2 अगस्त साल 1929 में जन्मे विद्या भैया ने 9 बार लोकसभा चुनाव जीता और पहली बार साल 1957 में लोगों ने उन्हें चुनकर दिल्ली भेजा था. वे कई बार चुनाव जीते, केंद्र में कई विभागों के मंत्री और कई अहम पदों पर रहे. विद्याचरण शुक्ल और श्यामाचरण शुक्ल दोनों भाई एक समय रायपुर शहर की पहचान बन गए थे. विद्याचरण शुक्ल स्वभाव के कई लोग कायल थे.
जहां पहुंचना था वहीं पहुंचे नहीं
विद्याचरण शुक्ल ने हमेशा केंद्र की राजनीति की, जब वे पहली बार चुनाव जीतकर गए थे तो पंडित जवाहरलाल नेहरु जैसे दिग्गज नेता सदन में मौजूद हुआ करते थे. विद्याचरण शुक्ल पर पंडित नेहरू की सियासत और व्यक्तित्व का गहरा असर हुआ. बाद में वे इंदिरा गांधी के भी काफी करीबी बन गए.
तब प्रधानमंत्री बनने की रेस में थे विद्याचरण शुक्ल
एक वक्त ऐसा भी आया जब विद्याचरण शुक्ल देश के प्रधानमंत्री की रेस में शामिल हो गए थे. यहां तक कहा जाने लगा था कि इंदिरा के बाद उन्हें देश की कमान सौंपी जा सकती है. लेकिन जानकार भी मानते हैं कि वीसी शुक्ल उस ऊंचाई तक नहीं पहुंच पाए, जहां तक पहुंचने के उनमें काबिलियत थी और उसका रास्ता भी बना चुके थे. लेकिन कुछ अडियल स्वभाव और वक्त के साथ लोगों को समझने में की गई भूल ने उन्हें आगे बढ़ने से रोके रखा.
दोस्तों पर जान लुटाते थे विद्याचरण शुक्ल
विद्याचरण शुक्ल सियासत में जहां दोस्ती निभाने वाले थे, वहीं कोई बात अगर उन्हें चुभ जाती तो वह उसे कभी नहीं भूलते थे. कहा जाता है कि वह कभी अपने शत्रु को माफ़ नहीं करते थे.
साल 2013 में छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव होने थे. कांग्रेस प्रदेशभर में परिवर्तन यात्रा निकाल रही थी. उसी दौरान झीरम घाटी में हुए नक्सली हमले में विद्याचरण शुक्ल को गोली लग गई और कई दिन तक जिंदगी और मौत के बीच लड़ते हुए वो मृत्यु को प्राप्त हुए.