रायपुर: छत्तीसगढ़ के कई जिलों में मशरूम की खेती किसानों के द्वारा की जाती है, और इसकी खेती के लिए वहां का वातावरण भी उपयुक्त माना जाता है. इसके साथ ही मशरूम को घर पर भी उगाया जा सकता है. इसके लिए प्रदेश के किसानों को इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा बीज भी प्रदाय किया जाता है. आमतौर पर बारिश के दिनों में मशरूम की उगता है, लेकिन इसे घर में भी आसानी से मशरूम उगाई जा सकती है. मशरूम गर्भ कैंसर और कुपोषण से लड़ने में भी सहायक होता है.Mushroom farming in chhattisgarh
छत्तीसगढ़ में मशरूम की खेती: इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिक घनश्याम दास साहू ने बताया कि "मशरूम का उत्पादन इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के साथ ही किसानों के द्वारा किया जा रहा है. किसान ने मशरूम का पाउडर बनाने के साथ ही उसको कैप्सूल भी बनाया है. जिसका उपयोग गर्भ कैंसर और कुपोषण जैसी बीमारी से भी लड़ने में सहायक है. मशरूम के पकोड़े और आचार भी बनाए जा सकते हैं. जो स्वादिष्ट होने के साथ ही औषधीय गुणों से युक्त होगा. मशरूम का उत्पादन आसानी से किसान कर सकते हैं. इसके लिए घर के किसी बंद कमरे में जहां पर अंधेरा हो और सूर्य का प्रकाश ना आता हो ऐसी जगहों पर मशरूम उगाई जा सकती है."
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मशरूम खाने के फायदे: मशरूम को फुटू, बोड़ा और पिहरी के नाम से भी छत्तीसगढ़ में जाना जाता है. मशरूम भगवान भोग के काम में भी आता है. पूरे भारत में छत्तीसगढ़ के चारामा से लेकर बस्तर तक बोड़ा फुटू बाजार में देखने को मिलता है. ऐसी मान्यता है कि बारिश के समय जुलाई अगस्त के महीने में आकाशीय बिजली के चमकने से मशरूम उगता है. कृषि वैज्ञानिक की दृष्टिकोण से मशरूम एक लाभकारी फफूंद होने के साथ ही एक सुपाच्य भोजन भी है. मशरूम में कई तरह के विटामिन और प्रोटीन भरपूर मात्रा में पाई जाती है. मशरूम में रसा और रेशा की मात्रा भी बहुत अधिक होती है. जो भोजन को सुपाच्य बनाने में मदद करती है.