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अन्ना पशुओं से छत्तीसगढ़ के मॉडल की तर्ज पर निपटेंगे: प्रियंका गांधी - प्रियंका गांधी

महोबा की प्रतिज्ञा रैली में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने महोबा समेत बुंदेलखंड के सबसे बड़े मुद्दे अन्ना (आवारा) पशुओं की समस्या का भी जिक्र किया. उन्होंने वादा किया कि यदि कांग्रेस सत्ता में आई तो छत्तीसगढ़ के रोको छेका मॉडल की तर्ज पर इस समस्या से निपटा जाएगा. चलिए जानते हैं इस बारे में...

प्रियंका गांधी
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Published : Nov 27, 2021, 8:59 PM IST

महोबाः कांग्रेस की प्रतिज्ञा रैली में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने बुंदेलखंड के सबसे बड़े मुद्दे आवारा पशुओं की समस्या को भी छुआ. उन्होंने कांग्रेस के सत्ता में आने पर इस समस्या से निपटने के लिए छत्तीसगढ़ के रोको छेका अभियान की तरह निपटने का वादा किया. प्रियंका गांधी ने कहा कि कभी आवारा पशुओं की समस्या छत्तीसगढ में भी थी, वहां की सरकार ने इसस निपटने के लिए रोको छेका अभियान छेड़ा और उन पर काबू पा लिया.

उन्होंने कहा कि यह बड़ी समस्या है. 2019 में जब मैं आई थी तब भी यह समस्या बनी हुई थी, अभी तक यह समस्या दूर नहीं की गई. मेरी बहनें रात-रात भर खेतों में बैठी रहतीं हैं. भाजपा ने इसे बड़ी समस्या माना ही नहीं. उन्होंने कहा कि यदि कांग्रेस सत्ता में आई तो छत्तीसगढ़ के मॉडल की तर्ज पर इस समस्या से निपटा जाएगा.

ये भी पढ़ेंः आखिर CM Bhupesh Baghel कांग्रेस के इतने चहेते कैसे बन गए जो पहले असम फिर यूपी की मिल गई कमान...?

घाटे का सौदा इसलिए मानी जाती है खेती...

दरअसल, अन्ना (आवारा) जानवरों की वजह से बुंदेलखंड में खेती घाटे का सौदा मानी जाने लगी है. यहां अन्ना जानवर पूरी फसल चट कर जाते हैं. महोबा समेत कई जिलों में दर्जनों ऐसे गांव हैं, जहां किसानों को रात-रात भर खेतों में जागकर रखवाली करनी पड़ती है. रात में अन्ना पशुओं के आने पर उन्हें हांकना पड़ता है. इसमें महिलाएं भी सहयोग करतीं हैं.

बुंदेलखंड के सातों जिलों महोबा, हमीरपुर, बांदा, चित्रकूट, झांसी, ललितपुर और जालौन में सरकारी गणना के मुताबिक 23 लाख 50 हजार पशु हैं, जिनमें सबसे ज्यादा बदहाल स्थिति गायों की है. गाय जब तक दूध देती हैं तब तक तो उसे पाला जाता है फिर छोड़ दिया जाता है. इस वजह से यहां अन्ना जानवरों की तादाद लगातार बढ़ती ही जा रही है. ये जानवरा बड़े-बड़े झुंडों में आते हैं और एक साथ कई खेतों की फसल चट कर जाते हैं. गोशालाओं में भी इन पशुओं के लिए जगह कम है. ऐसे में अक्सर परेशान किसान अन्ना जानवरों को हांककर स्कूलों में बंद कर देते हैं. इस समस्या से यहां का हर किसान जूझ रहा है.

छत्तीसगढ़ का खास मॉडल ये रहा

छत्तीसगढ़ सरकार राज्य के सभी गांवों में रोका-छेका अभियान चला रही है. इस अभियान के तहत सरकार पारंपरिक कृषि विधियों को पुनर्जीवित करने और आवारा पशुओं द्वारा खुली चराई से खरीफ फसलों को बचाने का प्रयास करती है.

क्या है रोका छेका अभियान ?

रोका छेका अभियान छत्तीसगढ़ की पुरानी परंपरा है. रोका छेका अभियान का उद्देश्य बुवाई के मौसम के बाद, आवारा पशुओं के खुले चराई पर प्रतिबंध लगाना है. इसके जरिए पशुओं को खुले में चरने के लिए नहीं छोड़ा जाता है. मवेशियों को घरों, शेड और गौठानों में रखा जाता है, जहां उनके लिए पानी और चारे की व्यवस्था होती है.

छत्तीसगढ़ के लगभग सभी जिलों में मवेशियों को रखने के लिए गौठानों की व्यवस्था की गई है, जहां मवेशियों को रखा जा रहा है. साथ ही उनके चारे की भी व्यवस्था की गई है.

इस अभियान का मुख्य मकसद मवेशियों को संरक्षित करना फसलों को मवेशियों से बचाना और गोबर से कुदरती खाद बनाना है. छत्तीसगढ़ में ऐसी मान्यता है कि इस परंपरा के जरिए किसानों के फसल को नुकसान होने से बचाया जाता है, वहीं मवेशी भी सुरक्षित रहते हैं और दुर्घटना की आशंका भी कम हो जाती है.

महोबाः कांग्रेस की प्रतिज्ञा रैली में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने बुंदेलखंड के सबसे बड़े मुद्दे आवारा पशुओं की समस्या को भी छुआ. उन्होंने कांग्रेस के सत्ता में आने पर इस समस्या से निपटने के लिए छत्तीसगढ़ के रोको छेका अभियान की तरह निपटने का वादा किया. प्रियंका गांधी ने कहा कि कभी आवारा पशुओं की समस्या छत्तीसगढ में भी थी, वहां की सरकार ने इसस निपटने के लिए रोको छेका अभियान छेड़ा और उन पर काबू पा लिया.

उन्होंने कहा कि यह बड़ी समस्या है. 2019 में जब मैं आई थी तब भी यह समस्या बनी हुई थी, अभी तक यह समस्या दूर नहीं की गई. मेरी बहनें रात-रात भर खेतों में बैठी रहतीं हैं. भाजपा ने इसे बड़ी समस्या माना ही नहीं. उन्होंने कहा कि यदि कांग्रेस सत्ता में आई तो छत्तीसगढ़ के मॉडल की तर्ज पर इस समस्या से निपटा जाएगा.

ये भी पढ़ेंः आखिर CM Bhupesh Baghel कांग्रेस के इतने चहेते कैसे बन गए जो पहले असम फिर यूपी की मिल गई कमान...?

घाटे का सौदा इसलिए मानी जाती है खेती...

दरअसल, अन्ना (आवारा) जानवरों की वजह से बुंदेलखंड में खेती घाटे का सौदा मानी जाने लगी है. यहां अन्ना जानवर पूरी फसल चट कर जाते हैं. महोबा समेत कई जिलों में दर्जनों ऐसे गांव हैं, जहां किसानों को रात-रात भर खेतों में जागकर रखवाली करनी पड़ती है. रात में अन्ना पशुओं के आने पर उन्हें हांकना पड़ता है. इसमें महिलाएं भी सहयोग करतीं हैं.

बुंदेलखंड के सातों जिलों महोबा, हमीरपुर, बांदा, चित्रकूट, झांसी, ललितपुर और जालौन में सरकारी गणना के मुताबिक 23 लाख 50 हजार पशु हैं, जिनमें सबसे ज्यादा बदहाल स्थिति गायों की है. गाय जब तक दूध देती हैं तब तक तो उसे पाला जाता है फिर छोड़ दिया जाता है. इस वजह से यहां अन्ना जानवरों की तादाद लगातार बढ़ती ही जा रही है. ये जानवरा बड़े-बड़े झुंडों में आते हैं और एक साथ कई खेतों की फसल चट कर जाते हैं. गोशालाओं में भी इन पशुओं के लिए जगह कम है. ऐसे में अक्सर परेशान किसान अन्ना जानवरों को हांककर स्कूलों में बंद कर देते हैं. इस समस्या से यहां का हर किसान जूझ रहा है.

छत्तीसगढ़ का खास मॉडल ये रहा

छत्तीसगढ़ सरकार राज्य के सभी गांवों में रोका-छेका अभियान चला रही है. इस अभियान के तहत सरकार पारंपरिक कृषि विधियों को पुनर्जीवित करने और आवारा पशुओं द्वारा खुली चराई से खरीफ फसलों को बचाने का प्रयास करती है.

क्या है रोका छेका अभियान ?

रोका छेका अभियान छत्तीसगढ़ की पुरानी परंपरा है. रोका छेका अभियान का उद्देश्य बुवाई के मौसम के बाद, आवारा पशुओं के खुले चराई पर प्रतिबंध लगाना है. इसके जरिए पशुओं को खुले में चरने के लिए नहीं छोड़ा जाता है. मवेशियों को घरों, शेड और गौठानों में रखा जाता है, जहां उनके लिए पानी और चारे की व्यवस्था होती है.

छत्तीसगढ़ के लगभग सभी जिलों में मवेशियों को रखने के लिए गौठानों की व्यवस्था की गई है, जहां मवेशियों को रखा जा रहा है. साथ ही उनके चारे की भी व्यवस्था की गई है.

इस अभियान का मुख्य मकसद मवेशियों को संरक्षित करना फसलों को मवेशियों से बचाना और गोबर से कुदरती खाद बनाना है. छत्तीसगढ़ में ऐसी मान्यता है कि इस परंपरा के जरिए किसानों के फसल को नुकसान होने से बचाया जाता है, वहीं मवेशी भी सुरक्षित रहते हैं और दुर्घटना की आशंका भी कम हो जाती है.

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