रायपुर: देशभर में 7 नवंबर राष्ट्रीय कैंसर जागरूकता दिवस मनाया जाता है. इस दिन कैंसर के बारे में जागरूकता बढ़ाने और इसे वैश्विक स्वास्थ्य प्राथमिकता बनाने के लिए मनाया जाता है. साल 2014 में पूर्व केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने जन जागरूकता बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय कैंसर जागरूकता दिवस की स्थापना की थी. जागरूकता दिवस के मौके पर ETV भारत छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर की एक ऐसी युवती से मिलवाने जा रहा है. जिन्होंने एनआईटी रायपुर से एमटेक की पढ़ाई करने के बाद नौकरी ना कर कैंसर सरवाइवर पेशेंट के साथ काम करने की ठानी. पिछले 10 सालों से वे कैंसर जागरूकता और कैंसर सरवाइवर पेशेंट के साथ काम कर रही हैं. ETV भारत ने सुदेशना रुहान से खास बातचीत की.
सवाल- किस तरह से आप कैंसर पेशेंट के साथ काम कर रही है?
जवाब- पिछले 10 सालों से मैं कैंसर पेशेंट और उनकी केयर करने वाले लोगों की काउंसलिंग का काम कर रही हूं. उसके बीच जो कुछ भी मदद लगती है उसे लेकर मैं काम कर रही हूूं. लेकिन मुझे खुशी हो रहीं है कि इस साल हमने निरामया कैंसर फाउंडेशन रायपुर में रजिस्टर्ड कराया है. फाउंडेशन के माध्यम से हम सर्वाइकल कैंसर के प्रति लोगों को जागरूक करने का काम कर रहे है.
सवाल- आपने इंजीनियर की पढ़ाई की ? लेकिन आप आज कैंसर पेशेंट के लिए काम कर रही है. कैसे आप इस फील्ड में आई?
जवाब- मैं रायपुर एनआईटी से एमटेक कर रही थी. मैंने अपने गाइड से रिसर्च के लिए ऐसा सब्जेक्ट मांगा. जिसमें सोसाइटी कनेक्ट हो. मेरे गाइड ने मुझसे मेकाहारा जाकर कैंसर पेशेंट से जुड़े डाटा लाने की बात कही. वहां जाकर जब मैं पहले कैंसर पेशेंट से मिली. उनका हाथ पकड़कर मैंने देखा कि वे किन कठिनाइयों से गुजर रहे हैं. स्पेशली जो पेशेंट होते है सुदूर और ग्रामीण इलाकों से आते हैं. छत्तीसगढ़ में रायपुर ही एक ऐसा क्षेत्र है जहां आपको कैंसर के इलाज से संबंधित सारी सुविधाएं मिलती है. उन कैंसर पेशेंट का संघर्ष देखा. उस समय ही मुझे यह लगा कि जीवन को जो चाहिए था कि मैं किस लिए यहां हूं. उसका जवाब मुझे मिल गया था. वह दिन और आज का दिन मुझे 10 साल हो गए है.मैं जो काम कर रही हूँ उससे मैं सुखी हूं .
सवाल-शुरुआती दौर कैसा था ? नौकरी नहीं करने का निर्णय कर आपने कैंसर सरवाइवर के लिए काम करने की शुरुआत की तो उस दौरान घर वालों का क्या कहना था
जवाब- शुरुआती दौर मुश्किल भरा था. पहले लोग मुझे पागल कहते थे. अभी भी घर में कभी कभी लोगों को लगता है कि मुझे कुछ प्रॉब्लम है. लेकिन सबने देखा कि मैं अपने काम के फोकस्ड हूं. मुझे कोई अफसोस नहीं है कि मल्टीनेशनल कंपनी नहीं चुनकर ऐसे मरीजों के लिए काम कर रही है जो बदले में कुछ नहीं दे सकते. यह देखने के बाद भी लोगों का नजरिया बदला. खास तौर पर मेडिकल कैंसर टीम बहुत ही सपोर्टिव रहे है. इसके लिए पीछे मेरे गाइड डॉ पियूष शुक्ला का बहुत बड़ा योगदान है. मुझे यहां तक लाने में. मैंने अपना पहला शोधपत्र लिखा जो बाद में पब्लिश भी हुआ. उन्होंने मुझे रिसर्च के अलावा अन्य चीजों से परिचय कराया कि कैंसर के क्षेत्र में किस तरह के काम किए जा सकते है. कैसर के मरीजों को किस तरह की जरूरत है. मैं उनका बहुत धन्यवाद करना चाहूंगी.
सवाल -कैंसर पेशेंट को आपने बेहद करीब से देखा है. उन्हें कितनी दिक्कतें होती है. उन्हें किस तरह के इलाज की जरूरत होती है?
जवाब- आज केंद्र और राज्य शासन की बहुत अच्छी योजनाए है जो कैंसर पेशेंट के लिए मददगार है लेकिन कई ऐसे खर्च होते है जिन्हें पेशेंट के परिजनों के जेब से खर्च होते है. कई जांच है जो उन्हें अपने खर्च से करना पड़ता है. छत्तीसगढ़ में रायपुर ही ऐसा केंद्र है जहां लोगों को इलाज करना पड़ता है. कई मरीज बस्तर, जशपुर और दूर दराज के इलाकों से है वे रोज आना जाना नहीं कर सकते. आज भी कई जगह यह हालात है कि लोग अपने गांव जमीन और पशुधन को बेचकर इलाज करवाते हैं. कैंसर को लेकर जागरूकता का अभाव है. साथ में सहयोग का भी भाव है. यह सरकारी सहयोग से संभव नहीं है. हमें सामाजिक सहयोग की भी जरूरत है. सब आगे आए और अपने स्तर पर कैंसर पेशेंट की मदद करे.
सवाल- आपका फाउंडेशन किस तरह से काम करता है. ?
जवाब- हमारा फाउंडेशन सर्वाइकल कैंसर (बच्चादानी के मुंह के कैंसर ) के बारे में जागरूक कर रहे है. हम अलग अलग महिलाओं से मिलते है. इसके साथ ही डब्ल्यूएचओ भी कहता है कि ये एक ऐसा कैंसर है जिसे सही जानकारी और सहायता उपलब्ध होने पर बिल्कुल बचा जा सकता है. हम उसी क्षेत्र में काम कर रहे हैं. हम जनता से भी सहयोग की अपेक्षा रखते हैं. हम सभी कैंसर की जागरूकता के लिए आगे हैं, अपनों को जागरूक करें लोगों को जागरूक करें, इस दिशा में जो भी सहयोग हो सकते है जरूर करें.