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आरक्षण के मुद्दे पर आदिवासी विधायकों की बढ़ी मुसीबतें, क्षेत्र में निकलना हुआ मुश्किल

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Published : Nov 25, 2022, 11:27 PM IST

Politics heated on tribal reservation छत्तीसगढ़ में आरक्षण के मुद्दे को लेकर लगातार आदिवासी विधायकों की मुसीबतें बढ़ती जा रही है. आदिवासी विधायकों का हर जगह विरोध का सामना करना पड़ रहा है.इसमें कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही दलों के विधायक शामिल है. यहां तक की सरकार के आदिवासी मंत्री भी इससे अछूते नहीं है. हाल ही में आबकारी मंत्री कवासी लखमा को भी ऐसे ही आदिवासी समाज के विरोध का सामना करना पड़ा था.

Politics heated on tribal reservation
आरक्षण के मुद्दे पर आदिवासी विधायकों की बढ़ी मुसीबतें

रायपुर: छत्तीसगढ़ में आरक्षण के मुद्दे को लेकर लगातार आदिवासी बहुल क्षेत्रों में आदिवासी विधायकों को विरोध का सामना करना (People opposing tribal MLAs on tribal reservation) पड़ रहा है. इसमें कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही दलों के विधायक शामिल है. यहां तक की सरकार के आदिवासी मंत्री भी इससे अछूते नहीं है. अब आदिवासी समाज के लोग खुलेआम इन विधायकों का विरोध कर रहे हैं. हाल ही में आबकारी मंत्री कवासी लखमा को भी ऐसे ही आदिवासी समाज के विरोध का सामना करना पड़ा था. जिसके बाद लखमा ने यह तक बयान दे दिया कि आरक्षण नहीं मिला, तो वे अगले साल चुनाव नहीं लड़ेंगे और राजनीति से दूर हो जाएंगे. इनके अलावा भी अन्य मंत्री और विधायकों के खिलाफ आदिवासी समाज ने मोर्चा खोल रखा है. Politics heated on tribal reservation

आरक्षण के मुद्दे पर आदिवासी विधायकों की बढ़ी मुसीबतें



आदिवासी समाज के द्वारा कवासी लखमा के सामने अपनी बात रखी: आदिवासी समाज के द्वारा कवासी लखमा के विरोध को लेकर कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता धनंजय सिंह ठाकुर का कहना है कि "उनका कोई विरोध नहीं किया गया, बल्कि आदिवासी समाज के द्वारा कवासी लखमा के सामने अपनी बात रखी गई. कवासी लखमा ने भी दमदारी के साथ सरकार का पक्ष रखा." धनंजय ने इस पूरे विरोध को सियासी विरोध करार दिया है. tribal reservation in Chhattisgarh



आदिवासियों के आरक्षण को लेकर बड़ी पहल नहीं करने का आरोप: आदिवसी समाज का कहना है कि "जब सदन में सबसे ज्यादा आदिवासी विधायक हैं, हमारे मंत्री हैं. बावजूद इसके प्रदेश में आदिवासियों के आरक्षण को लेकर क्यों बड़ी पहल नहीं की जा रही है. यहां तक कि सर्वआदिवासी समाज ने तो भानूप्रतापपुर में कसम खाई है कि वे राजनीतिक दलों के लिए प्रचार प्रसार या फिर काम नहीं करेंगे. यदि ऐसा करते पाया जाता है, तो उनके खिलाफ सामाजिक कार्रवाई की जाएगी.



सरकार के मंत्री डॉ रमन सिंह को ठहरा रहे जिम्मेदार: प्रदेश में आदिवासी आरक्षण में की गई कटौती के लिए राज्य सरकार के मंत्री सीधे तौर पर पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. मंत्री रविन्द्र चौबे का कहना है कि "भूपेश सरकार लगातार आदिवासियों के साथ खड़ी हुई है और उनके आरक्षण के लिए आगामी विधानसभा सत्र में अध्यादेश ला रही है. हमें उम्मीद है कि यहां से अध्यादेश पास होने के बाद इस पर राज्यपाल तत्काल हस्ताक्षर कर देंगी." इतना ही नहीं रविंद्र चौबे ने कहा कि "अध्यादेश लाने के बाद कोर्ट में भी इनके पक्ष में ही फैसला आएगा."



मामले को केदार कश्यप ने कांग्रेस का ड्रामा और नौटंकी करार दिया: इस पूरे मामले को पूर्व कैबिनेट मंत्री केदार कश्यप ने कांग्रेस का ड्रामा और नौटंकी करार दिया है. केदार कश्यप ने कहा कि "आरक्षण के मामले पर कांग्रेस नौटंकी और ड्रामा कर रही है, जो पूरा प्रदेश देख रहा है. आरक्षण के खिलाफ अपने ही लोगों से याचिका लगवाती है आरक्षण जब खत्म हो जाता है, तो याचिका लगाने वालों को पुरस्कृत किया जाता है. भूपेश सरकार बताएं, क्या 3 दिसंबर से आदिवासियों को नौकरी मिलने लगेगी क्या? जो मेडिकल कि सीटों का नुकसान हुआ है, उसकी 3 दिसंबर से भरपाई हो जाएगी? कांग्रेस सरकार ने पिछड़े वर्ग को भी ठगा है."



विधेयक पारित कर कानूनी का रूप दिया जाएगा: इस पूरे मामले को लेकर राजनीति के जानकार एवं वरिष्ठ पत्रकार रामअवतार तिवारी का कहना है कि "रमन सरकार के द्वारा आदिवासियों को आरक्षण दिया गया था, जो नियम विरुद्ध था और यह 1 दशक तक चला. बाद में बिलासपुर हाई कोर्ट ने उस आरक्षण व्यवस्था को निरस्त कर दिया. जिसके बाद आदिवासियों का आरक्षण कम हो गया. आरक्षण में की गई कटौती के कारण आदिवासी समाज नाराज है और वर्तमान सरकार पर दबाव बना रही है. मंत्रियों को विरोध का सामना करना पड़ रहा है. आदिवासियों में भारी गुस्सा है, उससे बचने के लिए भूपेश सरकार ने आरक्षण बढ़ाने अध्यादेश लाने का फैसला किया है. इस फैसले पर मुहर लगाने के लिए एक और 2 तारीख को छत्तीसगढ़ विधानसभा का विशेष सत्र रखा गया है. इस विशेष सत्र में बहस के बाद अंतिम बहुमत के आधार पर यह विधेयक पारित किया जाएगा और कानून का रूप लेगा."

यह भी पढ़ें: pre budget meeting सीएम बघेल ने की केंद्रीय वित्त मंत्री से NPS की राशि लौटाने की मांग

50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण नहीं हो सकता: वरिष्ठ पत्रकार रामअवतार तिवारी का कहना है कि "आरक्षण की पुरानी व्यवस्था 50 प्रतिशत की है, उससे ज्यादा आरक्षण नहीं हो सकता. ऐसे में एक बार फिर असंतुष्ट वर्ग या आरक्षण की खामी का आरोप लगाते हुए एक वर्ग फिर से अदालत की शरण लेगा. उस अदालत में ही अंतिम फैसला होगा. आरक्षण को लेकर भ्रम की स्थिति हर तरफ है, सभी जानते हैं कि 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण नहीं दिया जा सकता. बावजूद इसके राजनीतिक दल राजनीतिक स्वार्थ के लिए निर्धारित अनुपात से ज्यादा आरक्षण बढ़ा रहे हैं."

कैबिनेट बैठक में तय हुआ आरक्षण का अनुपात: गुरुवार को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में आरक्षण के नए अनुपात पर फैसला किया गया. सूत्रों की मानें तो इसमें आदिवासी वर्ग (एसटी) को उनकी जनसंख्या के अनुपात में 32%, अनुसूचित जाति (एससी) को 13% और सबसे बड़े जाति समूह अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को 27% आरक्षण मिलेगा. वहीं सामान्य वर्ग के गरीबों को 4 फीसदी आरक्षण दिया जाएगा.



जातिगत आबादी की स्थिति: छत्तीसगढ़ में लगभग 32 फीसदी आबादी अनुसूचित जनजाति की है, करीब 13 प्रतिशत आबादी अनुसूचित जाति वर्ग की और करीब 47 प्रतिशत जनसंख्या अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों की है. हालांकि ये लोग 52% आबादी होने का दावा करते हैं.



छत्तीसगढ़ विधानसभा में जातीय समीकरण: छत्तीसगढ़ में कुल 90 विधानसभा की सीटें हैं. इनमें से 39 सीटें आरक्षित हैं. इन सीटों में से 29 सीटें अनुसूचित जनजाति और 10 सीटें अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित है. आरक्षित सीटों के बाद बची 51 सीटें सामान्य हैं. लेकिन इन सीटों में से भी करीब एक दर्जन विधानसभा की सीटों पर अनुसूचित जाति वर्ग का खासा प्रभाव है. प्रदेश के मैदानी इलाकों के ज्यादातर विधानसभा की सीटों पर अन्य पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं की भी भारी संख्या है. छत्तीसगढ़ में अन्य पिछड़ा वर्ग की आबादी करीब 47 प्रतिशत है. मैदानी इलाकों से करीब एक चौथाई विधायक इसी वर्ग से विधानसभा में चुनकर आते हैं.

रायपुर: छत्तीसगढ़ में आरक्षण के मुद्दे को लेकर लगातार आदिवासी बहुल क्षेत्रों में आदिवासी विधायकों को विरोध का सामना करना (People opposing tribal MLAs on tribal reservation) पड़ रहा है. इसमें कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही दलों के विधायक शामिल है. यहां तक की सरकार के आदिवासी मंत्री भी इससे अछूते नहीं है. अब आदिवासी समाज के लोग खुलेआम इन विधायकों का विरोध कर रहे हैं. हाल ही में आबकारी मंत्री कवासी लखमा को भी ऐसे ही आदिवासी समाज के विरोध का सामना करना पड़ा था. जिसके बाद लखमा ने यह तक बयान दे दिया कि आरक्षण नहीं मिला, तो वे अगले साल चुनाव नहीं लड़ेंगे और राजनीति से दूर हो जाएंगे. इनके अलावा भी अन्य मंत्री और विधायकों के खिलाफ आदिवासी समाज ने मोर्चा खोल रखा है. Politics heated on tribal reservation

आरक्षण के मुद्दे पर आदिवासी विधायकों की बढ़ी मुसीबतें



आदिवासी समाज के द्वारा कवासी लखमा के सामने अपनी बात रखी: आदिवासी समाज के द्वारा कवासी लखमा के विरोध को लेकर कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता धनंजय सिंह ठाकुर का कहना है कि "उनका कोई विरोध नहीं किया गया, बल्कि आदिवासी समाज के द्वारा कवासी लखमा के सामने अपनी बात रखी गई. कवासी लखमा ने भी दमदारी के साथ सरकार का पक्ष रखा." धनंजय ने इस पूरे विरोध को सियासी विरोध करार दिया है. tribal reservation in Chhattisgarh



आदिवासियों के आरक्षण को लेकर बड़ी पहल नहीं करने का आरोप: आदिवसी समाज का कहना है कि "जब सदन में सबसे ज्यादा आदिवासी विधायक हैं, हमारे मंत्री हैं. बावजूद इसके प्रदेश में आदिवासियों के आरक्षण को लेकर क्यों बड़ी पहल नहीं की जा रही है. यहां तक कि सर्वआदिवासी समाज ने तो भानूप्रतापपुर में कसम खाई है कि वे राजनीतिक दलों के लिए प्रचार प्रसार या फिर काम नहीं करेंगे. यदि ऐसा करते पाया जाता है, तो उनके खिलाफ सामाजिक कार्रवाई की जाएगी.



सरकार के मंत्री डॉ रमन सिंह को ठहरा रहे जिम्मेदार: प्रदेश में आदिवासी आरक्षण में की गई कटौती के लिए राज्य सरकार के मंत्री सीधे तौर पर पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. मंत्री रविन्द्र चौबे का कहना है कि "भूपेश सरकार लगातार आदिवासियों के साथ खड़ी हुई है और उनके आरक्षण के लिए आगामी विधानसभा सत्र में अध्यादेश ला रही है. हमें उम्मीद है कि यहां से अध्यादेश पास होने के बाद इस पर राज्यपाल तत्काल हस्ताक्षर कर देंगी." इतना ही नहीं रविंद्र चौबे ने कहा कि "अध्यादेश लाने के बाद कोर्ट में भी इनके पक्ष में ही फैसला आएगा."



मामले को केदार कश्यप ने कांग्रेस का ड्रामा और नौटंकी करार दिया: इस पूरे मामले को पूर्व कैबिनेट मंत्री केदार कश्यप ने कांग्रेस का ड्रामा और नौटंकी करार दिया है. केदार कश्यप ने कहा कि "आरक्षण के मामले पर कांग्रेस नौटंकी और ड्रामा कर रही है, जो पूरा प्रदेश देख रहा है. आरक्षण के खिलाफ अपने ही लोगों से याचिका लगवाती है आरक्षण जब खत्म हो जाता है, तो याचिका लगाने वालों को पुरस्कृत किया जाता है. भूपेश सरकार बताएं, क्या 3 दिसंबर से आदिवासियों को नौकरी मिलने लगेगी क्या? जो मेडिकल कि सीटों का नुकसान हुआ है, उसकी 3 दिसंबर से भरपाई हो जाएगी? कांग्रेस सरकार ने पिछड़े वर्ग को भी ठगा है."



विधेयक पारित कर कानूनी का रूप दिया जाएगा: इस पूरे मामले को लेकर राजनीति के जानकार एवं वरिष्ठ पत्रकार रामअवतार तिवारी का कहना है कि "रमन सरकार के द्वारा आदिवासियों को आरक्षण दिया गया था, जो नियम विरुद्ध था और यह 1 दशक तक चला. बाद में बिलासपुर हाई कोर्ट ने उस आरक्षण व्यवस्था को निरस्त कर दिया. जिसके बाद आदिवासियों का आरक्षण कम हो गया. आरक्षण में की गई कटौती के कारण आदिवासी समाज नाराज है और वर्तमान सरकार पर दबाव बना रही है. मंत्रियों को विरोध का सामना करना पड़ रहा है. आदिवासियों में भारी गुस्सा है, उससे बचने के लिए भूपेश सरकार ने आरक्षण बढ़ाने अध्यादेश लाने का फैसला किया है. इस फैसले पर मुहर लगाने के लिए एक और 2 तारीख को छत्तीसगढ़ विधानसभा का विशेष सत्र रखा गया है. इस विशेष सत्र में बहस के बाद अंतिम बहुमत के आधार पर यह विधेयक पारित किया जाएगा और कानून का रूप लेगा."

यह भी पढ़ें: pre budget meeting सीएम बघेल ने की केंद्रीय वित्त मंत्री से NPS की राशि लौटाने की मांग

50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण नहीं हो सकता: वरिष्ठ पत्रकार रामअवतार तिवारी का कहना है कि "आरक्षण की पुरानी व्यवस्था 50 प्रतिशत की है, उससे ज्यादा आरक्षण नहीं हो सकता. ऐसे में एक बार फिर असंतुष्ट वर्ग या आरक्षण की खामी का आरोप लगाते हुए एक वर्ग फिर से अदालत की शरण लेगा. उस अदालत में ही अंतिम फैसला होगा. आरक्षण को लेकर भ्रम की स्थिति हर तरफ है, सभी जानते हैं कि 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण नहीं दिया जा सकता. बावजूद इसके राजनीतिक दल राजनीतिक स्वार्थ के लिए निर्धारित अनुपात से ज्यादा आरक्षण बढ़ा रहे हैं."

कैबिनेट बैठक में तय हुआ आरक्षण का अनुपात: गुरुवार को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में आरक्षण के नए अनुपात पर फैसला किया गया. सूत्रों की मानें तो इसमें आदिवासी वर्ग (एसटी) को उनकी जनसंख्या के अनुपात में 32%, अनुसूचित जाति (एससी) को 13% और सबसे बड़े जाति समूह अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को 27% आरक्षण मिलेगा. वहीं सामान्य वर्ग के गरीबों को 4 फीसदी आरक्षण दिया जाएगा.



जातिगत आबादी की स्थिति: छत्तीसगढ़ में लगभग 32 फीसदी आबादी अनुसूचित जनजाति की है, करीब 13 प्रतिशत आबादी अनुसूचित जाति वर्ग की और करीब 47 प्रतिशत जनसंख्या अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों की है. हालांकि ये लोग 52% आबादी होने का दावा करते हैं.



छत्तीसगढ़ विधानसभा में जातीय समीकरण: छत्तीसगढ़ में कुल 90 विधानसभा की सीटें हैं. इनमें से 39 सीटें आरक्षित हैं. इन सीटों में से 29 सीटें अनुसूचित जनजाति और 10 सीटें अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित है. आरक्षित सीटों के बाद बची 51 सीटें सामान्य हैं. लेकिन इन सीटों में से भी करीब एक दर्जन विधानसभा की सीटों पर अनुसूचित जाति वर्ग का खासा प्रभाव है. प्रदेश के मैदानी इलाकों के ज्यादातर विधानसभा की सीटों पर अन्य पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं की भी भारी संख्या है. छत्तीसगढ़ में अन्य पिछड़ा वर्ग की आबादी करीब 47 प्रतिशत है. मैदानी इलाकों से करीब एक चौथाई विधायक इसी वर्ग से विधानसभा में चुनकर आते हैं.

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