रायपुर: राष्ट्रीय हस्तलेखन दिवस (National Handwriting Day) हर साल 23 जनवरी को मनाया जाता है. इसकी शुरुआत साल 1977 से हुई. इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य पेंसिल, पेन और कलर पेन से राइटिंग को खूबसूरत बनाना है. इसके साथ ही सुंदर हस्तलेखन के माध्यम से व्यक्तित्व को अच्छा बनाना है. भारत में 1977 से इसे मनाया जा रहा है.
यह भी पढ़ें: चंदा लेकर इंटरनेशनल कराटे चैंपियनशिप में पहुंचीं बालोद की बेटियां, देश के लिए जीते दो सिल्वर मेडल
आधुनिक तकनीक की वजह से हस्तलेखन से दूर हो रहे लोग
आधुनिक तकनीक आ जाने से हस्तलेखन से लोग दूर हो रहे हैं. इसकी वजह मोबाइल और कंप्यूटर हैं. इस यंत्र के माध्यम से आसानी से काम कर रहे हैं. वहीं हाथ से लिखना अब दुर्लभ हो गया है. पहले लोग हाथ से ही लिखते थे. फिर टाइपिंग मशीन आई और अब आधुनिक संसाधनों में कंप्यूटर और मोबाइल भी शामिल हो गए हैं. इतना ही नहीं इसमें एक पायदान और बढ़ते हुए वॉइस टाइपिंग यानी बोलकर लिखना भी शुरू हो गया है. ऐसे में कहा जा सकता कि आप लोगों को लिखने के लिए कागज पेन की नहीं बल्कि इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस जैसे कंप्यूटर मोबाइल आदि की जरूरत है.
इस आधुनिकता की दौड़ में धीरे-धीरे लोग लिखना-पढ़ना भूलते जा रहे हैं. आज ज्यादातर लोग कंप्यूटर और मोबाइल के माध्यम से ही काम करते हैं, उन्हें लिखने की आवश्यकता कम ही होती है. जबकि एक समय ऐसा था कि बिना लिखे किसी का कोई काम ही नहीं होता था, फिर वह चाहे स्कूल में पढ़ाई हो या फिर दफ्तर में नोटशीट लिखना या पत्रकारिता के क्षेत्र की ही लिखावट. यह सिलसिला यहीं नहीं रुका, पहले बड़ी-बड़ी किताबें भी हाथों से लिखी जाती थीं. उसके बाद उसे टाइप कर छपवाया जाता था, लेकिन अब वह काम भी कंप्यूटर पर होने लगा है. यह कह सकते हैं कि धीरे-धीरे हस्त लेखन की कला से लोगों से दूर होती जा रही है.
अतीत की बात की जाए तो उस समय सुंदर अच्छी लिखावट वाले लोगों को बड़े-बड़े राजा महाराजा अपने लेखन कार्य के लिए रखते थे, इसके बाद अंग्रेजों ने भी लेखन कार्य के लिए अच्छी लिखावट वाले लोगों को रखना शुरू किया और यह रोजगार का भी एक प्रमुख साधन था, लेकिन बदलते दौर और आधुनिकता के कारण अब यह कला धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है. स्कूल शिक्षा-दीक्षा में भी अब लेखन का कम उपयोग किया जा रहा है. पहले शिक्षक ब्लैक बोर्ड पर चॉक से लिखकर बच्चों को पढ़ाते थे, आज वे लैपटॉप और कंप्यूटर प्रोजेक्टर के माध्यम से बच्चों को पढ़ा रहे हैं. इसमें भी उन्हें हस्तलेखन की आवश्यकता कम या फिर नहीं के बराबर होती है. इतना ही नहीं अब बच्चे भी कंप्यूटर और मोबाइल में बोलकर टाइप कर अपना प्रोजेक्ट तैयार करते हैं और उसे स्कूलों में जमा करते हैं. यानी कि उनकी लेखनी भी अब धीरे-धीरे कमजोर होती जा रही है.
हस्तलेखन न होने से भाषा पर ही मंडरा रहा संकट
शिक्षाविद एवं वरिष्ठ पत्रकार शशांक शर्मा का कहना है कि इतिहास पर नजर डाला जाए तो हमारे पूर्वजों ने सबसे पहले हाथ से लिखने की कला को सीखा. पूर्वजों के लिखे हुए अभिलेख शिलालेख या फिर पुरानी गुफाओं में मिलते हैं. हमारे इतिहास को जानने और समझने का एक मुख्य स्त्रोत है. इसका मतलब हमारे हाथ से लिखी चीजें कालांतर में भी हमारे इतिहास के मुख्य स्त्रोत के रूप में रहेंगी.
शशांक ने कहा कि आज हाथ से लिखने की प्रवृत्ति कम होती जा रही है और लोग कंप्यूटर और मोबाइल में टाइप करने लगे हैं, हालांकि उन्होंने इस कला के विलुप्त होने से साफ इंकार कर दिया है. उन्होंने कहा कि आज भी स्कूल और महाविद्यालय में जो परीक्षाएं होती हैं, उसमें हाथ से लिखना और अच्छी लिखावट प्राथमिकता होती है. आज भी अच्छी लिखावट रोजगार का मुख्य साधन है. इसी लेखन कला से महाविद्यालयों की डिग्रियां बनती है. अच्छे अवार्ड या पुरस्कार समारोह होते हैं. उसमें अभिनंदन पत्र वगैरह हस्तलिखित माने जाते हैं. हस्तलेखन से बढ़ती दूरियां की वजह से आज यह कला भी विलुप्त होती जा रही है.
उन्होंने कहा कि भाषा की दुर्गति हस्तलेखन न होना है. लिखते समय बहुत सारी त्रुटियां होती है, यहां तक कि कई पत्र पत्रिकाओं में भी ऐसी त्रुटियां देखने को मिलती है. यही वजह है कि अब भाषा पर ही संकट मंडरा रहा है. हस्त लेखन नहीं होने से मान सम्मान उस समय पत्रकारों को मिलता था अब कम हो गया है.
यह भी पढ़ें: कोरबा की हवा में 'जहर' घोल रहा कोयले का धुआं, 265 से भी ज्यादा पहुंचा PM लेवल
हस्तलेखन की जगह कंप्यूटर और मोबाइल ने लिया जगह
प्रोफेसर सुनीता चंसौरिया ने कहा कि हस्तलेखन की बात हो तो यह बिना कलम और दवात के अधूरी सी है. क्योंकि इसकी शुरुआत कलम-दवात से ही हुई थी. समय बदलने से साथ कलम-दवात की फाउंटेन पेन ने ले ली. आगे चलकर अब लोगों ने टाइपिंग और वॉइस टाइपिंग को हस्तलेखन का जरिया बना लिया है. यही कारण है कि कहीं-न-कहीं हस्तलेखन की कला अब धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है.
चौरसिया ने कहा कि टाइपिंग और वॉइस टाइपिंग की वजह से लिखने में भी कई तरह की त्रुटियां हो रही हैं. शब्दों में इन त्रुटियों की वजह से अर्थ का अनर्थ हो जाता है. उन्होंने कहा कि लोगों में हस्तलेखन के लिए रुचि तभी पैदा करने के लिए फिर से भारतीय परंपरा के अनुसार शिक्षा पर जोर देना होगा. साथ ही हस्तलेखन के लिए बच्चों को घर पर ही प्रेरित करना होगा, क्योंकि वह स्कूल कुछ समय के लिए जाते हैं बाकी समय उनका घर पर ही गुजरता है. पहले हस्तलेखन प्रतियोगिताएं होती थीं, जिसमें बच्चे भाग लेते थे. इससे उनकी लिखावट में निखार आता था. पहले राइटिंग की क्लासेस चलती थीं, जो दिनोंदिन अब कम होती जा रही हैं.
बहरहाल, आज हम राष्ट्रीय हस्तलेखन दिवस मनाने जा रहे हैं, लेकिन क्या वाकई लोग हस्तलेखन के लिए प्रेरित हो रहे हैं या फिर उससे दूर होते जा रहे हैं, इस पर विचार करने की जरूरत है. समय रहते इस ओर रुचि नहीं बढ़ाई गई, तो आने वाले समय में हस्तलेखन सिर्फ इतिहास बनकर रह जाएगा.