रायपुर : छत्तीसगढ़ के संविदा कर्मचारी अपनी एक सूत्रीय मांग को लेकर पिछले तीन जुलाई से हड़ताल पर हैं.सरकार से नियमितीकरण की मांग पूरी करवाने के लिए संविदा कर्मचारी अलग-अलग तरीके से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.इसी कड़ी में एक संविदाकर्मी ऐसी भी हैं जिनकी कविताएं आंदोलन कर रहे संविदाकर्मियों में जोश भरने का काम कर रही है.
संविदा कर्मचारियों की जुबान पर है अंजली की कविता: संविदा कर्मचारियों के आंदोलन में प्रदर्शनकरियों की आवाज को बुलंद करने वाली इस महिला का नाम अंजली साहू है. अंजली अपनी कविताओं से आंदोलन करने वाले संविदा कर्मचारियों का जोश बढ़ाती हैं. अपनी कविताओं के माध्यम से अंजली नियमितीकरण की मांग सरकार को याद दिलाती हैं. इन दिनों अंजली की कविता का. का..का.. संविदा कर्मचारियों की जुबान पर है. इस कविता को लोग बेहद पसंद कर रहे हैं. ईटीवी भारत ने संविदा कर्मचारी अंजली साहू से खास बातचीत की.
सवाल-आप अपने भाषण और कविता से आंदोलन करने वाले अपने साथियों लोगों में जोश भर देती हैं. आप लोग लगातर अपनी मांग को लेकर हड़ताल पर हैं?
जवाब- हमारी एक ही मांग है नियमितीकरण. सरकार ने हमसे खुद वादा किया था.2018 में हमने हड़ताल किया था तब भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव ने खुद हमारे मंच में आकर संविदा कर्मचारियों की मांगों को अपने घोषणापत्र में शामिल किया था. गंगा जल को हाथ में लेकर उन्होंने कसम खाई थी. प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनती है तो संविदा कर्मचारियों को 10 दिन के अंदर नियमितीकरण किया जाएगा. लेकिन आज सरकार को साढ़े 4 साल बीत गए. फिर भी संविदा कर्मचारियों की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा. हम लोग रेगुलर कर्मचारी की तरह ईमानदारी से उतना ही काम करते हैं. उन लोगों को हम से डबल सैलरी मिलती है, हमको आधी सैलेरी देते हैं. न ही हमें बीमा और पेंशन मिलता है. टाइम पर हमारी सैलरी भी नहीं आ पाती. इन सभी चीजों से हम पीड़ित हैं. हम सभी समानता का अधिकार चाहते हैं. सरकार हमारे साथ अन्याय ना करें. और हमारी मांगों को जल्द से जल्द पूरा करें.
सवाल-आप अभी किस डिपार्टमेंट में कार्यरत हैं?
जवाब- मैं स्वास्थ्य विभाग जिला चिकित्सालय बालोद में कार्यरत हूं. एनआरसी में पोषण पुनर्वास है, वहां मैं कुक के पद पर तैनात हूं.
सवाल- आपकी छोटी सी बच्ची है जिसे लेकर आप प्रदर्शन करने आ रही हैं, कितनी दिक्कतें होती है?
जवाब- दिक्कतें होती हैं. लेकिन हम क्या कर सकते हैं. हमारी मजबूरी है. हमारी मांग भी जायज है. चाहे जो भी हो अपने बच्चों को प्रदर्शन में लाना पड़े तो लेकर आएंगे, अपने हक की लड़ाई तो करनी ही पड़ेगी. मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा.
सवाल-जिस अंदाज से आप शेरो शायरी करते हुए सरकार से अपन मांग पूरी करने की गुहार लगाती हैं, आपके भाषण से प्रदर्शनकारियों का हौसला बढ़ जाता है, ऐसा अंदाज आपका पहले से है या अभी हुआ?
जवाब- सरकार ने हमें शेरो शायरी और गीत लिखने पर मजबूर कर दिया है. मैं अपनी कविता खुद से लिखती हूं और खुद ही बोलती हूं. छत्तीसगढ़ी में कहावत है जईसे मुसवा निकल थे बिल से वइसने कविता निकलथे दिल से. कविता मैंने दिल से बनाया है. यह कविता नहीं है संविदा कर्मचारियों के ऊपर जो बीत रही है, जितनी तकलीफों का सामना करना पड़ रहा, उन्हीं चीजों को मैंने अपने कविता में पिरोया है.