रायपुर: 28 अगस्त (शनिवार) को हलषष्ठी यानी कमरछठ का पर्व मनाया जाएगा. हलषष्ठी के पर्व को देखते हुए बाजार में पसहर चावल की दुकानें भी चौक चौराहों और सड़कों पर सज गई है, लेकिन इन दुकानों से फिलहाल रौनक गायब दिखाई दे रही है. हलषष्ठी के पर्व में पसहर चावल का बड़ा महत्व होता है. इस चावल का रंग मटमैला होता है. पसहर चावल की पैदावार कम होने और पूजा में इसके महत्व के चलते यह सुगंधित चावल से दो से तीन गुना महंगा होता है. पसहर चावल के साथ ही बाजार में पूजन की अन्य सामग्री महुआ, दोना, टोकनी, लाई और श्रृंगार के सामान बाजार में बिक रहे हैं.
तालाब पोखर भाठा जमीन और गड्ढों के किनारे उगता है पसहर चावल
पसहर चावल बेच रही महिलाओं ने बताया कि पसहर का चावल खेत खलिहान में नहीं उगाया जाता. बल्कि यह भाठा जमीन तालाब पोखर और गड्ढों के किनारे अपने आप फसल उगता है. इसकी साफ सफाई करके मार्केट में बेचने के लिए लाया जाता है. इसकी मांग केवल हलषष्ठी पर्व के समय ही रहती है. सामान्य दिनों में इस चावल को ना ही बाजार में बेचा जाता है और ना ही लोग इसे खरीदते हैं.
हल को शस्त्र के रूप में बलराम ने धारण किया था
शास्त्रों में मान्यता है कि भाद्र कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था. कृषि कार्यों में इस्तेमाल किए जाने वाले हल को शस्त्र के रूप में बलराम धारण करते थे. जिसके कारण इस पर्व का नाम हलषष्ठी पड़ा है. इस पर्व में बिना हल चलाएं उगने वाले पसहर चावल और छह प्रकार की भाजियों का खासा महत्व रहता है. पूजा के दौरान महिलाएं पसहर चावल को पकाकर भोग लगाती हैं और महिलाएं इसी चावल से अपना व्रत तोड़ती है. यह व्रत महिलाएं संतान की लंबी आयु की कामना के लिए करती हैं.
हलषष्ठी पर्व पर पसहर चावल की मांग होती है अधिक
इस चावल की खास बात यह होती है कि यह बिना हल के ही खेतों में और दूसरी अन्य जगहों पर पैदा होता है. हलषष्ठी के पर्व पर इस चावल की मांग अधिक होती है. माना जाता है कि इस चावल से ही व्रत तोड़ने का सदियों पुराना रिवाज है. कमर छठ पर्व को महिलाएं पूरे उत्साह के साथ मनाती है. हलषष्ठी पर्व पर माताएं पूजा करने के लिए एक स्थान पर गड्ढा खोदकर भगवान शंकर एवं गौरी गणेश को पसहर चावल भैंस का दूध, दही, घी, बेलपत्र, काशी और भौरा सहित दूसरी अन्य सामग्रियां अर्पित करती है.
पसहर चावल में आयरन की मात्रा अधिक होती है
कृषि वैज्ञानिक इसका वैज्ञानिक नाम ओराईजानिवारा बताते हैं. जितनी भी धान की नई किस्म विकसित हुई है. उसमें इसका प्रमुख योगदान माना गया है. नई किस्म विकसित करने के प्रयोग लगातार हो रहे हैं. हालांकि पसहर चावल में आयरन की प्रचुर मात्रा है. बोलचाल की भाषा करगाधान से पसहर चावल बनता है और यह समय से पहले ही जमीन में झड़ जाता है. बिना हल चले ही उगने के कारण व्रतधारी माताएं इसका सेवन करती हैं.