रायपुर: प्रथम पूज्य भगवान गणेश मंगलवार को राजधानी सहित पूरे देश में विराजित किए गए हैं. किसी भी पूजा में सर्वप्रथम भगवान गणेश की पूजा की जाती है. इसलिए भगवान गणेश को प्रथमेश भी कहा जाता है. मुद्गल पुराण और शिल्प शास्त्र के अनुसार, भगवान गणेश के 32 स्वरूप माने गए हैं. उत्तर भारत की तुलना में दक्षिण भारत में यह शिल्पकला प्रचलित है. भगवान गणेश की 32 स्वरूप कौन-कौन से हैं और इन स्वरूपों की क्या खासियत है. चलिए हम आपको बताते हैं.
दक्षिण भारत की शिल्प कला में भगवान गणपति के 32 स्वरूप:
1. श्री बाल गणपति: कमल आसन मुद्रा में विराजित, सुंदर गोल मटोल, गौर वर्ण वाले इस प्रतिमा को श्री बाल गणपति कहते हैं. चतुर्भुजी इस प्रतिमा के हाथों में नन्हे बालक की तरह आम, केला, कटहल और मोदक धारण किए हुए हैं. उनके नन्हे पैरों के पास वाहन मूषक है. गणपति जी के बाल स्वरूप की यह प्रतिमा बेहद लोकप्रिय है.
2. श्री तरुण गणपति: युवा स्वरूप की ललित आसान मुद्रा में वेदी पर विराजमान अष्टभुजी प्रतिमा को श्री तरुण गणपति कहते हैं. इनके अष्टभुजाओं में पाश, अंकुश, अपूप (मीठी रोटी), कैथ, जामुन, स्वदंत होते हैं. इस गणेश का वर्ण गौर होता है. उनके इस युवा स्वरूप को श्री तरुण गणपति कहा जाता है.
3. श्री भक्त गणपति: सिंहासन में ललित सिंह मुद्रा में विराजमान, श्याम वर्ण लिए हुए चतुर्भुजी प्रतिमा को श्री भक्त गणपति कहते हैं. उनके हाथों में भक्तों की तरह नारियल, आम, केला और गुड़ का खीर भरा हुआ पात्र होता है. पैर के पास हाथ जोडे मूषकराज होते हैं. यह प्रतिमा गणपति के भक्त स्वरूप का परिचायक है.
4. श्री वीर गणपति: वीर मुद्रा खड़गासन में खड़े हुए भग वान गणेश को वीर गणपति कहते हैं. वीर गणपति अपने 16 भुजाओं में आयुध धारण किये हुए रहते हैं. इस गौर वर्ण की तेजस्वी प्रतिमा को वीर गणपति कहते हैं. इस प्रतिमा के हाथों में बेताल, शक्ति, बाण धनुष, चक्र, खड़ग, मुद्गल, गदा, अंकुश नागपाश, शूल, परशु एवं विजय ध्वज धारण किए हुए हैं. लाल कपड़ों से सुसज्जित योद्धा स्वरूप को श्री वीर गणपति कहते हैं.
5. श्री शक्ति गणपति: ललित आसन मुद्रा में विराजित हरित वर्ण देवी (शक्ति) के साथ आशीष प्रदान करते हुए प्रतिमा को शक्ति गणपति कहते हैं. संध्याकालीन सूर्य के समान लाल रंग की माला धारण कर भय को दूर करने वाले शक्ति स्वरूप इस प्रतिमा को शक्ति गणपति कहा जाता है.
6. श्री द्विज गणपति: ब्रह्मा जी की तरह चार सिरों वाला मुद्रा में श्याम वर्णन लिए हुए इस गणपति को द्विज गणपति कहते हैं. चतुर्भुजी इस प्रतिमा के हाथों में ब्रह्मा जी की तरह ही हाथों में पुस्तक, रुद्राक्ष की माला, दंड कमंडल धारण किए होते हैं. चंद्रमा के समान श्वेत वस्त्र और सुंदर आभूषण धारण किए हुए इस प्रतिमा को द्विज गणपति कहा जाता है.
7. श्री सिद्धि गणपति: सिद्धि पोशाक में तेजस्वी स्वरूप लिए, कमल पुष्प पर विराजमान, चतुर्भुजी, गौर वर्ण वाले इस गणपति को सिद्धि गणपति कहा जाता है. चतुर्भुजी इस प्रतिमा के हाथों फूलों की मंजरी, तिल का लड्डू और फरसा धारण किए होते हैं. धवल कपड़ों में सिद्ध पुरुष की तरह यह दुर्लभ प्रतिमा मानी जाती है.
8. श्री उच्छिष्ट गणपति: ललितासन मुद्रा में वेदी पर विराजित श्याम वर्ण वाले इस छह भुजाओं वाली गणपति को उच्छिष्ट गणपति कहते हैं. उनके छह हाथों में नीलकमल, वीणा, धान, गुंजा फल की माला धारण किए हुए होते हैं.
9. श्री क्षिप्र गणपति: खडगासन मुद्रा में प्रदर्शित गौर वर्णन की चतुर्भुजी इस प्रतिमा को क्षिप्र गणपति कहते हैं. इनके चतुर्भुजी हाथों में स्वदंत, कल्पलता, पाश और रतन से भरा घड़ा धारण किए होते हैं.
10. श्री विघ्नहर्ता गणपति: ललित आसान मुद्रा में विराजमान, गौर वर्ण वाले और प्रसन्नचित्र मुद्रा में स्थापित गणपति को विघ्नहर्ता गणपति कहते हैं. यह अष्टभुजी प्रतिमा होती है. जिनके हाथों में शंख, इच्छु, दंड, धनुष, मोदक, चक्र, पाश, अंकुश और मंजरी लिए हुए होते हैं.
11. श्री हेरंब गणपति: गणपति जी की इस अद्भुत और अलौकिक स्वरूप होती है. चार मुख वाली इस प्रतिमा को हेरंब गणपति कहते हैं. इस चतुरानंद स्वरूप की प्रतिमा में गणपति के तीन सिरों के ऊपर चौथा सर स्थापित किया जाता है. 10 भुजा वाली इस दुर्लभ प्रतिमा को हेरंब गणपति कहा जाता है, जो विशाल सिंह पर सवार हुए होते हैं.
12. श्री लक्ष्मी गणपति: सिंहासन में विराजमान पर्यकासन मुद्रा में विराजित इस प्रतिमा के दाएं और बाएं ओर रिद्धि और सिद्धि विराजित होती है. इसलिए इस गणपति को लक्ष्मी गणपति कहते हैं.
13. श्री महागणपति: विशाल सिंहासन में विराजमान, गजराज मुख वाले, मुकुट पर चंद्रमा धारण किए हुए, त्रिनेत्र धारी, 10 भुजा वाले इस विशाल प्रतिमा को महागणपति कहते हैं.
14. श्री विजय गणपति: अपने प्रिय वाहन मूषक पर सवार, ललित आसान मुद्रा में चतुर्भुजी प्रतिमा को विजय गणपति के नाम से जाना जाता है. कहा जाता है कि श्री गणेश जी ने देवलोक की परिक्रमा करने के बजाय अपने माता-पिता शिव और पार्वती की परिक्रमा कर विजय हासिल की थी. इसलिए मूषक पर सवार इस प्रतिमा को विजय गणपति कहते हैं.
15. श्री नृत्य गणपति: नृत्य करते हुए गणेश का स्वरूप प्राचीन नृत्य कला का परिचायक है. नृत्य की मुद्रा में इस गणपति के छह हाथ हैं. इसलिए इसे नृत्य गणपति कहा जाता है.
16. श्री ऊर्ध्व गणपति: ललितासन मुद्रा में विराजित इस गौर वर्ण वाले गणपति के बांई ओर श्याम वर्ण वाली गुलाबी वस्त्रधारित एक देवी विराजमान होती है. जो 6 हाथों में कटार, शालि, कमल, बाण, टहनी के साथ होती है. स्वर्णिम आभा वाली देवी के साथ इस प्रतिमा को ऊर्ध्व गणपति कहते हैं.
17. श्री एकाक्षर गणपति: पद्मासन मुद्रा में विराजित शीर्ष पर चंद्रमा धारण किए हुए इस गणपति को एकाक्षर गणपति कहते हैं. इस गणपति को रक्त वर्ण वाले वस्त्र धारण किए हुए प्रदर्शित किया जाता है.
18. श्री वर गणपति: विशाल सिंहासन, ललित आसान मुद्रा में विराजित, सिंदूर जैसी क्रांति वाले गजानंद त्रिनेत्रधारी चतुर्भुजी प्रतिमा है. जिसे श्री वर गणपति कहते हैं.
19. श्री त्रयक्षर गणपति: ललित आसान मुद्रा में विराजमान, गजराज के मुख वाले, चंवर के समान कानों को हिलाने वाले, सोने के समान रंग वाले चतुर्भुज गणपति को त्रयक्षर गणपति कहते हैं. यह जन-जन में लोकप्रिय प्रतिमा मानी जाती है. पूजा के लिए हमेशा आसानी से उपलब्ध हो जाती है.
20. श्री सिप्र प्रसाद गणपति: भाल पर चंद्रमा और विशाल पेट वाले, पद्मासन मुद्रा में विराजित, त्रिनेत्र धारी, रक्त वर्ण वाले इस गणपति को सिप्र प्रसाद गणपति कहते हैं.
21. श्री हरिद्रा गणपति: ललित आसान मुद्रा में विराजमान श्री हरिद्रा गणपति चतुर्मुखी है. हल्दी की आभा वाली इस प्रतिमा के हाथों में पाश, अंकुश, मोदक और स्वदंत धारण किए हुए, एक हाथ वरदान मुद्रा होती है. इस प्रतिमा के बाएं हाथ में रखे मोदक को भोग लगाते हुए प्रदर्शित किया जाता है. हल्दी जैसे रंग के कारण इस गणपति को हरिद्रा गणपति कहते हैं.
22. श्री एकदंत गणपति: श्याम वर्ण वाले लंबोदर की इस प्रतिमा में गणपति जी ललित आसन मुद्रा में विराजमान होते हैं. गणपति का एक दांत टूटा हुआ होता है. इस कारण इसे एकदंत गणपति कहते हैं. इस प्रतिमा में चतुर्भुजी हाथों में कटार, अक्षमाला, मोदक और एक हाथ में टूटा हुआ दांत प्रदर्शित होता है.
23. श्री सृष्टि गणपति: भारी भरकम स्वरूप लिए हुए वाहन मूषक पर सवार होकर ललित आसान मुद्रा में बैठे चतुर्भुजी रूप को श्री सृष्टि गणपति कहते हैं. हाथों में अंकुश, स्वदंत, पाश और आम का फल धारण किए हुए होते हैं.
24. श्री उदंड गणपति: ललितासन मुद्रा में विराजमान उदंड प्रतिमा 10 भुजा वाली होती है. इनके बाएं हाथ में नीलकमल धारण किए हुए एक देवी विराजमान होती है.
25. श्री ऋण मोचक गणपति: इस प्रतिमा में गणपति जी ललित आसान मुद्रा में विराजमान होते हैं. यह प्रतिमा चतुर्भुजी रूप को धारण किए हुए प्रदर्शित होती है. इस्फटिक मणि के समान आभा वाले और रक्त वर्ण के वस्त्र धारण करने वाले गणपति को ऋण मोचक गणपति कहते हैं.
26. श्री ढूंडीराज गणपति: खडगासन मुद्रा में विराजित चतुर्भुजी इस प्रतिमा में ढूंडीराज गणपति कहते हैं. हाथों में अक्षमाला, फरसा, रत्न से भरा पात्र और स्वदंत धारण किए हुए प्रदर्शित होते हैं.
27. श्री द्विमुख गणपति: द्विमुख गणपति अर्थात दो मुख वाले श्याम वर्ण के चतुर्भुजी इस गणपति को द्विमुखी गणपति कहते हैं.
28. श्री त्रिमुख गणपति: त्रिमुख अर्थात तीन सिरों वाला गणपति को त्रिमुख गणपति कहते हैं.
29. श्री सिंह गणपति: अभय वरद और ललित आसान मुद्रा में विराजित इस सुंदर अष्टभुजी प्रतिमा को एक बड़े सिंहासन पर बैठे हुए प्रदर्शित किया जाता है. सिंहासन पर बैठे होने के कारण इसका नाम सिंह गणपति रखा गया है.
30. श्री योग गणपति: योग मुद्रा में विराजित इस प्रतिमा में गणपति ध्यान मग्न होते हैं और उनका बायां हाथ ऊपर वेदी पर रखा हुआ होता है. दाहिना पैर भूमि को स्पर्श करता हुआ होता है. चतुर्भुजी इस प्रतिमा का दाहिना हाथ नीचे झुका हुआ होता है. अन्य तीन हाथों में शस्त्र लिए हुए होते हैं. शांत और योग मुद्रा में ध्यान मग्न सूर्य के समान प्रदर्शित होते हैं.
31. श्री दुर्गा गणपति: ललितासन मुद्रा में गुलाबी आभामंडल में सूर्य की कांति लिए हुए शक्ति की देवी के समान रक्त वर्ण वस्त्र धारण किए हुए अष्टभुजी प्रतिमा को दुर्गा गणपति कहते हैं. शक्ति की देवी दुर्गा की तरह तेजस्वी इस गणपति के स्वरूप को दुर्गा गणपति कहते हैं.
32. श्री संकट हरण गणपति: ललित आसान मुद्रा में वरद हस्त लिए बाल सूर्य की कांति वाले इस प्रतिमा के बाई और नीलकमलधारी यह देवी पार्श्व में विराजित होती है. गणपति की चतुर्मुखी प्रतिमा में नीले वस्त्र वाले, लाल कमल के फूल पर आसीन गणेश की इस प्रतिमा को संकट नष्ट करने वाले संकट हरण गणपति के नाम से जाना जाता है.
ब्रह्मपुराण में भगवान गणेश के 8 नाम दिए गए हैं
- गणेश,
- एकदंत,
- हेरंब,
- विघ्ननाशक,
- लंबोदर,
- शूर्पकर्ण,
- गंज वपत्र,
- गुहाग्रज.