ETV Bharat / state

नदिया किनारे, किसके सहारे: अपनी दशा पर रो रही खारून, उद्गम स्थल ही सूख गया

रायपुर की जीवनदायिनी खारून नदी के उद्गम स्थल के लिए ETV भारत धमतरी पहुंचा. नदी का उद्गम स्थल सूखा देख हम आगे बढ़ते गए और पाया कि सिर्फ यहां ही बल्कि आगे 10 किमी तक नदी गायब है.

अपनी दशा पर रो रही खारून
author img

By

Published : Jun 25, 2019, 10:25 PM IST

Updated : Jun 26, 2019, 12:03 AM IST

रायपुर: 'नदिया किनारे, किसके सहारे' में अब कहानी खारून नदी की. खारून नदी छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर की जीवनदायिनी नदी है. रायपुर शहर के 12 लाख लोगों ही नहीं बल्कि बालोद के गुरूर, दुर्ग के अमलेश्वर, पाटन, रायपुर के इंडस्ट्रियल इलाके सिलतरा, धरसींवा के साथ ये नदी बलौदाबाजार के सिमगा तक में पानी का प्रमुख स्त्रोत है. 200 किलोमीटरे से ज्यादा लंबी खारून नदी के उद्गम से लेकर संगम स्थल तक ईटीवी भारत आपको लेकर चल रहा है.

नदिया किनारे, किसके सहारे: अपनी दशा पर रो रही खारून, उद्गम स्थल ही सूख गया

सूख गया था खारून का उद्गम स्थल
रायपुर की जीवनदायिनी खारून नदी के उद्गम स्थल के लिए ETV भारत धमतरी पहुंचा, वहां से गुरूर और फिर मरकाटोला के जंगलों में 130 किलोमीटर का सफर तय किया. इस सफर के बाद हम पहुंचे पेटेचुवा में, यहां घनघोर जंगल के बीच एक पुराने पेड़ की जड़ के नीचे से खारून नदी का उद्गम होता है. यहां उद्गम स्थल पर पहुंचने के बाद हम हैरान रह गए. राजधानी के तकरीबन 12 लाख लोगों की प्यास सालभर बुझाने वाली खारून नदी का उद्गम स्थल ही सूख गया है.

10 किलोमीटर तक सूख गई है नदी
नदी का उद्गम स्थल सूखा देख हम आगे बढ़ते गए और पाया कि सिर्फ यहां ही बल्कि आगे 10 किमी तक नदी गायब है. धारा तो दूर वहां एक बूंद पानी तक नहीं है. उद्गम में ऊपरी सतह ही कुछ नम दिखी. इसके अलावा जहां नदी थी, वहां अब या तो खेत हैं या जंगल का रूप ले लिया है.

  • रायपुर की प्यास बुझाने वाली और शिवनाथ नदी में मिलने वाली ये नदी 200 गांवों के लोगों की जरूरतें पूरी करती है लेकिन हाल ये है कि ये अपने सोर्स प्वॉइंट पर ही सूख गई है. खारुन में राजधानी के आसपास जो पानी नजर आ रहा है, वह उद्गम की जलधारा नहीं बल्कि वहां से मीलों दूर बड़े-छोटे नालों का है, जो इससे मिलते हैं.
  • ईटीवी भारत की टीम को पेटेचुआ के 58 साल के दशरथ राम साहू ने बताया कि दो दशक पहले तक खारून के उद्गम से फौव्वारे जैसा पानी फूटता था. पहले पेड़ के नीचे एक कुंड से झरता था, पानी इतना मीठा था कि इससे सीधे पीते थे. लेकिन अब, अब तो यहां सूखा पड़ा है.
  • खारुन के नामकरण को लेकर कोई शाब्दिक अर्थ नहीं है. लेकिन पेटेचुवा के लोगों ने बताया कि दरअसल इसके बहाव से खर-खर सी आवाज आती थी. इसलिए खारुन नाम पड़ गया..
  • खारून का उद्गम ही नहीं बल्कि सैटेलाइट मैप या नक्शों से इस नदी के प्रारंभिक बहाव के इलाके ढूंढना भी मुश्किल काम है.
  • रायपुर से धमतरी और गुरूर होते हुए जगदलपुर नेशनल हाईवे पर 9 किमी दूर मरकाटोला में जब हम पहुंचे तो यहां से पेटेचुआ के लिए घने जंगल और पहाड़ियों से घिरा वनमार्ग मिला.
  • गुरूर तहसील में पेटेचुआ की पहाड़ी के छोटे से मैदान से निकली खारुन से पानी वहां से लगे हुए तालाब में भरता था, लेकिन अब उद्गम मैदान, लगा हुआ तालाब, पहाड़ी नाला, मंदिर से लगकर पांच किमी दूर तक नदी समेत सब कुछ पूरी तरह सूखा, और खारुन नदी का नामोनिशान तक मिट गया है.
  • खारून ही नहीं बल्कि जिस तरह की उपेक्षा तमाम नदियों की हो रही है इसको बचाने के लिए सामूहिक रूप से प्रयास करने की जरूरत है. जिम्मेदार लोगों को और सरकारो को गंभीरता से कदम उठाना चाहिए.


क्या कहते हैं जानकार-
पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के रिटायर्ड प्रोफेसर डॉ. एम. एल. नायक ने बताया कि खारुन पर जो रिसर्च हुए, उनके आधार पर कह सकते हैं कि शुरुआत में यह बरसाती नाला थी, जो आगे चलकर नदी में बदल गई. अब यह लगभग सूख सी गई है. अगर खारुन का उद्गम सूख गया है, तो यह शोध का विषय है.
वे कहते हैं कि इस नदी का उद्गम नर्मदा या सोन नदी जैसा नहीं था. इन नदियों का उद्गम पहाड़ी क्षेत्र में है, उसके उद्गम से हमेशा पानी रिसता रहता है. यहां खारून की स्थिति दूसरी है. मैदानी, जंगल एरिया में उद्गम है.
कुल मिलाकर इससे ये बात तो साफ हो रही है कि खारून नदी के उद्गम सूखने को गंभीरता से नहीं लिया गया तो आने वाले समय में स्थिति और चिंताजनक हो सकती है.

रायपुर: 'नदिया किनारे, किसके सहारे' में अब कहानी खारून नदी की. खारून नदी छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर की जीवनदायिनी नदी है. रायपुर शहर के 12 लाख लोगों ही नहीं बल्कि बालोद के गुरूर, दुर्ग के अमलेश्वर, पाटन, रायपुर के इंडस्ट्रियल इलाके सिलतरा, धरसींवा के साथ ये नदी बलौदाबाजार के सिमगा तक में पानी का प्रमुख स्त्रोत है. 200 किलोमीटरे से ज्यादा लंबी खारून नदी के उद्गम से लेकर संगम स्थल तक ईटीवी भारत आपको लेकर चल रहा है.

नदिया किनारे, किसके सहारे: अपनी दशा पर रो रही खारून, उद्गम स्थल ही सूख गया

सूख गया था खारून का उद्गम स्थल
रायपुर की जीवनदायिनी खारून नदी के उद्गम स्थल के लिए ETV भारत धमतरी पहुंचा, वहां से गुरूर और फिर मरकाटोला के जंगलों में 130 किलोमीटर का सफर तय किया. इस सफर के बाद हम पहुंचे पेटेचुवा में, यहां घनघोर जंगल के बीच एक पुराने पेड़ की जड़ के नीचे से खारून नदी का उद्गम होता है. यहां उद्गम स्थल पर पहुंचने के बाद हम हैरान रह गए. राजधानी के तकरीबन 12 लाख लोगों की प्यास सालभर बुझाने वाली खारून नदी का उद्गम स्थल ही सूख गया है.

10 किलोमीटर तक सूख गई है नदी
नदी का उद्गम स्थल सूखा देख हम आगे बढ़ते गए और पाया कि सिर्फ यहां ही बल्कि आगे 10 किमी तक नदी गायब है. धारा तो दूर वहां एक बूंद पानी तक नहीं है. उद्गम में ऊपरी सतह ही कुछ नम दिखी. इसके अलावा जहां नदी थी, वहां अब या तो खेत हैं या जंगल का रूप ले लिया है.

  • रायपुर की प्यास बुझाने वाली और शिवनाथ नदी में मिलने वाली ये नदी 200 गांवों के लोगों की जरूरतें पूरी करती है लेकिन हाल ये है कि ये अपने सोर्स प्वॉइंट पर ही सूख गई है. खारुन में राजधानी के आसपास जो पानी नजर आ रहा है, वह उद्गम की जलधारा नहीं बल्कि वहां से मीलों दूर बड़े-छोटे नालों का है, जो इससे मिलते हैं.
  • ईटीवी भारत की टीम को पेटेचुआ के 58 साल के दशरथ राम साहू ने बताया कि दो दशक पहले तक खारून के उद्गम से फौव्वारे जैसा पानी फूटता था. पहले पेड़ के नीचे एक कुंड से झरता था, पानी इतना मीठा था कि इससे सीधे पीते थे. लेकिन अब, अब तो यहां सूखा पड़ा है.
  • खारुन के नामकरण को लेकर कोई शाब्दिक अर्थ नहीं है. लेकिन पेटेचुवा के लोगों ने बताया कि दरअसल इसके बहाव से खर-खर सी आवाज आती थी. इसलिए खारुन नाम पड़ गया..
  • खारून का उद्गम ही नहीं बल्कि सैटेलाइट मैप या नक्शों से इस नदी के प्रारंभिक बहाव के इलाके ढूंढना भी मुश्किल काम है.
  • रायपुर से धमतरी और गुरूर होते हुए जगदलपुर नेशनल हाईवे पर 9 किमी दूर मरकाटोला में जब हम पहुंचे तो यहां से पेटेचुआ के लिए घने जंगल और पहाड़ियों से घिरा वनमार्ग मिला.
  • गुरूर तहसील में पेटेचुआ की पहाड़ी के छोटे से मैदान से निकली खारुन से पानी वहां से लगे हुए तालाब में भरता था, लेकिन अब उद्गम मैदान, लगा हुआ तालाब, पहाड़ी नाला, मंदिर से लगकर पांच किमी दूर तक नदी समेत सब कुछ पूरी तरह सूखा, और खारुन नदी का नामोनिशान तक मिट गया है.
  • खारून ही नहीं बल्कि जिस तरह की उपेक्षा तमाम नदियों की हो रही है इसको बचाने के लिए सामूहिक रूप से प्रयास करने की जरूरत है. जिम्मेदार लोगों को और सरकारो को गंभीरता से कदम उठाना चाहिए.


क्या कहते हैं जानकार-
पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के रिटायर्ड प्रोफेसर डॉ. एम. एल. नायक ने बताया कि खारुन पर जो रिसर्च हुए, उनके आधार पर कह सकते हैं कि शुरुआत में यह बरसाती नाला थी, जो आगे चलकर नदी में बदल गई. अब यह लगभग सूख सी गई है. अगर खारुन का उद्गम सूख गया है, तो यह शोध का विषय है.
वे कहते हैं कि इस नदी का उद्गम नर्मदा या सोन नदी जैसा नहीं था. इन नदियों का उद्गम पहाड़ी क्षेत्र में है, उसके उद्गम से हमेशा पानी रिसता रहता है. यहां खारून की स्थिति दूसरी है. मैदानी, जंगल एरिया में उद्गम है.
कुल मिलाकर इससे ये बात तो साफ हो रही है कि खारून नदी के उद्गम सूखने को गंभीरता से नहीं लिया गया तो आने वाले समय में स्थिति और चिंताजनक हो सकती है.

Intro:cg_rpr_kharun_nadi_spl_part3_7203517
मरकाटोला इलाके के जंगलों से निकली खारून नदी पथरीले पहाड़ों से होते हुए अमलेश्वर और महादेवघाट होते हुए रायपुर पहुंचती है.. लेकिन इसके पहले खारून नदीं को बचाने के लिए एरिगेशन प्लान सही नही होने का खामियाजा हमें देखने को मिला.. कंकालिन के बाद हम मरकाटोला के जंगलों में नदी के रास्ते आगे बढ़े इस दौरान नदीं में पानी रोकने के लिए जगह जगह स्टापडेम तो जरूर बनाया गया है लेकिन इसमें बूंद भर भी पानी हमें देखने को नहीं मिला.. एक्सपर्ट की माने तो लगातार हो रहे कटाव और अवैध उत्खनन पर रोक नहीं लगी तो आने वाले समय में खारून नदीं का नामों निशान तक मिट जाएगा.. Body:वीओ-1
खारून नदी को सालों से जगलों में हमारे पूर्वजों ने भगवान की तरह सहेज कर रखा था.. जगह जगह मंदिर देवालयों और एक से एक कहानियों से इससे जुड़ाव रहा है लेकिन अब समय के साथ साथ इस नदीं के दोहन ने खारून नदीं के अस्तित्व पर संकट लाकर खड़ा कर दिया है.. नदीं के उद्गम स्थल से ही कई किमी तक सूखे होने का असर जंगलों और पहाड़ों पर भी देखने को मिला.. कंकालिन के आगे ईटीवी भारत की टीम ने मरकाटोला के जंगलों में नदी का दौरा किया.. इस दौरान जंगलों में गर्मी के दिनों में नदी का पानी रोकने के लिए जगह जगह स्टापडैम तो बनाए गए है लेकिन इसमें भी बूंद पर पानी नहीं दिखा..
वाकथ्रू -
मयंक ठाकुर
वीओ-
खारुन नदी रायपुर ही नहीं बल्कि दुर्ग और बालोद जिले के आसपास के क्षेत्रों के लिए जीवन रेखा है.. लेकिन इस नदी के लगातार हो रहे अत्यधिक दोहन से हालात बद से बदतर होते जा रहे है.. नदी के उद्गम से ही नदी के हालात अपनी कहानी बया कर रहे है.. इसके आगे बढ़ते बढ़ते नदीं में प्रदूषण की मार देखने को मिल रही है.. खारून में सालभर पानी बचाने के लिए सरकार की ओर से काफी प्लान बनाया गया है, इसी के चलते जगह जगह स्टापडैम भी बनाए गए है, लेकिन इनकी उपयोगिता को लेकर अब सवाल उठ रहे है.. नदियों को लेकर लंबे समय से छत्तीसगढ़ में रिसर्च कर रहे पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. एम.एल. नायक ने ईटीवी भारत से बताया कि कुछ सालों पहले तांदुला डैंम का जब निर्माण हुआ इसके लिए बने कैनाल के बीच में आ गई, जिससे खारून नदीं कट गई.. खारून नदीं में पानी बनाए रखने के लिए तांदुला कैनाल का एक छोटा सा भाग नदी से जोड़ दिया गया इससे खारून में पानी आते रहता है.. वे कहते है कि नदी के किनारे पहले बस्तियां नहीं थी, तो प्राकृतिक रूप से जंगलों और पहाड़ों से पानी आता रहता था.. पहले नदी का कटाव नहीं था.. इतना ही नहीं उन्होने दावा किया है कि तांदुला का पानी बंद कर दिया जाए तो खारून में बिल्कुल पानी नहीं रहेगा..

बाइट- डॉ. एम.एल. नायक, रिटायर्ड प्रोफेसर, रविवि

सहेजने के लिए विशेष प्लान की जरूरत

वॉटर रिसोर्स डिपार्टमेंट के पूर्व एक्सक्यूटिव इंजीनियर एस.के. राठौर कहते है कि खारून नदी के लिए स्पेशल प्लान के साथ काम करने की जरूरत है.. वे कहते है कि सबसे पहले नदी में ये ध्यान देना है कि टोटल कैचमेंट एरिया कितना है, जिसमें पानी कहां कहा से आता है. नदी का एक्शन प्लान जो भी बनता है कि इसमें ध्यान रखना होगा कि शहर के आस पास के कुछ इलाकों में साफ करने का प्लान बनता है.. जबकि ये गलत है.. नदी के उद्गम स्थल से पानी को टेस्ट करना होगा कि यहां क्या क्वालिटी है.. इसके बाद एसटीपी लगाने के बाद भी पानी की क्वालिटी क्या है.. इसे टेस्ट करने के बाद ही नदीं में छोड़ा जाए. हरेक बड़े ट्रिब्यूटिस को यह जवाबदारी दी जाए कि नदीं का पानी साफ रहे.. यह प्रोसेस नदीं के अंतिस सोर्स तक रहे. इसके साथ ही नदी का कचरा से साफ होना चाहिए.. नदियों में कटाव रोकने के लिए दोनो ओर मजबूत पौधों को प्लांटेशन किया जाए. जिनकी जड़े मजबूत हो जो मिट्टी को रोक कर रख सके..

बाइट- एस.के. राठौर, पूर्व एक्सक्यूटिव इंजीनियर, WRD

वही नदी को लेकर रिसर्च कर रहे डॉ एम.एल. नायक कहते है कि खारून नदी में तो पानी का बहाव आसपास का पानी बहकर आता है जो बारिश में बहाव काफी तेज होता है.. लेकिन समय के साथ अब नदी के आसपास के स्त्रोत ऐसे नहीं है कि बारहों महीना पानी देते रहे.. इसके चलते नदी सूख जाती है.. कुछ स्थानों पर उद्योगों से पानी आने के कारण इसमें पानी मिल जाता है.. बीएसपी का पानी इसमें मिलता है जिसके चलते इसमें पानी रहता है.

बाइट- डॉ. एम.एल. नायक, रिटायर्ड प्रोफेसर, रविवि


Conclusion:फाइनल वीओ-
ऐसे तमाम पहलुओ पर चर्चा करने के बाद एक बात तो साफ हो रही है कि खारून नदी को बचाने के लिए राज्य सरकार की ओर से भले ही कई तरह के प्लान बनाए गए हो लेकिन वह भी केवल फाइलो मे ही नजर आ रहे है और कुछ जगह जो स्टेप डेम बनाए गए है वो भी बिना प्रैक्टिकल काम किए बगैर.. यही वजह है कि जंगलों में पानी को स्टोरेज करने के लिए बनाए गए स्टाप डैम में पानी ही नहीं रूक रहा है..

मयंक ठाकुर, ईटीवी भारत, रायपुर
Last Updated : Jun 26, 2019, 12:03 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.