्रवाल से, जिन्होंने कोरोना संकट के काल में कठिन हालातों का सामना करते हुए मजदूरों और जरुरतमंदों की मदद के लिए हाथ बढ़ाया

छत्तीसगढ़ की नव दुर्गा पूनम अग्रवाल !

सवाल: आपका रोटी बैंक कैसे काम कर रहा है, लॉकडाउन के दौरान किस तरह काम किया?

जवाब: रोटी बैंक 365 दिन लोगों को भोजन खिलाता है. लॉकडाउन के शुरुआती दिनों में हमें काम करने की अनुमति नहीं मिली थी. उस दौरान थोड़ी तकलीफ हुई लेकिन बाद में जिला प्रशासन के सहयोग से हमने काम शुरू किया. लॉकडाउन के दौरान 3 महीने में लोगों को 700 किलो चावल, 500 किलो दाल, हजार किलो से ज्यादा सब्जियां मुहैया कराई. इस दौरान रोटी बैंक ने छोटे बच्चों के लिए दूध का डब्बा, दवाई सहित जरूरी चीजें जरुरतमंद लोगों तक पहुंचाई.

सवाल: लॉकडाउन के दौरान जमीनी स्तर पर काम करने की प्रेरणा कैसे मिली ?

जवाब: डरने से कोई काम नहीं होता है. लॉकडाउन के दौरान जो लोग सड़कों पर रहते हैं और रोज मेहनत कर अपना पेट पालते हैं, वे ज्यादा तकलीफ में थे और हमारे मन में ऐसा था कि अगर लोग काम नहीं करेंगे तो उन्हें भोजन कैसे मिलेगा. वहीं से प्रेरणा मिली और हमने काम किया और हमारी टीम ने मिलकर सभी तक भोजन पहुंचाया.

पढ़ें- हम अगर अपनी जान बचाने घर पर बैठ जाते, तो बाहर न जाने कितनी मौतें हो जातीं: मनजीत कौर बल

सवाल: काम के लिए फंड कहां से जुटाया ?

जवाब: हमने अपील की थी कि कोरोना वायरस से डरना नहीं है. लोगों की मदद करनी है और जो लोग भूखे प्यासे हैं. उनका सहारा बनना है, उनकी मदद करने के लिए लोगों से आगे आने की अपील की थी. पूनम ने बताया कि वे पिछले 3 साल से शहर में काम कर रहे हैं. उन्हें दानदाताओं का पूरा सहयोग मिला है.

सवाल: रोटी बैंक को शुरू कर किस तरह लोगों की मदद की ?

पूनम ने बताया कि ज्यादातर लोग वन टाइम कैश दे देते हैं. लेकिन हमने एक नई श्रृंखला शुरू की, जिसके तहत हर घर से दो रोटी और सब्जी लोगों से कलेक्ट की गई और लोगों ने इस दौरान पका हुआ भोजन भी बना कर दिया. ऐसा करते-करते मुहिम आगे बढ़ा.

सवाल: अपनी शिक्षा के बारे में बताएं.

इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि मेरी शिक्षा रायपुर से हुई है. मैने ग्रेजुएशन की पढ़ाई प्राइवेट तौर पर की है. पूनम ने बताया 2010 में उनके पिता का निधन हो गया था और आर्थिक तंगी के कारण उन्हें प्राइवेट से पढ़ाई करनी पड़ी. हाल ही में पूनम ने पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में एमए किया है. पूनम सोशल वर्क में एमए करने की सोच रही हैं.

सवाल: पढ़ाई करते-करते आप सोशल वर्क की तरफ कैसे बढ़ी ?

जवाब: शुरू से ही मैं किसी को रोता हुआ देखती थी तो बुरा लगता था, मुझे तकलीफ होती थी. यह सॉफ्ट कॉर्नर शुरू से ही मन में है. इस बीच अचानक रोटी बैंक दिल्ली की जानकारी मिली. मेरे पास बहुत सारे कपड़े पड़े हुए थे और मैने उनसे कॉन्टैक्ट किया. रोटी बैंक के राष्ट्रीय प्रचारक ने मुझे मोटिवेट किया और उन्होंने कहा कि महिलाएं क्या नहीं कर सकती. आप शुरुआत कीजिए और हम आपके साथ हैं. मुझे एक प्लेटफार्म मिला, मैंने काम शुरू किया.

पढ़ें-राज्य महिला आयोग ने सरकार से की अपर कलेक्टर को सस्पेंड करने की अनुशंसा

सवाल: नवरात्रि पर महिलाओं को आप क्या संदेश देना चाहेंगी ?

पूनम ने कहा कि ऐसा कोई भी काम नहीं है जो महिलाएं नहीं कर सकती. जो महिला एक पुरुष को जन्म दे सकती है, वह दुनिया का कोई भी काम कर सकती है. सभी क्षेत्रों में देखा जाए तो महिलाएं आगे हैं, घर के साथ परिवार के साथ इन चीजों में भी आगे आना चाहिए. और रही बात समाज सेवा की अगर आप इंसानियत नहीं दिखाएंगे तो हम एनजीओ वाले कुछ नहीं कर पाएंगे. इंसानियत हर एक व्यक्ति के अंदर होना जरूरी है. चाहे वह स्त्री हो या पुरुष.

सवाल: आपको इस मुकाम तक पहुंचने में कितनी चुनौतियों का सामना करना पड़ा ?

जवाब: मुझे शुरुआत में काम करने में बहुत परेशानी हुई. 2010 में मेरे पिताजी का देहांत हो गया और 3 साल पहले मेरी माता जी का देहांत हुआ है. हम चार भाई-बहन हैं. और चारों ने घर को संभाला है. अब इतनी सेल्फ डिपेंड हो गई हूं कि मैंने हाल ही में दो बच्चों को अडॉप्ट किया है.जब लोगों को खाना खिलाने का काम शुरू किया जो लोग कहा करते थे कि खुद के घर खाने को नहीं है और आप स्टेशन में जाकर लोगों को खाना खिला रहे हो. ऐसे कई सवाल किए गए महिलाएं होकर आप स्टेशन में रात 12 बजे तक क्या करती हैं. लेकिन मैंने इस पर ध्यान नहीं दिया और अपना काम करती रही. महिलाओं को लेकर लोगों की सोच सीमित हो गई है और यह पीढ़ी दर पीढ़ी हमारे समाज में चली आ रही है. आप अपने परिवार की महिलाओं आगे बढ़ाइए और जब आप इन्हें आगे बढ़ाएंगे तभी देश आगे बढ़ेगा.

रायपुर: शारदीय नवरात्र का आज दूसरा दिन है. इस नवरात्र में ETV भारत ऐसी महिलाओं से आपको रू-ब-रू करा रहा है, जिन्होंने कोरोना वॉरियर के तौर पर काम किया. इस कड़ी में आज हम बात कर रहे हैं रोटी बैंक की संचालक पूनम अग्रवाल से, जिन्होंने कोरोना संकट के काल में कठिन हालातों का सामना करते हुए मजदूरों और जरुरतमंदों की मदद के लिए हाथ बढ़ाया

छत्तीसगढ़ की नव दुर्गा पूनम अग्रवाल !

सवाल: आपका रोटी बैंक कैसे काम कर रहा है, लॉकडाउन के दौरान किस तरह काम किया?

जवाब: रोटी बैंक 365 दिन लोगों को भोजन खिलाता है. लॉकडाउन के शुरुआती दिनों में हमें काम करने की अनुमति नहीं मिली थी. उस दौरान थोड़ी तकलीफ हुई लेकिन बाद में जिला प्रशासन के सहयोग से हमने काम शुरू किया. लॉकडाउन के दौरान 3 महीने में लोगों को 700 किलो चावल, 500 किलो दाल, हजार किलो से ज्यादा सब्जियां मुहैया कराई. इस दौरान रोटी बैंक ने छोटे बच्चों के लिए दूध का डब्बा, दवाई सहित जरूरी चीजें जरुरतमंद लोगों तक पहुंचाई.

सवाल: लॉकडाउन के दौरान जमीनी स्तर पर काम करने की प्रेरणा कैसे मिली ?

जवाब: डरने से कोई काम नहीं होता है. लॉकडाउन के दौरान जो लोग सड़कों पर रहते हैं और रोज मेहनत कर अपना पेट पालते हैं, वे ज्यादा तकलीफ में थे और हमारे मन में ऐसा था कि अगर लोग काम नहीं करेंगे तो उन्हें भोजन कैसे मिलेगा. वहीं से प्रेरणा मिली और हमने काम किया और हमारी टीम ने मिलकर सभी तक भोजन पहुंचाया.

पढ़ें- हम अगर अपनी जान बचाने घर पर बैठ जाते, तो बाहर न जाने कितनी मौतें हो जातीं: मनजीत कौर बल

सवाल: काम के लिए फंड कहां से जुटाया ?

जवाब: हमने अपील की थी कि कोरोना वायरस से डरना नहीं है. लोगों की मदद करनी है और जो लोग भूखे प्यासे हैं. उनका सहारा बनना है, उनकी मदद करने के लिए लोगों से आगे आने की अपील की थी. पूनम ने बताया कि वे पिछले 3 साल से शहर में काम कर रहे हैं. उन्हें दानदाताओं का पूरा सहयोग मिला है.

सवाल: रोटी बैंक को शुरू कर किस तरह लोगों की मदद की ?

पूनम ने बताया कि ज्यादातर लोग वन टाइम कैश दे देते हैं. लेकिन हमने एक नई श्रृंखला शुरू की, जिसके तहत हर घर से दो रोटी और सब्जी लोगों से कलेक्ट की गई और लोगों ने इस दौरान पका हुआ भोजन भी बना कर दिया. ऐसा करते-करते मुहिम आगे बढ़ा.

सवाल: अपनी शिक्षा के बारे में बताएं.

इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि मेरी शिक्षा रायपुर से हुई है. मैने ग्रेजुएशन की पढ़ाई प्राइवेट तौर पर की है. पूनम ने बताया 2010 में उनके पिता का निधन हो गया था और आर्थिक तंगी के कारण उन्हें प्राइवेट से पढ़ाई करनी पड़ी. हाल ही में पूनम ने पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में एमए किया है. पूनम सोशल वर्क में एमए करने की सोच रही हैं.

सवाल: पढ़ाई करते-करते आप सोशल वर्क की तरफ कैसे बढ़ी ?

जवाब: शुरू से ही मैं किसी को रोता हुआ देखती थी तो बुरा लगता था, मुझे तकलीफ होती थी. यह सॉफ्ट कॉर्नर शुरू से ही मन में है. इस बीच अचानक रोटी बैंक दिल्ली की जानकारी मिली. मेरे पास बहुत सारे कपड़े पड़े हुए थे और मैने उनसे कॉन्टैक्ट किया. रोटी बैंक के राष्ट्रीय प्रचारक ने मुझे मोटिवेट किया और उन्होंने कहा कि महिलाएं क्या नहीं कर सकती. आप शुरुआत कीजिए और हम आपके साथ हैं. मुझे एक प्लेटफार्म मिला, मैंने काम शुरू किया.

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सवाल: नवरात्रि पर महिलाओं को आप क्या संदेश देना चाहेंगी ?

पूनम ने कहा कि ऐसा कोई भी काम नहीं है जो महिलाएं नहीं कर सकती. जो महिला एक पुरुष को जन्म दे सकती है, वह दुनिया का कोई भी काम कर सकती है. सभी क्षेत्रों में देखा जाए तो महिलाएं आगे हैं, घर के साथ परिवार के साथ इन चीजों में भी आगे आना चाहिए. और रही बात समाज सेवा की अगर आप इंसानियत नहीं दिखाएंगे तो हम एनजीओ वाले कुछ नहीं कर पाएंगे. इंसानियत हर एक व्यक्ति के अंदर होना जरूरी है. चाहे वह स्त्री हो या पुरुष.

सवाल: आपको इस मुकाम तक पहुंचने में कितनी चुनौतियों का सामना करना पड़ा ?

जवाब: मुझे शुरुआत में काम करने में बहुत परेशानी हुई. 2010 में मेरे पिताजी का देहांत हो गया और 3 साल पहले मेरी माता जी का देहांत हुआ है. हम चार भाई-बहन हैं. और चारों ने घर को संभाला है. अब इतनी सेल्फ डिपेंड हो गई हूं कि मैंने हाल ही में दो बच्चों को अडॉप्ट किया है.जब लोगों को खाना खिलाने का काम शुरू किया जो लोग कहा करते थे कि खुद के घर खाने को नहीं है और आप स्टेशन में जाकर लोगों को खाना खिला रहे हो. ऐसे कई सवाल किए गए महिलाएं होकर आप स्टेशन में रात 12 बजे तक क्या करती हैं. लेकिन मैंने इस पर ध्यान नहीं दिया और अपना काम करती रही. महिलाओं को लेकर लोगों की सोच सीमित हो गई है और यह पीढ़ी दर पीढ़ी हमारे समाज में चली आ रही है. आप अपने परिवार की महिलाओं आगे बढ़ाइए और जब आप इन्हें आगे बढ़ाएंगे तभी देश आगे बढ़ेगा.

Last Updated : Oct 18, 2020, 7:10 PM IST
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