रायपुर: राजनीति को अपराध मुक्त करने के लिए वैसे तो तमाम फोरम पर हमेशा चर्चा की गई है और मसौदा तैयार होता रहा है. बावजूद इसके देश के तमाम राज्यों समेत छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में भी राजनीति अपराध से मुक्त नहीं हो पाई है. सुप्रीम कोर्ट लंबे समय से राजनीति में अपराधियों के बढ़ते असर के खिलाफ कदम उठाने की हिदायत देता रहा है. लेकिन चुनाव में हर हाल में जीत का जो फॉर्मूला राजनीतिक पार्टियां बनाती हैं. उनमें संगीन अपराधों के अपराधी भी शामिल रहे. अपराधी राज्य और देश के सर्वोच्च सदन तक पहुंच जाते हैं. इस तरह के अनेक मामले देशभर में आते हैं. इसे लेकर संवैधानिक विशेषज्ञों और प्रबुद्धजनों ने भी चुनाव प्रक्रिया में अपराध को पूरी तरह से खत्म करने पर जोर दिया है.
राजनीति में ऐसा कम ही हुआ है कि किसी अपराध के लिए किसी बड़े नेता को जेल में लंबे समय तक रहना पड़ा हो. छत्तीसगढ़ की बात की जाए तो लगातार चुनाव को अपराध मुक्त करने के लिए चुनाव आयोग की ओर से पहल की जाती रही है.
प्रत्याशियों को खुद अपने पर दर्ज अपराधों की जानकारी देना जरूरी
छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी रहे डॉ. सुशील त्रिवेदी कहते हैं कि लगातार ऐसे कई प्रस्ताव भारत निर्वाचन आयोग ने राज्य सरकार को भेजे हैं, फिर भी इस पर अमल नहीं किया गया. सुप्रीम कोर्ट बार-बार राजनीतिक पार्टियों को भी यह कह रही है कि किसी आपराधिक पृष्ठभूमि वाले को टिकट दे रहे हैं, तो यह बताना जरूरी होगा कि पार्टी उन्हें क्यों टिकट दे रही है.
न्यायपालिका के निर्देश पर उम्मीदवार को यह जानकारी देनी होती है कि उनके खिलाफ कौन-कौन से अपराध दर्ज हैं. उन्हें सार्वजनिक करना जरूरी है. यह नामांकन फॉर्म के साथ देना अनिवार्य होता है. इसके पीछे कारण है कि लोग उम्मीदवार के बारे में पूरी जानकारी लें कि किस पर क्या-क्या अपराध दर्ज हैं. इस तरह के अनेक प्रस्ताव सरकार के पास पेंडिंग है.
'बाहुबली लोगों की छवि अपनों के बीच रॉबिनहुड की होती है'
वरिष्ठ पत्रकार शशांक शर्मा कहते हैं कि अपराध मुक्त चुनाव की बात तो 1990 के दशक में सबसे पहले आई थी. इंद्रजीत सेनगुप्ता समिति बनी थी, जिसमें पहली बार चुनाव सुधार की बात आई थी. लेकिन वह भी रद्दी की टोकरी में चली गई. अपराध मुक्त चुनाव को लेकर जिस तरह की बातें आ रही हैं, उसमें दो तरह की बातें हैं. बाहुबली लोग जिनको हम खराब समझते हैं, वह जनता के बीच बहुत लोकप्रिय होते हैं. लोग उनको प्रचंड मत से चुनाव जिताते हैं. ऐसे लोगों की छवि अपनों के बीच रॉबिनहुड की होती है.
अपराधिक प्रवृत्ति के बहुत सारे मामलों में यह देखा गया है कि कई तरह के मामले राजनीतिक दुश्मनी के चलते होते हैं. हाल ही में 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में भी इसका दावा किया था कि एक विशेष न्यायालय का गठन कर इस तरह के दागी सांसदों के प्रकरणों की सुनवाई कर सजा दिलवाई जाएगी.
'आपराधिक पृष्ठभूमि के लोगों को नहीं देना चाहिए टिकट'
छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ अधिवक्ता इकबाल अहमद रिजवी कहते हैं कि राजनीतिक पार्टियों को भी चाहिए कि आपराधिक पृष्ठभूमि से आए हुए लोगों को टिकट ही ना दें. वे कहते हैं कि जनता भी ऐसे लोगों को पहचाने जो खासकर धनबल और बाहुबल के चलते टिकट लेते हैं. ऐसे जनप्रतिनिधि को चुनिए जो समाज में निर्भीक होकर आ जा सके और जनता भी निर्भीक होकर अपने दिल की बात उनसे कह सके. लोगों को भी चाहिए कि ऐसे लोगों को ना चुने यह समाज के लिए अभिशाप है.
निर्वाचन आयोग को चाहिए कि वे कड़े नियम बनाते हुए जिस तरह के मामले पेंडिंग हैं, उन पर तत्काल फैसले दें और ऐसे आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों को चुनाव लड़ने से रोके. अधिवक्ता कहते हैं कि हालांकि छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में इस तरह के मामले कम ही हैं. यहां कई मामलों में राजनीतिक सक्रियता के चलते मामले ज्यादातर दिखते हैं. वे वर्तमान में हो रहे उपचुनाव और बिहार चुनाव में आम जनता से आग्रह करते हैं कि ऐसे लोगों को ना चुने जो अपराधिक प्रवृत्ति के हों.
छत्तीसगढ़ में 21 विधायकों के खिलाफ है आपराधिक मामले
छत्तीसगढ़ में विधायकों के खिलाफ 65 आपराधिक मामले लंबित हैं. प्रदेश में 21 विधायक ऐसे हैं, जिनके खिलाफ मामला दर्ज है. इनमें से ज्यादातर राजनीतिक प्रदर्शन से जुड़े मामले हैं. हालांकि कुछ विधायक ऐसे भी हैं, जिनके खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं. इनमें मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी शामिल हैं.
छत्तीसगढ़ में दागी विधायकों की संख्या
- कांग्रेस- 17
- भाजपा- 2
- जेसीसीजे - 2
- मुख्यमंत्री समेत मंत्रिमंडल के तीन चेहरे दागी
इनके खिलाफ आपराधिक केस दर्ज
- मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के खिलाफ कोर्ट में मामला लंबित है.
- इसी तरह खाद्य और संस्कृति मंत्री अमरजीत भगत और राजस्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल के खिलाफ भी आपराधिक मामले दर्ज हैं.
- पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के खिलाफ भी मामला दर्ज है.
- विकास उपाध्याय, आशीष छाबड़ा और देवेंद्र यादव जैसे युवा नेताओं के खिलाफ भी राजनीतिक प्रदर्शन से जुड़े कई मामले दर्ज हैं.
ज्यादातर दागी प्रत्याशी हारे
- छत्तीसगढ़ में 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में 1 हजार 258 प्रत्याशी मैदान में थे.
- इनमें से 146 प्रत्याशियों ने खुद अपने चुनावी शपथ पत्र में आपराधिक मुकदमा होने की जानकारी दी थी.
- इनमें से महज 21 ही चुनाव जीतने में कामयाब हुए.
क्या वक्त के साथ हुआ बदलाव ?
1977 के बाद से ही आपराधिक मामलों के आरोपी बड़े पैमाने पर चुनाव मैदान में उतरते रहे हैं और जीत भी हासिल करते रहे हैं. तब ज्यादातर आरोपी निर्दलीय चुनाव लड़ते थे. पार्टियां लोक लाज के कारण टिकट देने का साहस नहीं जुटा पाती थी. 1977 के पहले आम तौर पर राजनेता आपराधिक पृष्ठभूमि वालों का चुनाव में इस्तेमाल करते थे, लेकिन बाद में ऐसे पृष्ठभूमि वाले भी खुद सामने आने लग गए. राजनीति को आपराधिक तत्वों से मुक्त करने की कवायद के तहत चुनाव आयोग ने गंभीर अपराध के आरोपी नेताओं के चुनाव लड़ने पर रोक लगाने का समर्थन किया है.
चुनाव आयोग चाहता है कि अगर किसी नेता पर किसी ऐसे अपराध के आरोपों, जिनमें 5 साल तक की सजा मुमकिन हो तो उस नेता के चुनाव लड़ने पर रोक लगे. बशर्ते की चुनाव से कम से कम 6 महीने पहले केस दर्ज हुआ हो.
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सरकार पर चुनाव आयोग के रूप पर सकारात्मक प्रतिक्रिया का दबाव होगा. पार्टियों में आंतरिक लोकतंत्र की कमी से चिंतित आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में भी कहा है कि संसद को कानून में सुधार करना चाहिए और पार्टियों के भीतर पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए गाइडलाइन बनाने चाहिए.