रायपुर: भादो माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को पोला पर्व मनाया जाता है. इस दिन बैलों की पूजा की जाती है. कई वृषभ राशि के जातक इस दिन व्रत रखते हैं. बैलों की पूजा के बाद वो दान पुण्य भी करते हैं. इस दिन बैलों की सेवा करना बेहद शुभ माना जाता है. छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, खंडवा सहित मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में इस पर्व को बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है. ग्रामीण क्षेत्रों में इस पर्व का खास महत्व है.
ऐसे की जाती है पूजा: पोला के दिन सुबह-सुबह शुभ मुहूर्त में बैलों की पूजा की जाती है. इन बैलों को किसान अपने परिवार का अभिन्न अंग मानकर इनको सम्मान देते हैं. उनकी पूजा करते हैं. सुबह से ही बैलों को नहला-धुलाकर सजाया जाता है. बैलों के सींग पर सुंदर रंगों की पॉलिश की जाती है. साथ ही बैलों के पैरों को भी रंगा जाता है. बैलों को विशेष सम्मान दिया जाता है. बैलों को नये कपड़े नये वस्त्र पहना कर सजाया जाता है. कई जगहों पर इस दिन बैल दौड़ प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जाता है.
इस दिन सुबह शुभ मुहूर्त में बैलों की पूजा की जाती है.सुबह बैलों को नहला-धुलाकर सजाया जाता है. बैलों के सींग पर सुंदर रंगों की पॉलिश की जाती है. साथ ही बैलों के पैरों को भी रंगा जाता है. बैलों को विशेष सम्मान दिया जाता है. कई जगहों पर इस दिन बैल दौड़ प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जाता है. -विनीत शर्मा, पंडित
कई जगहों पर प्रतियोगिता का किया जाता है आयोजन: ग्रामीण क्षेत्रों में इस पर्व का खासा उत्साह देखने को मिलता है. इस दिन खुरमी, ठेठरी, भजिया, चटनी, खाजा जैसी मिठाइयां बनाई जाती है. छत्तीसगढ़ी पारंपरिक व्यंजनों के साथ इस पर्व को मनाा जाता है. इस दिन पशुओं को सम्मान दिया जाता है. जगह-जगह गेड़ी चढ़ने का भी कार्यक्रम होता है. गेड़ी की दौड़ भी लगते हैं. छोटे बच्चों से लेकर बड़े बुजुर्ग भी इस गेड़ी के प्रतियोगिता में भाग लेते हैं. छोटे-छोटे बच्चे रस्सी पड़कर मिट्टी के बने बैलों को लेकर दौड़ते हैं. यह दृश्य अत्यंत विहंगम दिखाई पड़ता है. इस दिन ग्रामीण महिलाएं नए कपड़े पहनती हैं. विभिन्न प्रकार के व्यंजन पकाती हैं. चारों ओर दिवाली जैसा ही उत्साह देखने को मिलता है.