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Navratri 2022 देवी के नौ रूपों के पीछे की कहानी और रंगों का महत्व, जानिए

Navratri 2022: मां भगवती नव रंगों के साथ साहस, शौर्य संपन्नता, श्री और समृद्धि लेकर आती हैं. मां भगवती का पावन पर्व अपने आप में जन समूह में उत्साह, उमंग और खुशियों के रंग बिखेर देता है. शारदीय नवरात्र अश्विन शुक्ल पक्ष में 9 दिनों की मनाई जाती है. इस वर्ष नवरात्रि का यह पर्व 26 सितंबर से शुरू होगा. 4 अक्टूबर तक मनाया जाएगा. मां दुर्गा, मां भगवती और मां काली सभी देवियां जीवन के 9 रंगों का प्रतिनिधित्व करती हैं. इनमें सभी रंग समाहित है. माता के पूजन में सभी रंगों का शुभ समावेश स्पष्ट परिलक्षित होता है. यह रंग उमंग, शांति स्थिरता, समृद्धि, यश और प्रसिद्धि देने वाले होते हैं.

Navratri 2022
नवरात्रि 2022
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Published : Sep 22, 2022, 1:05 PM IST

Updated : Sep 23, 2022, 10:24 AM IST

रायपुर: नवरात्र के पहले दिन माता शैलपुत्री के रूप में देवी की पूजा की जाती है. शैलपुत्री हिमालय राज की कन्या मानी जाती हैं. देवी का स्वरूप हिमालय से ऊंचा, संकल्पवान और जीवन में शैल की भांति यानी चट्टान की भांति मजबूत होने की प्रेरणा भगवती प्रदान करती हैं.

देवी के नौ रूपों के पीछे की कहानी और रंगों का महत्व

यह भी पढ़ें: Navratri 2022 नवरात्रि का धार्मिक महत्व क्या है आइए जानते हैं

देवी के नौ रूपों के पीछे की कहानी

शैलपुत्री माता हमें जीवन में निर्भय निडर और दृढ़ संकल्प वान होने की शिक्षा देती हैं. आज के शुभ दिन पीले वस्त्र पहनकर देवी की पूजा की जाती है. चौकी का आसन भी पीला हो तो यह श्रेयस्कर माना जाता है. पीले फूल, पीले फल और पीले पुष्पों की माला भगवती को श्रद्धा पूर्वक ढंग से समर्पित की जाती है, जिससे साधकों और भक्तों को भक्ति का फल मिलता है.

नवरात्रि के दूसरे दिन माता के ब्रह्मचारिणी रूप में पूजा की जाती है. कुंवारी कन्याओं को आज के दिन भगवती की पूजा करने पर मनचाहे फल की प्राप्ति होती है. आज के दिन जप तप और व्रत करने पर सकारात्मक परिणाम प्राप्त होते हैं. माता ब्रह्मचारिणी की पूजा हरे वस्त्र पहनकर हरे रंग में की जाती है. आज के शुभ दिन तांबूल हरे फल, हरे फूल और त्रिदल युक्त बेलपत्र भी माता को समर्पित किया जाता है. आज के शुभ दिन चौकी में हरे रंग के वस्त्र से मां भगवती को सजाया जाता है. ओम ब्रह्मचारिणी नमः इस मंत्र का पाठ करना सर्वदा शुभ रहता है.

नवरात्रि के तीसरे दिन माता के चंद्रघंटा स्वरूप की पूजा की जाती है. आज के दिन कत्था रंग का वस्त्र पहनकर श्रद्धा पूर्वक माता चंद्रघंटा की पूजा की जाती है. देवी को चंद्रमा की आकृति अर्पित की जाती है. ओम चंद्रघंटाय नमः इस मंत्र का पाठ करने से लाभ की प्राप्ति होती है. आज के दिन फलाहारी उपवास रखकर देवी को प्रसन्न किया जाता है.

नवरात्र के चौथे दिन देवी की माता कुष्मांडा रूप की पूजा की जाती है. आज के दिन मां दुर्गा को कुम्हड़ा फल का भोग लगाया जाता है. नारंगी रंग के रंगों से देवि का श्रृंगार करना शुभ माना गया है. आज के शुभ दिन प्रातः काल स्नानादि से निवृत्त होकर भगवती के सामने ध्यान मग्न होकर कुष्मांडा माता की आराधना करनी चाहिए, जिससे माता का आशीर्वाद भक्त जनों को शीघ्र ही प्राप्त हो जाता है.

नवरात्र के पांचवे दिन देवी की स्कंदमाता स्वरूप में पूजा की जाती है. स्कंदमाता के रूप में सफेद वस्त्र में देवी की पूजा की जाती है. श्वेत वस्त्र में भगवती का श्रृंगार करने पर नवदुर्गा शीघ्र प्रसन्न होती है. सफेद फूल सफेद मिठाई चढ़ाकर देवी का आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है. आज के दिन सफेद वस्त्र पहनकर माता की पूजा आराधना करने पर माता शीघ्र प्रसन्न होती हैं.

नवरात्र के छठवें दिन देवी मां के कात्यायनी रुप की पूजा की जाती है. इस दिन अनुष्ठान मंत्र, सिद्धि तंत्र, सिद्धि और गुप्त ज्ञान के लिए भी महत्वपूर्ण माना गया है. माता कात्यायनी युद्ध की देवी मानी जाती है. कात्यायनी माता को ही अनेक पौराणिक कथाओं में महिषासुर मर्दिनी माना गया है. लाल रंग के सुखद रंग से नव दुर्गा माता का श्रृंगार किया जाता है. चौकी पर लाल वस्त्र, लाल फूल, लाल फल और लाल रंग के शुभ पदार्थ जैसे रोली कुमकुम, गुलाल, चूड़ी और श्रृंगार के सामान से भगवती की आराधना की जाती है. लाल रंग में माता बहुत शोभायमान होती है. आज के शुभ दिन लाल रंग के वस्त्र पहनकर भगवती की विनम्रता पूर्वक पूजा अर्चना करनी चाहिए.

नवरात्र के सातवें दिन माता के कालरात्रि रूप की पूजा की जाती है. आज के शुभ दिन निशा पूजन का भी विधान रहता है. अनेक स्थानों पर रातभर देवी का निशा पूजन किया जाता है. आज के दिन नीले रंग के वस्त्र, नीले पदार्थ के द्वारा भगवती की पूजा की जाती है. नीले पुष्प, नीले पुष्पों की माला और नीले वस्त्र द्वारा भगवती का श्रृंगार किया जाता है. देर रात्रि तक मां भगवती की निशा पूजन करने का भी विधान है.

नवरात्र के आठवें दिन माता के महागौरी रुप की पूजा की जाती है. नवरात्रि का आठवां दिन अष्टमी के रूप में मनाया जाता है. अष्टमी हवन महा अष्टमी के रूप में जानी जाती हैं. इस हवन में सभी साधक गण भक्ति भाव से सम्मिलित होते हैं. विभिन्न और सभी गुणों से युक्त पदार्थों के द्वारा यज्ञ हवन किया जाता है. असम, पश्चिम बंगाल, बांग्लादेश, अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा राज्यों में इस पर्व को अति विशिष्ट पर्व के रूप में मनाया जाता है. अष्टमी का पर्व बंग बंधुओं के लिए एक विशेष पर्व माना गया है. संपूर्ण बंगाल सहित भारतवर्ष में इसके प्रकाश और हवन की ऊर्जा चारों ओर दिखाई पड़ती है. आज के दिन यज्ञ की अग्नि के साथ विभिन्न मंत्रों द्वारा हवन किया जाता है. पंडालों में आज के दिन विशेष भीड़ दिखाई पड़ती है. सभी साधक गण अत्यंत भक्ति भाव से युक्त होकर इस यज्ञ में अपनी आहुति देते हैं. महागौरी के रूप में गुलाबी रंग से देवी की पूजा करनी चाहिए. आज के दिन गुलाब की पंखुड़ियों की माला देवी को अर्पित करना चाहिए. गुलाबी रंग के फल फूल मिठाई अर्पित कर देवी का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए.

नवरात्र के नवमें दिन देवी की सिद्धिदात्री रूप में पूजा की जाती है. आज के दिन भंडारा का आयोजन किया जाता है. विशेषकर कुंवारी कन्याओं के पूजन अर्चन और उन्हें भोजन करा कर द्रव्य दक्षिणा देकर आशीर्वाद प्राप्त करने का दिवस माना गया है. संपूर्ण भारत वर्ष में आज के दिन कन्या रूप में देवी का पूजन किया जाता है. कन्याओं को आदर सम्मान और श्रद्धा देकर द्रव्य दक्षिणा प्रदान की जाती है और उनका आशीर्वाद लिया जाता है. माता सिद्धिदात्री की पूजा बैगनी रंग की वस्तुओं से की जाती है. आज के दिन विभिन्न तरह के स्वादिष्ट पकवानों का माता को भोग लगाकर जगह जगह पर भोग भंडारे का आयोजन भी किया जाता है.

रायपुर: नवरात्र के पहले दिन माता शैलपुत्री के रूप में देवी की पूजा की जाती है. शैलपुत्री हिमालय राज की कन्या मानी जाती हैं. देवी का स्वरूप हिमालय से ऊंचा, संकल्पवान और जीवन में शैल की भांति यानी चट्टान की भांति मजबूत होने की प्रेरणा भगवती प्रदान करती हैं.

देवी के नौ रूपों के पीछे की कहानी और रंगों का महत्व

यह भी पढ़ें: Navratri 2022 नवरात्रि का धार्मिक महत्व क्या है आइए जानते हैं

देवी के नौ रूपों के पीछे की कहानी

शैलपुत्री माता हमें जीवन में निर्भय निडर और दृढ़ संकल्प वान होने की शिक्षा देती हैं. आज के शुभ दिन पीले वस्त्र पहनकर देवी की पूजा की जाती है. चौकी का आसन भी पीला हो तो यह श्रेयस्कर माना जाता है. पीले फूल, पीले फल और पीले पुष्पों की माला भगवती को श्रद्धा पूर्वक ढंग से समर्पित की जाती है, जिससे साधकों और भक्तों को भक्ति का फल मिलता है.

नवरात्रि के दूसरे दिन माता के ब्रह्मचारिणी रूप में पूजा की जाती है. कुंवारी कन्याओं को आज के दिन भगवती की पूजा करने पर मनचाहे फल की प्राप्ति होती है. आज के दिन जप तप और व्रत करने पर सकारात्मक परिणाम प्राप्त होते हैं. माता ब्रह्मचारिणी की पूजा हरे वस्त्र पहनकर हरे रंग में की जाती है. आज के शुभ दिन तांबूल हरे फल, हरे फूल और त्रिदल युक्त बेलपत्र भी माता को समर्पित किया जाता है. आज के शुभ दिन चौकी में हरे रंग के वस्त्र से मां भगवती को सजाया जाता है. ओम ब्रह्मचारिणी नमः इस मंत्र का पाठ करना सर्वदा शुभ रहता है.

नवरात्रि के तीसरे दिन माता के चंद्रघंटा स्वरूप की पूजा की जाती है. आज के दिन कत्था रंग का वस्त्र पहनकर श्रद्धा पूर्वक माता चंद्रघंटा की पूजा की जाती है. देवी को चंद्रमा की आकृति अर्पित की जाती है. ओम चंद्रघंटाय नमः इस मंत्र का पाठ करने से लाभ की प्राप्ति होती है. आज के दिन फलाहारी उपवास रखकर देवी को प्रसन्न किया जाता है.

नवरात्र के चौथे दिन देवी की माता कुष्मांडा रूप की पूजा की जाती है. आज के दिन मां दुर्गा को कुम्हड़ा फल का भोग लगाया जाता है. नारंगी रंग के रंगों से देवि का श्रृंगार करना शुभ माना गया है. आज के शुभ दिन प्रातः काल स्नानादि से निवृत्त होकर भगवती के सामने ध्यान मग्न होकर कुष्मांडा माता की आराधना करनी चाहिए, जिससे माता का आशीर्वाद भक्त जनों को शीघ्र ही प्राप्त हो जाता है.

नवरात्र के पांचवे दिन देवी की स्कंदमाता स्वरूप में पूजा की जाती है. स्कंदमाता के रूप में सफेद वस्त्र में देवी की पूजा की जाती है. श्वेत वस्त्र में भगवती का श्रृंगार करने पर नवदुर्गा शीघ्र प्रसन्न होती है. सफेद फूल सफेद मिठाई चढ़ाकर देवी का आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है. आज के दिन सफेद वस्त्र पहनकर माता की पूजा आराधना करने पर माता शीघ्र प्रसन्न होती हैं.

नवरात्र के छठवें दिन देवी मां के कात्यायनी रुप की पूजा की जाती है. इस दिन अनुष्ठान मंत्र, सिद्धि तंत्र, सिद्धि और गुप्त ज्ञान के लिए भी महत्वपूर्ण माना गया है. माता कात्यायनी युद्ध की देवी मानी जाती है. कात्यायनी माता को ही अनेक पौराणिक कथाओं में महिषासुर मर्दिनी माना गया है. लाल रंग के सुखद रंग से नव दुर्गा माता का श्रृंगार किया जाता है. चौकी पर लाल वस्त्र, लाल फूल, लाल फल और लाल रंग के शुभ पदार्थ जैसे रोली कुमकुम, गुलाल, चूड़ी और श्रृंगार के सामान से भगवती की आराधना की जाती है. लाल रंग में माता बहुत शोभायमान होती है. आज के शुभ दिन लाल रंग के वस्त्र पहनकर भगवती की विनम्रता पूर्वक पूजा अर्चना करनी चाहिए.

नवरात्र के सातवें दिन माता के कालरात्रि रूप की पूजा की जाती है. आज के शुभ दिन निशा पूजन का भी विधान रहता है. अनेक स्थानों पर रातभर देवी का निशा पूजन किया जाता है. आज के दिन नीले रंग के वस्त्र, नीले पदार्थ के द्वारा भगवती की पूजा की जाती है. नीले पुष्प, नीले पुष्पों की माला और नीले वस्त्र द्वारा भगवती का श्रृंगार किया जाता है. देर रात्रि तक मां भगवती की निशा पूजन करने का भी विधान है.

नवरात्र के आठवें दिन माता के महागौरी रुप की पूजा की जाती है. नवरात्रि का आठवां दिन अष्टमी के रूप में मनाया जाता है. अष्टमी हवन महा अष्टमी के रूप में जानी जाती हैं. इस हवन में सभी साधक गण भक्ति भाव से सम्मिलित होते हैं. विभिन्न और सभी गुणों से युक्त पदार्थों के द्वारा यज्ञ हवन किया जाता है. असम, पश्चिम बंगाल, बांग्लादेश, अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा राज्यों में इस पर्व को अति विशिष्ट पर्व के रूप में मनाया जाता है. अष्टमी का पर्व बंग बंधुओं के लिए एक विशेष पर्व माना गया है. संपूर्ण बंगाल सहित भारतवर्ष में इसके प्रकाश और हवन की ऊर्जा चारों ओर दिखाई पड़ती है. आज के दिन यज्ञ की अग्नि के साथ विभिन्न मंत्रों द्वारा हवन किया जाता है. पंडालों में आज के दिन विशेष भीड़ दिखाई पड़ती है. सभी साधक गण अत्यंत भक्ति भाव से युक्त होकर इस यज्ञ में अपनी आहुति देते हैं. महागौरी के रूप में गुलाबी रंग से देवी की पूजा करनी चाहिए. आज के दिन गुलाब की पंखुड़ियों की माला देवी को अर्पित करना चाहिए. गुलाबी रंग के फल फूल मिठाई अर्पित कर देवी का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए.

नवरात्र के नवमें दिन देवी की सिद्धिदात्री रूप में पूजा की जाती है. आज के दिन भंडारा का आयोजन किया जाता है. विशेषकर कुंवारी कन्याओं के पूजन अर्चन और उन्हें भोजन करा कर द्रव्य दक्षिणा देकर आशीर्वाद प्राप्त करने का दिवस माना गया है. संपूर्ण भारत वर्ष में आज के दिन कन्या रूप में देवी का पूजन किया जाता है. कन्याओं को आदर सम्मान और श्रद्धा देकर द्रव्य दक्षिणा प्रदान की जाती है और उनका आशीर्वाद लिया जाता है. माता सिद्धिदात्री की पूजा बैगनी रंग की वस्तुओं से की जाती है. आज के दिन विभिन्न तरह के स्वादिष्ट पकवानों का माता को भोग लगाकर जगह जगह पर भोग भंडारे का आयोजन भी किया जाता है.

Last Updated : Sep 23, 2022, 10:24 AM IST
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