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National Tribal Literature Festival raipur: रिसर्च स्कॉलर डॉ किरण से जानिए क्या है कोया पूनेम

रायपुर में राष्ट्रीय जनजातीय साहित्य महोत्सव में शामिल हुईं शोधार्थी डॉ. किरण ने ETV भारत से खास बातचीत की. उन्होंने बताया कि गोंड आदिवासी धर्म को नहीं मानते हैं बल्कि प्रकृति पर उनका विश्वास रहता है. गोंड जीवन दर्शन के बारे में और भी जानने के लिए पढ़िए और सुनिए बातचीत के अंश.

Koya Poonem Dharmadarshan
गोंड़ जनजाति का जीवन दर्शन कोया पूनेम
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Published : Apr 21, 2022, 10:36 AM IST

Updated : Apr 22, 2022, 6:44 AM IST

रायपुर: छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में तीन दिवसीय राष्ट्रीय जनजातीय साहित्य महोत्सव का आयोजन 19 अप्रैल से पंडित दीनदयाल उपाध्याय ऑडिटोरियम में किया जा रहा है. इस आयोजन में देशभर के जनजातीय विषय पर लिखने वाले कई साहित्यकार शामिल हुए हैं. महोत्सव में जनजातीय साहित्य पर 'भारत जनजाती भाषा एवं साहित्य का विकास एवं भविष्य' और 'भारत में जनजातीय विकास-मुद्दे, चुनौतियां एवं भविष्य' विषय पर परिचर्चा का भी आयोजन किया गया. इसके साथ ही देश भर से आये कई शोधार्थियों ने अपने शोधपत्र का वाचन भी किया . छत्तीसगढ़ में पहली बार आयोजित राष्ट्रीय जनजातीय साहित्य महोत्सव में प्रदेश के भी कई शोधार्थियों ने अपने शोधपत्र का वाचन किया. छत्तीसगढ़ की शोधार्थी डॉ. किरण नुरूटी के शोधपत्र, गोंड जनजाति का जीवन दर्शन- 'कोया पूनेम को काफी सराहा गया. ( Koya Poonem Life philosophy of Gond tribe) क्या अर्थ है 'कोया पूनेम का ? क्या है इस शोध पत्र में खास ? इन्हीं सवालों का जवाब जानने के लिए ETV भारत ने डॉ. किरण से खास बातचीत की.

रिसर्च स्कॉलर डॉ किरण से खास बात

सवाल : डॉ किरण, आपका शोध पत्र किस विषय पर आधारित है ? खास बातों के बारे में हमें बताएं?

जवाब : आदिवासियों के जीवन दर्शन पर आधारित 'कोया पुनेम' को मैंने शोध पत्र के रूप में पढ़ा है. जिसमें मैंने बताने की कोशिश की है कि गोंड आदिवासियों का कोई धर्म नहीं होता है, बल्कि उनका पुनेम होता है .

सवाल : किरण जी, पूनेम क्या है ? कोया का मतलब क्या होता है ? हमारे दर्शकों को भी समझाने की कोशिश कीजिए?

जवाब : कोया का मतलब गांव में रहने वाला, अपनी मां के पेट से जन्म लेने वाला और महुआ के फल को खाकर जीने वाला होता है. पूनेम का अर्थ सत्य मार्ग पर चलने वाला होता है. हालांकि यहां पर सत्य मार्ग का अर्थ अलौकिक शक्तियों के ऊपर विश्वास नहीं बल्कि प्रकृति के सत्य के ऊपर विश्वास करने वाला होता है .

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सवाल : आपने जनजातियों पर आधारित कई पुस्तकें भी लिखीं. उनमें किन विषयों को आपने उठाया है, जो सामान्यतः आम लोग ना जानते हों?

जवाब : बस्तर क्षेत्र के गोंडी जनजातियों की धार्मिक अवधारणा, मेरी पहली पुस्तक थी. यह जनजातियों के पूर्वजों के ऊपर लिखी गई किताब थी. जिसमें देवी-देवताओं पर आधारित बातें लिखी गई थी. पहले ये जनजाति अपनी ही देवी-देवताओं को जानते थे. अन्य धर्मों के बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं थी. उसी को मैंने संकलित करने की कोशिश की थी. गोंडी जनजातियों की पूजा पद्धति कैसी थी ? किसकी आराधना करते थे ? यह परंपरा कब से चली आ रही थी ? इन्हीं विषय पर मैंने बुक्स में जानकारी दी है. कुछ परंपराएं खत्म होती जा रहीं थीं. लोग दूसरे धर्मों में जा रहे थे. जिस पर विराम लगाने के उद्देश्य से मैंने यह किताब लिखी .

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सवाल : प्रकृति की पूजा करने को लेकर आज का जनजातीय जनरेशन क्या सोचता है ? क्या वे इन परंपराओं से दूर होते जा रहे हैं ?

जवाब : मैं मानती हूं कि बीच का जनरेशन अपनी संस्कृति को भूलता जा रहा था. लेकिन अब नया जनरेशन अपनी पुरानी संस्कृति के बारे में जानना चाहता है. वह अपनी परंपराओं और रीति-रिवाजों को जानने की चाहत रखता है. यही वजह है कि ये प्रकृति को बचाने की कोशिश कर रहे हैं .

सवाल : रायपुर में आयोजित इस कार्यक्रम के विषय में आपकी क्या राय है ?

जवाब : बहुत अच्छा आयोजन हुआ है. जिसमें देश के अलग-अलग राज्यों के जनजातियों के बारे में हमें भी जानकारी मिली. उनकी संस्कृति, कला, नृत्य इन सभी को हम भी देख पाए. हम बस्तर में रहते हैं तो सिर्फ उसी क्षेत्र के ही नृत्य को देख पाते थे. यहां पर आकर सभी प्रदेशों के नृत्य को देखने का सुखद अनुभव हासिल हुआ .

रायपुर: छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में तीन दिवसीय राष्ट्रीय जनजातीय साहित्य महोत्सव का आयोजन 19 अप्रैल से पंडित दीनदयाल उपाध्याय ऑडिटोरियम में किया जा रहा है. इस आयोजन में देशभर के जनजातीय विषय पर लिखने वाले कई साहित्यकार शामिल हुए हैं. महोत्सव में जनजातीय साहित्य पर 'भारत जनजाती भाषा एवं साहित्य का विकास एवं भविष्य' और 'भारत में जनजातीय विकास-मुद्दे, चुनौतियां एवं भविष्य' विषय पर परिचर्चा का भी आयोजन किया गया. इसके साथ ही देश भर से आये कई शोधार्थियों ने अपने शोधपत्र का वाचन भी किया . छत्तीसगढ़ में पहली बार आयोजित राष्ट्रीय जनजातीय साहित्य महोत्सव में प्रदेश के भी कई शोधार्थियों ने अपने शोधपत्र का वाचन किया. छत्तीसगढ़ की शोधार्थी डॉ. किरण नुरूटी के शोधपत्र, गोंड जनजाति का जीवन दर्शन- 'कोया पूनेम को काफी सराहा गया. ( Koya Poonem Life philosophy of Gond tribe) क्या अर्थ है 'कोया पूनेम का ? क्या है इस शोध पत्र में खास ? इन्हीं सवालों का जवाब जानने के लिए ETV भारत ने डॉ. किरण से खास बातचीत की.

रिसर्च स्कॉलर डॉ किरण से खास बात

सवाल : डॉ किरण, आपका शोध पत्र किस विषय पर आधारित है ? खास बातों के बारे में हमें बताएं?

जवाब : आदिवासियों के जीवन दर्शन पर आधारित 'कोया पुनेम' को मैंने शोध पत्र के रूप में पढ़ा है. जिसमें मैंने बताने की कोशिश की है कि गोंड आदिवासियों का कोई धर्म नहीं होता है, बल्कि उनका पुनेम होता है .

सवाल : किरण जी, पूनेम क्या है ? कोया का मतलब क्या होता है ? हमारे दर्शकों को भी समझाने की कोशिश कीजिए?

जवाब : कोया का मतलब गांव में रहने वाला, अपनी मां के पेट से जन्म लेने वाला और महुआ के फल को खाकर जीने वाला होता है. पूनेम का अर्थ सत्य मार्ग पर चलने वाला होता है. हालांकि यहां पर सत्य मार्ग का अर्थ अलौकिक शक्तियों के ऊपर विश्वास नहीं बल्कि प्रकृति के सत्य के ऊपर विश्वास करने वाला होता है .

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सवाल : आपने जनजातियों पर आधारित कई पुस्तकें भी लिखीं. उनमें किन विषयों को आपने उठाया है, जो सामान्यतः आम लोग ना जानते हों?

जवाब : बस्तर क्षेत्र के गोंडी जनजातियों की धार्मिक अवधारणा, मेरी पहली पुस्तक थी. यह जनजातियों के पूर्वजों के ऊपर लिखी गई किताब थी. जिसमें देवी-देवताओं पर आधारित बातें लिखी गई थी. पहले ये जनजाति अपनी ही देवी-देवताओं को जानते थे. अन्य धर्मों के बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं थी. उसी को मैंने संकलित करने की कोशिश की थी. गोंडी जनजातियों की पूजा पद्धति कैसी थी ? किसकी आराधना करते थे ? यह परंपरा कब से चली आ रही थी ? इन्हीं विषय पर मैंने बुक्स में जानकारी दी है. कुछ परंपराएं खत्म होती जा रहीं थीं. लोग दूसरे धर्मों में जा रहे थे. जिस पर विराम लगाने के उद्देश्य से मैंने यह किताब लिखी .

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सवाल : प्रकृति की पूजा करने को लेकर आज का जनजातीय जनरेशन क्या सोचता है ? क्या वे इन परंपराओं से दूर होते जा रहे हैं ?

जवाब : मैं मानती हूं कि बीच का जनरेशन अपनी संस्कृति को भूलता जा रहा था. लेकिन अब नया जनरेशन अपनी पुरानी संस्कृति के बारे में जानना चाहता है. वह अपनी परंपराओं और रीति-रिवाजों को जानने की चाहत रखता है. यही वजह है कि ये प्रकृति को बचाने की कोशिश कर रहे हैं .

सवाल : रायपुर में आयोजित इस कार्यक्रम के विषय में आपकी क्या राय है ?

जवाब : बहुत अच्छा आयोजन हुआ है. जिसमें देश के अलग-अलग राज्यों के जनजातियों के बारे में हमें भी जानकारी मिली. उनकी संस्कृति, कला, नृत्य इन सभी को हम भी देख पाए. हम बस्तर में रहते हैं तो सिर्फ उसी क्षेत्र के ही नृत्य को देख पाते थे. यहां पर आकर सभी प्रदेशों के नृत्य को देखने का सुखद अनुभव हासिल हुआ .

Last Updated : Apr 22, 2022, 6:44 AM IST
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