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phulera dooj 2023 : फुलेरा दूज और फूलों की होली का रहस्य

हिंदू धर्म में कुछ मुहूर्त ऐसे होते हैं जिनमें आप किसी भी शुभ कार्य को कर सकते हैं. इसमें फिर दिन और समय नहीं देखे जाते हैं.इस दिन पूरा दिन शुभ मुहूर्त के लिए इस्तेमाल किया जाता है. ऐसा ही एक दिन है फुलेरा दूज.इस जिन सबसे ज्यादा मांगलिक कार्य होते हैं. यही वजह है कि इस दिन और दिनों की तुलना में सबसे ज्यादा विवाह संपन्न कराए जाते हैं. साथ ही साथ फुलेरा दूज के दिन भगवान श्रीकृष्ण के मंदिरों को सजाकर विशेष पूजा करने की भी परंपरा है.

phulera dooj 2023
फुलेरा दूज और फूलों की होली का रहस्य
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Published : Feb 21, 2023, 4:54 AM IST

रायपुर / हैदराबाद : फुलेरा दूज का महत्व पूरे भारत में है.लेकिन उत्तर भारत में ये दिन बेहद खास है.कृष्ण और राधा से ये दिन जुड़ा होने के कारण बृज, मथुरा और वृंदावन में इस दिन की छटा देखते ही बनती है.भगवान श्रीकृष्ण के धाम फुलेरा दूज के अवसर पर जगमग करते हैं.ऐसा माना जाता है कि इस दिन से होली की तैयारियां शुरु हो जाती है. इस खास दिन से जुड़ी कई कहानियां भी है. यही वजह है कि श्रीकृष्ण के मंदिरों में भक्तों की भीड़ टूट पड़ती है. फुलेरा दूज, हिंदू कैलेंडर में फागुन के महीने में शुक्ल पक्ष द्वितीया को मनाने की परंपरा है. फुलेरा दूज, वसंत पंचमी और होली के त्योहार के बीच में आता है.

क्या है फुलेरा दूज से जुड़ी किवदंति : ऐसा माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण लंबे समय तक मथुरा छोड़कर अपने कार्यों में व्यस्त रहे थे. श्रीकृष्ण व्यस्तता के कारण राधा रानी से कई महीनों तक नहीं मिले.राधा रानी के नेत्र श्रीकृष्ण दर्शन को व्याकुल हो गए. इसका सीधा असर प्रकृति पर पड़ने लगा.पेड़ पौधे पत्ते सब सूखने लगे. जानवरों के खाने के लिए दाना पानी कम पड़ने लगा.इसकी जानकारी जब श्रीकृष्ण को हुई तो वो उन्हें इस बात का बोध हुआ कि ये सब राधा रानी के दुख का असर है. इसलिए वो राधा रानी से मिलने के लिए मथुरा पहुंचे.

श्रीकृष्ण के कदम पड़ते ही छाई हरियाली : ऐसा कहा जाता है कि जैसे ही मथुरा में भगवान श्रीकृष्ण और राधारानी का मिलन हुआ वैसे ही प्रकृति ने तुरंत करवट बदली. चारो तरफ देखते ही देखते हरियाली छाने लगी. इस दौरान पूरा जंगल और वातावरण फूले से आच्छादित हो गया इसी दिन श्रीकृष्ण ने फूलों को तोड़कर राधारानी की ओर फेंका था. और जवाब में राधारानी भी फूल तोड़कर श्रीकृष्ण की ओर फेंका. ये सिलसिला फिर नहीं रुका. फिर गोपियों ने भी एक दूसरे पर फूल फेंकने शुरू कर दिए चारों तरफ जहां देखो वहां तक फूलों की होली खेली जाने लगी. हर तरफ फूलों की होली शुरू हो गई.यह सब फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को हुआ था. तब से इस तिथि को फुलेरा दूज के नाम से जाना जाने लगा.

ये भी पढ़ें- होली से पहले ही हर्बल गुलाल की डिमांड बढ़ी

क्या है फुलेरा का अर्थ : फुलेरा का अर्थ है ‘फूल’ जो फूलों को दर्शाता है.यह माना जाता है कि भगवान कृष्ण फूलों के साथ खेलते हैं. इसलिए इस दिन भगवान कृष्ण के साथ रंग-बिरंगे फूलों से होली खेलने का होता है.यह त्योहार लोगों के जीवन में खुशियां और उल्लास लाता है. यह त्यौहार प्रकृति मां के आशीर्वाद के लिए आभारी होने की याद दिलाता है.

रायपुर / हैदराबाद : फुलेरा दूज का महत्व पूरे भारत में है.लेकिन उत्तर भारत में ये दिन बेहद खास है.कृष्ण और राधा से ये दिन जुड़ा होने के कारण बृज, मथुरा और वृंदावन में इस दिन की छटा देखते ही बनती है.भगवान श्रीकृष्ण के धाम फुलेरा दूज के अवसर पर जगमग करते हैं.ऐसा माना जाता है कि इस दिन से होली की तैयारियां शुरु हो जाती है. इस खास दिन से जुड़ी कई कहानियां भी है. यही वजह है कि श्रीकृष्ण के मंदिरों में भक्तों की भीड़ टूट पड़ती है. फुलेरा दूज, हिंदू कैलेंडर में फागुन के महीने में शुक्ल पक्ष द्वितीया को मनाने की परंपरा है. फुलेरा दूज, वसंत पंचमी और होली के त्योहार के बीच में आता है.

क्या है फुलेरा दूज से जुड़ी किवदंति : ऐसा माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण लंबे समय तक मथुरा छोड़कर अपने कार्यों में व्यस्त रहे थे. श्रीकृष्ण व्यस्तता के कारण राधा रानी से कई महीनों तक नहीं मिले.राधा रानी के नेत्र श्रीकृष्ण दर्शन को व्याकुल हो गए. इसका सीधा असर प्रकृति पर पड़ने लगा.पेड़ पौधे पत्ते सब सूखने लगे. जानवरों के खाने के लिए दाना पानी कम पड़ने लगा.इसकी जानकारी जब श्रीकृष्ण को हुई तो वो उन्हें इस बात का बोध हुआ कि ये सब राधा रानी के दुख का असर है. इसलिए वो राधा रानी से मिलने के लिए मथुरा पहुंचे.

श्रीकृष्ण के कदम पड़ते ही छाई हरियाली : ऐसा कहा जाता है कि जैसे ही मथुरा में भगवान श्रीकृष्ण और राधारानी का मिलन हुआ वैसे ही प्रकृति ने तुरंत करवट बदली. चारो तरफ देखते ही देखते हरियाली छाने लगी. इस दौरान पूरा जंगल और वातावरण फूले से आच्छादित हो गया इसी दिन श्रीकृष्ण ने फूलों को तोड़कर राधारानी की ओर फेंका था. और जवाब में राधारानी भी फूल तोड़कर श्रीकृष्ण की ओर फेंका. ये सिलसिला फिर नहीं रुका. फिर गोपियों ने भी एक दूसरे पर फूल फेंकने शुरू कर दिए चारों तरफ जहां देखो वहां तक फूलों की होली खेली जाने लगी. हर तरफ फूलों की होली शुरू हो गई.यह सब फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को हुआ था. तब से इस तिथि को फुलेरा दूज के नाम से जाना जाने लगा.

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क्या है फुलेरा का अर्थ : फुलेरा का अर्थ है ‘फूल’ जो फूलों को दर्शाता है.यह माना जाता है कि भगवान कृष्ण फूलों के साथ खेलते हैं. इसलिए इस दिन भगवान कृष्ण के साथ रंग-बिरंगे फूलों से होली खेलने का होता है.यह त्योहार लोगों के जीवन में खुशियां और उल्लास लाता है. यह त्यौहार प्रकृति मां के आशीर्वाद के लिए आभारी होने की याद दिलाता है.

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