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सांसद फूलो देवी नेताम ने राज्यसभा में उठाया आदिवासी समुदाय का मामला, कहा-बजट में 8.6 % मिले हिस्सेदारी - सांसद फूलो देवी नेताम

सांसद फूलोदेवी नेताम ने बजट में आदिवासी समुदाय की हिस्सेदारी का मुद्दा राज्यसभा (MP Phulo devi Netam raised issue of tribal community) में उठाया.

MP Phulo devi Netam
सांसद फूलो देवी नेताम
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Published : Mar 15, 2022, 10:32 PM IST

रायपुर: सांसद फूलोदेवी नेताम ने राज्यसभा में आदिवासी समुदाय का मुद्दा उठाया. अपने मेडेन स्पीच में नेताम ने कहा कि आदिवासी समुदाय को आबादी के हिसाब से बजट में 8.6 प्रतिशत हिस्सेदारी दी जाए. आदिवासियों के लिए आवंटित बजट लक्षित योजनाओं खर्च (MP Phulo devi Netam raised issue of tribal community) हो. आदिवासियों के उत्थान के लिए बनी योजनाओं की 100 फीसद राशि खर्च की जाए. किसानों की आमदनी बढाने के लिए पूरे देश में गौठान योजना लागू की जाए.

भाजपा के 8 बजट नाकाम

नेताम ने कहा कि यह बीजेपी सरकार का नौवां बजट है. पिछले आठ सालों में कई बजट पेश हुए हैं.सबका बजट, विकास का बजट, बेहतर भारत का बजट, नए भारत का बजट, जन-जन का बजट और पिछले साल आत्मनिर्भर भारत का बजट. लेकिन मैं सरकार से पूछना चाहती हूं कि सुंदर शब्दों वाले ये बजट क्या देश के सबसे पिछले आदिवासी समुदायों की आकांक्षाओं पर खरे उतरे हैं?

अनुसूचित जनजाति मजदूरी पर निर्भर

नेताम ने कहा कि अनुसूचित जनजाति के 35.65 फीसद लोग भूमिहीन व मजदूरी पर निर्भर है. क्या इनका भला हो पाया है? अनुसूचित जनजातियों के 74.1 फीसद लोग बेहद गरीब हैं. क्या ये गरीबी रेखा से उपर उठ पाए हैं? जनगणना 2011 के अनुसार 86.53 प्रतिशत आदिवासियों की आमदनी 5 हजार से कम थी. अगर आज गणना की जाए तो इनमें से अधिकांश तो 5 हजार की नौकरी भी नहीं कर रहे हैं. आज बेरोजगारी चरम सीमा पर है.

यह भी पढ़ें: रायपुर नगर निगम सामान्य सभा की बैठक में पहुंचीं राज्यपाल, छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ियों की तारीफ की

जनजाति कार्य मंत्रालय को मात्र 8451.92 करोड़ रुपए

नेताम ने कहा कि वित्तीय वर्ष 2022-23 में अनुसूचित जनजातियों के कुल 89265.12 करोड़ का बजट आवंटित किया गया है. उसमें जनजाति कार्य मंत्रालय को मात्र 8451.92 करोड़ रुपए यानि 9.46 फीसद आवंटित हुआ है. इससे आप समझिए कि आदिवासियों को जो बजट मिला है उसका 10 फीसद भी सीधे तौर पर उनके लिए बनी योजनाओं में नहीं मिल रहा, तो बाकी 90.54 फीसद बजट ऐसी योजनाओं में दिया जा रहा है जो सब लोगों के लिए बनी है.

सभी जातियों के लोग करते हैं किसानी

प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि अब भारत में सभी जातियों के लोग किसानी करते हैं. इस स्कीम में अनुसूचित जनजाति डवलपमेंट प्लान का 5876 करोड़ रुपया दिया गया है.पानी की पाईप लाईन बिछती है तो सबके लिए, सड़क बनती है तो सबके लिए, राशन बंटता है तो सभी गरीबों को. लेकिन इन सब योजनाओं में अनुसूचित जनजाति डवलपमेंट प्लान का भी पैसा डाल दिया जाता है. ऐसा क्यों?

जब पैसा आदिवासियों के नाम का है तो उसे सब में क्यों बांटा जा रहा

नेताम ने कहा कि जब पैसा हम आदिवासियों के नाम का है तो उसे सब में क्यों बांटा जा रहा है. आदिवासी समुदायों के विकास के लिए लक्षित योजनाओं में ही यह धन राशि खर्च होनी चाहिए.सरकार अपनी वाह-वाही कर रही है कि हमने आदिवासियों को 927 करोड़ रुपए बढाकर बजट दिया। लेकिन आंकडों को देंखेंगे तो पता लगेगा कि पिछले बजट को संशोधित करके 1343.57 करोड़ की कटौती कर दी गई थी.यही हाल इस बजट का भी हो जाएगा. बजट में कटौती ऐसे समय की गई जब पूरा देश कोरोना से पीडित था. कोरोना का सबसे बडा प्रभाव तो गरीब, आदिवासी पर ही तो हुआ है और आपने जो दिया उसे दूसरे हाथ से वापस ले लिया.

होती है आदिवासियों की हकमारी

नेताम ने कहा कि बड़ा दुर्भाग्य है कि आदिवासियों का हक मारा जाता है और सरकार अपनी वाहवाही लूटने में लगी रहती है. आदिवासी कार्य मंत्रालय बजट बढ़ाने की बात तो कहता है लेकिन कोई नई योजना नहीं ले कर आया. कई योजनाओं में कटौती कर दी गई है. ट्राईफेड और एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय के लिए कुछ नहीं दिया गया. राज्य सरकारों को सहायता अनुदान में 59 करोड़ की कटौती की गई है. इस योजना में कटौती का सबसे ज्यादा नुकसान तो हमारे आदिवासी राज्यों को होगा, छत्तीसगढ़ को होगा. नेताम ने कहा कि आदिवासी समुदायों व अन्य समुदायों के ’मानव विकास सूचकांक’ के बीच बडा अन्तर है. इसके कई कारण हैं जैसे:- मुख्यतः आदिवासी समुदायों के लिए आबादी के हिसाब से बजट आवंटित नहीं किया जाता और आदिवासी समुदायों के विकास के लिए लक्षित योजनाओं में बजट जारी नहीं किया जाता.

जनजातीय कार्य मंत्रालय की 18 महत्वपूर्ण योजनाएं

पिछले वर्ष 2021-22 में जनजातिय कार्य मंत्रालय की 18 महत्वपूर्ण योजनाओं में कुल 7484.07 करोड़ रुपए आवंटित किया गया लेकिन अब तक मात्र 4649.09 करोड़ रुपए ही जारी किया गया.मतलब 2834.98 करोड़ रुपए (37.88 फीसद) दिए ही नहीं गए हैं.ये आंकडे मंत्रालय की वेबसाइट से ही लिए हैं.मैं अपने मन से कुछ नहीं जोड़ रही. अगर बताया जाए तो बहुत कुछ है लेकिन सरकार को मैं सुझाव देना चाहूंगी. पिछले साल दिसम्बर में जब बजट की तैयारी चल रही थी जब मैंने वित्त मंत्री जी को पत्र लिखा था. उसमें सुझाव भी दिए थे.आज सदन में पुनः मांग करती हूं.

नेताम ने निम्नलिखित सुझाव केन्द्र सरकार को दिए हैं

  • देश की आबादी में 8.6 फीसद हिस्सेदारी रखने वाले आदिवासी समुदाय के लिए आवंटित किया जाने वाला बजट जनसंख्या में हिस्सेदारी के अनुपात में आवंटित किया जाना चाहिए.
  • अनुसूचित जनजाति के लिए आवंटित बजट लक्षित योजनाओं पर ही खर्च किया जाए.
  • अनुसूचित जनजाति के लिए बनी योजनाओं के कार्यान्वयन के लिए आवंटित बजट की 100 फीसद राशि खर्च की जाए.
  • आज देश का किसान महंगाई से मर रहा है. उसकी आमदनी तो दुगुनी नहीं हुई बल्कि कृषि लागत चार गुना हो गई है.मेरा सुझाव है कि हमारे छत्तीसगढ़ में गौठान योजना चलाई जा रही है.उससे किसान स्वावलम्बी हो रहे हैं. केन्द्र सरकार इस योजना को पूरे भारत में लागू करने का विचार करे जिससे किसानों की आमदनी बढ़ेगी.

रायपुर: सांसद फूलोदेवी नेताम ने राज्यसभा में आदिवासी समुदाय का मुद्दा उठाया. अपने मेडेन स्पीच में नेताम ने कहा कि आदिवासी समुदाय को आबादी के हिसाब से बजट में 8.6 प्रतिशत हिस्सेदारी दी जाए. आदिवासियों के लिए आवंटित बजट लक्षित योजनाओं खर्च (MP Phulo devi Netam raised issue of tribal community) हो. आदिवासियों के उत्थान के लिए बनी योजनाओं की 100 फीसद राशि खर्च की जाए. किसानों की आमदनी बढाने के लिए पूरे देश में गौठान योजना लागू की जाए.

भाजपा के 8 बजट नाकाम

नेताम ने कहा कि यह बीजेपी सरकार का नौवां बजट है. पिछले आठ सालों में कई बजट पेश हुए हैं.सबका बजट, विकास का बजट, बेहतर भारत का बजट, नए भारत का बजट, जन-जन का बजट और पिछले साल आत्मनिर्भर भारत का बजट. लेकिन मैं सरकार से पूछना चाहती हूं कि सुंदर शब्दों वाले ये बजट क्या देश के सबसे पिछले आदिवासी समुदायों की आकांक्षाओं पर खरे उतरे हैं?

अनुसूचित जनजाति मजदूरी पर निर्भर

नेताम ने कहा कि अनुसूचित जनजाति के 35.65 फीसद लोग भूमिहीन व मजदूरी पर निर्भर है. क्या इनका भला हो पाया है? अनुसूचित जनजातियों के 74.1 फीसद लोग बेहद गरीब हैं. क्या ये गरीबी रेखा से उपर उठ पाए हैं? जनगणना 2011 के अनुसार 86.53 प्रतिशत आदिवासियों की आमदनी 5 हजार से कम थी. अगर आज गणना की जाए तो इनमें से अधिकांश तो 5 हजार की नौकरी भी नहीं कर रहे हैं. आज बेरोजगारी चरम सीमा पर है.

यह भी पढ़ें: रायपुर नगर निगम सामान्य सभा की बैठक में पहुंचीं राज्यपाल, छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ियों की तारीफ की

जनजाति कार्य मंत्रालय को मात्र 8451.92 करोड़ रुपए

नेताम ने कहा कि वित्तीय वर्ष 2022-23 में अनुसूचित जनजातियों के कुल 89265.12 करोड़ का बजट आवंटित किया गया है. उसमें जनजाति कार्य मंत्रालय को मात्र 8451.92 करोड़ रुपए यानि 9.46 फीसद आवंटित हुआ है. इससे आप समझिए कि आदिवासियों को जो बजट मिला है उसका 10 फीसद भी सीधे तौर पर उनके लिए बनी योजनाओं में नहीं मिल रहा, तो बाकी 90.54 फीसद बजट ऐसी योजनाओं में दिया जा रहा है जो सब लोगों के लिए बनी है.

सभी जातियों के लोग करते हैं किसानी

प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि अब भारत में सभी जातियों के लोग किसानी करते हैं. इस स्कीम में अनुसूचित जनजाति डवलपमेंट प्लान का 5876 करोड़ रुपया दिया गया है.पानी की पाईप लाईन बिछती है तो सबके लिए, सड़क बनती है तो सबके लिए, राशन बंटता है तो सभी गरीबों को. लेकिन इन सब योजनाओं में अनुसूचित जनजाति डवलपमेंट प्लान का भी पैसा डाल दिया जाता है. ऐसा क्यों?

जब पैसा आदिवासियों के नाम का है तो उसे सब में क्यों बांटा जा रहा

नेताम ने कहा कि जब पैसा हम आदिवासियों के नाम का है तो उसे सब में क्यों बांटा जा रहा है. आदिवासी समुदायों के विकास के लिए लक्षित योजनाओं में ही यह धन राशि खर्च होनी चाहिए.सरकार अपनी वाह-वाही कर रही है कि हमने आदिवासियों को 927 करोड़ रुपए बढाकर बजट दिया। लेकिन आंकडों को देंखेंगे तो पता लगेगा कि पिछले बजट को संशोधित करके 1343.57 करोड़ की कटौती कर दी गई थी.यही हाल इस बजट का भी हो जाएगा. बजट में कटौती ऐसे समय की गई जब पूरा देश कोरोना से पीडित था. कोरोना का सबसे बडा प्रभाव तो गरीब, आदिवासी पर ही तो हुआ है और आपने जो दिया उसे दूसरे हाथ से वापस ले लिया.

होती है आदिवासियों की हकमारी

नेताम ने कहा कि बड़ा दुर्भाग्य है कि आदिवासियों का हक मारा जाता है और सरकार अपनी वाहवाही लूटने में लगी रहती है. आदिवासी कार्य मंत्रालय बजट बढ़ाने की बात तो कहता है लेकिन कोई नई योजना नहीं ले कर आया. कई योजनाओं में कटौती कर दी गई है. ट्राईफेड और एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय के लिए कुछ नहीं दिया गया. राज्य सरकारों को सहायता अनुदान में 59 करोड़ की कटौती की गई है. इस योजना में कटौती का सबसे ज्यादा नुकसान तो हमारे आदिवासी राज्यों को होगा, छत्तीसगढ़ को होगा. नेताम ने कहा कि आदिवासी समुदायों व अन्य समुदायों के ’मानव विकास सूचकांक’ के बीच बडा अन्तर है. इसके कई कारण हैं जैसे:- मुख्यतः आदिवासी समुदायों के लिए आबादी के हिसाब से बजट आवंटित नहीं किया जाता और आदिवासी समुदायों के विकास के लिए लक्षित योजनाओं में बजट जारी नहीं किया जाता.

जनजातीय कार्य मंत्रालय की 18 महत्वपूर्ण योजनाएं

पिछले वर्ष 2021-22 में जनजातिय कार्य मंत्रालय की 18 महत्वपूर्ण योजनाओं में कुल 7484.07 करोड़ रुपए आवंटित किया गया लेकिन अब तक मात्र 4649.09 करोड़ रुपए ही जारी किया गया.मतलब 2834.98 करोड़ रुपए (37.88 फीसद) दिए ही नहीं गए हैं.ये आंकडे मंत्रालय की वेबसाइट से ही लिए हैं.मैं अपने मन से कुछ नहीं जोड़ रही. अगर बताया जाए तो बहुत कुछ है लेकिन सरकार को मैं सुझाव देना चाहूंगी. पिछले साल दिसम्बर में जब बजट की तैयारी चल रही थी जब मैंने वित्त मंत्री जी को पत्र लिखा था. उसमें सुझाव भी दिए थे.आज सदन में पुनः मांग करती हूं.

नेताम ने निम्नलिखित सुझाव केन्द्र सरकार को दिए हैं

  • देश की आबादी में 8.6 फीसद हिस्सेदारी रखने वाले आदिवासी समुदाय के लिए आवंटित किया जाने वाला बजट जनसंख्या में हिस्सेदारी के अनुपात में आवंटित किया जाना चाहिए.
  • अनुसूचित जनजाति के लिए आवंटित बजट लक्षित योजनाओं पर ही खर्च किया जाए.
  • अनुसूचित जनजाति के लिए बनी योजनाओं के कार्यान्वयन के लिए आवंटित बजट की 100 फीसद राशि खर्च की जाए.
  • आज देश का किसान महंगाई से मर रहा है. उसकी आमदनी तो दुगुनी नहीं हुई बल्कि कृषि लागत चार गुना हो गई है.मेरा सुझाव है कि हमारे छत्तीसगढ़ में गौठान योजना चलाई जा रही है.उससे किसान स्वावलम्बी हो रहे हैं. केन्द्र सरकार इस योजना को पूरे भारत में लागू करने का विचार करे जिससे किसानों की आमदनी बढ़ेगी.
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