रायपुर: 'नदिया किनारे, किसके सहारे' में अब कहानी खारून नदी की. खारून नदी छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर की जीवनदायिनी नदी है. रायपुर शहर के 12 लाख लोगों ही नहीं बल्कि बालोद के गुरूर, दुर्ग के अमलेश्वर, पाटन, रायपुर के इंडस्ट्रियल इलाके सिलतरा, धरसींवा के साथ ये नदी बलौदाबाजार के सिमगा तक में पानी का प्रमुख स्त्रोत है. 200 किलोमीटरे से ज्यादा लंबी खारून नदी के उद्गम से लेकर संगम स्थल तक ईटीवी भारत आपको लेकर चल रहा है.
सूख गया था खारून का उद्गम स्थल
रायपुर की जीवनदायिनी खारून नदी के उद्गम स्थल के लिए ETV भारत धमतरी पहुंचा, वहां से गुरूर और फिर मरकाटोला के जंगलों में 130 किलोमीटर का सफर तय किया. इस सफर के बाद हम पहुंचे पेटेचुवा में, यहां घनघोर जंगल के बीच एक पुराने पेड़ की जड़ के नीचे से खारून नदी का उद्गम होता है. यहां उद्गम स्थल पर पहुंचने के बाद हम हैरान रह गए. राजधानी के तकरीबन 12 लाख लोगों की प्यास सालभर बुझाने वाली खारून नदी का उद्गम स्थल ही सूख गया है.
10 किलोमीटर तक सूख गई है नदी
नदी का उद्गम स्थल सूखा देख हम आगे बढ़ते गए और पाया कि सिर्फ यहां ही बल्कि आगे 10 किमी तक नदी गायब है. धारा तो दूर वहां एक बूंद पानी तक नहीं है. उद्गम में ऊपरी सतह ही कुछ नम दिखी. इसके अलावा जहां नदी थी, वहां अब या तो खेत हैं या जंगल का रूप ले लिया है.
- रायपुर की प्यास बुझाने वाली और शिवनाथ नदी में मिलने वाली ये नदी 200 गांवों के लोगों की जरूरतें पूरी करती है लेकिन हाल ये है कि ये अपने सोर्स प्वॉइंट पर ही सूख गई है. खारुन में राजधानी के आसपास जो पानी नजर आ रहा है, वह उद्गम की जलधारा नहीं बल्कि वहां से मीलों दूर बड़े-छोटे नालों का है, जो इससे मिलते हैं.
- ईटीवी भारत की टीम को पेटेचुआ के 58 साल के दशरथ राम साहू ने बताया कि दो दशक पहले तक खारून के उद्गम से फौव्वारे जैसा पानी फूटता था. पहले पेड़ के नीचे एक कुंड से झरता था, पानी इतना मीठा था कि इससे सीधे पीते थे. लेकिन अब, अब तो यहां सूखा पड़ा है.
- खारुन के नामकरण को लेकर कोई शाब्दिक अर्थ नहीं है. लेकिन पेटेचुवा के लोगों ने बताया कि दरअसल इसके बहाव से खर-खर सी आवाज आती थी. इसलिए खारुन नाम पड़ गया..
- खारून का उद्गम ही नहीं बल्कि सैटेलाइट मैप या नक्शों से इस नदी के प्रारंभिक बहाव के इलाके ढूंढना भी मुश्किल काम है.
- रायपुर से धमतरी और गुरूर होते हुए जगदलपुर नेशनल हाईवे पर 9 किमी दूर मरकाटोला में जब हम पहुंचे तो यहां से पेटेचुआ के लिए घने जंगल और पहाड़ियों से घिरा वनमार्ग मिला.
- गुरूर तहसील में पेटेचुआ की पहाड़ी के छोटे से मैदान से निकली खारुन से पानी वहां से लगे हुए तालाब में भरता था, लेकिन अब उद्गम मैदान, लगा हुआ तालाब, पहाड़ी नाला, मंदिर से लगकर पांच किमी दूर तक नदी समेत सब कुछ पूरी तरह सूखा, और खारुन नदी का नामोनिशान तक मिट गया है.
- खारून ही नहीं बल्कि जिस तरह की उपेक्षा तमाम नदियों की हो रही है इसको बचाने के लिए सामूहिक रूप से प्रयास करने की जरूरत है. जिम्मेदार लोगों को और सरकारो को गंभीरता से कदम उठाना चाहिए.
क्या कहते हैं जानकार-
पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के रिटायर्ड प्रोफेसर डॉ. एम. एल. नायक ने बताया कि खारुन पर जो रिसर्च हुए, उनके आधार पर कह सकते हैं कि शुरुआत में यह बरसाती नाला थी, जो आगे चलकर नदी में बदल गई. अब यह लगभग सूख सी गई है. अगर खारुन का उद्गम सूख गया है, तो यह शोध का विषय है.
वे कहते हैं कि इस नदी का उद्गम नर्मदा या सोन नदी जैसा नहीं था. इन नदियों का उद्गम पहाड़ी क्षेत्र में है, उसके उद्गम से हमेशा पानी रिसता रहता है. यहां खारून की स्थिति दूसरी है. मैदानी, जंगल एरिया में उद्गम है.
कुल मिलाकर इससे ये बात तो साफ हो रही है कि खारून नदी के उद्गम सूखने को गंभीरता से नहीं लिया गया तो आने वाले समय में स्थिति और चिंताजनक हो सकती है.