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VIDEO: न पैसे, न छुट्टी और न जरा सा आराम, 'असली' चौकीदारों का दर्द भी जान लीजिए साहब

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को अपने ट्विटर हैंडल का नाम बदल कर 'चौकीदार नरेंद्र मोदी' कर दिया. देखते-देखते लगभग सभी बीजेपी नेताओं ने सोशल मीडिया पर अपने नाम के आगे 'चौकीदार' लिख दिया. हमने रायपुर में गार्ड्स से जाना कि वो इस बारे में क्या सोचते हैं.

नरेंद्र मोदी और चौकीदार
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Published : Mar 20, 2019, 10:01 PM IST

रायपुर: सोशल मीडिया पर 'मैं भी चौकीदार' प्रचार अभियान की शुरुआत करने के एक दिन बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को अपने ट्विटर हैंडल का नाम बदल कर 'चौकीदार नरेंद्र मोदी' कर दिया. देखते-देखते लगभग सभी बीजेपी नेताओं ने सोशल मीडिया पर अपने नाम के आगे 'चौकीदार' लिख दिया. हमने रायपुर में गार्ड्स से जाना कि वो इस बारे में क्या सोचते हैं.

जब चुनाव में चौकीदार मुद्दा बन ही गया तो हमने देश के असली चौकीदारों से बात की और जाना कि आखिर एक चौकीदार कैसी जिंदगी जीता है. चौकीदारों ने कहा कि, 'भले ही मोदी खुद को चौकीदार कहते हों और इससे हो सकता है कि हमारे लिए लोगों की नजर में सम्मान भी बढ़े लेकिन सारी बातें हमारी जिंदगी की मुश्किलों को कम नहीं कर सकती हैं.'

वीडियो

छलक पड़ा चौकीदारों का दर्द
ईटीवी भारत ने बात करके उनका हाल जाना, तो दर्द छलक पड़ा. 12-12 घंटे काम करने का दर्द, न कोई छुट्टी और मुट्ठी भर सैलरी वो भी वक्त पर मिले तो जानें. कानूनन किसी भी आदमी से 8 घंटे ही काम कराया जा सकता है लेकिन इन चौकीदारों के लिए न तो कोई कानून है और न ही सुविधाएं.

न पैसे, न छुट्टी हिस्से में सिर्फ काम
12 घंटे तक काम करने के बाद भी महीने में मिलते हैं महज 6 या 7 हजार रुपए. न वीकली ऑफ और न ही बीमार पड़ने पर छुट्टी. बीमार पड़े तो हर दिन के हिसाब से सैलरी कटती है. अपना दर्द भूलकर, अपने परिवार का पेल पालने के लिए वे जी तोड़ मेहनत करते हैं, जिससे अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी जुगाड़ सकें.

रायपुर: सोशल मीडिया पर 'मैं भी चौकीदार' प्रचार अभियान की शुरुआत करने के एक दिन बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को अपने ट्विटर हैंडल का नाम बदल कर 'चौकीदार नरेंद्र मोदी' कर दिया. देखते-देखते लगभग सभी बीजेपी नेताओं ने सोशल मीडिया पर अपने नाम के आगे 'चौकीदार' लिख दिया. हमने रायपुर में गार्ड्स से जाना कि वो इस बारे में क्या सोचते हैं.

जब चुनाव में चौकीदार मुद्दा बन ही गया तो हमने देश के असली चौकीदारों से बात की और जाना कि आखिर एक चौकीदार कैसी जिंदगी जीता है. चौकीदारों ने कहा कि, 'भले ही मोदी खुद को चौकीदार कहते हों और इससे हो सकता है कि हमारे लिए लोगों की नजर में सम्मान भी बढ़े लेकिन सारी बातें हमारी जिंदगी की मुश्किलों को कम नहीं कर सकती हैं.'

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छलक पड़ा चौकीदारों का दर्द
ईटीवी भारत ने बात करके उनका हाल जाना, तो दर्द छलक पड़ा. 12-12 घंटे काम करने का दर्द, न कोई छुट्टी और मुट्ठी भर सैलरी वो भी वक्त पर मिले तो जानें. कानूनन किसी भी आदमी से 8 घंटे ही काम कराया जा सकता है लेकिन इन चौकीदारों के लिए न तो कोई कानून है और न ही सुविधाएं.

न पैसे, न छुट्टी हिस्से में सिर्फ काम
12 घंटे तक काम करने के बाद भी महीने में मिलते हैं महज 6 या 7 हजार रुपए. न वीकली ऑफ और न ही बीमार पड़ने पर छुट्टी. बीमार पड़े तो हर दिन के हिसाब से सैलरी कटती है. अपना दर्द भूलकर, अपने परिवार का पेल पालने के लिए वे जी तोड़ मेहनत करते हैं, जिससे अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी जुगाड़ सकें.

Intro:मोदी के चौकीदार बनने पर जानिए क्या कहते हैं देश के असली चौकीदार,


Body:चुनावी चश्मा लगते ही नेताओं और मंत्रियों को सभी दबे कुचले गरीब लोग अपने लगने लगते हैं इस बार के लोकसभा चुनाव में और खासतौर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चौकीदार इतने भाई उन्होंने अपने नाम के आगे की चौकीदार लगा लिया प्रधानमंत्री का अपने नाम के आगे चौकीदार लगाना ही था तमाम मंत्री भी एक-एक करके अपने अपने नाम के आगे चौकीदार लगाने लगे और जब चुनाव में चौकीदार मुद्दा बन ही गया तो हमने देश के असली चौकीदारों से बात की और जाना की आखिर एक चौकीदार कैसी जिंदगी जीता है चौकीदारों ने कहा की भले ही मोदी खुद को चौकीदार कहते हो और इससे हो सकता है कि हमारे लिए लोगों की नजर में सम्मान भी बड़े पर यह सारी बातें हमारी जिंदगी की मुश्किलों को कम नहीं कर सकती हैं

बंधुआ मजदूर से कम नहीं होता एक चौकीदार
किसी भी आम चौकीदार की जिंदगी किसी बंधुआ मजदूर से कम नहीं होती है फर्क बस इतना ही है कि बंधुआ मजदूर अपने घर नहीं जा पाते और चौकीदार घर जा सकते हैं, लेकिन 12 -12 घंटे काम करने के बाद, कानूनन किसी भी आदमी से 8 घंटे ही काम कराया जा सकता है लेकिन इन चौकीदारों के लिए ना तो कोई कानून है और ना ही कानून सुविधाएं 12 घंटे तक काम करने के बाद भी महीने में मिलते हैं 6 या ₹7000 ना कोई साप्ताहिक छुट्टियां होती है नाही बीमार पड़ने पर कुछ सुविधा मिलती है कितनी भी गंभीर बीमारी क्यों ना हो अगर छुट्टी मिल जाए उसके पैसे कटते हैं ऐसे में इस महंगाई के दौर में चौकीदार जी तोड़ मेहनत करता है कि खुद को और अपने परिवार को दो वक्त का खाना दे सके।


Conclusion: बाइट-2
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